हमने उस 'चोटी कटवा' को खूब खरी-खोटी सुनाया..वह चुपचाप 'बोकबाय' देखते खड़ा रहा.हमने कहा-तुमको थोड़ी भी शरम नहीं कि हमारी बहु-ब...
हमने उस 'चोटी कटवा' को खूब खरी-खोटी सुनाया..वह चुपचाप 'बोकबाय' देखते खड़ा रहा.हमने कहा-तुमको थोड़ी भी शरम नहीं कि हमारी बहु-बेटियों,माता-बहनों की चोटी काट उन्हें दहशतजदा और परेशान कर रहे हो ? उन्हें डरा रहे हो ? अरे देश की आधी आबादी ( पुरुष लोग ) तो वैसे ही 'जी एस टी 'के भूत से डरे और परेशान हैं.उस पर तुम ससुरा ये चोटी काट के और अराजकता फैला रहे हो..अरे दादा..चोटी काटने का इतना ही शौक है तो दुबई जाओ..पाकिस्तान जाओ..'
' वहीं से तो आ रहे हैं..' उसकी भारी आवाज से लगा कि कोई बादल फट पड़ा..हम घबरा से गए..हिम्मत करके तस्दीक करने पूछा- ' कुछ कहा तुमने ? '
' हां जी..हम कह रहे- पाकिस्तान से ही तो आये हैं..'
पाकिस्तान का नाम सुन हमारी तो घिघ्घी ही बंध गई..लगा कि कोई आतंकवादी है और अब-तब 47 निकाल मुझे शहीद कर देगा..वैसे तो शहीद होना बड़े गर्व की बात है पर इस 'बाली' उम्र में शहीद होना मुझे भा नहीं रहा था..हमने साहस बटोर कर ,बजरंग बली का मंत्र जाप करते प्यार से पूछा- ' तो दादा..हमें ये बताओ..ये वाहियात काम तुम अपने मुल्क में क्यों नहीं करते ? इत्ते छोटे काम के लिए इत्ती दूर काहे को आये..'
' हमारे "आका" का फरमान है ..इसलिए..' वह गरजे टाइप बरसा.
'अरे..ये क्या फरमान हुआ कि हिन्दुस्तान जाकर हमारी माताओं-बहनों की चोटी काट आओ ? तुमने शायद गलत सुन लिया होगा.उसने कहा होगा - हिमालय की चोटी काट आओ..और तुमने हिमालय की जगह हिन्दोस्ताँ सुन लिया होगा..जाओ कटवा भाई..एक बार पाकिस्तान जाकर अपने आका से कन्फर्म कर आओ..यहां महंगाई वैसे भी बढ़ी हुई है..टमाटर के दाम सेब से भी ज्यादा हुए हैं ऐसे में तुम यहां अब 'नीबू-मिर्च' के भाव बढ़ाने आ धमके..तुम्हारे ख़ौफ़ से लोग-बाग़ सुबह-शाम दरवाजे पर नीबू-मिर्च लटकाने लगे हैं..डर है कि अब इनके भी दाम ना चढ़ जाए..'
' इक बात पूछूँ जी ? ' उसने विनती भरे स्वर में कहा तो मेरी हिम्मत और बढ़ गई..शरीर में खून का संचार अपने नार्मल लेबल से कुछ तेज हो गया.
' हाँ..हाँ..,पूछो..हम चेताने .मतलब कि बताने ही तो यहां खड़े हैं..'
' आपके मुल्क में हलके-फुल्के चीजों के दाम बढ़े होते हैं और भारी - भरकम के गिरे..ऐसा क्यूं ? '
' मतलब ? '
' मतलब कि टमाटर,प्याज से भी गिरे होते है आपके मंत्री-संत्री के भाव..'
हम सांसत में पड़ गए कि अब क्या जवाब दें..बात तो पते की कही थी..
हमने समझाया- 'जनाब.तुम पिछले जमाने की बात कर रहे हो..तब भ्रष्टाचार का दलदल पूरे वतन में रायते की तरह फैला था..गाहे-बेगाहे मंत्री-संत्री,नेता-अधिकारी गिर ही जाते थे..पर अबई ऐसी बात नहीं..टमाटर-प्याज के चढ़े न चढ़े,इनके हमेशा चढ़े रहते हैं..कहते हैं- पिछले तीन साल में कोई नहीं गिरा..कोई गिरता भी है तो ये मानने को तैयार नहीं होते..उसे पाक-साफ़ साबित करने में एड़ी-चोटी का जोर लगा देते है..सारे टी वी चैनलों में डिबेट करवा देते हैं..सरकार का एक बंदा तो हर चैनल में जाकर गिरने वाले की औकात को मेंटेन करने में जान की बाजी लगा देता है..इक बात बताओ कटवा भाई..आपके मुल्क में क्या होता है ? क्या वहां के मंत्री-संत्री भी..'
बात काटते उसने कहा - ' नहीं महाशय..हमारे यहां मंत्री-संत्री नहीं गिरते..सीधे सरकार ही गिर जाती है..' उसने दो टूक जवाब दिया.
' अच्छा बादशाओ..ये बताओ ..तुम्हारे मुल्क में टमाटर के क्या
भाव चल रहे ? '
' हमारे यहां टमाटर चलते ही नहीं जी..तो भाव-ताव क्या बताऊँ ? '
' अरे..तो फिर धरना-हड़ताल में तुम्हारे लोग फेंकते क्या हैं ? '
' अंडे जनाब..अंडे..सन्डे हो या मंडे..हमेशा चलते अंडे..'
' क्या सचमुच तुम्हारे यहाँ टमाटर नहीं होते ?
' हाँ जनाब..हम नहीं बोते.,जब आपके मुल्क से मिल जाता है तो बेकार की मेहनत कौन करे ? हाँ ..इन दिनों दाम बढे हैं तो हम सेब से ही काम चला रहे..'
' तभी तुम लोगों के गाल सेब की तरह होते हैं..हम लोगों को देखो..होते तो हम सांवले-सलोने हैं पर हमारे गाल टमाटर की तरह हमेशा लाल होते हैं..पर महंगाई के चलते इन दिनों पीला पड़ गया है..खैर छोड़ो इन बातों को..और अभी जाकर अपने आका-काका से कन्फर्म कर आओ कि आखिर उसने कहा क्या था ? मुझे तो अभी भी शक है कि तुमने गलत सुन लिया है..लापरवाही बरतने के जुर्म में तुम्हारे आका तुम्हें फांसी में लटका सकते हैं..सोच लो..' हमने उसे चमकाया.
' ठीक है जनाब..पर जाने से पहले एकाध चोटी और काट लें ? '
' काहे भई..इतनी तो काट चुके..क्या मन नहीं भरा ? '
' नहीं जनाब..वो क्या है ना..जब से आका ने कहा है- चोटी काटकर लौटना.तो ये हमारी आदत सी बन गई है..अब आदत धीरे-धीरे ही तो छूटेगी न..तो बुरा न मानें तो अंतिम चोटी काट लें ? 'उसने सविनय कहा तो हम भी ना न कह सके..और ओ के कह दिया..
इधर ओ के कहा और लगा कि अचानक अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई..इसके पहले कि उस चोटी कटवा आतंकवादी को दबोचता ,हमारी आँख खुल गई..श्रीमती जी हमें झाड़ू के पिछवाड़े से टोंच-टोंच कर,झिंझोड़-झिंझोड़ कर उठा रही थी..सपने से बाहर आये तो देखा- वो दहाड़ मार-मार के रो भी रही थी..
हमने धीरे से पूछा- ' का होगो ? तुम्हार बाबूजी गुजर गए क्या ? '
' हाय राम..तुम आदमी हो कि घनचक्कर..वो तो तीन महीने पहले ही गुजर चुके..'
' तो अब क्यों रो रही हो ?
' अरे ये देखो...कोई हमारी चोटी काट गया..' उसने मुट्ठी में दबी कटी चोटी दिखाते कहा.
' अच्छा..अब जरा चुप भी हो जाओ..हमें मालूम है- किसने काटी ..साला ..हमीं गलती कर बैठे उसे "अंतिम चोटी " का परमिशन दे के..रोओ मत..बिना चोटी के भी तुम सुन्दर लग रही हो..एकदम लन्दन की मेम तरह..'
गुस्से से कटी चोटी मुंह पर फेंकते बोली ' तुम तो सो-सो के पगला गए हो..न तुम्हें मेरी चोटी से प्रेम है न ही मुझसे..मैं मायके जा रही..अब ढूंढो किसी चोटी-कटी लन्दन की मेम को..और पैर पटकती वो चली गई...
हमें समझ ही नहीं आया कि चोटी-कटवा सपने में आया था कि सचमुच ही आया था..
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- प्रमोद यादव
गया नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़
मो.-9993039475
E mail-pramodyadav1952@gmail.com
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पढ़कर मज़ा आया. हास्य व व्यंग्य का सुन्दर मिश्रण. प्रमोद यादव जी को बधाई.
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