तेरे इश़्क ने मुझे बदनाम कर दिया, महफिल में रूसवा हर बार कर दिया। धीरे धीरे करके तोड़ दिये सारे सपने, और ऊपर से बेवफ़ा में नाम कर दिया। अभी ...
तेरे इश़्क ने मुझे बदनाम कर दिया,
महफिल में रूसवा हर बार कर दिया।
धीरे धीरे करके तोड़ दिये सारे सपने,
और ऊपर से बेवफ़ा में नाम कर दिया।
अभी तो साल 18वां हैं मेरी जिदंगी का
अभी से बुजुर्गों में शुरू नाम कर दिया।
कोई मसला ना मिला बगावत के लिये,
तो अपना सारा इल्जाम मेरे सर कर दिया।
दूर हैं अभी मंजिल मेरी,ये सोचकर तुमने
हाथ दरिया में पकड़ने से इनकार कर दिया।
डूबते डूबते बचे ना जाने रहमत से कैसे
ना जानें किसने मुझपर उपकार कर दिया।
आकर तो देखो "ललित" के पास तुम कभी
कहां तुम्हारे लिये आंसू बहाना कम कर दिया।
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महफ़िल में जाने से डर लगता है,
हाल दिल सुनाने में डर लगता है।
कह ना दे कोई रांझा यहां मुझको,
अब तो मुंह दिखाने से डर लगता है।
कब तक छुपाऊं मैं पहचान अपनी,
नाम उनका जोड़ने से डर लगता है।
कभी नहीं हुयी आंखें चार आज तक
अब तो नजर लड़ाने से डर लगता है।
कह रहा हूँ कब से गैरों से तेरे बारे में
तुमसे बात करने में जो डर लगता है।
समझ गयी हो अब तो तुम बातें सारी,
तुमको भी,प्यार जताने में डर लगता है?
खुलकर कह दो जो बात हैं आज तुम
या 'ललित' को अपनाने में डर लगता हैं।
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हाल दिल का अब सुनाया नहीं जाता,
किसी और से दिल लगाया नहीं जाता।
धीरे धीरे हो गये हैं कई दिन मिले हुये,
फिर भी चेहरा तेरा आंखों से नहीं जाता।
पहले तो रोज हुआ करते थे दीदार तेरे
अब तो मैं तेरी गली में भी नहीं जाता।
जरा तुम भी कर लो एहतराम रिश्तों का
हर किसी पर मेरा दिल भी नहीं जाता।
'ललित' को समझ रहा हैं अब ये जमाना
मुझसे बस तुमको ही समझाया नहीं जाता।
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हर एक बुझते हुये पल को बदल देती हैं
जिन्दगी मुश्किलें देती हैं तो हल देती हैं।
सूरज भी तो चमक सीधे नहीं करने पाता
हवा उसकाे भी तो दिन में मोड़ देती हैं।
रात अपने मिजाज से यूं हो गयी हैं कड़ी
सारे सपनों को पल में ही इब तोड़ देती हैं।
अपनी लम्बाई में नहीं रह पाता हैं कोई
धूप सब को तो परछायी में बदल देती हैं।
हम बेहतर हैं और भी हो बेहतर ललित
उसकी बातें नहीं खराब होने देती हैं।
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साथ छोड़कर मुश्किल जीना कर लिया,
खायी कसमों का भी हिसाब कर लिया।
पलड़ा वजन हैं मेरा,चाहे पूछ लो जिससे,
फिर मत कहना कि हमने धोखा कर लिया।
तुमने कहा अब इनायत कर दो मुझ पर,
हमने जीस्त को आंसुओं से सावन कर लिया।
तुझे पाकर पहुंच गये थे हम मंजिल पर
यही सोचकर साफ माथे का पसीना कर लिया।
छोड़ दिया साथ 'ललित' का तुमने इस तरह
दिखा उनमें क्या जो उनकी ओर हाथ कर लिया।
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कुछ मीठा कुछ कड़वा
लगता हैं सबको स्वभाव हमारा।
नहीं कहते खुलकर सबसे
कर बैठा हैं दिल प्यार बेचारा।
जब भी तुमको देखूं तो
दिल जोर जोर धड़कता हैं।
हर वक्त हार्ट फेल होने का
इक खतरा सा बना रहता है।
कैसी पसंद हुयी मेरी जो
तुमसे ही मैंने प्यार किया।
ढाई अक्षर ही कहने को
सालों तक का इंतजार किया।
मिली नहीं अकेले में कभी
कितना वक्त बर्बाद किया।
पता लग गया हैं तुमको भी
मैंने तुमसे ही बस प्यार किया।
अब तुम्ही कह दो लव यू टू
नहीं हो रहा और इंतजार यहां।
जमाने को ना मुड़कर देखो
बातें कर रहा सारा संसार यहां।
दिव्य दृष्टि तो है नहीं संजय सी
जो तेरी दिल की बात जान सकूं।
कैसे समझाये 'ललित' दिल को
तुम्ही बतलाओ क्या उपचार करूं।
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आया सावन, देखो कैसा
चारों ओर बदलाव हुआ।
भर गये सारे ताल तलैया,
उपलब्ध पशुओं का आहार हुआ।
नहीं रही हरियाली की कमती
हरा भरा सारा संसार हुआ।
सबके हृदय प्रफुल्लित हो गये
जो धानों में जल का ऐसा भराव हुआ।
अब कुछ दिन रूक जाओ सावन
कई जगहों पर बहुत नुकसान हुआ।
नहीं कह रहा हैं 'ललित' खुलकर
बही कई बस्ती और जीना दुशवार हुआ।
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बडे अदब से पेश आती हैं ये हवायें,
ये भी तुझ जैसी लगती कड़क सी हैं,
जब मन करता हैं बदल लेती हैं राहे,
लगता तुझ जैसी कुछ डरपोक सी हैं।
बात बात पर करती हैं जिद ये अपनी,
स्वभाव में कुछ कुछ तुम जैसी ही हैं,
उन्हें पता नहीं बदल ना पायेगी मुझको,
कर रही ये सारे प्रयास फिजूल ही हैं।
अभी वक्त हैं कह दो इनसे सम्भल जाये,
टकरायेगी हमसे तो चकनाचूर हो जायेगी,
फिर भी क्यूँ करती रहती ये तंग मुझको,
इस बात को क्यों नहीं लेती गम्भीर सी हैं।
अब फिर क्या वो मेरा रूख बदल पायेगी,
सम्भालो इन्हें वरना फूलों सी बिखर जायेगी,
तुम कहती हो तो 'ललित' फिर मान जाता हैं,
अब ये मत कहना मुझसे ही तेरी मुस्कान ये हैं।
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ना राधा हैं ना मीरा हैं, ना है कोई उन जैसी,
करे जो प्यार दिलवर से नहीं कोई यहाँ वैसी,
यहाँ रूकमणी बनके करती जिद सभी अपनी,
जो मानो ना बात उनकी,तो रहती नहीं अपनी,
यहाँ गुलाब हैं चमेली हैं, हैं रातरानी तब जैसी,
मगर खुशबू नहीं वैसी जैसी तब राम ने सूंघी,
यहाँ दुग्ध हैं मक्खन हैं, नहीं करता कोई सेवन,
घर में अब रखी हैं सबने मदिरा की इक पेटी,
यहाँ मन्दिर हैं मस्जिद हैं, नहीं करता कोई पूजा,
चलते हैं उनके पीछे जिनसे बात करता हैं दूजा,
यहाँ रांझा हैं मजनू हैं, और हैं कई प्रेमी उन जैसे,
ना हीर हैं ना लैला हैं ना कोई प्रेमिका उन जैसी,
अब तो बात करो उनसे लगता डर अजब कैसा,
तभी मशवरा हैं "ललित" करना प्यार नहीं ऐसा।
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श्याम श्याम रटते रटते जुबां सूख गयी हैं श्याम
आया नहीं तू मोहन ये रूह कर रही हैं इंतजार
तेरी विरह में दिल तड़पे,नहीं करता हैं कोई काम
दे उपदेश रहा ऊधव हैं जैसे वो हो कोई भगवान
श्याम श्याम....
कह गये परसों आऊंगा,अब बीत गये कई साल
तेरे एक दर्शन को आँखों से बह रही हैं अश्रुधार
विष पीने को जी हैं,मगर तेरे मिलन की भी हैं आस
कैसे समझाऊं मैं दिल को जिसमें बस तेरी ही हैं प्यास
श्याम श्याम.....
वो बंशी की मधुर वाणी एक बार फिर सुना दो श्याम
हमारे उर से क्यूं कर रहे हो खिलवाड़ अब श्याम
बन गया हैं ऊधव मूर्ख जो था जग का प्रचंड विद्वान
प्रीति की रीति अब निभा दो वरना तो चिता हैं ही तैयार।
श्याम श्याम.....
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ललित प्रताप सिंह
रायबरेली उत्तर प्रदेश
नीरजा हेमेन्द्र की कवितायें पढ़ा।बहुत अच्छी लगीं।उम्मीद है भविष्य में और उम्दा रचनायें पढ़ने को प्राप्त होंगी। बहुत -बहुत बधाई।
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