आधुनिक काल में मनुष्य की जिंदगी में भाग-म-भाग बढ़ने व अधिक काम के बोझ के तले और व्यर्थ की बातों को दिमाग में सदैव रखने से वह मनोवैज्ञानिक रू...
आधुनिक काल में मनुष्य की जिंदगी में भाग-म-भाग बढ़ने व अधिक काम के बोझ के तले और व्यर्थ की बातों को दिमाग में सदैव रखने से वह मनोवैज्ञानिक रूप से तनाव ग्रस्त जीवनयापन कर रहा है | हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां लोग घर के भीतर और ऑनलाइन समय अधिक से अधिक बिताते हैं -विशेष रूप से बच्चों पर इसका विशेष प्रभाव होता है। स्वस्थ, खुश और अधिक रचनात्मक जीवन का नेतृत्व करने के लिए प्रकृति में अधिक समय बिताने बहुत जरुरी है। प्रकृति हमेशा हमारी भलाई का सोचती है,परिणाम दिखाते हैं कि जो लोग जंगलों में अपना समय बिताते हैं , उनमें हृदय की निम्नतम और उच्चतर गति में परिवर्तन काफी कम था और शहरी जीवन में चलने वाले लोगों की तुलना में उनमें बेहतर मूड और कम चिंता पायी गई। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि प्रकृति में कुछ ऐसा है जो तनाव में कमी,बेहतर खुशी और सुखमय जीवन के लिए प्रेरित करता है।
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स्ट्रेयर की अवधारणा यह है कि प्रकृति के सान्निध्य में prefrontal cortex,मस्तिष्क के कमांड सेंटर को आदेशित कर आराम करने की अनुमति प्रदान करताहै, जिससे ज्यादा काम करने वाली पेशियों को आराम मिलता है और ईईजी (EEG)प्रदर्शित करता है की "मिडलाइन फॉर्टल थीटा तरंगों" से आने वाली ऊर्जा का कम क्षरण हो रहा है जो वैचारिक सोच और निरंतर ध्यान के लिए एक आवश्यक ऊर्जा केंद्र है।
मोटापा ,अवसाद ,आत्मबल की क्षीणता ये सारी बीमारियां अधिकांशतः उन्हें ही होती हैं जो प्रकृति से दूर होते हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि एक समय जो चीजें हमें देवीय और रहस्मयी लगती थीं जैसे ह्रदय की धड़कने ,हार्मोन के परिवर्तन ,मस्तिष्क की तरंगें ये सभी प्रकृति से प्रेरित हैं और इन सब सवालों के उत्तर प्रकृति में छुपे हुए हैं। 2009 में डच के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक सर्वे किया जिसमें उन्होंने सिद्ध किया कि ग्रीन बेल्ट से आधा मील की दूरी पर रहने वाले लोगों में अवसाद, चिंता, हृदय रोग, मधुमेह,अस्थमा और माइग्रेन कुल 15 रोगों की घटनाएं शहर में रहनेवाले लोगों से कम पाई गईं। और 2015 में एक अंतरराष्ट्रीय टीम 31,000 से अधिक टोरंटो निवासियों से स्वास्थ्य प्रश्नावली कर उनकी प्रतिक्रियाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि प्रकृति के सान्निध्य में रहने वाले का ह्रदय और मेटाबोलिक क्रियाएं शहर के कांक्रीट में रहने वाले लोगों की अपेक्षा ज्यादा सुचारु और अधिक ऊर्जा स्तर से काम करते हैं। ऐसे लोगों में ग्रीन स्पेस में रहने के कारण कम मृत्यु दर और हार्मोन में कम तनाव रहता है जिससे व्यक्ति खुश और प्रसन्न दिखता है। प्रकृति में थकान को कम करने की क्षमता के कारण हमारे अंदर रचनात्मकता बढ़ जाती है।
आज, हम लगातार हमारे ध्यान खींचने वाली सर्वव्यापी तकनीक के साथ रहते हैं। लेकिन कई वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारा मस्तिष्क इस तरह की जानकारी के लिए नहीं बना है जिसमें हर समय सूचनाओं की बमबारी होती रहे इससे हमारे अंदर मानसिक थकान, अवसाद और न जाने कौन कौन सी बीमारियां घर कर जाती हैं और हमें मृत्यु की ओर धकेल देती हैं। ऐसे में सामान्य, स्वस्थ स्थिति में वापस आने के लिए "ध्यान की बहाली" आवश्यक होती है जो सिर्फ प्रकृति के सान्निध्य से ही प्राप्त हो सकती है। प्रकृति हमें दयालु और उदार बनाती है। जब कभी भी मैं प्रकृति के सान्निध्य से लौटता हूँ तो अपने परिवार के प्रति खुद को ज्यादा समर्पित पाता हूँ।
अनेक विद्वानों ने शोधों में यह पाया है कि प्रकृति के सान्निध्य में सकारात्मक ऊर्जा हमारे अंदर प्रवाहित होने लगती है जिससे हमारे व्यवहार में उदारता ,विश्वास और दूसरों की सहायता के भाव प्रवाहित होने लगते हैं। अपने खोजों के दौरान वैज्ञानिकों और मानवशास्त्रियों ने यह सिद्ध किया है कि जो व्यक्ति सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों के समीप रहते हैं वो हमेशा सकारात्मक भावों से भरे होते हैं।
प्रकृति का प्रभाव इतना अधिक होता है कि वर्ष में परिवर्तित होने वाले मौसम में भी मनुष्य के मन-मस्तिष्क को प्रभावित एवं परिवर्तित करते हैं। शोध से ज्ञात होता है कि वे लोग जो मानसिक समस्याओं में घिरे हुए हैं, वे प्रकृति के सान्निध्य में बेहतर महसूस करते हैं। प्रकृति में रंगों की विविधता भी मानव के व्यवहार और उसके मनोबल को प्रभावित करती है। नीला आसमान, हरी-भरी धरती, रंग-बिरंगे फूल और सुन्दर कलियां यह सब मनुष्य के शरीर और उसकी आत्मा पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इस बारे में ईरान के मनोविशेषज्ञ डा. इब्राहीमी मुकद्दम का कहना है कि जिस तरह प्रकृति में हमारे इर्द गिर्द हरा, नीला, लाल और पीलेरंग बहुतायत में दिखाई देते हैं और हमारी आत्मा तथा शरीर पर इन रंगों का उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है। आकाश का नीला रंग शांति, सहमति, स्वभाव में नर्मी तथा प्रेम का आभास कराता है। हरा रंग, संबंध की भावना तथा आत्मसम्मान की भावना को ऊंचा रखता है। लाल रंग कामना, उत्साह तथा आशा, विशेष प्रकार के आंतरिक झुकाव को उभारता है। सूर्य का पीले रंग का प्रकाश और कलियों का चटखना भविष्य के बारे में सकारात्मक सोच तथा कुछ कर गुजरने की भावना उत्पन्न करती है। यह मस्तिष्क प्रकृति के अनुभव की पूर्ण व्याख्या कभी नहीं कर सकता क्योंकि प्रकृति अनंत है। कुछ बातें हमेशा रहस्यमय हमेशा रहेंगीं शायद ऐसा होना भी चाहिए। हम जब प्रकृति की गोद में जाते हैं तो इसलिए नहीं कि हमसे विज्ञान ऐसा करने को कहता है बल्कि इसलिए क्योंकि हमारे अंदर के जीन इसी प्रकृति की देन है हम सभी इसी प्रकृति की संतान हैं और माँ की गोद से सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक कोई दूसरी जगह नहीं हो सकती।
प्रकृति गोद अनुपम अचल
सदा स्वास्थ्य सुख धाम।
प्रकृति के सान्निध्य में
मन पाए आराम।
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