आप सुबह उठते हैं और अखबार को देखकर शेयर बाजार और राजनीति व समाज के बारे में कुछ नये नवाचारों या अच्छी खबरें देखने की उम्मीद करते हैं, लेकिन ...
आप सुबह उठते हैं और अखबार को देखकर शेयर बाजार और राजनीति व समाज के बारे में कुछ नये नवाचारों या अच्छी खबरें देखने की उम्मीद करते हैं, लेकिन सुबह की चाय के साथ बलात्कार, हत्या, चोरी और भ्रष्टाचार की कहानियां मन को व्यथित करती हैं । जब आप काम पर जाते हैं और फेसबुक खोल कर बैठते है वैसे ही आप सोशल मीडिया पर पूर्वाग्रह, पर्यावरण गिरावट, जातिवाद नकारात्मक ख़बरों की बाढ़ आपका इंतजार करती है। आप घबड़ा कर मोबाइल बंद करते हैं दिन भर अनमने ढंग से काम निपटाते हैं। आप वापस आते हैं और टीवी पर एक समाचार चैनल को खोलने पर एक मिलियन डॉलर के घोटाले के बारे में सुनते हैं। आप अपने सिर को हिलाते हैं, और इन सभी नकारात्मक ख़बरों की वजह से गुस्से को पीते हुए आप हाथ मलते रहते हैं क्योंकि आप कुछ कर नहीं सकते। कल ही गोरखपुर के एक अस्पताल से करीब 60 बच्चों की मौत की खबर ने अंदर तक हिला कर रख दिया।
और यह चक्र हर रोज़ चलता है प्रत्येक दिन कई नकारात्मक ख़बरें आपके मन मस्तिष्क को नीचे की और धकेलती हैं। ऐसा क्यों होता है यह प्रश्न बार बार आपके जेहन में उभरता है। आइये इसके कुछ पहलुओं पर विश्लेषण करें। हमारे लोकतंत्र के 4 स्तम्भ हैं 1. कानून (सरकार), 2. निष्पादन (पुलिस, आदि), 3. न्यायपालिका 4. मीडिया हैं। सद्भाव तब आता है जब ये सभी स्वतंत्र रूप से कार्य करते है जो मिश्रित होकर एक सुसंगत तंत्र जो नागरिकों की सुरक्षा और उनके जीने की अभिव्यक्ति को नया आयाम देता है और देश को आगे ले जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से, आज के परिदृश्य में, सब कुछ जुड़ा हुआ है। सरकार अन्य तीनों को उसके प्रभाव, शक्ति और धन के माध्यम से नियंत्रित करती है। जब ऐसा होता है, तो हर कोई भ्रष्ट होता है - या तो बल द्वारा या पसंद के द्वारा सब अपने स्वार्थसिद्धि में लग जाते हैं एवं इन भ्रष्ट लोगों में डर की कमी होती है अगर कोई राजनीतिज्ञ जिसे यह डर हो कि पुलिस उसे पकड़ेगी और उसकी हड्डियों को तोड़ देगी या मीडिया उसे बेनकाब कर देगी? तो क्या वह अपराध कर सकेगा या भ्रष्टाचार में लिप्त होगा ?लेकिन जब वह पाता है कि मैं गलत कर बच सकता हूँ तो वह अपने नीचे के लोगों को प्रभावित करता है और नकारात्मक सोच को प्रश्रय देता है। अपराध में वृद्धि होती है बुरे लोगों का आत्मविश्वास बढ़ता है।एक राष्ट्र के रूप में, हमें आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत हैं।
आज देश में विचारधाराओं का टकराव है एक विचार धारा जिसे राष्ट्रविरोध समझती है दूसरी विचार धारा के लिए वह आज़ादी है। अपने राजनैतिक स्वरहों के कारण लोग राष्ट्रविरोध से भी गुरेज नहीं करते और उसे जस्टिफाई भी करते हैं। बोलने की अभिव्यक्ति के नाम पर हम देशद्रोही नारों चरित्र हनन की घटनाओं से रोज ही रूबरू हो रहे हैं। ये सभी स्थितियां देश में नकारात्मक वातावरण के निर्माण में सहायक हो रहीं हैं।
आज युवाओं में नकारात्मकता जन्म ले रही है। उनमें धैर्य की कमी स्पष्ट परिलक्षित होती है। वे हर वस्तु अति शीघ्र प्राप्त कर लेना चाहते हैं. वे आगे बढ़ने के लिए कठिन परिश्रम की बजाय शॊर्टकट्स खोजते हैं। भोग विलास और आधुनिकता की चकाचौंध उन्हें प्रभावित करती है। उच्च पद, धन-दौलत और ऐश्वर्य का जीवन उनका आदर्श बन गए हैं। कई बार वे मानसिक तनाव का भी शिकार हो जाते हैं। आखिर क्यों बढ़ती जा रही है समाज में यह नकारात्मक प्रवृत्ति? इस प्रश्न के उत्तर हमें आज खोजने ही होंगे क्योंकि कोई भी समाज नकारात्मकता से भरी सोच लेकर प्रगति नहीं कर सकता, बल्कि निरंतर अवनति की ओर ही बढ़ता जाता है।
नकारात्मकता को दूर करने में मेरी भूमिका
1.अपनी तरफ से , भ्रष्टाचार में भाग लेना बंद करें याद रखें - आप उस पानी की बूंद हैं जिससे एक महासागर भर सकता है।
2. नकारात्मकता के प्रभाव से अपने को दूर रखें अपने अंदर के सकारात्मक विचारों के लावा का भंडारण रखें सही समय पर इसका प्रयोग करें ।
3. खबरों के बारे में सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूकता को बढ़ावा दें। 4. एक ही बार में सभी समस्याओं का मत सोचो।
5. सभी समस्याओं को एक दस्तावेज की तरह अपने अंदर रखें।
6 . समस्याओं को मस्तिष्क पर हावी न होने दें उनकी पूरी जानकारी इकठ्ठी करें और नकारात्मकता से लड़ें।
7. नकारात्मकताओं का विश्लेषण करें और उनका ठन्डे दिमाग से उपाय खोजें।
8. प्राथमिकताओं के आधार पर नकारात्मक स्थितियों से लड़ने की कोशिश करें।
नकारात्मकता हटाने के कुछ कारगर उपाय
हमारी कल्पनाएं, हमारे सपने तय करती हैं। सपने लक्ष्य तय करते हैं। व्यक्तित्व व विचारों की सुरक्षा के लिए यह तय करना जरूरी है कि हमें क्या सुनना है, क्या नहीं सुनना है। जीवन में बढ़ रही चुनौतियों के कारण अवसाद, नकारात्मकता, असफलता, असुरक्षा, अहंकार दरवाजे पर ही खड़े हैं।
युवाओं के उचित मार्गदर्शन के लिए अति आवश्यक है कि उनकी क्षमता का सदुपयोग किया जाए. उनकी सेवाओं को प्रौढ़ शिक्षा तथा अन्य सरकारी योजनाओं के तहत चलाए जा रहे अभियानों में प्रयुक्त किया जा सकता है. वे सरकार द्वारा सुनिश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के दायित्व को वहन कर सकते हैं. तस्करी, काला बाजारी, जमाखोरी जैसे अपराधों पर अंकुश लगाने में उनकी सेवाएं ली जा सकती हैं।
प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के इस दौर में कहीं भी घटित होने वाली वारदात की खबर जंगल की आग की तरह फैलती है। कहीं-कहीं इस प्रकार की घटनाएं जहां जागरूक एवं संवेदनशील लोगों को व्यथित कर देती हैं, तो वहीं कुछ शरारती एवं स्वार्थी तत्त्व इन्हीं घटनाओं की आड़ में अपना स्वार्थ साधते नजर आते हैं। अतः हमें ऐसी ख़बरों और सूचनाओं की सच्चाई जानकार ही उनमें विश्वास करना चाहिए। मीडिया को अपने स्वरूप में परिवर्तन लाना होगा। एक स्त्री को लगातार शोषण की वस्तु, उपभोग की वस्तु बनाकर परोसा जा रहा है, अगर वह नजरिया बदला नहीं गया तो उसका खामियाजा हम ऐसे ही अपराधों की बानगी के रूप में पाते रहेंगे। नारी की सुंदरता व उसके शरीर को जिस प्रकार से टीवी, फिल्मों व अखबारों तक में निरंतर उघाड़ कर प्रस्तुत किया जाता है, वह शर्मनाक है। मीडिया एक तरफ समाज बदलने की बात करता है, वहीं उसी समाज बदलने वाले कार्यक्रम के तुरंत बाद ही नारी की भोग्या प्रस्तुति के विज्ञापनों की बौछार हो जाती है। ऐसे में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या आदर्शों की बात बघारते मीडिया के लिए व्यावसायिकता का प्रश्न उठते ही सारे आदर्श ध्वस्त हो जाते हैं।
भारत विकास के एक ऐसे चरण में है, जहाँ हमें अपने चारों ओर ऐसा सुरक्षा कवच विकसित करना है ताकि हम अपने आस-पास की समस्याओं से विचलित न हो जाएं। अगले कुछ दशकों में हम प्रमुख मुद्दों पर काम करना हैं और उन मुद्दों के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कठिन अभियान चलाये जाने की आवश्यकता है , हमें इसे ठन्डे और विश्लेषणात्मक तरीके से देखने और उन चीजों को दूर करने के लिए तैयार रहना होगा जो गरीबी को हटाने में बाधक बन रहीं हैं। कवि तुलसीदास जी ने भी कहा है कि, ‘बड़े भाग मानुस तन पावा, सुर दुर्लभ सब ग्रंथहि गावा।’ ईश्वर ने हमें विवेक और बुद्धि से सुशोभित किया है। लिहाजा हमें ईश्वर प्रदत्त इन दुर्लभ गुणों का सदुपयोग करना चाहिए। किसी भी व्यक्ति के विकास में सहिष्णुता एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, लेकिन आधुनिक जीवन शैली से मानवीय जीवन असंतोषजनक बनता जा रहा है। एक विचार धारा व्यक्ति को अलकायदा व दूसरी इंफोसिस की और ले जाती है। इसका प्रयोग अच्छे व बुरे दोनों के लिए हो सकता है। इससे हम अज्ञान के घोड़े को चीर भी सकते हैं व किसी की गर्दन भी चीर सकते हैं। यह हमें तय करना है कि हमने अपने ज्ञान, विवेक व बुद्धि का कहां व कैसे प्रयोग करना है। हम सही व सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ें इसके लिए तय कीजिए अपने ज्ञान का कैसे रचनात्मक प्रयोग करना है। मानसिकता को परिवर्तित करने में सभी को अपना-अपना योगदान देना होगा। शायद देश परिवर्तन के संक्रामक दौर से गुजर रहा है जहां पर इसे ऐसे हादसों का रूप दिखाई देता है। यही समय है कि अब धीरज के साथ समय में आए बदलावों को आत्मसात करते हुए प्रयास किए जाएं। समाज में पैदा हुई खाई को पाटने की दरकार है।
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हमारे यहां 95% लोग घर्म जाती भेदभाव और रँग भेद करनेवाले लोग है । ऐसे लोगोँ मेँ नकारात्मक सोच ही तो होगी ।
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