जो रचता है वह मारा नहीं जाता है / डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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हि‍न्‍दी के सुप्रसि‍द्ध कवि भगवत रावत की कविताओं को पढ़ते हुए लगता है, जैसे हम देश के उन आम-आदमियों से मिल रहे हैं जो इस पृथ्वी को कच्छप की ...

हि‍न्‍दी के सुप्रसि‍द्ध कवि भगवत रावत की कविताओं को पढ़ते हुए लगता है, जैसे हम देश के उन आम-आदमियों से मिल रहे हैं जो इस पृथ्वी को कच्छप की तरह अपनी पीठ पर धारण किये हुए हैं पर उन्हें न इस बात का न भान है और न गुमान। उस आदमी को देख रहे हैं जो चारों और फैली हुई/स्थिर और कठोर चट्टानों की दुनिया के बीच..झाड़ियों में सूखे डंठल बटोरकर/आग जलाता है। उससे बातचीत कर रहे हैं जो अपनी पहचान के लिये जूझ रहा है। उस आदमी के सुख-दुःख बाँट रहे हैं जो जीवन भर दूसरों का माल-असबाब ढोता रहा फिर भी गरीबी का बोझ नहीं उतार पाया है। आज बीत रहे साल में तब जबकि देश का राजनीतिक परिवेश 'आम आदमी' की चर्चा में कुछ ज़यादा ही मशगूल नज़र आ रहा है,लाज़िम है कि रावत जी के कवि ह्रदय से इस आम आदमी की फितरत को ज़रा गहराई से समझा जाये।

भगवत रावत की कवितायें भरोसा दिलाती हैं कि अभी दुनिया इतनी ‘गलीज नहीं हुई है कि हम इससे भागने की सोचें और एक सम्‍वेदनशील व्यक्ति के रहने योग्य न समझें, आशा एवं सुख के अनेक द्वीप अभी बचे हुए। पल-पल के हिसाब वाले इन दिनों में अभी भी सम्‍भव है- न कोई रिश्तेदारी, न कोई मतलब/न कोई कुछ लेना-देना, न चिट्ठी पत्री/न कोई खबर, कोई सेठ न साहूकार/एक साधारण सा आदमी/पाटता तीस-पैंतीस से ज्यादा वर्षों की दूरी/खोजता-खोजता, पूछता-पूछता घर-मोहल्ला/वह भी अकेला नहीं पत्नी  को साथ लिये/सिर्फ दोस्त की बेटी के ब्याह में शामिल होने चला आया। भगवत रावत ऐसे आत्मीयता भरे क्षणों को कविता की विषयवस्तु बनाकर उसे जीवनधर्मी बना देते हैं।

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कविता में सौंदर्य की प्रस्थापना के लिये उन्हें कहीं विशिष्ट की खोज में नहीं जाना पड़ता है। रास्ते में पड़े उबड़खाबड़-खुरदुरे पत्थर को उठाकर सुन्‍दर मूर्ति बना देने का अद्भुत हुनर उनके पास था। जीवन के छोटे-छोटे क्षणों को ही संश्‍लि‍ष्टता की बदौलत बड़ी कविता का रूप दे देते हैं। यह उनकी जीवन के प्रति गहरी रागात्मकता का प्रमाण है। इसी का बल है वह उन लोगों को देख पाते हैं जो- बैलों के साथ जुते/अपना बदन तोड़ते/हंसिए की तेज धार से/अपनी उम्र काटते’ हैं। उन्हें इस बात पर अपराध बोध भी होता है कि- हमेशा आगे बढ़ गया/पत्थरों से निकली हुई उनकी चिंगारियों को/कभी अपने जिस्म पर नहीं लिया/तांगा हाँकते हुए/उनके हाथों से/कभी घोड़े की रास/ अपने हाथों में नहीं ली। ऐसा वही कह सकता है जिसे इस वर्ग  से गहरी आत्मीयता हो और उनके श्रम की कीमत को पहचानता हो। जिसके सृजन का केन्‍द्र क्रियाशील जीवन हो। इसलिये बहुत कम भरोसे के लायक बची इस दुनिया में भी उनकी कविता एक ‘भरोसा’ प्रदान करती है।दृढ़ विश्वास भी कि ‘एक न एक दिन उसकी सच्चाई रंग लायेगी।’

भगवत रावत की कवितायें उन मित्रों की तरह हैं जो हमसे दूर रहते हुए भी जरूरत पर हमारे पास आ प्रकट होते हैं और हमें ताजगी से भर देते हैं। बचपन के किसी दोस्त की तरह हमारे अकेलेपन में आकर हमारे कंधे पर हाथ रख ‘चुपचाप अपना बीड़ी का बंडल बढ़ा’ देती हैं। अकेले में भी हमारे भीतर बजती रहती हैं। जब भी उनकी कवितायें पढ़ता हूँ अपने-आप को समृद्ध पाता हूँ। लगता है अपने लोगों से मिलकर लौटा हूँ जिन्होंने–‘जोड़-जाड़कर जुटी घरेलू दुनिया में पले-बढ़े तमाम आदमियों की तरह घरेलू दुनिया से ज्यादा बड़े सुख का सपना कभी नहीं देखा’।

उनकी कवितायें दुनिया की आपाधापी से बच-बचाकर आती हैं इसलिये कवि पाठकों से अपील करता है कि उनसे हड़बड़ी में नहीं मिला जाये- कम से कम अपना पसीना सुखा सकें/इतना समय/उन्हें दें/उन्हें बस इतना अपना/हो लेने दें/कि वे आपसे/बातचीत किये बिना/वापस न जायें। वास्तव में उनकी कविताओं को धैर्य से पढ़ने की आवश्यकता है।

उनका विश्‍वास था कि वह जो लिखेंगे उसे अवश्य ही कोई न कोई, न केवल समझेगा, उससे प्रतिकृत और प्रभावित भी होगा। वह कविताओं को बार-बार पढ़े जाने का आग्रह करते थे क्योंकि विभिन्न मनःस्थितियों में कवितायें विभिन्न अर्थ छवियाँ देती हैं। उनकी कविता में हमारे समय के निशान बहुत व्यापक एवं गहरे हैं। वह अपने समय की घटनाओं, दुर्घटनाओं, छल, प्रपंच,  पाखंड, प्रेम, करुणा, संहार, षड्यंत्र, राजनीति को अपने कथ्य का मुख्य आधार बनाते हैं। उन्हें पता है, मनुष्यता को बचाने के नाम पर कैसे मनुष्यता का कत्ल किया जा रहा है। वह जीवन भर मनुष्यता की खोज करते रहे भले ही वह इस खोज के पीछे भागते-दौड़ते थक से गये पर हारे नहीं।

उनके लिए-दुनिया का सबसे कठिन काम है जीना/और उससे भी कठिन शब्द के अर्थ की तरह/रच कर दिखा पाना/जो रचता है वह मारा नहीं जाता है। यह बात आज उन्हीं के सन्‍दर्भ में सही सिद्ध भी हो रही है भगवत रावत कभी मर नहीं सकते। सर्जन के प्रति उनकी इतनी गहरी आस्था जीवन के प्रति आस्था का ही पर्याय है। जीवन उनके लिये खाना-पीना-सोना और ऐश करना कभी नहीं रहा न ही अपनों की खुशी के लिए जीना। बल्कि रच कर दिखाना रहा। भला ऐसा कवि कभी मर सकता है क्या? अपनी कविताओं से भगवत रावत हमेशा जिंदा रहेंगे। उनकी सादगी और विनम्रता हमेशा याद रहेगी।

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प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, शासकीय

दिग्विजय स्वशासी महाविद्यालय,

राजनांदगांव।

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रचनाकार: जो रचता है वह मारा नहीं जाता है / डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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