एक बार एक बहादुर डाकू अपने कंधे पर बन्दूक रखे घूम रहा था कि उसे दूर से आते तीन चोर दिखायी दिये। चोरों ने भी उस डाकू को देख लिया था सो वे छिप...
एक बार एक बहादुर डाकू अपने कंधे पर बन्दूक रखे घूम रहा था कि उसे दूर से आते तीन चोर दिखायी दिये। चोरों ने भी उस डाकू को देख लिया था सो वे छिप गये।
डाकू ने सीटी बजायी तो उन्होंने भी सीटी बजायी। इससे डाकू ने समझा कि वे उसी के साथी हैं सो वह उनके पास चला गया पर वहाँ जा कर देखा तो वे तो चोर थे।
जल्दी ही दोनों में गोलियाँ चलने लगीं परन्तु कोई चोर गोलियाँ चलाने में उस डाकू को नहीं पछाड़ सकता था। चोरों को अपनी हार देख कर बड़ा गुस्सा आया।
उस डाकू को गिरफ्तार करने और मारने की उनको एक तरकीब सूझी। वे उससे बोले - "चलो, आज एक अमीर अरब को लूटने चलते हैं।" डाकू राजी हो गया।
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रात होने पर वे चारों उस धनी अरब के घर पहुँचे। चोर अभी यह सोच ही रहे थे कि वे क्या करें कि इतने में डाकू ने एक छलाँग लगायी और उस अरब के घर की पहली बाड़ पार कर अन्दर घुस कर उसके घर का दरवाजा खोल दिया। चोर दरवाजे से अन्दर आ गये तो डाकू ने दरवाजा बन्द कर दिया।
इसके बाद डाकू फिर दूसरी बाड़ कूदा और दूसरा दरवाजा खोल कर चोरों को अन्दर घुसाया और फिर दूसरा दरवाजा भी बन्द कर दिया।
अब तक चोर बहुत डर गये थे। उन्होंने डाकू से पूछा - "भाई, तुमने ये दरवाजे क्यों बन्द कर दिये?"
परन्तु डाकू ने उनको कोई जवाब नहीं दिया और वह तीसरी बाड़ भी कूद गया। उसने तीसरा दरवाजा खोला, तीनों को फिर से अन्दर घुसाया और पहले की तरह यह तीसरा दरवाजा भी बन्द कर दिया।
रात काफी जा चुकी थी, सभी सो रहे थे। झोंपड़ी की फूस की छत को आसानी से हटा दिया गया। चोरों ने डाकू से कहा कि वहाँ जो बेचने के लिये चीजें रखी हुई थीं उनको वह अन्दर कूद कर बाहर निकाल कर उनको दे दे। सो उस डाकू ने वहाँ रखीं सारी चीज़ें उन तीनों चोरों को निकाल कर दे दीं।
इसके बाद उसने चोरों से कहा कि अब काफी हो गया है अब तुम दरवाजा खोलो तो मैं बाहर निकलूँ। पर चोर "बच्चू, अब तुम बाहर नहीं निकल पाओगे।" ऐसा कह कर सारा सामान बाड़े के बाहर ले जाने लगे।
पहले तो वह डाकू वहाँ से अपने आप ही बाहर निकलने की कोशिश करता रहा, फिर जब न निकल पाया तो चिल्लाया - "वह आकाश से तूफान की तरह आता है, धरती से भूचाल की तरह निकलता है, जल्दी करो कौफी बनाओ, प्रार्थना करो, घर में धूप जलाओ, पड़ोसियों को बुलाओ, दरवाजा खोलो, रोशनी जलाओ, मैं आ गया हूँ, अल्लाह का भेजा दूत।"
उसके ये शब्द सुन कर घर के मालिक की आँख खुल गयी, वह चिल्लाया - "ओ मेरे अल्लाह, यह सब क्या है? तूने यहाँ क्या भेजा है?"
उसने अपने नौकरों को उठाया। नौकरों ने जैसे ही दरवाजा खोला तो डाकू तो भाग गया। ये सब आवाजें सुन कर कुत्ते भी जाग गये थे सो दरवाजा खुलते ही वे भी चोरों के पीछे भाग लिये।
एक चोर को तो उन्होंने पकड़ लिया और उसके टुकड़े टुकड़े कर डाले। दूसरा डर के मारे बचने के चक्कर में और अँधेरे में देख न पाने की वजह से एक गड्ढे में गिर गया। तीसरा भी एक काँटे वाली झाड़ी में जा पड़ा।
डाकू ने बाहर आ कर देखा तो घर के बाहर बहुत सारा सामान पड़ा हुआ था। उसमें से उससे जितना सामान उठाया जा सका उतना उठाया और वह भी वहाँ से भाग गया।
सो दूसरे का बुरा चाहने वालों का यह हाल हुआ।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं.
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सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहां इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहां से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहां एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहॉ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहां इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी- www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहॉ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला- कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी- हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुंचा सकेंगे.
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