इथियोपिया के एक गाँव में मामो नाम का एक लड़का अपनी माँ के साथ रहता था। उसके पिता नहीं थे। मामो की माँ बहुत ही गरीब थी इसलिये वह अपनी माँ की स...
इथियोपिया के एक गाँव में मामो नाम का एक लड़का अपनी माँ के साथ रहता था। उसके पिता नहीं थे। मामो की माँ बहुत ही गरीब थी इसलिये वह अपनी माँ की सहायता करना चाहता था।
एक दिन वह एक किसान के पास गया और उससे उसे कुछ काम देने के लिए कहा। किसान भला था उसने मामो को अपने खेत पर कुछ काम दे दिया। जब मामो ने अपना काम खत्म कर लिया तो किसान ने उसके काम के बदले में उसको कुछ पैसे दिए।
जब मामो घर वापस जा रहा था तो उसने वे पैसे रास्ते में फेंक दिए। जब मामो घर पहुंचा तो उसने अपनी माँ को बताया कि आज उसने एक किसान के पास काम किया था।
माँ ने पूछा तो उसने तुम्हें पैसे दिये होंगे। तुम्हारे वे पैसे कहाँ हैं? मामो बोला वह तो मैंने फेंक दिये। इस पर उसकी माँ बहुत नाराज हुई और बोली - "आगे से ऐसा कभी नहीं करना बल्कि जिसके लिये तुम काम करो वह अगर तुम्हें कुछ दे तो उसको अपनी जेब में रख कर लाना।"
अगले दिन मामो फिर उसी किसान के पास गया और फिर उसका काम किया। काम खत्म होने के बाद किसान ने उस दिन उसको उसके काम के बदले में कुछ मक्खन दिया। अपनी माँ की बात याद करके मामो ने वह मक्खन अपनी जेब में डाल लिया।
रास्ते में गरमी थी सो घर आते आते वह मक्खन पिघल गया। जेब में से मक्खन पिघल पिघल कर टपकता रहा। मक्खन भी गया और उसके सब कपड़े भी खराब हो गये।
जब मामो की माँ ने यह सब देखा तो वह मामो पर फिर बहुत नाराज हुई और बोली - "मामो, इस तरह तुम मेरी सहायता नहीं कर रहे हो।"
मामो भी यह सुन कर बहुत दुखी हुआ क्योंकि वह सचमुच ही माँ की सहायता करना चाहता था। उसने माँ से कहा कि अगली बार वह ख्याल रखेगा।
अगले दिन जब मामो ने अपना काम खत्म किया तो उस किसान ने मामो को कुछ माँस दिया। मामो ने उस माँस को रस्सी से बाँधा और उसको जमीन पर घसीटते हुए घर की तरफ चल दिया।
कुछ कुत्तों ने वह माँस देखा तो वे मामो के पीछे लग गये और उन्होंने उसका सारा माँस खा लिया।
जब तक मामो घर पहुंचा तब तक उस माँस में से कुछ भी नहीं बचा था। उसकी माँ यह देख कर फिर बहुत नाराज हुई और बोली - "अगली बार तुमको जो कुछ मिले अपने कंधे पर रख कर लाना। समझे।"
अगले दिन किसान ने मामो से कहा - "कि वह उसके गधे को नदी पर नहलाने के लिये ले जाये।" मामो को अपनी माँ के शब्द याद आये तो उसने उस गधे को अपने कंधे पर रख लिया और नदी की तरफ चल पड़ा।
रास्ते में रास डेमिसी का घर पड़ता था। रास डेमिसी की बेटी बहुत बीमार थी। वह हमेशा उदास रहती थी हंसती ही नहीं थी। रोज वह उदास चेहरा लिये गुमसुम सी अपनी खिड़की के पास बैठी रहती और खिड़की से बाहर देखती रहती।
कोई डाक्टर उसका इलाज नहीं कर पा रहा था। कोई उसकी कुछ सहायता भी नहीं कर पा रहा था।
जब मामो गधे को अपने कंधे पर रख कर नदी की तरफ ले जा रहा था तब भी वह अपनी खिड़की में बैठी बाहर ही देख रही थी। जब उसने मामो को कंधे पर गधे को उठाये देखा तो उसको बड़े ज़ोर से हंसी आ गयी। तो वह तो हंसते हंसते लोट पोट ही हो गयी।
उसकी हंसी की आवाज सुन कर सारा घर वहाँ आ गया। सब बहुत ही खुश हुए कि जो काम बड़े बड़े डाक्टर नहीं कर सके वह काम मामो के एक छोटे से काम ने कर दिया।
उस घटना के बाद तो वह उसको याद कर करके अक्सर ही हंसती रहती। कुछ ही दिनों में वह ठीक हो गयी।
रास डेमिसी ने अपनी बेटी की शादी मामो से कर दी। अब मामो की माँ गरीब नहीं रही। सब लोग खुशी खुशी रहने लगे।
यह कहानी "बेवकूफ जैक" जैसी है पर वह कहानी इससे ज़्यादा पूरी और तर्कसंगत लगती है। ऐसा लगता है कि श्लोमो के जिस विद्यार्थी ने यह कहानी उसको सुनायी, उसने उसको यह कहानी पूरी नहीं सुनायी। पर श्लोमो क्या करता, उसको तो जो कहानी सुनायी गयी उसने वही कहानी लिख दी।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं.
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सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहां इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहां से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहां एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहॉ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहॉ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी- www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहॉ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला- कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी- हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुंचा सकेंगे.
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