यह अफ्रीका के इथियोपिया देश की एक ऐसी लोक कथा है जिसमें एक राजा अपने न्याय के लिये बहुत मशहूर है। आओ देखें वह अपनी प्रजा के साथ किस तरह से न...
यह अफ्रीका के इथियोपिया देश की एक ऐसी लोक कथा है जिसमें एक राजा अपने न्याय के लिये बहुत मशहूर है। आओ देखें वह अपनी प्रजा के साथ किस तरह से न्याय करता है।
इथियोपिया के पश्चिमी ओर के पर्वतीय प्रदेशों में एक बहुत बड़ा राजा रहता था जिसका नाम था फ़िरदी। वह अपने निष्पक्ष फैसलों के लिए बहुत दूर दूर तक मशहूर था। आज तक किसी का साहस नहीं पड़ा था कि कोई उसके फैसले को चुनौती दे सके।
ऐसा क्यों था? ऐसा इसलिये था कि राजा का यह हुकुम था कि जो कोई आदमी उसके फैसले के खिलाफ बोले उसको ज़िन्दा ही धीमी आग पर भून दिया जाये। अब सोचो जरा कि इस हुकुम के साथ उसके न्याय को चुनौती देने की हिम्मत ही किस में थी?
एक रात की बात है कि एक चोर ने उस राजा के शहर में एक धनी व्यापारी के घर में दीवार तोड़ कर घुसने की कोशिश की। जैसे ही दीवार में छेद इतना बड़ा हुआ कि वह उसके अन्दर घुस सकता एक ईंट ऊपर से उसके सिर पर पड़ी जिससे उसको चोट लग गयी।
चोट ज़्यादा थी इसलिये वह चोर अपना फूटा सिर ले कर अपने घर चला गया। उस रात वह कुछ नहीं कर सका।
उसको अपने ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि उस दिन उसकी रात बेकार गयी और वह कुछ नहीं कर सका।
अगले दिन वह राजा फ़िरदी के महल में पहुंचा और राजा से बोला "हुजूर, कल रात मैं एक व्यापारी के घर में घुसने के लिये दीवार तोड़ रहा था ताकि उसकी कोई छोटी मोटी चीज़ चुरा सकूं परन्तु दीवार से एक ईंट गिरी और उसने मेरा सिर फोड़ दिया।
देखिये, मैं इतनी ज़्यादा चोट खा गया हूं कि अपना काम ही नहीं कर सका। किसी को तो इसकी सजा मिलनी चाहिये।"
राजा फ़िरदी ने उसके सिर की चोट देखी तो वह गुस्से में भर कर काँपती आवाज में बोला - "तुम ठीक कहते हो। ऐसे देश में भला कोई भी क्या कर सकता है जहाँ कोई चोर बिना किसी एक्सीडेंट के चोरी भी नहीं कर सकता।"
उसने फिर अपने नौकरों से कहा - "जाओ और जा कर उस व्यापारी को ले कर आओ जिसके घर में इस चोर को यह चोट लगी है।"
राजा के नौकर तुरन्त गये और व्यापारी को ले कर राजा के पास आ गये। व्यापारी डर के मारे काँप रहा था। उस बेचारे की तो यही समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी गलती क्या थी जो राजा ने उसको बुलाया।
असल में तो हर आदमी राजा फ़िरदी के दरबार में काँपा ही करता था पर यह व्यापारी कुछ जरा ज़्यादा ही काँप रहा था क्योंकि यह बेचारा बेकुसूर था।
राजा बोला - "व्यापारी, यह भला सा चोर तुम्हारे घर में दीवार तोड़ते समय जख्मी हो गया। क्योंकि यह तुम्हारा घर तोड़ते समय जख्मी हुआ है इसलिये इसकी चोट के जिम्मेदार तुम हो।"
व्यापारी बेचारा लड़खडा़ती आवाज में बोला - "हुजूर, यह सच है कि वह घर मेरा है परन्तु मैंने तो उसमें कुछ नहीं किया। गलती उस बढ़ई की है जिसने मेरे लिये वह घर बनाया। उसने वह घर मेरे लिये ठीक से नहीं बनाया, इसी लिये वह ईंट गिर गयी।"
राजा कुछ सोच कर बोला "शायद तुम ठीक कहते हो। बढ़ई को हाजिर किया जाये। मैं तो यह चाहता हूं कि सजा केवल अपराधी को ही मिलनी चाहिये।"
राजा फ़िरदी के सामने अब उस मकान बनाने वाले बढ़ई को लाया गया। राजा बोला - "ओ नीच आदमी, क्या तुम जानते हो कि यह भला चोर इस व्यापारी के घर में चोरी करते समय जख्मी हो गया?
और वह भी केवल तुम्हारी लापरवाही से किये गये काम की वजह से। जब वह दीवार तोड़ रहा था तो एक ईंट उस बेचारे के सिर पर गिर पड़ी। वह ईंट तुमने कैसे लगायी जो इस बेचारे के सिर पर गिर पड़ी?"
बढ़ई के तो होश हवास गुम हो रहे थे परन्तु किसी प्रकार वह हिम्मत बटोर कर बोला - "हुजूर यह तो ठीक है कि व्यापारी का घर मैंने बनाया था पर ईंटें तो मजदूर ने रखी थी। उसी को इस बात की सजा मिलनी चाहिये कि उसने ईंट ऐसे कैसे रखी जो वह इस बेचारे चोर के सिर पर गिर गयी।"
राजा फ़िरदी बोला - "तुम ठीक कहते हो। मजदूर को बुलाया जाये और फिर मैं देखता हूं कि चोर के साथ न्याय कैसे नहीं होता।"
सो मजदूर को दरबार में लाया गया। जब राजा ने उसको इस घटना का जिम्मेदार ठहराया तो मजदूर तो डर से केवल फुसफुसा ही सका - "सरकार, मैं इस घटना का जिम्मेदार नहीं हूं। मैंने ईंटों को चिपकाने वाले मसाला बनाने की ओखली एक ओखली बेचने वाले से खरीदी थी।
अब अगर वह ओखली ठीक रही होती तो मसाला भी अच्छा रहा होता और ईंट भी ठीक से चिपक जाती। इस ईंट के गिरने का तो वह ओखली वाला ही जिम्मेदार है जिसकी ओखली में वह ईंट बनाने वाला मसाला ठीक से नहीं बना।"
सो ओखली वाले को राजा के दरबार में पेश किया गया। राजा बोला - "सुन ओ नीच ओखली वाले, तुमने ऐसी खराब ओखली क्यों बनायी जिसमें ईंट चिपकाने वाला मसाला ही ठीक से नहीं बन पाया?
उस ओखली में बनाये गये मसाले से बढ़ई ईंट को ठीक से चिपका नहीं सका और इसी लिये कुछ छोटी मोटी चीज़ें चुराते समय यह भला चोर उन ईंटों में से एक ईंट गिरने की वजह से घायल हो गया। तुमको इस जुर्म की कड़ी सजा मिलेगी।"
बदकिस्मती से इस ओखली बनाने वाले का शरीर तो बड़ा था और वह ताकतवर भी बहुत था पर उसमें अक्ल कम थी। वह बेचारा अपने बचाव में कुछ भी न कह सका।
उधर राजा फ़िरदी को भी पक्का हो गया कि उसने असली अपराधी का पता लगा लिया सो उसने अपने आदमियों को तुरन्त ही हुकुम दिया कि इस ओखली बनाने वाले को जल्दी से जल्दी फाँसी पर चढ़ा दिया जाये।
राजा के हुकुम के अनुसार बढ़इयों ने अपराधी को फाँसी पर चढ़ाने के लिये फाँसी का खाँचा जल्दी जल्दी बनाया। जल्दी जल्दी बनाने की वजह से वह खाँचा पूरी ऊंचाई का भी नहीं बन पाया क्योंकि यह ओखली वाला तो बहुत लम्बा आदमी था।
राजा के आदमी जब उसको फाँसी लगाने के लिये ले कर गये तो उन्होंने देखा कि फाँसी का फन्दा गले में डालने के बाद भी उस ओखली वाले के पैर तो जमीन से छू रहे थे।
उन्होंने यह समस्या जब जा कर राजा को बतायी तो राजा यह सुन कर आग बबूला हो उठा और बोला - "इस भले चोर को छोड़ने में मुझे अभी कितनी देर और लगेगी?
फाँसी का खाँचा तैयार है तो किसी को तो इस जुर्म की सजा मिलनी ही चाहिए। जाओ और कोई भी ऐसा आदमी ढूंढो जो इस खाँचे पर फ़िट हो सके और उसको फाँसी चढ़ा दो।"
अब राजा के आदमी किसी ऐसे आदमी की तलाश में चल दिये जो उस फाँसी के खाँचे में फ़िट हो सके। पहला आदमी जो उनको दिखायी दिया वह था एक छोटा सा प्याज उगाने वाला किसान। वह अभी अभी गाँव से अपनी प्याज की फसल निकाल कर बेचने के लिए शहर जा रहा था।
इस किसान के बारे में यह मशहूर था कि इसने कभी किसी को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था पर क्योंकि वह साइज़ में छोटा था इसलिये वह फाँसी के खाँचे पर बिल्कुल ठीक बैठ रहा था। और राजा अपने महल में बैठा न्याय की दुहाई दे रहा था।
जब यह किसान राजा फ़िरदी के सामने लाया गया तो राजा चिल्लाया - "मुझे कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। अगर यह आदमी उस खाँचे पर फ़िट बैठता है तो बस यही आदमी ठीक है।
वह भला चोर पहले ही काफी देर तक न्याय के लिए इन्तजार कर चुका है। अब तुम इसको जल्दी से ले जाओ और फाँसी पर चढ़ा दो।"
और वह बेचारा बेकुसूर किसान अपराधी चोर को न्याय देने के सिलसिले में फाँसी चढ़ा दिया गया।
ऐसा था राजा फ़िरदी का न्याय।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं.
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सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहां इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहां से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहां एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहॉ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहॉ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी- www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहॉ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला- कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी- हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुंचा सकेंगे.
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