एक बार दो भाई थे। उनमें से एक अमीर था और एक गरीब। दोनों एक बार किसी से लड़ने गये तो वहाँ से एक गधा ले कर लौटे। दोनों उस गधे को खूब खिलाते और ...
एक बार दो भाई थे। उनमें से एक अमीर था और एक गरीब। दोनों एक बार किसी से लड़ने गये तो वहाँ से एक गधा ले कर लौटे। दोनों उस गधे को खूब खिलाते और उससे खूब काम लेते। कुछ ही दिनों बाद वह गधा काफी मोटा हो गया।
गधे को मोटा देख कर एक दिन अमीर भाई ने गरीब भाई से कहा कि तुम अपने हिस्से का आधा गधा ले लो क्योंकि मैं अपने हिस्से का आधा गधा मारने वाला हूं।
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छोटे भाई ने बड़े भाई को बहुत समझाया कि ऐसा नहीं होता। गधे को इस तरह से नहीं बाँटा जाता पर बड़े भाई की समझ में कुछ भी नहीं आया। वह अपनी जिद पर ही अड़ा रहा।
इस पर छोटे भाई ने कहा कि अगर तुम गधे को बाँटना ही चाहते हो तो क्यों न हम इसे बेच दें और उससे जो पैसा हमें मिलेगा उस पैसे को हम आधा आधा बाँट लेंगें पर इसको मारना ठीक नहीं है।
बड़ा भाई फिर भी अपनी जिद पर ही अड़ा रहा। जब फैसला न हो सका तो वे दोनों एक जज के पास पहुंचे। जज ने लापरवाही से कहा - "गधा दोनों का है इसलिए अपने हिस्से का कोई कुछ भी कर सकता है।"
बस फिर क्या था बड़े भाई ने गधा मार दिया और छोटे भाई का आधा हिस्सा उसको दे दिया गया। छोटा भाई इस घटना से बहुत दुखी हुआ।
उन दोनों के पिता ने मरते समय उन दोनों के लिये एक मकान छोड़ा था। कुछ समय बाद छोटे भाई ने बड़े भाई से कहा कि तुम अपने मकान का आधा हिस्सा ले लो, मैं अपने मकान का आधा हिस्सा जलाना चाहता हूं क्योंकि मैं यहाँ पर बीन्स बोना चाहता हूं।
यह सुन कर बड़ा भाई बहुत आश्चर्यचकित हुआ और बोला कि मकान के बहुत फायदे हैं इसे न जलाओ। बीन्स बोने के लिये मैं तुम्हें अपनी जमीन दे देता हूं।
पर छोटा भाई जिद पकड़ गया कि वह तो अपनी जमीन पर ही बीन्स बोयेगा और क्योंकि उसके पास कोई और जमीन नहीं थी इस लिये वह अपना मकान जलाना चाहता था।
जब किसी तरह झगड़ा न निपटा तो वे फिर उसी जज के पास गये। जज ने फिर वही फैसला सुना दिया कि कोई भी अपने हिस्से का कुछ भी कर सकता है। वह उसका मकान है उसको जलाये या रखे।
और गरीब भाई ने अपने हिस्से का मकान जला कर उस जमीन पर बीन्स बो दीं। कुछ दिनों बाद बीन्स का खेत तैयार हो गया और उस पर फलियाँ आ गयीं।
एक दिन बड़े भाई के बच्चों ने उन फलियों में से कुछ फलियाँ तोड़ कर खा लीं। छोटे भाई ने कहा कि तुम्हारे बच्चों ने मेरे खेत की फलियाँ खायीं हैं सो या तो मेरी फलियाँ वापस करो नहीं तो मैं इनको अभी जज के पास ले जाऊंगा।
बड़े भाई ने उसको फिर से बहुत समझाया कि इतनी छोटी चीज़ के लिये जज के पास जाने की क्या जरूरत है। मैं तुमको इसकी दस गुनी फलियाँ यहीं दे देता हूं पर छोटा भाई बोला कि नहीं मुझे दस गुनी फलियाँ नहीं चाहिये मुझे तो मेरी अपनी फलियाँ ही चाहिये।
सो एक बार फिर वे जज के पास गये तो जज ने फिर वैसा ही फैसला सुना दिया कि छोटे भाई को अपनी फलियाँ लेने का पूरा अधिकार है।
कहते हैं कि गरीब भाई ने जब अमीर भाई के बच्चों का पेट फाड़ कर उनके पेट से फलियाँ निकालनी चाहीं तो गाँव के बड़े लोगों ने किसी तरह बीच बचाव किया और बड़े भाई के बच्चों की जान बचायी। इसके बाद अमीर भाई ने अपने गरीब भाई से कभी कोई गलत बात नहीं की।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं.
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सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहां इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहां से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहां एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहॉ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहॉ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी- www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहॉ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला- कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी- हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुंचा सकेंगे.
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