एक गाँव में कुछ बच्चे अपने जानवर साथ साथ चराने ले जाया करते थे। एक दिन वे अपने जानवरों को ले कर पहाड़ों की तरफ चले गये। वहाँ उन्होंने एक भेड़ ...
एक गाँव में कुछ बच्चे अपने जानवर साथ साथ चराने ले जाया करते थे। एक दिन वे अपने जानवरों को ले कर पहाड़ों की तरफ चले गये।
वहाँ उन्होंने एक भेड़ जैसा जानवर देखा। वैसा जानवर उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था सो सारे बच्चे उस जानवर की तरफ उत्सुकता से देखने लगे।
उन बच्चों को अपनी तरफ देख कर वह भेड़ जैसा जानवर उनके जानवरों के झुंड में घुस गया और कूद कूद कर नाचने लगा।
सारे जानवर भी उस जानवर को आश्चर्य से देखने लगे और घास खाना भूल गये। सारा दिन यह प्रोग्राम चलता रहा और शाम को सारे जानवर वहाँ से बिना घास खाये ही घर वापस लौट आये।
इस तरह अब रोज ही यह प्रोग्राम चलने लगा। सुबह सुबह वह भेड़ जैसा जानवर पता नहीं कहाँ से प्रगट हो जाता। वह उन जानवरों के झुंड में घुस जाता, कूद कूद कर नाचता, और न तो खुद घास खाता और न बच्चों के जानवरों को ही घास खाने देता, क्योंकि वे सब उसका नाच देखते रहते।
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इसका नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में सारे जानवर कमजोर दिखायी देने लगे।
बच्चों के घर वालों ने बच्चों से पूछा - "क्यों बच्चों, यह क्या बात है कि तुम लोग इन जानवरों को रोज घास चराने के लिए ले जाते हो और फिर भी ये दिन पर दिन कमजोर होते जा रहे हैं। क्या तुम इनको ठीक से घास नहीं खिलाते?"
इस पर बच्चों ने उनको उस घटना का हाल बताया कि सुबह ही जाने कहाँ से एक भेड़ जैसा जानवर वहाँ प्रगट हो जाता है और सारे दिन हमारी भेड़ों में घुस कर नाचता रहता है। हमारी भेड़ें सारा दिन उसी को देखती रहती हैं और खाना पीना सब भूल जाती हैं।
गाँव वालों को यह घटना बड़ी अजीब सी लगी सो उन्होंने सोचा कि क्यों न वे अगले दिन खुद ही उस अजीब जानवर को चल कर देखें।
अगले दिन सबने अपने अपने भाले और कुल्हाड़ियाँ लीं और जानवरों के पीछे पीछे उनके चरने की जगह चल दिए। इसमें सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात तो यह थी कि सारे जानवर खुद ही पहाड़ की तरफ चले जा रहे थे।
पहाड़ के पास पहुंचते ही पता नहीं कहाँ से एक भेड़ जैसा जानवर निकल आया और उन जानवरों के झुंड में घुस कर कूद कूद कर नाचने लगा और सारे जानवर अपना खाना पीना भूल कर उसी को टकटकी लगा कर देखते रहे।
गाँव वालों ने सोचा कि ऐसे जादुई जानवर को तो मार देना चाहिये सो उन्होंने सबने मिल कर उस जादुई जानवर को मार दिया। जानवर को मार कर उसका माँस सब लोगों में बाँट दिया गया और सब लोग उसका माँस ले कर घर चले।
रास्ते में एक लड़के ने दूसरे लड़के का माँस लेना चाहा तो वह माँस का टुकड़ा चिल्लाया - "देखो यह मुझे चुरा रहा है, देखो यह मुझे चुरा रहा है।"
यह सुन कर तो हर आदमी आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि अभी तक माँस को बोलते हुए कभी किसी ने कहीं नहीं सुना था। जब वे घर पहुंचे तो वह माँस उन्होंने अपनी अपनी पत्नियों को पकाने के लिए दे दिया।
जब उनकी पत्नियाँ उसे पका रहीं थीं तो सभी घरों में वे माँस के टुकड़े चिल्लाने लगे - "मिर्च मत डालो मिर्च मत डालो, हमारी ऑख में लगती है।" यह सुन कर सारी स्त्रियाँ डर गयीं और उन्होंने वे माँस के टुकड़े बाहर फेंक दिये।
आश्चर्य की बात, माँस के वे सारे फेंके हुए टुकड़े आपस में इकठ्ठा हो गये और उनसे एक बच्चा बन गया। बच्चा रोने लगा।
एक स्त्री जो उधर से गुजर रही थी बच्चे का रोना सुन कर रुक गयी। उसने उस बच्चे को गोद में उठाया और घर ले गयी। उस बच्चे की देख भाल के लिए उसने एक आया रख ली और दोनों को सब सुख सुविधा दे दी गयी।
वहाँ पहुंच कर तो बच्चे ने शैतानियाँ शुरू कर दीं। जब कोई आस पास रहता तो वह बच्चा शान्त रहता और सोता रहता। पर जब उसकी आया कहीं चली जाती तो वह उठ कर कमरे में जाता, वहाँ जो कुछ भी रखा होता वह खाता और फिर रोना शुरू कर देता।
जब वह स्त्री घर में होती तो वह बहुत ज़ोर से रोता। वह स्त्री सोचती कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि आया ने बच्चे का खाना खा लिया हो और बच्चा भूख से रो रहा हो सो उसने आया को बहुत ज़ोर से डाँट भी लगायी और बहुत मारा भी पर ऐसा नहीं था।
एक दिन उस स्त्री की पड़ोसन उसके घर आयी तो वह क्या देखती है कि घर में कोई नहीं है और वह बच्चा अपने पलंग से उठ कर खाना खा रहा है।
और वह बच्चा असली बच्चा भी नहीं है। उसने यह सब उस स्त्री को बताया तो वह स्त्री डर गयी और उसने वह बच्चा फेंक दिया।
अब उस बच्चे ने एक चक्की का रूप ले लिया। एक दूसरी स्त्री जो उस रास्ते से जा रही थी उसे चक्की की जरूरत थी सो वह उस चक्की को अपने घर ले आयी।
पर जब भी वह उस चक्की में अनाज पीसती तो उस अनाज में से आधा अनाज गायब हो जाता। इस तरह वह चक्की खूब खाती, खूब खाती।
एक दिन उस स्त्री को गुस्सा आया तो उसने उस चक्की को मार मार कर तोड़ दिया। चक्की तोड़ने पर उसको उस चक्की में से खूब सारा आटा मिला। चक्की के टुकड़ों को उसने बाहर सड़क पर फेंक दिया।
अब चक्की के उन टुकड़ों ने एक थैले का रूप ले लिया। एक आदमी उधर से जा रहा था। उसने सड़क पर वह थैला देखा तो उसे उठा लिया और उसे इस्तेमाल करने लगा।
एक दिन वह थैला ले कर किसी दूसरे के घर में घुस गया और वहाँ से अनाज चुरा कर उस थैले में रखने लगा। इतने में ही वह थैला ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा - "देखो देखो, यह आदमी अनाज चुरा रहा है। देखो, यह आदमी अनाज चुरा रहा है।"
यह सुन कर वह आदमी डर गया और थैला वहीं छोड़ कर भाग खड़ा हुआ।
इसके बाद उस थैले ने एक पाजामे का रूप रख लिया। पास में एक खेत था सो उस खेत का मालिक जब अपने खेत पर आया तो उस सुन्दर से पाजामे को देख कर उस पर मोहित हो गया और उसे पहन लिया। पहनते ही वह पाजामा अचानक ही गन्दगी से भर गया।
किसान को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि "मैंने तो इसमें कुछ किया नहीं फिर यह गन्दगी इसमें कहाँ से आ गयी।" उसने तुरन्त ही वह पाजामा जलती हुई आग में डाल दिया।
पाजामा तो जल गया पर ऐसे जादुई पाजामे की राख भी खतरनाक हो सकती है क्योंकि बड़े बूढ़ों का कहना है कि राख शैतान का घर हो सकती है।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं.
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सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहां इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहां से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहां एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहॉ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहॉ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी- www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहॉ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला- कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी- हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुंचा सकेंगे.
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