एक बार एक गाँव में दो दोस्त रहते थे। दोनों ही बहुत गरीब थे और दोनों ही अमीर बनना चाहते थे सो इस इच्छा से दोनों ही यात्रा पर निकले कि शायद कह...
एक बार एक गाँव में दो दोस्त रहते थे। दोनों ही बहुत गरीब थे और दोनों ही अमीर बनना चाहते थे सो इस इच्छा से दोनों ही यात्रा पर निकले कि शायद कहीं कोई खजाना हाथ लग जाये।
रास्ते में उन लोगों को प्यास लगी। काफी ढूंढने पर उनको एक कुंआ मिला। उन्होंने सोचा कि अगर एक आदमी कुंए में नीचे उतर जाये तो वह पानी ला सकता है।
उन दोनों दोस्तों में एक का नाम काला था और दूसरे का नाम गोरा। काले ने गोरे से कहा - "तुम इस कुंए में नीचे उतर जाओ और पानी ले आओ।"
गोरा राजी हो गया और काले की सहायता से नीचे कुंए में उतर गया और काले को ऊपर पानी भेज दिया।
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काले ने पानी पिया और गोरे को उसी कुंए में अकेला छोड़ कर वहाँ से चल दिया। गोरा बेचारा मजबूर सा उसी कुंए में पड़ा रहा।
कुछ ही देर में वहाँ कुछ भूत आये और आपस में बात करने लगे। उन्होंने वहाँ बहुत सारी बातें कीं।
उनमें से एक भूत बोला - "मैंने एक लड़की को पागल कर दिया है क्योंकि मैं खुद उससे शादी करना चाहता हूं।"
उसने आगे यह भी बताया कि वह लड़की ठीक हो सकती है अगर उसे सफेद गधे के खून से नहला दिया जाये। पूछने पर उसने उस लड़की का पता भी बता दिया।
एक और भूत बोला कि उसको एक ऐसे खजाने का पता मालूम है जिसमें बहुत सारा सोना है और कोई आदमी उस खजाने को तभी ले सकता है जब उस जगह पर एक काले गधे का खून छिड़का जाए। एक दूसरे भूत के पूछने पर उसने उस खजाने का पता भी बता दिया।
अब क्या था कुंए में पड़ा गोरा सोचने लगा कि काश वह ऊपर आ जाए और वह ये दोनों काम कर ले। इससे उसकी उस लड़की से शादी भी हो जायेगी और उसको खजाना भी मिल जायेगा।
वह अभी यह सोच ही रहा था कि वहाँ कुछ राहगीर पानी पीने के लिए रुक़े। जब उन्होंने अपनी बालटी पानी भरने के लिये कुंए में डाली तो गोरे ने उनसे प्रार्थना की कि वे उसको बाहर निकाल लें।
उन्होंने जब उसको कुंए से बाहर निकाल लिया तो उससे पूछा कि वह कुंए में कैसे पहुंचा तो उसने सब हाल बता दिया कि कैसे उसका एक दोस्त जिसका नाम काला था वही उसे धोखे से वहाँ छोड़ गया था।
बाहर निकल कर वह उस जगह पर पहुंचा जहाँ वह पागल लड़की रहती थी। उसने वहाँ जा कर उसके परेशान माता पिता से कहा कि वह एक ऐसी दवा जानता था जिससे उनकी बेटी ठीक हो सकती थी।
माँ बाप तो यह सुन कर बहुत खुश हुए और बोले कि अगर वह उनकी बेटी को ठीक कर देगा तो वह अपनी बेटी की शादी उससे कर देंगे और अपनी आधी सम्पत्ति भी उसको दे देंगे।
गोरे ने एक सफेद गधा मंगवाया, उसको मारा और उसके खून से उस लड़की को नहला दिया। वह लड़की ठीक हो गयी।
अपने वायदे के अनुसार उन्होंने भी अपनी लड़की की शादी उस गोरे से कर दी और उसको अपनी आधी सम्पत्ति भी दे दी।
इसके बाद उस गोरे ने एक काला गधा खरीदा और उसको ले कर वहाँ पहुंचा जहाँ सोने का खजाना दबा था। वहाँ पहुंच कर उसने उस काले गधे को मारा और उसका खून उस जमीन पर छिड़क दिया और वहाँ से सारा सोना निकाल लिया।
इस सबके बाद तो वह आस पास ही नहीं बल्कि दूर दूर की जगहों में भी मशहूर हो गया।
काले ने भी उसकी तारीफ सुनी तो उससे मिलने आया। उसने पूछा कि इतनी सारी दौलत उसे कहाँ से मिली तो गोरे ने जवाब दिया कि उसी कुंए से जहाँ तुम मुझे छोड़ कर आये थे।
इस पर काले ने उससे प्रार्थना की कि वह उसको वहाँ ले जा कर उसी कुंए में अन्दर छोड़ आये। गोरे को इसमें क्या परेशानी हो सकती थी। वह उसको उस कुंए के अन्दर छोड़ आया।
इत्तफाक से वे ही भूत वहाँ फिर आये और इस तरह बातें करने लगे - "ऐसा लगता है हमारा भेद कहीं पर खुल गया है क्योंकि वह लड़की भी ठीक हो गयी और वह सोना भी किसी ने निकाल लिया।"
अब वे लोग इस बात पर बहस करने लगे कि उनका यह भेद कहाँ खुला होगा। आखिर में यह पाया गया कि उस दिन जब वे ये बातें कर रहे थे तब वे सब यहीं इसी कुंए पर बैठे थे इसलिये उस आदमी को भी यहीं इसी कुंए में कहीं छिपा होना चाहिए।
यह सोच कर उन्होंने कुंए में झाँका तो उनको काला आदमी दिखाई दे गया। काफी सोचने के बाद उन्होंने यह निश्चय किया कि उस कुंए को बन्द कर देना चाहिए।
भूतों के लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं था। देखते ही देखते ऊपर से पत्थर गिरने लगे और कुछ ही पलों में वह कुंआ पत्थरों से भर गया। वह आदमी उस कुंए में बन्द हो कर मर गया।
यह दोनों की अपनी अपनी नीयत का नतीजा था।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं.
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सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहां इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहां से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहां एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहॉ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहॉ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी- www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहॉ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला- कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी- हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुंचा सकेंगे.
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