इथियोपिया के एक गाँव में एक पति पत्नी रहते थे। वे अपना काम बड़ी मेहनत और ईमानदारी के साथ करते थे परन्तु कभी किसी गरीब को दान में एक पैसा भी न...
इथियोपिया के एक गाँव में एक पति पत्नी रहते थे। वे अपना काम बड़ी मेहनत और ईमानदारी के साथ करते थे परन्तु कभी किसी गरीब को दान में एक पैसा भी नहीं देते थे।
उनके कोई बच्चा भी नहीं था सो उनका खर्चा भी बहुत कम था सो उनका काफी पैसा बच जाया करता था।
एक दिन पति बाजार गया तो उसने एक गाय देखी। गाय तन्दुरुस्त और बड़ी थी सो उसने उसे खरीद लिया। वह गाय उसने 50 डालर की खरीदी।
बाद में उसने अपनी पत्नी के लिये एक डालर की एक मुर्गी भी खरीदी और घर वापस आ गया। पत्नी इन दोनों को देख कर बहुत खुश थी क्योंकि गाय खूब दूध देती थी और मुर्गी रोज अंडे।
एक रविवार को पति अपने चर्च के पादरी से मिलने गया। और बातों के साथ साथ उन दोनों ने उस दूध के बारे में भी बात की जो उनकी गाय देती थी और उन अंडों के बारे में भी बात की जो उनकी मुर्गी देती थी।
पादरी ने कहा "तुम अमीर तो हो पर बहुत ही मतलबी हो क्योंकि तुमने गाँव के किसी गरीब आदमी की कभी कोई सहायता नहीं की। तुमको उनकी सहायता जरूर करनी चाहिये। या तो तुमको उन लोगों को कुछ दूध और अंडे देने चाहिये और या फिर कुछ पैसे।"
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पादरी की यह बात पति की समझ में आ गयी। वह घर आ कर पत्नी से बोला कि वह गाय और मुर्गी को बाजार में ले जा कर बेच दे।
उसने साथ में उससे यह भी कहा कि वह गाय को बेच कर उसका पैसा गरीबों में बाँट दे और मुर्गी को बेच कर उसका पैसा ला कर उसको दे दे।
पत्नी को पति की यह बात बिल्कुल पसन्द नहीं आयी परन्तु वह पति के कहने को टाल भी नहीं सकती थी। वह सोचती रही कि उसे क्या करना चाहिये जिससे साँप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। आखिर उसको एक तरकीब सूझ ही गयी।
अगले दिन वह गाय और मुर्गी ले कर बाजार गयी और उनको बाजार में बेचने बैठ गयी। एक आदमी गाय खरीदना चाहता था सो उसने उस औरत से पूछा कि गाय कितने की है। औरत बोली "एक डालर की।"
उस आदमी को यह सुन कर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि ऐसा कैसे है। उसने कहा "मुझे यहाँ रहते हुए कितने साल हो गये हैं पर मैंने ऐसा कभी नहीं सुना कि गाय का दाम एक डालर हो। क्या यह गाय दूध देती है?"
वह औरत बोली - "हाँ हाँ, बिल्कुल देती है, क्यों नहीं। परन्तु एक शर्त है कि अगर तुम यह गाय खरीदोगे तो तुमको साथ में यह मुर्गी भी खरीदनी पड़ेगी।"
आदमी ने पूछा - "और मुर्गी की कीमत क्या है?"
औरत ने जवाब दिया - "पचास डालर।"
उस आदमी को यह सब झमेला सा लग रहा था परन्तु 51 डालर में गाय और मुर्गी का सौदा बुरा नहीं था सो उसने 51 डालर दे कर गाय और मुर्गी दोनों खरीद लीं। औरत ने खुशी खुशी 51 डालर अपनी जेब के हवाले किये और सीधी चर्च गयी।
वहाँ उसको एक गरीब औरत बैठी हुई दिखायी दे गयी। उसने उसको एक डालर दान में दिया और घर आ कर 50 डालर अपने पति के हाथ में थमा दिये।
पति को इतने सारे डालर देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने पूछा "क्या तुमने गाय को बेच कर उसके पैसे दान में नहीं दिए या तुमको एक मुर्गी के इतने सारे पैसे मिल गये?"
पत्नी बोली - "मैंने दोनों काम कर दिये। गाय को बेच कर उससे मिले पैसे मैंने दान में दे दिये और मुर्गी के मुझे इतने सारे पैसे मिल गये वह मैं घर ले आयी।"
पति की अभी भी कुछ समझ में नहीं आया तो पत्नी ने उसे सब साफ साफ बता दिया कि वह गाय एक डालर की बेच कर उसने वह एक डालर दान में दे दिया और मुर्गी को पचास डालर में बेच कर वह पचास डालर घर ले आयी।
इस तरह इस चालाक पत्नी ने अपने पति का कहना भी माना और पैसे भी बचाये।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं.
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सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहां इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहां से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहां एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहॉ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहॉ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी- www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहॉ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला- कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी- हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुंचा सकेंगे.
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