एक जंगल में एक हयीना रहता था। जंगल का कोई भी जानवर उसको नहीं चाहता था क्योंकि वह एक बहुत ही बेरहम जानवर था। एक दिन जब वह खाने की तलाश में इध...
एक जंगल में एक हयीना रहता था। जंगल का कोई भी जानवर उसको नहीं चाहता था क्योंकि वह एक बहुत ही बेरहम जानवर था।
एक दिन जब वह खाने की तलाश में इधर उधर घूम रहा था तो वह शिकारी के बनाये हुए एक गड्ढे में गिर पड़ा। गड्ढा गहरा था सो वह ऊपर तक कूद कर भी नहीं आ सका और उसी गड्ढे में पड़ा रह गया।
उधर से बहुत सारे जानवर निकले परन्तु उन्होंने उसको जान बूझ कर देख कर भी अनदेखा कर दिया सो वह वहीं का वहीं पड़ा रहा।
इत्तफाक से वहाँ से एक बन्दर गुजरा। वह बन्दर किसी दूसरे जंगल का था और उस हयीना को नहीं जानता था। उसने हयीना को देखा तो ऊपर से ही चिल्लाया - "अरे हयीना भाई, तुम यहाँ कैसे?"
हयीना बोला - "क्या बताऊं बन्दर भाई, मैं इधर खाने की तलाश में निकला था पर इन बदमाश शिकारियों के बनाए इस गड्ढे में गिर पड़ा। मेरी जान बचाओ, तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी।"
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बन्दर बोला - "तुम कोई खराब किस्म के जानवर लगते हो क्योंकि इधर से जाने कितने आदमी और जानवर गुजरे होंगे पर तुमको किसी ने बचाया नहीं?"
हयीना बोला - "पता नहीं, पर क्या तुमने मुझे कोई खराब काम करते देखा है? और जहाँ तक मेरे अच्छे कामों का सवाल है वह तो तुम आगे आने वाले समय में ही देख पाओगे।" और वह फिर बन्दर से अपने आप को गड्ढे में से निकालने की प्रार्थना करने लगा।
काफी ना नुकुर के बाद बन्दर उसकी सहायता करने के लिए राजी हो गया पर वह बोला - "पर मैं तुम जितने बड़े जानवर को निकालूंगा कैसे, मैं तो बहुत छोटा सा हूं?"
हयीना बोला - "तुम्हारे लिए तो यह बहुत आसान है। तुम अपनी पूंछ इस गड्ढे में लटका दो और मैं उसको पकड़ कर ऊपर तक चढ़ आऊंगा।"
बन्दर ने वैसा ही किया और हयीना उसकी पूंछ पकड़ कर ऊपर आ गया। ऊपर आ कर हयीना ने बन्दर को बहुत धन्यवाद दिया और उसके इस काम के लिए अपनी कृतज्ञता प्रगट की।
पर अचानक ही फिर वह बात बदल कर बोला - "बन्दर भाई, मुझे तुम्हारी यह पूंछ बहुत पसन्द आयी। तुम अपनी यह पूंछ मुझे दे दो।"
बन्दर ने तो यह सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई उसकी पूंछ भी माँग सकता है सो वह कुछ नाराजगी से बोला - "देखो न, मैं न कहता था कि तुम मुझे कोई खराब जानवर लगते हो तभी तो मेरे भलाई करने के बाद तुम अब मेरे शरीर का यह हिस्सा माँग रहे हो।"
पर हयीना को तो बन्दर की पूंछ बहुत पसन्द आ गयी थी इसलिए उसकी समझ में बन्दर की कोई बात नहीं आ रही थी और इसी वजह से वह बन्दर से उसकी पूंछ देने के लिये जिद करता रहा।
उसने तो बन्दर से यहाँ तक भी कह दिया कि अगर उसने अपनी पूंछ उसे अपनी मरजी से नहीं दी तो वह उसकी पूंछ जबरदस्ती ले लेगा।
यह सब सुन कर बन्दर तो बहुत ही परेशान हो गया। पर उसने धीरज से काम लिया और हयीना से कहा कि चलो किसी जज से फैसला कराते हैं। सो वे दोनों एक जज के पास पहुंचे।
और उनका जज कौन था? एक चूहा।
जब वे वहाँ पहुंचे तो चूहा बैठा हुआ काशीफल के बीज खा रहा था। उनकी बातें सुनने के बाद वह बोला कि वहाँ तो बहुत गरम हो रहा था सो चल कर किसी पेड़ की छाया में बैठा जाये।
सो वह उन दोनों को एक पेड़ की छाया में ले गया और अपने बिल के सामने जा कर बैठ गया।
उसने बन्दर से इशारे से कहा कि वह अपनी पूंछ को अपनी बगल में दबा ले और जब वह इशारा करे तो कूद कर पेड़ पर चढ़ जाए।
चूहे ने इशारा किया और अपना फैसला सुना दिया - "हयीना, तुम बन्दर की पूंछ नहीं ले सकते।" और यह कह कर वह अपने बिल में घुस गया।
हयीना लपक कर बन्दर की तरफ दौड़ा परन्तु बन्दर तो कब का कूद कर पेड़ पर चढ़ चुका था। हयीना बेचारा हाथ मलता हुआ घर वापस आ गया।
तो बच्चो इस तरह चूहे ने अपनी अक्लमन्दी से बन्दर की पूंछ बचायी।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं.
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सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहां इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहां से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहां एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहॉ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहॉ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी- www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहॉ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला- कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी- हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुंचा सकेंगे.
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