इक्कीसवीं का आगाज़ होने के साथ-साथ मोक्षेंद्र का कथाकार के रूप में प्रादुर्भूत होना हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए एक अच्छी ख़बर है। वर्ष 2000...
इक्कीसवीं का आगाज़ होने के साथ-साथ मोक्षेंद्र का कथाकार के रूप में प्रादुर्भूत होना हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए एक अच्छी ख़बर है। वर्ष 2000 के आसपास 'अरे, ओ बुड़भक बंभना' ने अपनी नवीनता, रोचकता और सफल शिल्प-विधान के कारण ख़ास मक़बूलियत हासिल की थी। बहरहाल, इसमें कथाकार की दलित संकल्पना जाति-आधारित नहीं थी। यह बात हिंदी साहित्य के जातीय और सांप्रदायिक कहानीकारों को कभी हज़म नहीं हुई। अस्तु, मोक्षेंद्र ऐसी ही चौंकाने वाली कहानियाँ लगातार लिखते रहे हैं।
विगत दो दशकों से अफ़साना लिख रहे मोक्षेंद्र ने जीवन के विविधरंगी छुए-अनछुए विषयों पर अपनी लेखनी दौड़ाई है। अब तक उनके चार कथा-संग्रह आ चुके हैं जिनमें संगृहीत कहानियाँ जनमानस पर गहरा प्रभाव छोड़ रही हैं। इसी क्रम में उनका कहानी संग्रह 'प्रेमदंश' उनके कहानीकार शख़्सियत को और अधिक निखारने का दम भर रहा है। इसमें संकलित कुल बारह कहानियाँ विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और पारिवारिक कथानकों पर आधारित हैं।
संग्रह की पहली कहानी 'धत, दकियानूस नहीं हूँ' कथाकार की विशिष्ट कहानी-कला को रेखांकित करती है। कहानी को पढ़ते हुए यह सचमुच लगता है कि इसे कितने सधे हाथों से लिखा गया है। कहानी का शीर्षक भी व्यंग्यात्मक है। राष्ट्रीय स्वतंत्रता और विदेशी दासता के परिप्रेक्ष्य में इसमें एक परिवार की तीन पीढ़ियों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इस कहानी में कथाकार का प्रयत्नलाघव देखने लायक है--बेशक, गागर में सागर भरने जैसा। एक औपन्यासिक कथानक को कहानी में समेटना और वह भी पूरा विवरण देते हुए--अत्यंत श्लाघ्य है। कहानी में पात्रों की बदलती मनोवृत्तियों को जितनी दक्षता से चित्रित किया गया है--वह भी प्रशंसनीय है। जनप्रेम और देशप्रेम का मखौल उड़ाने में कहानी के पात्र कभी पीछे नहीं हटते। भाषा-शैली और संवाद-प्रेषण में जो तिलस्म नज़र आता हैम वह मोक्षेंद्र का अपना मौलिक अंदाज़ है।
मोक्षेंद्र की कहानियों मॆं व्यंग्य-छटा सर्वत्र विद्यमान है जो पठनीयता की अभिरुचि को बढ़ाती है। ऐसी ही कहानी है--'फ़िरंगी भूतों का अनुद्धार' जिसमें आज़ादी के बाद भारत छोड़कर अपने देश लौट चुके और काल-कवलित हो चुके फ़िरंगी हुकमरानों के भूतों के इस देश में पुनः सत्ता की रबड़ी खाने की लालचपूर्ण मनोवृत्ति को रूपायित किया गया है। परोक्षतः भ्रष्ट राजनीति पर कटाक्ष किया गया है क्योंकि हमारे राजनेताओं की शोषण करने की प्रवृत्ति अंग्रेज़ी हुक्मरानों से किसी भी प्रकार से कम नहीं है।
'गुल्ली-डंडा और सियासतदारी' की सियासी दांवपेंचों का दिलचस्प ब्योरा देने वाली और राजनेताओं की कुत्सित आकांक्षाओं को नंगा करने वाली अगली कहानी है। सत्तालोलुप सियासतदारों के रंग-बदलते मंसूबे, उनके आपसी द्वंद्व और डाह, राजनेताओं के दंबग शख़्सियत के नीचे मिमियाते नौकरशाह तथा उनके भोग-विलास पर जितने कौशल्य से इस कहानी में चर्चा की गई है, वह वास्तविक है। 'अन्ना की रैली में' भी राजनीति में ईमानदारी और सदाचार लाने की पहल करने की आड़ में भ्रष्टाचार की विद्यमानता जग-जाहिर है। यों तो अन्ना आंदोलन राजनीति के शुद्धिकरण के लिए था; पर, इसके पीछे जनता की भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति आंदोलन को विफल कर देती है। भ्रष्ट राजनीति का भ्रम कौन पाले जबकि आम आदमी ही भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है जिससे वह निज़ात पाना भी नहीं चाहता क्योंकि भ्रष्टाचार ही उसके जीवनयापन का आधार जो बना हुआ है।
संग्रह की कहानियों में 'नया ठाकुर' बड़े फलक पर लिखी गई उत्कृष्ट कहानी है जिसमें एक दलित पात्र अपने चातुर्य से अपने सवर्ण स्वामी को ऐसी पटखनी देता है कि वह उसकी जवान पत्नी और संपत्ति पर भी हक़ जमा बैठता है यद्यपि अन्यायी ठाकुर द्वारा किया जा रहा उसका शोषण ग़ैर-कानूनी था। ग्रामीण माहौल का यथार्थवादी वर्णन करते हुए कथाकार वहाँ फल-फूल रहे महाजनी व्यवस्था का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करता है। इसी कहानी में एक सेठ द्वारा ग़रीब का हर प्रकार से शोषण किए जाने और उसके द्वारा गाँव की लड़कियों का ग़ैर-कानूनी तिज़ारत किए जाने का ब्योरा भी हृदय-विदारक है। इसके अलावा, आजकल गाँवों में जो भी अनैतिक अनाचार-दुराचार किया जा रहा है, उसका वास्तविक विवरण पाठकगण इस कहानी को पढ़कर ही प्राप्त कर सकते हैं। संग्रह की अगली कहानी 'कमली' स्त्री-शोषण चक्र पर प्रकाश डालती है। इस कहानी में पुरुष-वर्ग द्वारा एक पढ़ी-लिखी लड़की की मज़बूरी का किस तरह फ़ायदा उठाया जाता है और उसे अपने स्वार्थ पर भुनाया जाता है, पाठक के लिए बेशक यह जिज्ञासापूर्ण होगा।
मोक्षेंद्र स्त्री को सिर्फ़ अबला मानकर नहीं चलते क्योंकि उनकी कहानीयों में स्त्री सबला के रूप में बार-बार हमारे सामने आती है। वह न केवल स्वयं पर निर्भर है बल्कि उस पर उसके पति का भविष्य भी आलंबित है और स्त्री पर ही उसके पति के भविष्य का दारोमदार भी है। 'कम कनिका, आई ऐम रेडी' ऐसी ही कहानी है जिसमें अपने पति से गर्भवती न हो पाने की स्थिति में अपनी सहेली के पति से संबंध बनाकर अपने पति को नैराश्य और हताशा से उबारने के लिए संतान प्राप्त करती है जबकि उसे अपने इस कदम से कतई अपराधबोध भी नहीं होता है। कहानी 'गंगा और जमुना के दरम्यान' में आधुनिक स्त्री का चरित्र सामने रखा गया है जो सारे नैतिक बंधनों और लोक-लाज की परवाह किए बिना औरत की जो शख़्सियत सामने रखी जाती है, वह बेश आधुनिक मर्दों को भी कभी स्वीकार्य नहीं होगा। कहानी 'अंकल प्लीज़! लिफ़्ट…' भी स्त्री के निर्भीक चरित्र को सामने रखती है। यह कहानी पाठकीय जिज्ञासा बढ़ाते हुए द्रुत गति से आगे बढ़ती है और पाठकों को सुखानुभूति से सराबोर कर देती है।
संग्रह की प्रतिनिधि कहानी 'प्रेमदंश' विश्वविद्यालय के माहौल में छात्रा और शिक्षक तथा शिक्षिका और छात्र के बीच अज़ीबोग़रीब मोहब्बत का अफ़साना बयां करती है। सर्पदंश की तरह प्रेम का दंश भी जानलेवा होता है। प्रेम के दंश से उत्सर्जित ज़हर दो-दो व्यक्तियों की जान ले लेता है। इस कहानी में नाटकीयता पराकाष्ठा पर है। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती, घटनाक्रम और अधिक संघनित होता जाता है। भाषा इतनी प्रांजल है कि पाठक कहानी में अपनी दिलचस्पी को बढ़ाते रहने में कहीं भी रुकावट महसूस नहीं करता है। जिज्ञासा तो सिर चढ़कर बोलती है। ऐसा लगता है कि जैसे किसी सिनेमाहाल में कोई ट्रैज़िक फ़िल्म चल रही हो। कहानी में कम से कम दो स्त्री पात्रों के बीच द्वंद्व आख़िर तक चलता रहता है। बहरहाल, यहाँ यही बेहतर होगा कि इसके कथानक के बारे में कोई अधिक जानकारी न दी जाए ताकि जब पाठक मूल कहानी को पढ़े तो पूरी तरह आनंद में सराबोर हो सके।
मोक्षेंद्र का प्रेम के प्रति जो दृष्टिकोण है, वह दुःखांत है। इसी संग्रह की एक और प्रेम-कथा 'प्रेम-पचीसी' में प्रेम के मार्ग में आने वाले अड़चनों को दिलचस्प कथात्मकता के माध्यम से रूपायित करते हुए ग्रामीण परिवेश में भिन्न-भिन्न वर्ग के व्यक्तियों की क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं को उजागर किया गया है। यह भी उद्धृत किया गया है कि यद्यपि प्रेम करने का हक़ सभी जातियों को है किंतु कहानी में प्रेम वही व्यक्ति कर सकता है जो ऊंची जातियों से संबंध रखता है। प्रेम करने वाले भोले-भाले लोग तो गांव के उच्च जातियों के चंठ लोगों की साज़िशों का शिकार हो जाते हैं। बहरहाल, कहानी प्रेम की थीम के अतिरिक्त ग्रामीण जीवन का सजीव चित्रण करती है तथा पाठक इसमें प्रयुक्त उन अभिव्यंजात्मक आंचलिक शब्दावलियों से अवगत होता है जिनसे कहानी के पात्रों का मनोविज्ञान रेखाचित्रित किया गया है। कहानी में सशक्तता और कसावट इतनी है कि जो उपकथाएं इसमें जोड़ी गई हैं, उनसे कहानी की जिज्ञासा को और अधिक गति मिलती है। वैसे तो कहानी प्रेम के त्रासदीपूर्ण हश्र को अभिव्यंजित करती है परंतु यह पाठक के मन को गहराई से प्रभावित करती है।
मोक्षेंद्र निःसंदेह एक सशक्त और प्रभावशाली कथाकार हैं। वे एक नियोजित ढंग से अपनी प्रत्येक कहानी का कथानक बुनते हैं। वे कहानी के सभी कला-पक्ष और भाव-पक्ष की बातों पर नज़र रखते हैं। कहानियों में जो दृष्टिकोण वे सामने रखते हैं, उन पर चर्चा और विचार किए जाने की आवश्यकता होती है। किसी भी स्थल पर किसी प्रकार की रिक्तता या पाठकीय रुचि में गिरावट आने की संभावना नहीं होती है। यह कथा-संग्रह इसका ज्वलंत उदाहरण है। स्वयं पाठक, शोधार्थी तथा समीक्षक-आलोचक इस तथ्य पर अमल करेंगे। हाँ, उनकी पाठकीय स्वीकार्यता का आधार भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। मैं तो बस उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना ही कर सकता हूँ।
समाप्त)
कहानी संग्रह : 'प्रेमदंश' (पृष्ठ सं. 189; मूल्य 350/- रुपए)
प्रकाशक : नमन प्रकाशन, 4231/1, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली--1100 02
फ़ोन नं. : 011-23247003, 23254306
-------------
प्रतीक श्री अनुराग
वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार
जीवन चरित
और उपलब्धियों/विभिन्न गतिविधियों
का विवरण
नाम: (i) प्रतीक श्रीवास्तव
(ii) प्रचलित नाम : प्रतीक श्री अनुराग
(iii) उपनाम : अनुराग
जन्म-तिथि : 30-10-1978
पिता : श्री एल0 पी0 श्रीवास्तव (सेवा-निवृत प्रधानाचार्य)
माता : (स्वर्गीया) श्रीमती विद्या श्रीवास्तव
पता : बी-37/179-39, गिरि नगर कालोनी, (बिरदोपुर), महमूरगंज, वाराणसी (उ0प्र0)
शैक्षिक योग्यता : बी0ए0 आनर्स (अंग्रेज़ी साहित्य), काशी हिंदू विश्वविद्यालय,
वाराणसी (उ0प्र0)
अनुभव : (1) पत्र-पत्रिकाओं में लेखन, संपादन, प्रकाशन आदि का 20 वर्षों का अनुभव
(1) पत्रकार के रूप में अनुभव का विवरण
(क): वाराणसी टाइम्स में भूतपूर्व सह-संपादक;
(ख): वाराणसी टाइम्स, जनवार्ता, गाण्डीव एवं भारतदूत आदि दैनिक पत्रों में संपादकीय अंश और मुख्य संपादकीय लेखों का लेखन;
(ग): हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, आज, राष्ट्रीय सहारा, गाण्डीव, एवं जनवार्ता के साहित्यिक परिशिष्टों के लिए कविता, कहानी, निबंध, व्यंग्य आदि का लेखन;
(घ): नवभारत के 'एकदा' स्तंभ हेतु लेखन;
(ङ): विभिन्न दैनिक पत्रों के लिए संवाद-लेखन तथा समय-समय पर विशेष संवाददाता के रूप में महत्त्वपूर्ण समाचार तैयार करना और उनका तत्वर प्रकाशन;
(च): अंग्रेज़ी अख़बारों और ख़ासतौर से नार्दर्न इंडिया पत्रिका के लिए एजूकेशन कवरेज़
(छ): 'बिहारी ख़बर' (राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र) के लिए नियमित लेखन;
(ज): 'बिहारी ख़बर' के ब्यूरो प्रमुख रहे;
(झ): राष्ट्रीय पत्रिका--'वी विटनेस' स्वयं के स्वामित्व में नियमित प्रकाशन;
संप्रति : राष्ट्रीय पत्रिका--'वी विटनेस' के प्रधान संपादक
(2) सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आदि क्षेत्रों में सक्रियता संबंधी अनुभव का ब्योरा
(i) वाराणसी के अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी तथा इन विषयों पर आयोजित गोष्ठियों, बैठकों, सम्मेलनों और सेमीनारों में कार्यक्रमों का संचालन, निर्देशन, दिग्दर्शन तथा कार्यक्रमों की कार्यसूचियां एवं कार्यवृत्त तैयार करना;
(ii) व्यापक स्तर पर कवि गोष्ठियों/कवि सम्मेलनों/मेहफ़िले मुशायरों में काव्य पाठ;
(iii) विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आदि मंचों का संयोजन;
(iv) सामाजिक उन्नयन के लिए विद्याश्री फाउंडेशन की स्थापना एवं संचालन;
(v) शैक्षिक/शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्था--'पगडंडियाँ' की स्थापना एवं संचालन;
(vi) राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि ग्रंथों के प्रकाशन हेतु विद्याश्री पब्लिकेशन्स की स्थापना और संचालन; इस बाबत पांडुलिपियों का संपादन;
(vii) समाज के सारभूत उन्नयन में समग्र भागीदारी हेतु राष्ट्रीय मंच--राष्ट्रीय समाज कल्याण परिषद का संचालन;
(viii) माइनॅारिटी एजूकेशन एण्ड वेलफ़ेयर सोसायटी, वाराणसी की स्थापना और संचालन।
(xi) सदस्य : 1. बर्टेड रसेल सोसायटी, अमरीका, 2. रसराज; 3. अभिमत; 4. टेम्पुल आफ़ अंडरस्टैंडिंग, 5. कृतिकार, 6.कहानीकार और 7. सद्भावनापीठ।
ज्ञात भाषाएं : हिंदी और अंग्रेज़ी
(प्रतीक श्री अनुराग)
संपर्क सूत्र :
प्रतीक श्री अनुराग
(पत्रकार, लेखक एवं समाज सुधारक)
बी-37/170-39,
गिरिनगर कालोनी (बिरदोपुर),
महमूरगंज, वाराणसी-221010
(उत्तर प्रदेश)
इ-मेल पता editor_wewitness@rediffmail.com
मोबाइल नं. 09648922883
प्रतीक श्री अनुराग को तहे दिल से शुक्रिया। बहुत अच्छी समीक्षा की है। पर, सिर्फ तारीफ ही की है। नकारात्मक पक्षों को अनावृत्त नहीं किया है।
जवाब देंहटाएंअच्छी समीक्षा है। समीक्षा पढ़ने के बाद, इस पुस्तक को पढ़ने की लालसा बढ़ गई है। मोक्षेंद्र की कहानियाँ पहले भी पढ़ी है। बहुत ही अच्छा लिखते हैं।
जवाब देंहटाएं