अखबारों में रोज पढ़ते-पड़ते एक बात जेहन में जोरो से उतरने लगी कि, लोग कड़े-शब्दों में निंदा क्यों करते हैं? कड़े-शब्दों में निंदा का फ्लो, पा...
अखबारों में रोज पढ़ते-पड़ते एक बात जेहन में जोरो से उतरने लगी कि, लोग कड़े-शब्दों में निंदा क्यों करते हैं?
कड़े-शब्दों में निंदा का फ्लो, पानी के माफिक रहता है| उप्पर से नीचे | सुर्खियां भी यहीं से बनती हैं, जब ऊपर बैठे आदमी की निदा, नीचे वाला करे | यो सनसनी नहीं बनती कि मोठे ने पतले को पीट दिया |सनसनी का मसाला तब होता दिखता है जब लिझझड़ ने ताकतवर को साउथ के फिल्मों की तरह घसीट-घसीट के मारा हो |
मुझे जब किसी भारी भरकम (बीबी को छोड़) के उप्पर, गुस्सा निकालना होता है और नहीं निकाल पाता, तो साउथ की फ़िल्म देख लेता हूँ | दर असल आम जिंदगी में आम-जन किसी एनी बहाने यही रोज करते पाया जाता है |
हम लोग ,बनिया ,घूसखोर अफसर ,चालाक ठेकेदार और ईमानदार सज्जन नेता को (जैसा एकबारगी देखने से पता चलता है) किसी कांड में लिप्त होते दिनबदिन देखते हैं| हमारे भीतर अचानक एक मुखी प्रजातंत्रीय सांड का जागरण होता है | हम गुस्से वाला एक्स्ट्रा सींग लगा के, सिंग साहेब हो जाते हैं| हमें लगता है ,हमारे भीतर की कपड़ा फेक्ट्री में सिर्फ लाल रंग के कपड़े का लहराता उत्पादन जोरों से होने लगता है | भैस के आगे बीन बजने पर कोई रिएक्शन भले न हो मगर सांड के आगे लाल कपड़े का लहराना तो रिएक्शन का विस्फोट किये जैसा है |
इस साँड़ को मीडिया वाला सपोर्ट मिल जाए तो बल्लियों भर ऊपर की उछल-कूद देखने का सौभाग्य आमजन को मिल जाता है | एक से एक पटखनी, एक से एक बचाव की मुद्राएं |
इस सांड़ियाये नागरिक के पास मुलभूत अधिकार की जुबानी याद की हुई कई धाराएं होती हैं |यह अपने से वंचित किये जाने वाले लाभ-दायक बातों की लंबी सूची लिए रहता है जिसे छोटे-छोटे पोस्टर में सेम्बालिक रूप से लिख के प्रदर्शित करता है |
इन्हें उचकाने वाला इनसे उम्मीद करता है कि ये वंचित लोग अपनी बातों को कड़े-शब्दों में सामने रखें | इन कड़े-शब्दों की आवाज को बुलन्द करने के लिए इनके मुखिया को माइक भी अक्सर पकड़ा देने के रिवाज हैं|
मैं बिहार के एक शख्श को पिछले पच्चीस-तीस सालों से जानता हूँ | लोग समझते हैं इनको जुबान के फिसले की बीमारी है | मुझे ऐसा कदापि नहीं लगता | उनका बोलना-चालना सब सुनियोजित होता है |
वे घर से रिहल्सल करके आये होते हैं कि कहाँ मसखरी करना है |कहाँ कड़े- शब्दों में अपनी बात कहनी है | लोग कायल रहते हैं |वैसे हिंदुस्तान में कायल रहने की परंपरा बेहद पुरानी है | यहाँ आपने किसी पर ज़रा सी दया या भलमनसाहत की बात कह या कर दी वे बरसों तक आपके कायल रहेंगे | यहाँ तक ट्रेन-बस में एक आध रोटी और अपनी बॉटल से पानी पिलवा दो तो वे हर यात्रा -प्रवास में आपका नाम सुमिरते रहेंगे | यही कायल-पने के दम पर नेता लोग भीड़ जुटाने का माद्दा रखते हैं | इस इंतिजाम को पिछले पांच-छह इलेक्शन से बदस्तूर देखने का तजुर्बा हैं |
हमारी इस बात पर उनसे चर्चा हुई|
आप हरदम कड़े-शब्दों का सहारा क्यों लेते हैं? और इसमें मसखरी की चाट मिला के जनता को गाहेबगाहे परोसते हैं इसके पीछे का राज क्या है ?
आप मीडिया के सामने लुंगी में आके इंटरव्यू दे डालते हैं | आपको इससे अपने इमेज पर खतरा मंडराता नहीं दिखता |
वो बोले इ सब का बा .....?
" बहुते सवाल किये हो ससुर के नाती .... अंदाज में वे आदमी पहचानने की कोशिश करते हैं ...|"
हमसे दो बात उगलवाते ही समझ जाते हैं कि हम किसी के 'भेजे' हुए मे से नहीं हैं |
स्वतन्त्र निष्पक्ष 'भेजे' वाले आदमी हैं |
उनको जब ये कतिपय विश्वास हो जाए , कि अगला उठाईगिरी वाली जमात के नहीं है तो खूब सपाट तौर पर मन की बात कह देते हैं |
-देखिये !कटु-शब्दों में निंदा करने के लिए, उस विषय में आपका पारंगत होना जरूरी है |
हमकू अंग्रेजी तंग थी ,हम वो भी सीखे कि नइ .... सीखे ना ....?
मतलब कोई हमे बेवकूफ न बनाये इसका इंतिजाम पहले करने का ,बाकी सब बाद में ...|
-पुराणों में कहीं लिखा ही ,देख के पढियेगा , ग्यानी लोग इस कटु-निदा प्रवचन के पहले हकदार माने जाते हैं |
_ पहले जमाने में आमने-सामने शास्त्रार्थ टाइप के वन डे या ट्वेंटी-ट्वेन्टी हो जाया करते थे | किस्सा खत्म |
इनाम-इकराम की व्यवस्था होती थी |
हारने पर खतरा मंडराता दिखे, जैसा कुछ नहीं रहता था |
बातों की गांठ नहीं बांधी जाती थी | दंगल खत्म बात खत्म.... वाला जमाना लद गया समझो |
हाँ ! ऐक दो चाणक्य किसम के अपवाद तो सर्वत्र व्याप्त रहते हैं |
ये आग-बबुलाये हुए गाँठ बाँध के डट जाते थे ,वो अलग बात है |
आप जानते हो न ....? आज के दिन में कटु-वचन के पासे उलटे पड़ गए तो, खटाल की सारी कमाई धरी रह जाने का खतरा मंडरा जाता है | सोई हमारे साथ हो रऔ है |
वे दार्शनिक तरीके से शून्य में ताकते हुए बोले; -कटु-बच्चन जिसके खिलाप कहना है उसके नैतिक-बल की धुरी का अगर गलत माप या अंदाजा लगा लिया तो वचन-कर्ता के लुढ़कने की गति का किसी को भी एक-बारगी अंदाज नहीं आ सकता |ये जान लो …
कटु-फटू वचन ये सब पूरी पहलवानी दांव-पेच है अभी सीखने की तुम औरो को जिंदगी पड़ी है |एक बात तुम भी जानते हो, हम सोई जानत हैं , कि ढीले स्क्रू कसे हुए, न सायकल चल पाती हैं,न लालटेन की ढिबरी उठती है..... और न आदमी |इतना जानो अभी हमारा स्क्रू पूरी तरह टाईट है |जरूरत पड़े तो दूसरों की ढीली करने का दम बाकी है |
वे ऐठने लगे .......उनके गुस्से को संभाला .......
उनके वजनदार बातों से ज़रा सा भी अहसास नहीं होता था कि , हजारो -करोड़ों के मालिकाना हक़ बना पाने में उन्होंने धुप्पल की बेटिंग की होगी ....? शर्तिया अच्छी बल्लेबाजी के हुनर दिखा के ,कितनी बार कितने बालरो को बाउंड्री पर करवाये होंगे ? ...
इन सारी खूबियों के जनक ,हमारे राजा-भैय्या से जाने कहाँ चूक हो गई ? गलत समय ,मुलायम शब्दों की जगह कड़े-शब्दों में ताल ठोक बैठे |
अगला बाहर जा-जा के 'ज्ञान-चक्षु-चश्मे' बटोरने में लगा है,
आप उनसे खिलाफत कर के, लहर विपरीत तैरने वाले होते कौन हैं ....?
बस किसी तरह फिर आपके अच्छे दिन लौट आएं , आमीन
__
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com ०९४०८८०७४२०
कड़े-शब्दों में निंदा का फ्लो, पानी के माफिक रहता है| उप्पर से नीचे | सुर्खियां भी यहीं से बनती हैं, जब ऊपर बैठे आदमी की निदा, नीचे वाला करे | यो सनसनी नहीं बनती कि मोठे ने पतले को पीट दिया |सनसनी का मसाला तब होता दिखता है जब लिझझड़ ने ताकतवर को साउथ के फिल्मों की तरह घसीट-घसीट के मारा हो |
मुझे जब किसी भारी भरकम (बीबी को छोड़) के उप्पर, गुस्सा निकालना होता है और नहीं निकाल पाता, तो साउथ की फ़िल्म देख लेता हूँ | दर असल आम जिंदगी में आम-जन किसी एनी बहाने यही रोज करते पाया जाता है |
हम लोग ,बनिया ,घूसखोर अफसर ,चालाक ठेकेदार और ईमानदार सज्जन नेता को (जैसा एकबारगी देखने से पता चलता है) किसी कांड में लिप्त होते दिनबदिन देखते हैं| हमारे भीतर अचानक एक मुखी प्रजातंत्रीय सांड का जागरण होता है | हम गुस्से वाला एक्स्ट्रा सींग लगा के, सिंग साहेब हो जाते हैं| हमें लगता है ,हमारे भीतर की कपड़ा फेक्ट्री में सिर्फ लाल रंग के कपड़े का लहराता उत्पादन जोरों से होने लगता है | भैस के आगे बीन बजने पर कोई रिएक्शन भले न हो मगर सांड के आगे लाल कपड़े का लहराना तो रिएक्शन का विस्फोट किये जैसा है |
इस साँड़ को मीडिया वाला सपोर्ट मिल जाए तो बल्लियों भर ऊपर की उछल-कूद देखने का सौभाग्य आमजन को मिल जाता है | एक से एक पटखनी, एक से एक बचाव की मुद्राएं |
इस सांड़ियाये नागरिक के पास मुलभूत अधिकार की जुबानी याद की हुई कई धाराएं होती हैं |यह अपने से वंचित किये जाने वाले लाभ-दायक बातों की लंबी सूची लिए रहता है जिसे छोटे-छोटे पोस्टर में सेम्बालिक रूप से लिख के प्रदर्शित करता है |
इन्हें उचकाने वाला इनसे उम्मीद करता है कि ये वंचित लोग अपनी बातों को कड़े-शब्दों में सामने रखें | इन कड़े-शब्दों की आवाज को बुलन्द करने के लिए इनके मुखिया को माइक भी अक्सर पकड़ा देने के रिवाज हैं|
मैं बिहार के एक शख्श को पिछले पच्चीस-तीस सालों से जानता हूँ | लोग समझते हैं इनको जुबान के फिसले की बीमारी है | मुझे ऐसा कदापि नहीं लगता | उनका बोलना-चालना सब सुनियोजित होता है |
वे घर से रिहल्सल करके आये होते हैं कि कहाँ मसखरी करना है |कहाँ कड़े- शब्दों में अपनी बात कहनी है | लोग कायल रहते हैं |वैसे हिंदुस्तान में कायल रहने की परंपरा बेहद पुरानी है | यहाँ आपने किसी पर ज़रा सी दया या भलमनसाहत की बात कह या कर दी वे बरसों तक आपके कायल रहेंगे | यहाँ तक ट्रेन-बस में एक आध रोटी और अपनी बॉटल से पानी पिलवा दो तो वे हर यात्रा -प्रवास में आपका नाम सुमिरते रहेंगे | यही कायल-पने के दम पर नेता लोग भीड़ जुटाने का माद्दा रखते हैं | इस इंतिजाम को पिछले पांच-छह इलेक्शन से बदस्तूर देखने का तजुर्बा हैं |
हमारी इस बात पर उनसे चर्चा हुई|
आप हरदम कड़े-शब्दों का सहारा क्यों लेते हैं? और इसमें मसखरी की चाट मिला के जनता को गाहेबगाहे परोसते हैं इसके पीछे का राज क्या है ?
आप मीडिया के सामने लुंगी में आके इंटरव्यू दे डालते हैं | आपको इससे अपने इमेज पर खतरा मंडराता नहीं दिखता |
वो बोले इ सब का बा .....?
" बहुते सवाल किये हो ससुर के नाती .... अंदाज में वे आदमी पहचानने की कोशिश करते हैं ...|"
हमसे दो बात उगलवाते ही समझ जाते हैं कि हम किसी के 'भेजे' हुए मे से नहीं हैं |
स्वतन्त्र निष्पक्ष 'भेजे' वाले आदमी हैं |
उनको जब ये कतिपय विश्वास हो जाए , कि अगला उठाईगिरी वाली जमात के नहीं है तो खूब सपाट तौर पर मन की बात कह देते हैं |
-देखिये !कटु-शब्दों में निंदा करने के लिए, उस विषय में आपका पारंगत होना जरूरी है |
हमकू अंग्रेजी तंग थी ,हम वो भी सीखे कि नइ .... सीखे ना ....?
मतलब कोई हमे बेवकूफ न बनाये इसका इंतिजाम पहले करने का ,बाकी सब बाद में ...|
-पुराणों में कहीं लिखा ही ,देख के पढियेगा , ग्यानी लोग इस कटु-निदा प्रवचन के पहले हकदार माने जाते हैं |
_ पहले जमाने में आमने-सामने शास्त्रार्थ टाइप के वन डे या ट्वेंटी-ट्वेन्टी हो जाया करते थे | किस्सा खत्म |
इनाम-इकराम की व्यवस्था होती थी |
हारने पर खतरा मंडराता दिखे, जैसा कुछ नहीं रहता था |
बातों की गांठ नहीं बांधी जाती थी | दंगल खत्म बात खत्म.... वाला जमाना लद गया समझो |
हाँ ! ऐक दो चाणक्य किसम के अपवाद तो सर्वत्र व्याप्त रहते हैं |
ये आग-बबुलाये हुए गाँठ बाँध के डट जाते थे ,वो अलग बात है |
आप जानते हो न ....? आज के दिन में कटु-वचन के पासे उलटे पड़ गए तो, खटाल की सारी कमाई धरी रह जाने का खतरा मंडरा जाता है | सोई हमारे साथ हो रऔ है |
वे दार्शनिक तरीके से शून्य में ताकते हुए बोले; -कटु-बच्चन जिसके खिलाप कहना है उसके नैतिक-बल की धुरी का अगर गलत माप या अंदाजा लगा लिया तो वचन-कर्ता के लुढ़कने की गति का किसी को भी एक-बारगी अंदाज नहीं आ सकता |ये जान लो …
कटु-फटू वचन ये सब पूरी पहलवानी दांव-पेच है अभी सीखने की तुम औरो को जिंदगी पड़ी है |एक बात तुम भी जानते हो, हम सोई जानत हैं , कि ढीले स्क्रू कसे हुए, न सायकल चल पाती हैं,न लालटेन की ढिबरी उठती है..... और न आदमी |इतना जानो अभी हमारा स्क्रू पूरी तरह टाईट है |जरूरत पड़े तो दूसरों की ढीली करने का दम बाकी है |
वे ऐठने लगे .......उनके गुस्से को संभाला .......
उनके वजनदार बातों से ज़रा सा भी अहसास नहीं होता था कि , हजारो -करोड़ों के मालिकाना हक़ बना पाने में उन्होंने धुप्पल की बेटिंग की होगी ....? शर्तिया अच्छी बल्लेबाजी के हुनर दिखा के ,कितनी बार कितने बालरो को बाउंड्री पर करवाये होंगे ? ...
इन सारी खूबियों के जनक ,हमारे राजा-भैय्या से जाने कहाँ चूक हो गई ? गलत समय ,मुलायम शब्दों की जगह कड़े-शब्दों में ताल ठोक बैठे |
अगला बाहर जा-जा के 'ज्ञान-चक्षु-चश्मे' बटोरने में लगा है,
आप उनसे खिलाफत कर के, लहर विपरीत तैरने वाले होते कौन हैं ....?
बस किसी तरह फिर आपके अच्छे दिन लौट आएं , आमीन
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com ०९४०८८०७४२०
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