हम अपने दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार का व्यवहार करते लोगों का अनुभव लेते रहते हैं । जितने लोग हैं उतनी ही प्रकार की उनकी प्रवृत्...
हम अपने दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार का व्यवहार करते लोगों का अनुभव लेते रहते हैं । जितने लोग हैं उतनी ही प्रकार की उनकी प्रवृत्तियाँ एवं आचार-विचार हैं। किस बात पर कौन कैसे विश्वास करेगा कहा नहीं जा सकता । मनुष्य का स्वभाव है कि वह हर सुन्दर चेहरे को देखता है । कुछ लोग ऐसे चेहरों खासकर सुन्दर चेहरों को देखते है । ऐसा स्वभाव कुछ लोगों का होता है । कुछ लोग इस ढंग से देखते हैं कि किसी को पता तक नहीं चलता । रास्तों पर चलने वाले हों या फिर वाहनों पर सवार हों ,सुन्दर चेहरे देखने से नहीं चूकते । ऐसे देखते रहने से कभी कभी दुर्घटनाएँ अवश्य हो जाती हैं ।
कुछ लोगों की ऐसी धारणा है कि टकटकी लगा कर देखने से किसी को पीड़ा आदि हो सकती है ।इसी को नज़र लगना (दीठ या डीठ लगना )आदि कहा जाता है । जिस प्रकार बड़ों को नज़र लगती है वैसे ही छोटों को भी लगती है । पुरुषों की नज़र वैसे ही स्त्रियों की नज़र ,बल्कि स्त्रियों की नज़र तो कुछ अधिक ही ‘पावर फुल ‘होती है । यदि ऐसी नज़र किसी को लगे और वह बीमार न हो ऐसा संभव ही नहीं । इस प्रकार की धारणा ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों मेँ तो है ही ,बड़े बड़े शहरों में भी इस धारणा के पोषकों की कमी नहीं है ।
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यदि किसी को कोई टकटकी लगाकर देखभर लें तो उसके दिलोदिमाग पर यह भावना छा जाती है कि उसे नज़र लग गयी है । एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक दबाव बन जाता उसके दिमागपर । ऐसे में तनाव आना या कभी कभी हरारत आ जाना स्वाभाविक है । ऐसी स्थिति में यानी किसी को नज़र लग जाए तो फिर इस लगी नज़र के उतारने का सिलसिला प्रारम्भ होता है । घर के बड़े बूढ़े ,खासकर महिलाएं नज़र या दीठ उतारने में पटु होती हैं । इसे उतारने के कई प्रकार देखने में आते हैं । कुछ स्थानों पर नमक लालमिर्च (सूखी )व बाल आदि लेकर तो तो कुछ लोग नमक अनाज की भूसी (चोकर )आदि लेकर लगे हुए व्यक्ति के सिर से पैर तक पाँच या सात बार घुमाकर नज़र उतारते हैं । कुछ लोग बड़ी परात या थाली में पानी लेकर उस पानी में घड़ा औंधा कर नज़र उतारते हैं । अब प्रश्न यह है कि क्या किसी के देखने से किसी को नज़र लगती है ?क्या इस प्रकार किसी को लगी नज़र उतारी जा सकती है ?
मुझे पूर्ण विश्वास कि इन प्रश्नों का उत्तर ‘न ‘में ही होगा । परन्तु इस विषय पर लोगों में एक प्रकार का अंधविश्वास परिव्याप्त है । यदि इस प्रकार देखने से किसी को नज़र लगती तो लोग गोली ,बन्दूक छोड़कर अपने प्रतिपक्षियों को अपने शत्रुओं को अपनी ‘पावर फुल ‘नज़र से ही बीमार कर देते । स्कूल कालेज में अध्यापक अध्यापिकाएँ बच्चों को देखते तो बच्चों को नज़र लग जाती या फिर बच्चे अध्यापक अध्यापिका को देखते तो अध्यापक –अध्यापिका बीमार पड़ जातीं राह चलना दूभर हो जाता लोगों का । फिर तो कोई घर से बाहर न निकल पाता । अंधविश्वास आखिर अंधविश्वास होता है । उसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता । एक अंधविश्वास दूसरे को जन्म देता है । नज़र न लगे इसलिए इसके लिए माताएँ अपने बच्चों को काजल का टीका लगाती हैं या गले और कलाई में काला धागा, काले मोती आदि बांधती हैं। यदि कोई अनजानी (अन्य) स्त्री बच्चे को उठाए और बच्चा भय से रोने लगे और बड़ी देर तक चुप न हो तो समझो उस बच्चे को उस स्त्री की नज़र लग गयी है। बच्चा यदा-कदा अन्य कारणों से बीमार होता है या रोता है , परंतु उसका संबंध नज़र से जोड़ा जाता है। लोगों की धारणा है कि कुछ लोगों की नज़र बड़ी खराब होती है। इसका प्रमुख कारण भय और बचपन से ही ऐसे संस्कारों का पड़ना है। कहीं कोई अनिष्ट न हो जाए ऐसी आशंका लोगों मे उत्पन्न हो जाती है।
नमक ,सूखी मिर्च ,सिर के बाल को नज़र लगे व्यक्ति पर से उतार कर प्रायः जला देते हैं । अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके काम में लाये जाते हैं। राई ,आटा की भूसी ,नमक,सूखी लालमिर्च , कढ़ी पत्ते की डंडियाँ आदि इन चीजों को उतारने के बाद अलग-अलग जलाएं तो खाँसी आती है परंतु इन सबको एक साथ मिला कर जलाने से खाँसी या तो आती ही नहीं या बहुत कम आती है। परंतु लोग कहते हैं कि नज़र लगी है तभी खाँसी नहीं आ रही है। इसी से विश्वास हो जाता है कि नज़र उतर गयी।
देश के कुछ भाग में कागज के टुकड़े जला कर छोटे घड़े में डाल देते हैं और फिर उसे पानी भरी थाली या परात में औंधा देते हैं,थोड़ी देर में घड़े को उठाते हैं तो वह टस से मस नहीं होता कुछ पानी भी कम हो जाता है। चूंकि यह कागज नज़र उतारा हुआ होता है इसलिए लोगों को पूरा यकीन हो जाता है। परंतु वास्तव में कागज के जलने से घड़े में स्थित ऑक्सीजन जल जाती है जिसके कारण कुछ (1/5 भाग) पानी घड़े में चढ़ जाता है। यह प्रयोग करने के लिए की नज़र लगनी आवश्यक है? यदि नज़र न लगे तो भी यह प्रयोग किया जा सकता है। इस सच्चाई से सब को अनभिज्ञ नहीं रहना चाहिए। लोगों ने इसका सीधा संबंध नज़र लगने से जोड़ दिया है। नज़र केवल बच्चों को ही लगती है ऐसी बात नहीं है। हर सुंदर वस्तु, व्यक्ति,वाहन, मकान ,पशु आदि को भी नज़र लगती है ऐसी भ्रामक धारणा है लोगों की। इसीलिए लोग नए गृह ,दुकान आदि के दरवाजे पर घोड़े की नाल, काला कपड़ा, नीबू ,मिर्च, नारियल या काले रंग की गुड़िया उल्टी कर लटकाते हैं। इसके बांधने या टाँगने का कारण पूछने पर लोग बुरी नज़र से दुर्घटनाओं से बचना आदि बताते हैं। चाहे और कुछ हो या न हो पर नीबू हरी मिर्च आदि की माला बनाने वालों, नारियल या गुड़ियाँ वालों की आजीविका का साधन तो है ही। इसी अंधश्रद्धा एवं अंधविश्वास के कारण कितने लोगों की आजीविका चल रही है। परंतु हमें विचार करना होगा कि क्या दुर्घटनाएँ इनसे रोकी जा सकती हैं? साथ ही आने वाली पीढ़ियों को यह शिक्षा देनी होगी कि हम किसी भी अंधविश्वास के विश्वासी न बनें अपितु वैज्ञानिक कसौटी पर जो खरा साबित हो उस पर ही विश्वास करें ताकि हमारी आने वाली संतानों को नज़र न लग जाए।
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