भारत में प्रतिवर्ष बढ़ती जनसंख्या से समस्याओं में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। बुनियादी ढांचे में बढ़ती जनसंख्या के मुकाबले बढ़ोत्तरी नहीं हो...
भारत में प्रतिवर्ष बढ़ती जनसंख्या से समस्याओं में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। बुनियादी ढांचे में बढ़ती जनसंख्या के मुकाबले बढ़ोत्तरी नहीं हो पा रही है और परिणामस्वरूप एक पर पांच और दस लोगों का गुजारा हो रहा है। यह समस्या आने वाले समय में और भी घातक होगी क्योंकि हमारे पास बढ़ती आबादी रोकनेे के लिए कोई कोशिश होती नहीं दिख रही है। बढ़ती जनसंख्या की विकरालता का सीधा प्रभाव प्रकृति पर पड़ता है जो जनसंख्या के आधिक्य से अपना संतुलन बैठाती है। सैकड़ों वर्ष पूर्व माल्थस नामक अर्थशास्त्री ने लिखा था कि यदि आत्मसंयम और कृत्रिम साधनों से बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित नहीं किया गया तो प्रकृति अपने कू्रर हाथों से इसे नियंत्रित करने का प्रयास करेगी।
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी 1,210,193,422 है, जिसका अर्थ है कि भारत ने एक अरब के आंकड़े को पार कर लिया है। यह चीन के बाद दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और विभिन्न अध्ययनों से यह पता चला है कि सन् 2025 तक भारत चीन को भी पछाड़ देगा और विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। इस तथ्य के बावजूद कि यहां जनसंख्या नीतियां, परिवार नियोजन और कल्याण कार्यक्रम सरकार ने शुरु किए हैं और प्रजनन दर में लगातार कमी आई है पर आबादी का वास्तविक स्थिरीकरण केवल 2050 तक ही हो पाएगा। देश में जनसंख्या अतिरेक का यह स्पष्ट संकेत है। वर्ष 2011 की भारतीय जनगणना के मुताबिक, देश की आबादी 1,210,193,422 है यानी अपना देश एक बिलियन के स्तर को पार कर गया है। भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा सर्वाधिक आबादी वाला देश है। अनेक अध्ययनों ने अनुमान जतलाया है कि 2025 तक भारत आबादी के मामले में चीन को पछाड़ देगा। बेशक, जनसंख्या संबंधी नीतियों, सरकार द्वारा चलाए जा रहे परिवार नियोजन और कल्याण कार्यक्रमों के कारण से जन्म-दर में कमी आई है, तो भी जनसंख्या में स्थिरता 2050 तक ही आ पाएगी।
भारत में जनसंख्या-आधिक्य के कारण दो सामान्य कारणों की ओर हमारा ध्यान जाता है जिसमें पहले यह कि जन्म दर अभी भी मृत्यु-दर की तुलना में ज्यादा है। हम मृत्यु-दर में कमी लाने में सफल रहे हैं लेकिन यही बात जन्म-दर के बारे में नहीं कही जा सकती। वहीं दूसरी बात यह कि जनसंख्या संबंधी नीतियों और अन्य उपायों के चलते प्रजनन-दर में कमी दर्ज की जाती रही है, लेकिन इसके बावजूद यह अन्य देशों की तुलना में अभी भी ऊंची ही है।
समस्या है तो हल भी है लेकिन इस बारे में गंभीरता से विचार करना महत्वपूर्ण हो जाता है। जैसा कि कम उम्र में विवाह एक बड़ा कारण है जिस पर नियंत्रण पा लिया गया तो बहुत हद तक जनसंख्या नियंत्रण में हम कारगर भूमिका निभा सकते हैं। वैधानिक तौर पर लड़कियों की शादी की आयु 18 वर्ष है, लेकिन कम आयु में विवाह की अवधारणा अभी भी जारी है, और कम आयु में विवाह से बच्चा पैदा करने की अवधि बढ़ जाती है। दूसरा बड़ा कारण है गरीबी। साधनहीन परिवार सोचते हैं कि परिवार में कमाने वाले जितने हाथ होंगे उतना ही आय में इजाफा होगा। कुछ लोग ऐसा भी सोचते हैं कि ज्यादा बच्चे उनके बुढ़ापे का सहारा बनेंगे। विचित्र लेकिन सच यह है कि भारतीय अभी भी जनसंख्या नियंत्रण और गर्भनिरोधक के इस्तेमाल के मामले में फिसड्डी हैं। इस प्रकार निरक्षरता भी जनसंख्या अतिरेक का एक अन्य कारण है। भारत में पुत्रों को परिवार के लिए कमाऊ माना जाता है। इस सोच के कारण दंपतियों पर पुत्र पैदा होने तक बच्चे पर बच्चे पैदा करने का दबाव बना रहता है। उन्हें लगता है कि जितने पुत्र हों उतना ही अच्छा। अवैध प्रवासन से भी भारत में जनसंख्या का दबाव बढ़ा है। बांग्लादेश, नेपाल से बड़ी संख्या में लोग गैर-कानूनी रूप से भारत पहुंच रहे हैं। इससे जनसंख्या घनत्व बढ़ गया है।
जनसंख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी से भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में रोजगार सृजन बेहद कठिन कार्य है। हर साल निरक्षरों की संख्या बढऩे पर है। इस प्रकार बेरोजगारी की दर में तेजी का रूझान दर्शा रही है। इसी तरह आर्थिक शिथिलता, कारोबारी गतिविधियों के विस्तार और विकास में धीमेपन के कारण रोजगारविहीन लोगों की संख्या बढ़ रही है। जनसंख्या के साथ ढांचागत विकास सुविधाओं का विकास तालमेल नहीं बिठा पा रहा है। नतीजतन, परिवहन, संचार, आवासन, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल आदि से संबद्ध सुविधाएं कम पड़ गई हैं1 स्लम, भीड़भाड़ वाले मकान, यातायात जाम आदि बढ़ गए हैं।
इसी तरह भूक्षेत्रों, जल संसाधनों, वनों का अति दोहन कर लिया गया है। इस करके इन संसाधनों की कमी हो गई है। वहीं खाद्य उत्पादन और वितरण बढ़ती आबादी की जरूरतें पूरी कर पाने में नाकाम हो गए हैं। इस कारण से उत्पादन लागतें बढ़ गई हैं। मुद्रास्फीति अधिक जनसंख्या का प्रमुख परिणाम है। इन सब का दुष्परिणाम यह हो रहा है कि बढ़ती जनसंख्या बढऩे के साथ ही आय का असमान वितरण देखने को मिलता है।
जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा क्योंकि यह समस्या आखिरकार हम सबके लिए परेशानी का सबब बन रही है। इस दिशा में जागरूकता के साथ शिक्षा का विस्तार, लड़कियों और महिलाओं की स्थिति बेहतर बनाना, उनके कल्याण के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रयास, शिक्षा का प्रसार, परिवार नियोजन के तरीकों और गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल के लिए जागरूकता, यौन शिक्षा, पुरुष नसबंदी को प्रोत्साहन, बच्चों के जन्म में अंतर, गरीबों में कंडोम और गर्भनिरोधकों का निशुल्क वितरण, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा, गरीबों के लिए ज्यादा से ज्यादा स्वास्थ्य देखभाल केंद्र खोलना जैसे कुछ उपाय हैं, जो जनसंख्या नियंत्रण में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। विभिन्न क्षेत्रों, चाहे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र हो या चिकित्सा एवं स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र, कारोबार या उद्योग क्षेत्र, सैन्य, दूरसंचार, मनोरंजन, साहित्य या कोई और क्षेत्र हो, में भारत को अनदेखा नहीं किया जा सकता। अब समय आ गया है कि जनसंख्या की इस बड़ी समस्या को अनदेखा करने के बजाय गंभीरता से लेना होगा ताकि आने वाला कल सबके लिए हो।
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