लघुकथाएं लिखने की परंपरा उतनी ही पुरानी है, जितनी कि कहानियाँ और उपन्यास लिखने की। वैश्विक साहित्य में लघुकथा को कहानी से एक अलग स्वतंत्र वि...
लघुकथाएं लिखने की परंपरा उतनी ही पुरानी है, जितनी कि कहानियाँ और उपन्यास लिखने की। वैश्विक साहित्य में लघुकथा को कहानी से एक अलग स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित करने की क़वायद बहुत बाद में शुरू हुई। हेनरी जेम्स ने जिस 'शार्ट स्टोरी' के लिए मानदंड निर्धारित करते हुए एक लंबा आलेख लिखा है, वह (शार्ट स्टोरी) वास्तव में लघुकथा न होकर कहानी ही है जिसमें अनेक पात्रों और मुख्य कथानक के साथ-साथ अनेक उपकथाओं का संयोजन होता है। इसके विपरीत लघुकथा में एक ही प्रसंग होता है जिसमें कथानक को पात्रों और उपकथाओं के साथ लंबा खींचने की परंपरा नहीं होती। इसका आशय यह नहीं है कि किसी भी छोटी कहानी को लघुकथा की संज्ञा दे दी जाए। दरअसल, लघुकथा पूर्णरूपेण सोद्देश्य लिखी जाती है और वाकजाल में उलझाए बग़ैर चुनिंदा पात्रों या स्वयं लेखक द्वारा सपाटबयानी के ज़रिए जो निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है, वह लघुकथा का रूप ले लेती है तथा वास्तव में उसका लक्ष्य सुधारात्मक होता है।
डा. प्रभारानी का लघुकथा संग्रह 'सपनों की उड़ान' की लघुकथाएं लघुकथा के मानदंडों पर खरा उतरने का दमखम रखती हैं। ये अपने उद्देश्य, पात्रों की संख्या और सपाटबयानबाजी में सफल हैं। यद्यपि यह उनका पहला संग्रह है; पर, इसमें संकलित सभी लघुकथाएं यह साबित करती हैं कि लघुकथा लेखन में वे बखूबी परिपक्वता हासिल कर चुकी हैं। यूं भी इस संग्रह में कोई 126 लघुकथाएं हैं और यह संख्या इतनी कम नहीं है कि किसी लघुकथाकार के लेखन-कौशल्य को प्रमाणित न कर सके। साहित्यिक मानदंडों पर इनका जांच-पड़ताल करने पर यह स्वतः प्रतिपादित होता है कि उन्होंने लघुकथा के शिल्प-विधान का भली-भाँति ध्यान रखा है। यह भी कहा जा सकता है कि ऐसा उन्होंने अनजाने में ही किया है। वास्तव में, लेखक को लघुकथा के लघु आकार को ध्यान में रखते हुए अपने कथ्य और पात्रों की संख्या को अपने-आप ही लघु रूप प्रदान करते हुए इसके सुधारात्मक उद्देश्य को उद्घाटित करना पड़ता है तथा इसी प्रयास में लघुकथा का स्वरूप स्वयं निर्धारित हो जाता है। डा. प्रभारानी के साथ ऐसा ही हुआ है। वह भाषा और भाव के मामलों में जितना अनुशासित होकर अपने निष्कर्ष निकालती हैं, वह लघुकथा के शास्त्रीय रूप के अनुरूप है और सराहनीय भी है।
प्रभारानी की लघुकथाओं में वक्तृत्व शैली का प्रचुर प्रयोग किया गया है। पात्रों के कथोपकथन के माध्यम से वह प्रसंग को दिलचस्प बना देती हैं तथा लघुकथा का समापन करते समय मन पर जो अंतिम छाप छोड़ती हैं, वह अमिट-सा होता है। जहाँ तक वक्तृत्व शैली में अपने प्रसंगानुसार उद्देश्य को संप्रेषित करने का संबंध है, इसके लिए बड़े प्रयत्नलाघव की ज़रूरत होती है। हाँ, वार्तालापरत पात्रों के मनोविज्ञान से परिचित होना भी आवश्यक होता है। पर, यह जानकर हैरत होता है कि प्रभारानी ऐसा करने में सक्षम हैं। कथोपकथन के साथ अपनी लेखकीय टिप्पणी भी बेबाक पेश कर देती हैं। कहीं भी कुछ खंडित-सा अथवा अलग से जोड़ा हुआ नहीं लगता है। प्रत्येक रचना मनोयोग से तराशी हुई लगती है।
प्रभा का रचना-परास वैविध्यपूर्ण है। विविध विषयों की भी भरमार है। जीवन के सभी पहलुओं पर सटीक बयान देना उनका स्वभाव है। समाज और मानव-जीवन के किसी भी क्षेत्र में हस्तक्षेप करने और इन्हें सृजन के अनुकूल बनाने की आदत से वह बाज आने वाली नहीं हैं। वह दिग्भ्रमित समाज और जनता को सकारात्मक उपदेश देना अपना पुनीत कर्तव्य समझती हैं। इस तरह वह समस्यामूलक मुद्दों के नकारात्मक पक्ष को समझते हुए उनके खिलाफ़ सार्थक बहस छेड़े जाने के लिए भी हमें सीधे-सीधे आमंत्रण देती हैं। वह पूरे वैश्विक समाज से अपेक्षा करती हैं कि अगर इसे संरक्षित और सुसज्जित करने में अब और देरी की गई तो ऐसा पूरे मानव समाज के लिए घातक होगा।
इस संग्रह में लेखिका ने जीवन के व्यापक अनुभवों को संचित करते हुए अपने कथानक को बुना है। इन लघुकथाओं को हृदयंगम करने पर ऐसा लगता है कि समाज के प्रत्येक पात्र के रूप में उन्होंने जीवन की विपरीत परिस्थितियों को झेला है। कभी वह दहेज-पीड़िता स्त्री को जीने की कोशिश करती हैं तो कभी बेकारीग्रस्त युवा की ज़िंदगी में घुस जाती है। उन्होंने इन लघुकथाओं में छल, द्वेष, दुःख, असफलता, निरर्थक संघर्ष, अराजक षड़्यंत्र, सियासी तिकड़म, धोखाधड़ी, बेवफ़ाई, विश्वासघात, चरित्रहनन, खोखले रिश्तों, प्रकृति का अतिदोहन, दलित दलन, नारी शोषण, सामाजिक भेदभाव आदि जैसे विषयों की और ध्यान आकर्षित किया है। नेताओं, अधिकारियों और सरकारी बाबुओं की भ्रष्ट गतिविधियों को तो आड़े हाथों लिया ही है; साथ में सामाजिक जीवन में प्रापर्टी डीलरों, एनजीओ स्वयंसेवियों, रिश्तेदारों, अवसरवादी दोस्तों, धार्मिक ठेकेदारों, डाक्टरों, किसानों, मज़दूरों आदि के काले करतूतों की भी बेझिझक भर्त्सना निडरतापूर्वक किया है। रेल विभाग की दुर्व्यवस्था, 'मनरेगा' और पौधा-रोपण जैसी सरकारी योजनाओं में किए जा रहे घोटालों, रोज़ग़ार देने में की जा रही अनियमतताओं आदि के बारे में वह निर्भीकतापूर्वक बोलती हैं।
कहानी संग्रह : ' सपनों की उड़ान' (पृष्ठ सं. 136; मूल्य 300/- रुपए)
प्रकाशक : अनीता पब्लिशिंग हाउस, ए93,आज़ाद इंक्लेव, पूजा कालोनी, लोनी ग़ाज़ियाबाद-201102
मोबाइल नं. : 9650375089, 9810326389
e-mail : santosh.shrivastav255@gmail.com
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