कहानी // प्रतिफल // अर्जुन प्रसाद

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बनारस के ठाकुर रणवीर प्रताप बहुत ही शांत और सौम्‍य स्‍वभाव के बड़े प्रतापी पुरूष थे। शराफत हमेशा उनके चेहरे पर झलकती रहती। वह एकदम शरीफ, श्र...

सुखजीत सिंह कुक्कल की कलाकृति

बनारस के ठाकुर रणवीर प्रताप बहुत ही शांत और सौम्‍य स्‍वभाव के बड़े प्रतापी पुरूष थे। शराफत हमेशा उनके चेहरे पर झलकती रहती। वह एकदम शरीफ, श्रद्धालु और प्रतिष्‍ठित यशस्‍वी व्‍यक्‍ति थे। ठाकुर साहब बहुत ही शीलवान, दयालु और सज्‍जन भी थे। वह बड़े सत्‍यनिष्‍ठ, उदार और न्‍यायप्रिय भी। घर में उनकी धर्मपत्‍नी सुनैना के अलावा बस दो संतान थी। जिनमें एक पुत्र था और एक पुत्री।

बाबू साहब के बेटे का नाम था सूर्यदेव और बेटी का नाम मीनाक्षी था। ठाकुर साहब की भांति अनकी अर्धांगिनी सुनैना देवी भी एक सुशिक्षित और धर्मपरायण महिला थीं। सूर्यदेव सिंह भी बड़े शिष्‍ट, धार्मिक और अपने माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे। बाप-बेटे कभी किसी को सताते न थे। बाबू साहब ने अपनी दोनों संतानों को बेटे-बेटी में बिना किसी भेदभाव के खूब पढ़ाया-लिखाया। दोनों पढ़-लिखकर शिक्षित और सुयोग्‍य बन गए। इससे पति-पत्‍नी को अपार खुशी हुई। वे इतने प्रसन्‍न हुए कि मारे खुशी के फूले नहीं समा रहे थे।

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इसके बाद बाबू साहब अपनी बेटी मीनाक्षी का एक अच्‍छा घर-वर तलाशकर विवाह कर दिए। बेटी का कन्‍यादान करके वह समाज की एक बड़ी जिम्‍मेदारी से मुक्‍त हो गए। अच्‍छे घराने में मीनाक्षी की शादी होने से उनके हृदय पर से एक बड़ा सामाजिक बोझ उतर गया। उधर सूर्यदेव जब पढ़-लिखकर बड़े हो गए और नौकरी करने लगे तो ठाकुर साहब पति-पत्‍नी को उनके विवाह की चिंता सताने लगी।

उनका मत था कि बुढ़ापा आने से पहले ही पुत्र-पुत्री का विवाह करके छुटकारा पा लेना बुद्धिमानी है। वरना आज की औलाद का कोई भरोसा नहीं कि कब आकर कह दे कि बाबू जी, मैंने अपना विवाह कर लिया। अब आपको मेरे विवाह की फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है।जो काम आपको करना था उसे हमने खुद कर लिया है।

समय तीव्रगति से आगे खिसकता रहा। बाबू साहब एक अच्‍छी सुशील और शिक्षित बहू की तलाश में जुटे हुए थे। तभी एक दिन की बात है मछली शहर, जौनपुर के ठाकुर गजब सिंह अपनी इकलौती बेटी निष्‍ठा के विवाह का रिश्‍ता लेकर दो-चार लोगों के साथ रणवीर प्रताप के घर पहुंच गए।

सूर्यदेव सुशिक्षित, नौकरीशुदा, गोरे चिट्‌टे और विचारशील, बांका जवान तो थे ही उन्‍हें देखते ही ठाकुर गजब सिंह मन ही मन बहुत प्रसन्‍न हुए।बल्‍कि यों समझिए कि वह बड़े गदगद हो गए। सूर्यदेव की सुंदरता और गुणों ने उनका मन मोह लिया। मारे हर्ष के उनके पैर जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे। उन्‍होंने मन-ही-मन सूर्यदेव को अपना दामाद मान लिया। वहाँ पहुंचकर चाय, नाश्‍ते के बाद गजब सिंह दोनों हाथ जोड़कर रणवीर सिंह से बोले-बाबू साहब, मैं आपके पास दरअसल बड़ी उम्‍मीद लेकर आया हूँ। मेरे पास बिना माँ की एक बेटी है। उसका नाम निष्‍ठा है। वह बी․कॉम․पास है। अतएव आप अपने बेटे को मुझे दे दीजिए। दोनों की जोड़ी खूब जमेगी।

ठाकुर गजब सिंह का अनुरोध सुनकर रणवीर बाबू मुस्‍कराकर उनसे कहने लगे-सच मानिए भाई साहब, हमें दान-दहेज नहीं बल्‍कि एक पड़ी-लिखी सुघड़ पुत्रवधू की जरूरत है। आप ऐसा कीजिए सूर्यदेव को सबसे पहले अपनी लाडली बेटी निष्‍ठा दिखा दीजिए। अगर वह सूर्यदेव को पसंद आ गई तो समझिए मेरी ओर से शादी एकदम पक्‍की समझिए क्‍योंकि यदि बहू ढंग की न हो तो दहेज ही लेकर भला हम क्‍या करेंगे? सच कहता हूँ जो लोग दान-दहेज की लालच के फेर में पड़कर उलूल-जुलूल लड़की के घर वालों से अपने बेटों का सरेआम सौदा करते हैं मेरे खयाल से वे लोग समाज के दुश्‍मन हैं। ऐसे लोगों से बचे रहना ही ठीक है। शादी-व्‍याह लड़की और लड़के की होती है दौलत की नहीं।

ठाकुर रणवीर बाबू का यह विचार सुनकर गजब सिंह हँसकर फौरन बोले-अजी, फिर हर्ज ही क्‍या है? आप अगले इतवार को सूर्यदेव को मेरे घर भेज दीजिए। आप बिल्‍कुल सही कह रहे हैं कि जिंदगी साथ-साथ लड़की और लड़के को बितानी है अतः उनका एक-दूसरे के साथ राजी होना निहायत ही जरूरी है। अगर आपस में उनका विचार नहीं मिलता है तो जोर-जबरदस्‍ती विवाह करना व्‍यर्थ है।

तब रणवीर सिंह बोले-तब ठीक है। आप बिल्‍कुल निश्‍चिंत रहें। मैं सूर्यदेव को रविवार को शाम तक निष्‍ठा को देखने के लिए आपके पास भेज दूँगा।

यह सुनते ही गजब सिंह बड़ी कृतज्ञ भाव से सिर झुकाकर कहने लगे-भई ठाकुर साहब, सचमुच आप इंसान नहीं देवता हैं। आज के जमाने में आप जैसा महान पुरूष चिराग लेकर ढूँढ़ने पर भी न मिलेगा। अब मैं चलता हूँ। आप मुझे इजाजत दीजिए। मैं सूर्यदेव का इंतजार करूँगा। इतना कहकर बाबू गजब सिंह हँसी-खुशी अपने घर की राह पकड़ लिए।

आखिर धीरे-धीरे इंतजार की घडि़याँ समाप्‍त हुईं। अगला इतवार आ गया। बाबू रणवीर सिंह, अपने बेटे सूर्यदेव से बोले-बेटा, तैयार होकर ठाकुर गजब सिंह के यहाँ तनिक मछली शहर घूम आओ और अपनी होने वाली जीवन संगिनी को देखकर पसंद कर लो ताकि हम खूब धूमधाम से तुम दोनों का बेफिक्र होकर विवाह कर सकें। अगर निष्‍ठा पसंद आ जाए तो मुझे फोन पर सूचित कर देना। इसके बाद जल्‍दी ही समय निकालकर सुनैना के संग हम भी उसे देखने के बहाने से कुछ सामाजिक रस्‍में अदा कर आएंगे।

अपने माता-पिता की आज्ञा पाकर सूर्यदेव सजधजकर ठाकुर गजब सिंह के गाँव मछली शहर की ओर चल दिए। जब वह घर से चलने लगे तो बाबू साहब उनसे बोले-बेटा, जरा एक काम और करो। घर में ये डेढ़ लाख रूपए रखे हैं। इन्‍हें शहर बेंक में जमा करते जाना। पुत्रवधू मिलने की खुशी के अतिरेक में किसी को यह ध्‍यान ही न रहा कि आज रविवार है और बैंक, डाकघर सब बंद हैं। रूपए लेकर सूर्यदेव अपने मां-बाप का चरण स्‍पर्श करके बड़े ठाठ से अपनी मंजिल पर निकल पड़े।

शहर के भारतीय स्‍टेट बैंक पर पहुँचकर सूर्यदेव को अपनी भूल का अहसास होते ही उन्‍हें बढ़ा पश्‍चाताप हुआ। हड़बड़ी में वह कुछ समझ भी नहीं पाए कि वहाँ आस-पास खड़े बदमाशों ने उन्‍हें झटपट ताड़ लिया। यह समझते उन्‍हें तनिक भी देर न लगी कि एकदम नया शिकार है साथ ही पक्‍का अनाड़ी भी। इस बेवकूफ को इतना भी पता नहीं कि आज छुट्‌टी का दिन है और बैंक आदि सब बिल्‍कुल बंद हैं।

उन्‍होंने सोचा-लगता है यह मूर्ख लाख-दो लाख की मोटी पोटली ले रखा है। इसे लूटने में बड़ा मजा आएगा। बैंक बंद देखकर सूर्यदेव बाबू ने घर वापस लौटना मुनासिब न समझा। वह आव देखे न ताव उदास मन से मछली शहर जाने वाली एक बस में चढ़ गए। उन्‍हें बस में सवार होते देखकर चारों लुटेरे बदमाश भी फटाफट उसमें चढ़ गए। बदमाशों को अपना पीछा करते देखकर सूर्यदेव के हाथ-पाँव एकदम फूल गए। उनकी समझ में कुछ भी न आ रहा था कि अब मैं क्‍या करूँ और कहाँ जाऊँ? जान मुसीबत में फँसी देखकर उनका हलक सूखने लगा। उनके हृदय की धड़कने यकायक बढ़ गईं। कोई उपाय न सूझने पर वह छटपटाकर रह गए।

बस ऊबड़-खाबड़ रास्‍ते पर तेज गति से चलती रही। अंततः काफी माथापच्‍ची के बाद उन्‍होंने बस के कंडक्‍टर से एकदम धीमें सवर में कहा-भइया, मेरे प्राण इस समय बड़े संकट में हैं। मेरे पास इस वक्‍त काफी रकम है और बनारस से ही ये चारों बदमाश साए की तरह मेरा पीछा कर रहे हैं। ये लोग मेरे रूपए छीनना चाहते हैं। आप कृपया कुछ ऐसा कीजिए कि मैं इनके हाथों लुटने से साफ-साफ बच जाऊँ। अन्‍यथा आज मैं नाहक ही सरेराह लुट जाऊँगा। मेरी अमानत और जान बच जाएगी तो मैं आप लोगों का बहुत अहसानमंद रहूँगा।

यह सुनकर कंडक्‍टर इशारे से बोला-ठीक है मछली शहर मोड़ वाली पुलिया के पास मैं बस धीमी करा दूँगा। आप एकदम चुपचाप आहिस्‍ता से वहाँ उतर जाइएगा। ये नालायक देखते ही रह जाएंगे। आप तनिक धैर्य से काम लीजिए हड़बड़ाइए मत। सब्र से अपना काम बनाइए। तत्‍पश्‍चात सूर्यदेव सिंह ने बस के ड्राइवर को भी अपनी व्‍यथा सुना दी।

तब तक मोड़ आते ही बस अचानक धीमी हो गई और सूर्यदेव बाबू चुपके से उतरकर बेखटके अपनी भावी ससुराल की ओर चल पड़े। गजब सिंह के गाँव पहुँचते-पहुँचते रात के करीब साढ़े आठ बज गए। उन्‍होंने सोचा-काश, कोई ऐसा आदमी मिल जाए जो मुझे ठाकुर साहब का घर बता दे तो कितना अच्‍छा होता। अब इसे ईश्‍वर की मर्जी कहिए या कुछ और। इतने में स्‍वयं निष्‍ठा ही उनका मार्ग-दर्शक बनकर उनके सामने आ गई।

उसे देखते ही सूर्यदेव बड़ी विनम्रता से बोले-देवी जी, माफ कीजिए, क्‍या आप कृपा करके मुझे तनिक ठाकुर गजब सिंह जी का मकान बताने में मेरी मदद कर सकती हैं? उन्‍हें क्‍या मालूम था कि वह उनकी होने वाली अर्धांगिनी ही है।

इतना सुनना था कि निष्‍ठा को यह भांपते पल भर की भी देर न लगी कि अरे यही तो मेरे सपनों का राजकुमार है। सूर्यदेव को देखकर वह बेचारी दूसरी लड़कियों की तरह बिल्‍कुल शर्मा गई। वह बस अपने हाथ के संकेत से बोली-आइए, किसी और का सहारा क्‍यों ढूँढ़ते हैं? मैं आपको वहाँ खुद ले चलती हूँ। कुशल निष्‍ठा ने अपने मन के अंदर ही अंदर दिल से उनका स्‍वागत किया। काली अंधेरी रात में भी एक नजर में ही सूर्यदेव उसके मन भा गए। इतना कहकर वह सूर्यदेव के आगे-आगे चलने लगी। बाबू साहब उसके अनुगामी बनकर पीछे-पीछे चलने लगे।

उधर अपना शिकार गुपचुप तरीके से गायब देखकर गुण्‍डे पंजे झाड़कर बस कंडक्‍टर और ड्राइवर के पीछे पड़ गए। उन्‍होंनें कड़कती आवाज में गरजकर उनसे कहा-कान लगाकर एक बात सुन लो यदि हमारा शिकार हाथ से निकल गया तो तुम दोनों के जान की खैरियत नहीं। तुम्‍हें यहीं काटकर डाल देंगे। तुमने हमारे साथ धोखा करने की जुर्रत कैसे की? चुपचाप बस फिर उसी जगह ले चलो जहाँ उसे उतारा है वरना ठीक न होगा। हम तुम्‍हें तो खत्‍म करेंगे ही अपने मामले में टाँग अड़ाने वाले को भी न बख्‍सेंगे।

उनकी धमकी भरा यह शब्‍द सुनकर कंडक्‍टर और ड्राइवर की रूह काँप उठी। प्राण संकट में देखकर उनके होश ही उड़ गए। मारे डर के वे थरथर काँपने लगे। उनके कलेजे में बड़ी हलचल होने लगी। कोई रास्‍ता न पाकर अंततोगत्‍वा वे बस को दुबारा उसी स्‍थान पर ले गए जहाँ सूयदेव बस से उतरे थे।

उस जगह सीधी सड़क के अलावा दूसरा बस एक ही रास्‍ता था। वह सीधे ठाकुर गजब सिंह के गांव को गया था। इसलिए बदमाशों को वहाँ पहुँचने में कोई खास परेशानी न हुई। आगे-आगे बाबू सूर्यदेव, ठाकुर साहब के घर पहुँचे। उन्‍हें देखकर बाबू साहब ने दिल खोलकर उनकी अगवानी की। नाना प्रकार की रंग-बिरंगी महँगी मिठाइयों के साथ बाबू सूर्यदेव सिंह ने सबसे पहले चाय वगैरह पी। इसके बाद भोजन की तैयारी होने लगी।

तब तक चारों बदमाश भी आनन-फानन में दबे पांव वहाँ पहुँच गए। वहाँ जाकर उन्‍होंने जो दृश्‍य देखा उससे उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उनके कलेजे में उथल-पुथल मच गई। अपने जीवन में किसी से लेशमात्र भी दगा न खाने वालों को वहाँ बाबू सूर्यदेव सिंह की आवभगत देखकर बड़ी हैरत हुई। वे अपना माथा ठोंकने लगे। वे अपने मन में बोले-हमने क्‍या समझा और क्‍या देख रहे हैं। यहाँ तो सारा नजारा ही एकदम अलग है। दामाद की तरह इसकी यहाँ तो बड़ी खातिरदारी हो रही है।

मनुष्‍य के मन में एक बार पाप जाग जाए तो वह कोटि यत्‍न करने पर भी जीवन भर उस दलदल से नहीं निकल पाता है। अपनी साजिश की कामयाबी की खातिर बदमाश आपस में मिलकर ठाकुर साहब को तरह-तरह से बरगलाने की योजना बनाने लगे।

कुछ देर बाद काफी सोच-विचारकर उनके सरदार ने ठाकुर गजब सिंह से कहा-बाबू साहब, जरा कुछ दूरदर्शी बनकर दूर तक की सोचिए। अभी इस अभागे के साथ आप ने अपनी बेटी थोड़े ही ब्‍याह दी है। अभी यह आपका कोई नहीं है। अजी, यह बहुत ही बदनाम लड़का है। इसका चरित्र कतई ठीक नहीं है। अभी आप इसके बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। यह अपने मां-बाप का इकलौता बिगड़ैल बेटा है। इसके जैसा पाजी इस दुनिया में भी न मिलेगा। इसमें हर तरह के एक से बढ़कर एक ऐब मौजूद हैं। इस संसार में एक से बढ़कर एक लड़के पड़े हैं। इस नालायक के संग अपनी स्‍नेहिल पुत्री की शादी करके आपको जीवन भर पछताना ही पड़ेगा। बगैर कुछ जाने-समझे ही इस पाजी को दामाद बनाना आपके लिए वाकई बहुत भारी सिद्ध होगा।

इतना ही नहीं उन्‍होंने बाबू साहब को कई तरह का प्रलोभन भी दिया। उन्‍होंने उनसे कहा-ठाकुर साहब, जरा ठंडे मन से सोचिए इस वक्‍त इस अभागे के पास जितने रूपए हैं अगर उसके आधे भी आपको मिल जाएं तो अपनी बेटी का विवाह किसी अच्‍छे-भले लड़के के साथ आप बड़ी धूमधाम से कर सकते हैं। मेरी मानिए इस नादान को अपना दामाद बनाने की बात भूल जाइए। तभी आपके लिए अच्‍छा रहेगा। वरना सोच लीजिए हम इसे हरगिज जीने नहीं देंगे और आप इसे मरता हुआ नहीं देख सकते। दूसरे इसके मरते ही आपकी बिन ब्‍याही पुत्री ही विधवा हो जाएगी। रूपए मिलें या न मिलें हम इसे जिंदा कदापि न छोड़ेंगे।

यह सुनते ही बाबू साहब का कलेजा एकदम दहल उठा। उनका पराक्रम कमजोर पड़ने लगा। वह बड़े चिंतित हुए। उनकी समझ में कुछ भी न आ रहा था कि अब मैं क्‍या करूँ? फिर बड़े सोच-विचार के बाद वह उनसे बोले-अरे भाई, ऐसा गजब मत कीजिए। इस बेचारे ने भला आपका क्‍या बिगाड़ा है? आप लोग इसे जान से क्‍यों मारना चाहते हैं? यदि आप लोगों को इसके पैसे चाहिए तो ले लीजिए पर इसे जान से तो मत मारिए।

इतना सुनते ही चारो गदमाश बिगड़ खड़े हुए। उनमें से एक बदमाश बोला-अरे ठाकुर साहब, क्‍या आपकी सारी अकल दरअसल घास चरने चली गई है जो आप इस महामूर्ख नादान छोकरे के मोह में फँसे हुए हैं। अजी, आप तनिक दिल और दिमाग से यह क्‍यों नहीं सोचते कि इस महँगाई के समय में लाख-डेढ़ लाख रूपए कम नहीं बल्‍कि बहुत होते हैं। इन रूपयों से आपकी बेटी मौज कर सकती है मौज।

उनका बार-बार एक ही जैसा अनुनय-विनय सुनकर बाबू साहब का माथा आखिर एकदम घूम गया। आखिर वह भी एक मनुष्‍य ही थे कोई देव नहीं। मानवीय कमजोरियाँ उनमें भी थीं। आहिस्‍ता-आहिस्‍ता उनके मन में भी लालच ने घर कर लिया। उनका दिल यकायक बदल गया। अपना मन बदलते ही वह बदमाशों से कहने लगे-तब ठीक है। अगर आप लोगों की यही इच्‍छा है तो मैं इस बेवकूफ को खिला-पिलाकर गाँव से बाहर अपने खेतों वाले ट्‌यूबवेल पर सुला देता हूँ। आप लोग उसे वहाँ मारिए या काटिए। मुझसे कोई मतलब नहीं। इससे एक पंथ दो काज होगा। साँप भी मर जाएगा और लाठी भी न टूटेगी। यह मासूम वहाँ सोता ही रहेगा और आप लोग अपने काम को अंजाम दीजिएगा। जब इसका काम तमाम करके आप लोग तत्‍काल यहाँ से नौ दो ग्‍यारह हो जाएंगे तब गाँव में सुबह स्‍वतः ही यह खबर फैल जाएगी कि ठाकुर गजब सिंह के होने वाले दामाद को कुछ अज्ञात बदमाशों ने रात में बोरिंग पर सोते समय मार डाला। इसके बाद जो कुछ भी होगा मैं सब कुछ सँभाल लूँगा।

धन की लालच में बाबू साहब दरअसल इतने अंधे हो गए कि उन्‍हें और कुछ भी दिखाई न दे रहा था। इस बात का उन्‍हें लेशमात्र भी पता न चला कि धार्मिक प्रवृत्‍ति की मेरी बिटिया देखते ही इसे अपना दिल दे बैठी है। वह उसके मन-मस्‍तिष्‍क पर हावी हो चुका है।

तदंतर बाबू सूर्यदेव को भांति-भांति का एक से बढ़कर एक बढि़या स्‍वादिष्‍ट व्‍यंजन खिला-पिलाकर बाबू साहब उन्‍हें अकेले गाँव से बाहर बने अपने ट्‌यूबवेल पर ले जाकर सुला दिए। गजब सिंह के पास उनकी बेटी निष्‍ठा के सिवा एक छोटा बेटा कोमल भी था। उसकी माँ बचपन में ही एक अन्‍य प्रसव काल से वक्‍त ईश्‍वर को प्‍यारी हो चुकी थीं। दुर्भाग्‍य से उस दिन गाँव में एक अन्‍य लड़की की शादी थी। उस विवाह में एक नामीगिरामी नौटंकी आई हुई थी। कोमल उनसे बोला-बाबू जी, क्‍या मैं जरा नौटंकी देख आऊँ? सुनता हूँ बहुत अच्‍छी है। ठाकुर साहब यही तो चाहते थे। रोगी जो चाहे वैद्य वही बताए। उन्‍होंने सहर्ष कहा-हाँ हाँ क्‍यों नहीं? जाओ देख आओ।

तब बाबू साहब की आज्ञा लेकर कोमल कुछ वक्‍त के लिए नौटंकी देखने वहाँ चला गया। ट्‌यूबवेल पर सूर्यदेव सिंह अकेले सो रहे थे। लेकिन मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। जब बदमाश, बाबू साहब से उनके भावी, नए-नवेले दामाद को रास्‍ते से हटाने का सौदा कर रहे थे तब इस घिनौनी साजिश की उड़ती भनक उनकी इकलौती बेटी निष्‍ठा को भी लग चुकी थी। इस षड़यंत्र की भनक उसके कानों में पड़ते ही वह तड़प उठी। वह अपने दिल में बड़ी दुःखी हुई। उसकी रातों की नींद उड़ गई।

बाबू सूर्यदेव को जान से मारने की बात सुनते ही वह तड़पकर रह गई। उसका कलेजा कचोट उठा। यह अन्‍याय वह कतई सहन न कर सकी। वह अपने बाबू जी के विरूद्ध बगावत पर उतर आई। वह सोचने लगी-यह अभागा आज के दिन हमारा मेहमान है और लोग कहते हैं अतिथि साक्षात देव के समान होता है। इस मुसीबत की घड़ी में इसकी रक्षा करना हमारा धर्म भी है और फर्ज भी। मैं अपने जीते जी यह अत्‍याचार न होने दूँगी। कुछ भी हो इस बदनसीब का बाल भी बांका न होने दूँगी।

वह मनन करने लगी-आखिरकार यह भी तो किसी न किसी मां-बाप की औलाद है। यह सोचकर निष्‍ठा ने अपने मन में तुरंत फैसला कर लिया कि अब चाहे जो कुछ भी हो घर आए मेहमान की जिंदगी मैं अपनी जान पर भी खेलकर अवश्‍य बचाऊँगी। दूसरे यह कोई आम आदमी नहीं बल्‍कि हमारा होने वाला पति भी है। अगर हमारे घर पर आज इसे कुछ हो गया तो मेरे कुल पर एक बड़ा कलंक लगेगा। तब दुनिया हमें चैन से जीने न देगी। मेरा जीवन कलंकित होकर रह जाएगा। लोग सुनेंगे तो यही कहेंगे कि बड़ी अभागन लड़की है। ब्‍याह से पहले ही होने वाले मर्द को खा गई।

उधर बाबू साहब और चारों बदमाश आपस में मिलकर अभी बातचीत ही कर रहे थे कि बाबू सूर्यदेव का काम तमाम कैसे किया जाए तब तक निष्‍ठा आँखें मलती हुई ठाकुर साहब से बोली-बाबू जी, रात काफी हो चुकी है। मुझे नींद आ रही है। मैं अपने कमरे में सोने जा रही हूँ।

निष्‍ठा का आग्रह सुनकर बाबू साहब बोले-हाँ हाँ क्‍यों नहीं बेटी? अब तुम जाओ सो जाओ। तुम कोमल की फिक्र न करो। वह नाच देखकर आएगा तो हम द्वार खोल देंगे। तुम निश्‍चिंत होकर सोओ। इसके बाद निष्‍ठा ने घर का दरवाजा झटपट अंदर से बंद कर लिया। भारतीय लड़की की यह विशेष पहचान है कि वह जिस पुरूष का मन से एक बार वरण कर लेती है उसे ही आजीवन अपना पति-परमेश्‍वर समझकर अपने हृदय में बसा लेती है। निष्‍ठा भी बाबू सूर्यदेव को मन ही मन अपना पति मान ही चुकी थी। वह काली अंधेरी रात में ही मकान के पिछले दरवाजे से दबे पैर चुपके से तुरंत बाहर निकली और गिरते-पड़ते झटपट अपने ट्‌यूबवेल पर पहुँच गई।

वहाँ जाकर निष्‍ठा ने बाबू सूर्यदेव सिंह को धीरे से आवाज देकर कच्‍ची नींद से जगाया। नींद से जागते ही एक अबला की आवाज सुनकर बाबू साहब ट्‌यूवेल का द्वार झट खोल दिए। दरवाजा खुलते ही निष्‍ठा अपने नेत्रों में आँसू भरकर उनसे बेइंतहा चिपट गई। यह देखकर वह बड़े ताज्‍जुब में पड़ गए। उनका मन आशंकित हो उठा।

किवाड़ खोलते ही उन्‍होंने उससे पूछा- क्‍या बात है देवी, इतनी रात को तुम यहाँ? ऐसी कौन सी आफत आ गई? तुम्‍हें ऐसा हरगिज न करना चाहिए था। लोग सुनेंगे तो क्‍या कहेंगे? मेंरे साथ अभी तुम्‍हारा रिश्‍ता ही क्‍या है? लोग सुनेंगे तो भला क्‍या कहेंगे? नाहक ही हमारी बड़ी बदनामी होगी। मेरे मन मंदिर की देवी बगैर सोचे-विचारे ही तुमने सचमुच बहुत गलत किया है। अपनी मान-मर्यादा का तुम्‍हें कुछ तो ख्‍याल करना चाहिए था।

इतना सुनते ही निष्‍ठा कांपती हुई बोली-देखिए, आप मुझसे विवाह करें या न करें पर, मैंने जाने-अनजाने ही अपने मन, क्रम और वचन से अब आपको अपना पति स्‍वीकार कर लिया है। आप आज जब मेरे घर आए तो तनिक खुद ही सोचिए कि मेरे घर पर आप क्‍या सोचकर आए थे? मुझे अपनी भावी पत्‍नी के रूप में ही तो देखने आए थे। मुझे अब कोई गैर नहीं बल्‍कि अपनी पत्‍नी ही समझ लीजिए। अभी हमारा विवाह नहीं हुआ है तो क्‍या हुआ?

वह फिर हाँफती हुई बोली-अगर आप ऐसा नही मानते हैं तब भी एक बात और इस वक्‍त आप हमारे घर आए हुए पाहुने हैं और मेहमान देव समान होता है इसलिए आप हमारे अतिथि स्‍वरूप हैं आपका ख्‍याल रखना हमारा सबसे बड़ा पुनीत कर्म है। समय कम है आप बिल्‍कुल भी देर मत कीजिए। फौरन यहाँ से निकलकर अपनी जान बचाइए। बाकी बातें बाद में होती रहेंगी। तनिक जल्‍दी कीजिए। शत्रु आपके पीछे पड़े हैं। सच मानिए मैंने सब कुछ अपने कानों से सुनी है। मैं किसी का कहा हुआ नहीं बता रहीं हूँ। जल्‍दी उठिए और यहाँ ये झटपट कहीं गायब हो जाइए। ऐसा कीजिए आप फौरन मेरे साथ चलिए। अब वक्‍त बहुत कम है। देर होने पर आपकी जान को समझिए खतरा ही खतरा है। इतना ही नहीं, मेरे बाबू जी भी लालच में फँस चुके हैं। उनका मन अब बदल चुका है। वह भी बदमाशों के संग मिल गए हें। अब वह आपके होने वाले ससुर नहीं बल्‍कि आपके प्राणों के वैरी बन चुके हैं। अतएव अब आपका यहाँ और ज्‍यादा देर रहना सच में बड़े जोखिम का काम है। मुझे जो कहना था कह दिया, आगे आपकी मर्जी। बाबू साहब, अभी तो मुझे बस आपकी फिक्र है। आप यह मत भूलिए कि इस समय आपके प्राण बहुत संकट में हैं। आप फौरन यहाँ से उठिए और चलकर मेरे साथ इस गन्‍ने के खेत में छिप जाइए।

इतना सुनना था कि सूर्यदेव बाबू के हाथ के तोते उड़ गए। वह एकदम हड़बड़ा उठे। भय के मारे उन्‍हें कंपकंपी छूटने लगी। वह खाट से तुरंत उठ खड़े हुए। तदोपरांत निष्‍ठा उन्‍हें लेकर अपने ट्‌यूबवेल के बगल में एक गन्‍ने के खेत में जा छिपी। उसने बाबू सूर्यदेव से कहा कि अब हम सुबह होने तक बिल्‍कुल खामोश यहीं पड़े रहेंगे। सुबह होने पर हम पर जो भी गुजरेगी बाद में देखा जाएगा। आपकी जान बच जाएगी तो मेरे मन की मुराद पूरी हो जाएगी। मैं अपने आपको धन्‍य समझूँगी। मेरा जीवन सफल हो जाएगा। आज मेरे सामने यह कैसी विचित्र इम्‍तहान की घड़ी आ पड़ी है।

तदंतर बाबू सूर्यदेव और निष्‍ठा सारी रात एकांत में वहीं गन्‍ने के खेत में गुपचुप तरीके से पड़े रहे। उधर नौटंकी खत्‍म होते ही निष्‍ठा का इकलौता दुलारा भाई कोमल ने सोचा-रात अब काफी ढल चुकी है। घर जाकर बाबू जी और अपनी प्रिय बहन को इतनी रात को गहरी नींद से जगाना कदापि उचित न रहेगा अतः लाओ अपने होने वाले जीजा जी के पास ही जाकर सो जाता हूँ। इसी बहाने उनसे कुछ गपशप भी हो जाएगी और साले-बहनोई के बीच रिश्‍ता भी प्रगाढ़ होगा। उस मासूम को क्‍या मालूम था कि मैं जहाँ जाने को इतना भावविह्‌वल हूँ वहाँ मौत खड़ी होकर बड़ी बेसबगी से मेरा इंतजार कर रही है।

कोमल झट उठा और बड़े हर्षित मन से चुपचाप बोरिंग की ओर चल दिया। वहाँ जाकर उसने देखा कि किवाड़ की कुंडी अंदर से बंद होने के बजाए बाहर से ही बंद है। उसने तत्‍काल कुंडी खोली और कमरे में दाखिल हो गया। कक्ष में बाबू सूर्यदेव को न पाकर उसने सोचा-हो सकता है मारे स्‍नेह-प्‍यार के कुछ जरूरी बातचीत करने के लिए बाबू जी मेरे होने वाले जीजा श्री को अपने पास ही रोक लिए हों। अब उनसे सबेरे मिलूँगा। दो-चार घंटे की और बात है इसलिए लाओ मैं यहीं पर सो जाऊँ। यह भी हो सकता है कि आपस में वार्तालाप करते-करते देर हो गई हो और कुछ समय बाद मेरे जीजा जी आने वाले हों। अतएव भीतर से दरवाजा बंद करना ठीक न होगा। यदि वह आएंगे तो मेरे नींद में होने से उन्‍हें बड़ा कष्‍ट होगा। यह सोचकर उसने अंदर दरवाजे की कुंडी बंद न किया।

तत्‍पश्‍चात कोमल सब कुछ भूलकर वहाँ कमरे में पड़ी चारपाई पर एक चादर से मुँह ढककर बिल्‍कुल बेखटके सो गया। आहिस्‍ता-आहिस्‍ता रात्रि ढलने लगी। रात के करीब ढाई बज गए। उसने खाट पर जाते ही दीन-दुनिया से एकदम बेखबर बेचारे कोमल को गहरी नींद आ गई।

इतने में अपने शिकार की तलाश में एकाएक चारों बदमाश वहाँ आ धमके। वे पाप के गहरे गर्त में डूब ही चुके थे वहाँ जाते उन्‍होंने सोते में ही फूल जैसे बच्‍चे कोमल को तेज धारदार चाकुओं से ताबड़तोड़ घोंप-घोंपकर क्षण भर में ही बड़ी निर्दयता से मार डाला। सब कुछ इतने तुरत-फुरत में पलक झपकते ही हो गया कि उस अभागे को एक बार आह करने का मौका भी नसीब न हुआ। देखते ही देखते उसके प्राण पखेरू उड़ गए। कातिलों को यह पक्‍का यकीन था ही कि यहाँ निश्‍चित तौर पर सूर्यदेव ही सो रहे हें पर वे गच्‍चा खा गए। मानो उनकी किस्‍मत उनसे रूठ गई। उन्‍हें सपने में यह अहसास न था कि सूर्यदेव कहीं और हैं और यहाँ कोई दूसरा ही सो रहा है।

इसके बाद यह जानने की गरज से कि क्‍या बाबू सूर्यदेव वाकई इस संसार से अलविदा हो गए या अभी कुछ कसर बाकी है जब उन्‍होंने खून से लथपथ कोमल के बदन से चादर हटाया तो वे एकदम सन्‍न रह गए। उनकी साँसें ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे अटकने लगीं। उनका कलेजा जोर-जोर से धड़कने लगा। वे छटपटाकर रह गए। उनकी हक्‍की-बक्‍की बंद हो गई। उनके मन में बड़ी आत्‍मग्‍लानि हुई। वे बिल्‍कुल पश्‍चाताप की अग्‍नि के कुंड मे जलने लगे। कठोर से कठोर और निर्मम हृदय का कैसा भी निर्दयी व्‍यक्‍ति हो अपनी जान सबको बड़ी प्रिय होती है। अपनी-अपनी जान मुसीबत में फँसी देखकर उन्‍होंने बाबू सूर्यदेव को मारने, लूटने का विचार तत्‍काल त्‍यागकर वहाँ से दबे पाँव रफूचक्‍कर होना ही जायज समझा। बाबू गजब सिंह सब कुछ भलीभांति जानते ही थे। उनसे कुछ भी छिपा न था अतः कत्‍ल के इल्‍जाम में फँसने का खतरा भांपते ही वे मारे डर के फटाफट गिरते-पड़ते दुम दबाकर भाग खड़े हुए। मृत कोमल को ज्‍यों का त्‍यों छोड़कर उन्‍होंने आनन-फानन में अपने-अपने घरों का रास्‍ता पकड़ लिया।

मगर अब पछताए होता क्‍या जब चिडि़या चुग गई खेत। अनजाने ही उनसे बड़ा अनर्थकारी और अक्षम्‍य अपराध हो गया। लालच के वशीभूत होने से बाबू साहब के घर एकमात्र निर्दोष चिराग का नाहक ही खून हो गया। वह बेचारा दुनिया का रंग देखने से पहले ही काल का ग्रास बन गया।

हर इंसान को अपने अच्‍छे-बुरे कर्मों का फल एक न एक दिन मिलता ही है बाबू साहब को भी अपनी सोच और करनी का कुफल मिल गया। उनके घर का एकमात्र चिराग हमेशा के लिए बहुत दूर चला गया। अपने जन्‍मदाता के मन में जागे पापों के चलते कोमल असमय ही काल के गाल में समा गया। ईश्‍वर की इच्‍छा से समझिए पासा बिल्‍कुल उल्‍टा पड़ गया। उनकी सारी होशियारी धरी की धरी रह गई।

लुटेरे, कातिलों का इंतजार करते-करते जब भोर हो गया तो बाबू गजब सिंह को किसी अनहोनी का कुछ शक होने लगा। एक तो उनके जिगर का टुकड़ा कोमल नौटंकी देखकर घर नहीं पहुँचा दूसरे आधे-पौन घंटे में अपना काम निपटाकर वापस लौटने का वादा करके जाने वाले कातिल भी अभी तक सूर्यदेव सिंह के लूटे हुए रूपए लेकर नहीं आए। वह सोचने लगे-हो न हो बदमाश, सूर्यदेव को मारने के बाद उसके सारे रूपए अकेले ही लेकर कहीं चंपत हो गए। लगता इतना सारा रूपया देखकर उनका ईमान बदल गया। उन्‍होंने हमारे साथ सचमुच बड़ा धोखा किया। कमीने बड़े पाजी निकले।

अंततः हार-थककर गजब सिंह सारा माजरा जानने की गरज से टहलते हुए अपने ट्‌यूवेल पर चले गए। वहाँ जाकर उन्‍होंने जो कुछ भी देखा उसे देखते ही वह गश खाकर गिर पड़े। उनके नेत्रों से आँसुओं की धारा बहने लगी। उनके वक्षस्‍थल में मानो बर्छियां चुभने लगीं। हृदय को झकझोरकर रख देने वाले उस दृश्‍य को देखते ही उनका वज्रवत कठोर और निष्‍ठुर कलेजा मोम की तरह पिघल उठा।

वह अपने आपको रोक न सके और फूट-फूटकर रोने लगे। उनकी हालत एकदम ऐसी हो गई कि अब अगर उन्‍हें काटो तो खून भी न निकले। बेटे की रक्‍तरंजित लाश देखकर उनकी छाती मारे पीड़ा के फटने लगी। अल्‍हड़ कोमल की ओर वह निगाह भर देखने की हिम्‍मत भी न जुटा पा रहे थे। उनकी आवाज सुनते ही तनिक देर में वहाँ ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई। पलक झपकते ही फूस की आग की भांति यह हृदय विदारक खबर आप-पास के कई गाँवों तक भी फैल गई।

वहाँ जो भी भोलेभाले कोमल के लहू-लुहान बदन को देखता दाँतों तले उँगली दबा लेता। उसके मुख से आह निकल जाती। कोई स्‍त्री हो या पुरूष वे पछाड़ खाकर गिर पड़ते। उसे देखने वालों का सीना एकदम चीर उठता।

तब गाँव के चौकीदार नंदू ने थाने इतला दी कि आज रात में बोरिंग के कमरे में सोते समय ठाकुर गजब सिंह के नौजवान पुत्र कोमल को न जाने किसने चाकुओं से गोंदकर मार डाला। बाबू साहब की हालत बहुत खराब है। वह यहाँ आने की स्‍थिति में कतई नहीं हें। पुत्र-शोक के गम में टूटकर विखर चुके हैं। इस वक्‍त वह तड़प रहे हैं।

इतना सुनना था कि थानेदार त्रिभुवन प्रसाद एकदम बिगड़ खडे़ हुए। वह वाकई बहुत ईमानदार और कड़कमिजाज अफसर थे। वह अपने दलबल के साथ तुरंत सीधे बाबू साहब के ट्‌यूवेल पर पहुँच गए। उन्‍होंने झट मौका मुआयना किया और पंचनामा तैयार करने के बाद लाश को अपने कब्‍जे में लेकर गहराई से तफतीश शुरू कर दिए।

लोगों का शोरगुल और ठाकुर साहब का चीखना-चिल्‍लाना सुनकर बाबू सूर्यदेव तथा निष्‍ठा भी गन्‍ने के खेत से निकलकर बाहर आ गए। पहले तो जन सैलाब को देखकर उनकी समझ में कुछ भी नहीं आया लेकिन बोरिंग के निकट जाने पर जब उन्‍हें ज्ञात हुआ कि कोमल का खून हो चुका है। यह सुनते ही निष्‍ठा और बाबू सूर्यदेव को बड़ा अपार कष्‍ट हुआ। उनके नेत्रों से आँसुओं की धारा बहने लगी। वे फफक-फफककर रो पड़े। अचानक दोनों गम के सागर में डूब गए। बेचारी निष्‍ठा तो अपने एकलौते छोटे,मासूम भाई का कत्‍ल बर्दाश्‍त ही न कर सकी। वह भी अपने बाबू जी की तरह अंदर से एकदम टूटकर विखर गई। उसकी सहनशक्‍ति ने बिल्‍कुल जवाब दे दिया।

वह यकायक अपना आपा ही खो बैठी और अपने नेत्रों में अश्रुधारा के साथ दरोगा जी के सामने जाकर बड़े क्रोधावेश में हाथ जोड़कर बोली-थानेदार साहब, आप मेरी बात पर विश्‍वास करें या न करें परंतु मेरे भाई का कातिल कोई और नहीं बल्‍कि हमारे बाबू जी, ही हैं। मृतक मेरा सगा भाई है।

इतना सुनना था कि दरोगा त्रिभुवन प्रसाद मारे गुस्‍से के एकदम आग बबूला हो उठे। बाबू साहब का नाम सुनते ही वह भड़क गए। मारे क्रोध के वह तमतमा उठे।आँखें लाल-पीली करके वह कहने लगे-ऐ बेवकूफ लड़की, खामोश रह। तू यह क्‍या अनाप-शनाप बक रही है? क्‍या तुझे यह भी नहीं मालूम कि इस समय तू बात किससे कर रही है। अरे नादान लड़की, सबसे पहले यह बता कि तू है कौन? जो ठाकुर साहब के खिलाफ ऐसी आग उगल रही है। भला तेरी इनसे क्‍या दुश्‍मनी है। क्‍या तुझे इतना भी नहीं मालूम कि बाबू साहब इस बेचारे मरहूम के जन्‍म दाता तो हैं ही साथ ही बाप भी हैंं। वह अपने घर के इकलौते चिराग को भला क्‍यों मारने लगें? क्‍या दुनिया में अभी इतनी अंधेर मच चुकी है कि कोई बाप भी अपने बेटे का कत्‍ल कर सकता है?

तब निष्‍ठा बिना कुछ सोचे-विचारे ही बेधड़क बोली-सर, बिल्‍कुल सच कहती हूँ मैं इस बदनसीब निर्जीव की सगी बहन हूँ। जिस बाबू साहब को आप इतना शरीफ समझ रहे हैं दरअसल उतने हैं नहीं। वह इंसान नही बल्‍कि एक खॅूंखार भेडि़या हैं। आज मैं इनकी बेटी हूँ और यह मेरे जन्‍मदाता हैं इसका मुझे बड़ा दुःख है। आपके समक्ष जो कुछ भी दिखाई दे रहा है उसमें इनका पूरा-पूरा हाथ है। आज इनके चलते मेरे मासूम भाई की हत्‍या हो गयी। मैंने अपनी जन्‍मदायिनी माँ को बचपन में खोया ही था आज अपने इकलौते भाई को भी खो दिया।

यह सुनते ही थानेदार साहब दंग रह गए। फिर वह कुछ संयत होकर बोले-बेटी, पहले जरा इधर आओ, तुम डरो नहीं, मुझे इस प्रकार पहेलियाँ मत बुझाओ वरन जो कुछ भी कहना है एकदम साफ-साफ कहों। हकीकत में यह सब कैसे हुआ? बाबू साहब इसमें कैसे दोषी हैं? मेरे कहने का मतलब इस कत्‍ल में इनकी क्‍या भूमिका है? क्‍या किया इन्‍होंने?

दरोगा जी का आश्‍वासन पाकर बाबू सूर्यदेव की ओर इशारा करके निष्‍ठा कहने लगी-साहब, बाबू जी ने इनके साथ मेरी शादी करने की बात चलाई। यह मुझे देखने कल रात लगभग साढ़े आठ बजे मेरे घर आ गए। मेरे होने वाले ससुर जी ने चलते समय बैंक में जमा कराने की खातिर शायद इनके हाथ में डेढ़ लाख रूपए दे दिए जो इतवार का दिन होने की वजह से बैंक बंद रहने से रूपए बैंक में जमा न हुए और उसे अपने संग लेकर हड़बड़ी में यह महोदय यहाँ आ गए। दुर्भाग्‍यवश इसकी भनक कुछ गुण्‍डों को लग गई। वे वहीं से इनका पीछा करते-करते यहाँ तक आ गए। आगे-आगे यह मेरे घर पहुँचे और कुछ ही देर बाद इनके पीछे-पीछे वे भी आ धमके। यहाँ आते ही वे सब मेरे बाबू जी का कान भरना आरंभ कर दिए। उन्‍होंने इनके खिलाफ तरह-तरह से खूब जहर उगला और बाबू जी को भड़काने की जी तोड़ यत्‍न किया। बाबू जी भी एक मनुष्‍य ही हैं कोई देव नहीं।

निष्‍ठा फिर एक लंबी सांस लेकर बोली-हुजूर, हर इंसान में कोई न कोई कमजोरी होती ही है कुछ मानवीय कमजोरियाँ इनमें भी हैं। बाबू जी उनके उकसाने में आ गए और इनका मन न मालूम अचानक कैसे बदल गया और इन्‍हें भोजनोपरांत घर में सुलाने के बजाए यहाँ लाकर अकेले सुला दिए। अब चूँकि सबके खाने-पीने का इंतजाम मैं ही कर रही थी इसलिए यह साजिश मैंने भी अपने कानों से सुन ली। मेरा भाई गाँव में नौटंकी देखने चला गया था। जब आपस में सबको बातचीत करते-करते काफी रात हो गई तब नींद आने का बहाना करके मैं अपने कक्ष में सोने के लिए जाने के बहाने मकान के पिछले दरवाजे से चुपके से बाहर निकली और तुरंत गिरते-पड़ते यहाँ आकर इन्‍हें धीरे से जगाने के बाद उस गन्‍ने के खेत में छुपा दी। इसके बाद मेरा यह बदनसीब भाई कोमल न जाने कब नौटंकी देखने के पश्‍चात सीधे घर न जाकर चुपचाप यहाँ आकर अकेले सो गया। तदोपरांत इन्‍हें मारने-लूटने के लिए आने वाले बदमाश शायद यहाँ आए और रात के घुप अंधेरे में बगैर पहचाने ही इनके बदले मेरे भाई को मौत की नींद सुला दिए। उन्‍होंने इसे इस तरह मारा कि यह मासूम थोड़ा-बहुत चिल्‍ला भी न सका वरना हम वहाँ से निकलकर इसे बचाने जरूर आते। जनाब, अब आप खुद ही फैसला कीजए कि इस हत्‍या में मेरे बाबू जी दोषी हैं या नहीं? जो सच्‍चाई मुझे मालूम थी सब बयान कर दिया। आगे आप जाने और आपका काम जाने। मुझे तो बस अपने भाई के खून का न्‍याय चाहिए। निष्‍ठा के कथन की सच्‍चाई परखने की गरज से दरोगा जी के पूछने पर बाबू सूर्यदेव सिंह ने भी गीले नेत्रों से दिल खोलकर उसकी हाँ में हाँ मिला दिया।

यह सुनते ही दरोगा त्रिभुवन प्रसाद का माथा ठनक गया। उनके ललाट पर बल पड़ गया। वह बड़े आश्‍चर्य में पड़ गए। उनकी आँखें भी आँसुओं से नम हो गईं। पुलिस में होते हुए भी वह बडे सज्‍जन,उदार ओर रहमदिल इंसान थे। वह अपने माथे पर हाथ रखकर बोले-वाकई यथा नाम तथा गुण ठाकुर साहब ने बड़ा गजब किया। चंद रूपयों के मोह ने आज इनका घर उजाड़ दिया। इन्‍होंने अपने पाँव में आप ही कुल्‍हाड़ी मार ली। भई, रूपयों की लालच जो चाहे सो करा दे। भावी दामाद को लुटवाने के चक्‍कर में आज इन्‍हें अपने बेटे से ही हाथ धोना पड़ा। लालच सचमुच बड़ी बुरी बला है। मनुष्‍य को सदैव इससे बचकर ही रहना चाहिए।

खून का सारा रहस्‍य खुलते ही बाबू साहब के मलिन चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। अपनी करनी पर उन्‍हें बड़ा पछतावा हुआ। उनका हृदय झिंझोड़ उठा। सच्‍चाई्र और ईमानदारी का परिचय देते हुए उन्‍होंने सरेआम अपना जुर्म कबूल कर लिया। सबके सामने ही उन्‍हें बड़ा लज्‍जित होना पड़ा। मारे शर्म के उनकी गर्दन झुक गई। पुलिस उन्‍हें तत्‍काल हिरासत में लेकर दूसरे बदमाशों को ढूँढ़ने में जुट गई।

तब थानेदार त्रिभुवन प्रसाद बड़े उदास मन से बाबू सूर्यदेव की ओर मुखातिब होकर बोले-बाबू साहब, यदि आज आप किसी तरह जिंदा हैं तो केवल इस मासूम किन्‍तु चतुर और विचारशील लड़की की बदौलत ही जीवित हैं। मुझे यह भलीभांति पता है कि यह कोई देवी तो नहीं है फिर भी अपने प्राणों को इतने संकट में डालकर आपसे कोई रिश्‍ता न होते हुए भी इसने आपकी जान बचाई है। यह आपको पसंद आई या नहीं मुझे नहीं मालूम। इस बेचारी ने अपने प्राणों की परवाह न की। इसकी मां पहले ही गुजर चुकी है। इसका एक भाई था वह भी आज अचानक संसार से चला गया। वह बेचारा लालच की भेंट चढ़ गया। इसके बाबू जी जेल चले जाएंगे। उनकी सारी उम्र अब काल कोठरी में ही कट जाएगी। ऐसे में यह बेचारी इस निष्‍ठुर जग में अकेले कैसे जिएगी? इस जगत में अब इसका कोई भी नहीं है। यह एक लावारिस बनकर रह गई हैं। इसका जीवन एकदम वीरान हो चुका है। सावन आने से पहले इसकी जिंदगी में पतझड़ आ गया। इसका सारा चमन उजड़कर बिखर चुका है। सच मानिए मैं आप पर कोई दबाव नहीं डाल रहा बल्‍कि मात्र इंसानियत के नाते आपसे पूछता हूँ। अब बिल्‍कुल सच-सच बताइए कि क्‍या आप राजी-खुशी इससे विवाह करेंगे? अगर आपको कोई ऐतराज न हो और शादी करने को तैयार हैं तो बताइए।

थानेदार साहब का वचन सुनकर बाबू सूर्यदेव सिंह बेझिझक बोले-जी हाँ, मैं निष्‍ठा जैसी धार्मिक, सुशीला और पवित्र लड़की से विवाह करने को सहर्ष राजी हूँ। मुझे कोई आपत्‍ति नहीं है।

इतना सुनते ही दरोगा जी का रोम-रोम हर्षित हो उठा। वह सूर्यदेव के कंधे पर हाथ रखकर बड़ी सहृदता से बोले-परमात्‍मा आपका भला करे। आप जैसा नेक ओर विचारवान लड़का बड़े मुश्‍किल से ही इस संसार में खोजने पर मिलेगा। लेकिन बेटे, अब एक बात और जब इससे व्‍याह करना ही है तब कल या कुछ दिन बाद में क्‍यों? चट मँगनी और पट शादी मेरे विचार से उसे आज ही और अभी कर डालिए। यही आपसे मेरी अर्ज है। अगर आप चाहें तो अपने माता-पिता और दो-चार रिश्‍तेदारों को भी संदेश देकर बुला लीजिए। पूरे गाँव के सामने आप दोंनों की शादी आज ही हो जाए तो बहुत अच्‍छा रहेगा अन्‍यथा यह लड़की इधर-उधर दर-दर भटकती-फिरती ही रहेगी।

यह सुनते ही सूर्यदेव सिंह बोले-ठीक है जैसी आप लोगों की मर्जी। तब त्रिभुवन बाबू संपूर्ण कहानी के साथ खबर भेजकर सूर्यदेव के मां-बाप और उनके कुछ रिश्‍तेदारों को वहाँ बुलवा लिए। दोपहर ढलते-ढलते वे सब मछली शहर जा पहुँचे। सबके मुँह से निष्‍ठा की दरियादिली और अक्‍लमंदी का बखान सुनकर सब लोग बड़े खुश हुए। ठाकुर रणवीर प्रताप इतने प्रसन्‍न हुए कि दरोगा जी से बोले-भाई दरोगा जी, आपने आज जो कुछ भी किया सच में बहुत अच्‍छा किया। इस नेक काम में आपकी उदारता झलकती है। इसके बाद समस्‍त ग्रामवासियों ने आपस में मिलकर बिना किसी बाजे-गाजे के ही निष्‍ठा का दिल खोलकर कन्‍यादान किया। उन्‍होंने अपने नेत्रों में आँसू भरकर निष्‍ठा को विदा किया। बाबू रणवीर प्रताप सिंह शाम होने से पहले ही अपने पुत्र सूर्यदेव और अपनी पुत्रवधू निष्‍ठा को लेकर अपने घर की ओर चल पड़े। उनहोंने अपने मन में कहा-ईश्‍वर जो करता हे सदैव अच्‍छा ही करता है। उसकी यही इच्‍छा थी। बिना किसी मशक्‍कत के ही हमें इतनी अच्‍छी बधू मिल गई। आज इसके चलते मेरे बेटे की जान बच गई वरना मैं कहीं का न रहता। मैं आज तबाह और बर्बाद हो जाता। निष्‍ठा ने बुद्धिमानी से काम न लिया होता तो आज मैं अपने इकलौते बेटे को गँवा चुका होता।

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राजभाषा सहायक ग्रेड-।

महाप्रबंधक कार्यालय

उत्‍तर मध्‍य रेलवे मुख्‍यालय

इलाहाबाद

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: कहानी // प्रतिफल // अर्जुन प्रसाद
कहानी // प्रतिफल // अर्जुन प्रसाद
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