फेसबुक और नेचुरल सेल्फी फेसबुक पर चल रहा है नेचुरल सेल्फी का दौर, देखो खुली पोल सुंदरता की, लोग कर रहे शोर। कई लड़कों को पड़े दिल के दौरे द...
फेसबुक और नेचुरल सेल्फी
फेसबुक पर चल रहा है नेचुरल सेल्फी का दौर,
देखो खुली पोल सुंदरता की, लोग कर रहे शोर।
कई लड़कों को पड़े दिल के दौरे देख असलियत,
आँखें फ़टी रह गयी देख मेकअप की मासूमियत।
लीपा पोती का कमाल था बंदरिया लग रही हूर,
अब लड़कियाँ पड़ी पीछे पर लड़के भाग रहे दूर।
नेचुरल सेल्फी का मोह ले बैठा हम औरतों को,
सुनने पड़ रहे ताने अब यही है गम औरतों को।
फेसबुक भी चिल्ला उठी कुछ तो रहम करो तुम,
हूर परी सी लगती हो, दूर अपना ये वहम करो तुम।
कुछ दिलों को अब ठंडक मिली बोले हम बच गए,
वरना देख नेचुरल सेल्फी कहते हम कहाँ फंस गए।
सादगी की मूरतें आज मुस्कुरा उठी, देखकर ये हाल,
बोली बेनकाब कर गया सुंदरता को तुम्हारा ही जाल।
भेड़चाल क्यों चलते हैं लोग, नहीं समझ पा रही हूँ,
"सुलक्षणा" लगे चोट जगें लोग यूँ कलम चला रही हूँ।
©® डॉ सुलक्षणा
पेड़ लगाओ
धरती माँ का कर्ज चुकाने को,
बढ़ाओ हाथ पेड़ लगाने को।
सृष्टि का आधार हैं ये पेड़,
सृष्टि का श्रृंगार हैं ये पेड़,
आगे आओ इन्हें बचाने को।
पर्यावरण का संतुलन इनसे,
आपदाओं का उन्मूलन इनसे,
सोचो जीवन सुखमय बनाने को।
धरती पर वर्षा को बुलाते हैं ये,
जल स्तर को ऊँचा उठाते हैं ये,
पेड़ लगाओ जल स्तर बढ़ाने को।
रोगों की दवा मिलती इनसे,
शुद्ध ताजी हवा मिलती इनसे,
पेड़ लगाओ प्रदूषण दूर भगाने को।
धरती को हर भरा बना दो एक बार,
सुलक्षणा की बातों पर करो विचार,
करती कविताई वो समझाने को।
©® डॉ सुलक्षणा
दो हरियाणवी भजन भोले नाथ के
भोले एक ब आ जाइये, तन्नै भक्त बुलावैं सँ,
ठा कै काँधे कावड़ तेरे जयकारे ये लावैं सँ।
कोय जा लिया गौमुख, कोय जा लिया हरिद्वार,
कोय डाक कावड़ ल्याण खातर होरया स त्यार,
हरिद्वार तै हरियाणे ताहीं टूटती कोण्या या लार,
बस तेरे दर्शन खातर भक्त तेरे कष्ट पावैं सँ।
छोड़ कैलाश नै तू हरियाणे म्ह आज्या,
भांग रगड़ राखी स भोले इसनै खाज्या,
देख तन्नै स्याहमी भक्तां म्ह खुशी छाज्या,
बस तेरे दर्शन करना भोले ये भक्त चाहवैं सँ।
कावड़ ल्यावन नै भोले फौजी बी छुट्टी आ रे,
जिणनै छुट्टी ना मिली, वे बैठ तम्बू म्ह ध्या रे,
आठों पहर बॉर्डर ऊपर भोले तेरे गुण गा रे,
ले ले तेरा नाम भोले वे एक एक पल बितावैं सँ।
रणबीर सिंह के चरणां म्ह बैठ तेरे गुण गावै,
वा बहलम्बे आली सुलक्षणा तेरे भजन बनावै,
तेरे दिए दिन सँ भोले वा रोज तेरा शुक्र मनावै,
मनचाही पूरी हो ज्या उनकी जो तन्नै ध्यावैं सँ।
©® डॉ सुलक्षणा
************************************
माँ मन्नै जावण दे हरिद्वार,
मैं ल्याऊंगा उस भोले की कावड़।
माँ लाग्या यो सामण का महीना,
कदे बरसे राम कदे आवै पसीना,
भोले की करदे होये जय जयकार,
मैं ल्याऊंगा उस भोले की कावड़।
नँगे पैरां करूँ चढ़ाई नीलकण्ठ की,
वेदां नै महिमा बताई नीलकण्ठ की,
मौका मिलता ना माँ इसा बारम्बार,
मैं ल्याऊंगा उस भोले की कावड़।
अगड़ बगड़ के छोरे माँ कर रे तैयारी,
कावड़ ल्यायै का पूण मिले माँ भारी,
वो शिव भोला माँ कर दे बेड़ा पार।
मैं ल्याऊंगा उस भोले की कावड़।
गुरु रणबीर सिंह बी आये साल जावै,
वा सुलक्षणा बी भोले के रोज गुण गावै,
अन्न धन के माँ वो भोला भर दे भंडार।
मैं ल्याऊंगा उस भोले की कावड़।
निंदा नहीं बदला चाहिए
ए साहिब! हमें कड़ी निंदा नहीं बदला चाहिए है,
उनमें भी दहशत का एक जलजला चाहिए है।
बहुत हुआ कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं,
रूह भी काँप उठे उनकी ऐसा हमला चाहिए है।
कब उनकी हज यात्रा में हमने रोड़ा अटकाया है,
कब उनकी तरह इंसानियत का खून बहाया है।
रोजों में अपने हिस्से की बिजली देते हैं हम तो,
मानकर भाई उनको ईद पर हमने गले लगाया है।
पर हमारी खामोशी को वो कायरता मान बैठे हैं,
हमारी अमन परस्ती को वो कमजोरी जान बैठे हैं।
पर अब वक़्त आ गया है उनको सबक सिखाने का,
देख लचीलापन वो हमारी कट्टरता से वअनजान बैठे हैं।
ए साहिब! मत सोचो दे दो छूट हाथ सेना को एक बार,
हर रोज का खत्म हो ये झगड़ा, सबकी यही है पुकार।
खून खौल रहा है सुलक्षणा का, फड़क रही है कलम,
खाक ए मिट्टी कर दूँ उनको, छीन उनके ही हथियार।
नई रचना
देख इंसान का दोगलापन गिरगिट भी शर्माने लगा,
दुनिया वालों से वो अपनी ही पहचान छिपाने लगा।
विचार मिलते नहीं पर दोस्तों की कतार खूब लंबी है,
बस स्वार्थपूर्ति को इंसान हर रोज दोस्त बनाने लगा।
सामने प्रशंसा और पीठ पीछे करता बुराई है इंसान,
आज इंसान खुद को खुद की नजरों से गिराने लगा।
सुनते हैं जो औरों की बुराई वो समझ सके ना बात,
कितना गिरा है ये जो अपनों की कमी गिनाने लगा।
देखो चापलूसी की हदें भी पार कर गया आज इंसान,
गैरों के कदमों में वो अपना जमीर आज बिछाने लगा।
महज दिखावे की राम राम करता पर मन में देता गाली,
खा कर उसी की झूठन आज ये उसी को गिरयाने लगा।
बचकर रहना "सुलक्षणा" ऐसे अपनों से तुम भी यहाँ,
इंसान आज मुखौटों पर भी मुखौटे खूब चढ़ाने लगा।
माँ की समझदारी
साँझ नै माँ बैठी थी आँगन म्ह पीढ़ा घाल,
छोरा आया बाहर तै बोल्या माँ भीतर चाल।
माँ बोली के बात स तू किसे साँस भर रहा स,
तौला बता मेरा कालजा धुक धुक कर रहा स।
बोल्या माँ अल्ट्रासाउंड म्ह तो छोरी बताई स,
क्यूकर पालूंगा छोरी नै, मेरे क्यां की कमाई स।
माँ घणी ए समझदार थी बोली बेटा डरै मत ना,
चोंच दी स तो चुग्गा बी देगा तु फिक्र करै मत ना।
कोय फर्क ना रह रहा आज छोरा छोरी म्ह बेटा,
ना समझ म्ह आती हो तेरे तो ल्या भरूँ तेरा पेटा।
मैं बी किसै की बेटी सूं अर मेरे बी दो दो बेटी सँ,
तेरी बाहणां के भाग तै भरी आज धन की पेटी सँ।
तेरे ब्याही आई वा बी किसे की बेटी स भुलै मत ना,
आपणै भाग का खुद ल्यावै तू चिंता म्ह घुलै मत ना।
माँ की बात सुन बेटे की आंख खुलगी अर बोल्या,
माँ तेरी बातां नै आँख्यां प पड़ा पर्दा आज खोल्या।
हे माँ धन्य सूं मैं अर भागां आली स वा "सुलक्षणा",
साची कहूँ तेरे कारण आज घर बसा रहग्या आपणा।
राजनीति और राजनेता
राजनीति और राजनेताओं ने बाँटने का काम किया है,
सदा अपनी करतूतों से इंसानियत को बदनाम किया है।
राजनेताओं ने हमें बाँट दिया धर्म मजहब जातिवाद में,
अपने फायदे को अल्लाह से जुदा इन्होंने राम किया है।
देश की आब ओ हवा को जहरीला बना दिया इन्होंने,
नफ़रत के ज़हर से भाईचारे का काम तमाम किया है।
अपने स्वार्थ की रोटियाँ सेंकते हैं ये हमारी लाशों पर,
शहीदों की शहादत का अपमान भी सरेआम किया है।
लाशों के ढ़ेर पर चढ़ कर कुर्सियाँ हासिल की हैं इन्होंने,
छल कपट, झूठ, बेईमानी का व्यापार सुबह शाम किया है।
इन्हें परवाह नहीं जनता की बस वोट बैंक से मतलब है,
केवल वोट लेने के वक़्त ही जनता को सलाम किया है।
सुलक्षणा जनता को जागरूक बना कलम चलाकर,
जागरूकता के बिना जनता का जीना हराम किया है।
मानसिकता पुरुषों की
पता नहीं कब बदलेगी पुरुषों की मानसिकता,
औरतों की देह के आगे कुछ नहीं इन्हें दिखता।
फेसबुक पर भेजता औरतों को मित्रता निवेदन,
स्वीकार होते ही निवेदन असभ्य संदेश भेजता।
फिर पोस्ट देखने की बजाए देखता वो तस्वीर,
फिर उन तस्वीरों पर अभद्र टिप्पणियाँ लिखता।
कई तस्वीरों को साझा करता अपने दोस्तों से,
हर औरत के प्रति गंदे विचार दिमाग में रखता।
संदेश का जवाब नहीं मिलने पर भड़क जाता,
फिर एक पल भी मित्रता सूचि में नहीं टिकता।
दे देती है कोई औरत पलट कर जवाब करारा,
घटिया सोच है तुम्हारी कह औरत पर चीखता।
करके गलती सरेआम पुरुष खुद ही अकड़ता,
अपनी पिछली गलतियों से नहीं सबक सीखता।
सुलक्षणा के जैसे यदि कोई दे देती है चेतावनी,
कहता है लिखती हो तुम घटिया घटिया कविता।
©® ©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
डॉ सुलक्षणा D/o श्री राम मेहर अहलावत,
शिव कृपा भवन, गली नंबर 2, वार्ड नंबर 6,
प्रेम नगर, चरखी दादरी-127306
COMMENTS