पुस्तक परिचय गजल संग्रह : बादल बंद लिफाफे हैं तीन वर्ष पूर्व प्रकाशित ‘सच का परचम’ गजल संग्रह के पश्चात वाराणसी निवासी शायर अभिनव अरुण का द...
पुस्तक परिचय
गजल संग्रह : बादल बंद लिफाफे हैं
तीन वर्ष पूर्व प्रकाशित ‘सच का परचम’ गजल संग्रह के पश्चात वाराणसी निवासी शायर अभिनव अरुण का दूसरा गजल संग्रह है, ‘‘बादल बंद लिफाफे हैं’’. सामाजिक सरोकार एवं मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण से लबरेज 105 गजलें संग्रह में शामिल हैं. गजल आज कल्पना के आकाश से उतरकर यथार्थ के
धरातल पर विचरण कर रही है. अभिनव इसी परम्परा के शायर हैं. ‘जब भी खुद को निचोड़ देता हूँ, इक गजल और जोड़ देता हूँ’ कहने वाले इस शायर ने संग्रह की गजलों में तमाम विसंगतियों के बावजूद उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है. वे कहते हैं ‘सबकी नजरों में सुनहरी भोर होनी चाहिए, एक कोशिश रोशनी की और होनी चाहिए’. बहुत कुछ होता देख शायर दुआ करता है ‘मेरे इस ख्वाब की ताबीर हो जाती तो अच्छा था, यहाँ हर हाथ में शमशीर हो जाती तो अच्छा था’. तीज, त्योहार, पर्यावरण, सियासत, बाजार, रिश्ते नाते, गाँव-शहर प्रायः हर विषय अभिनव अरुण की गजलों में समाहित है. वे शाइरी और मंच के रिश्ते पर भी तंज कसते हैं ‘मंच पर शाइर की है दरकार क्या, मसखरी ही मसखरी होने लगी’. माँ पर कहे उनके ढेरों शेर मुनव्वर राणा की याद दिलाते हैं ‘दुआ माँ की निकल आती हैं पहले, मैं जब घर से निकलना चाहता हूँ ’, ‘उसके सर पर दुआएं माँ की हैं, कदमों में आसमान भी तय है’ या फिर ‘लाख मुश्किल हो ध्यान रखता हूँ, बा अदब ये जुबान रखता हूँ. मेरे सर पर दुआएं माँ की हैं कदमों में आसमान रखता हूँ’.
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कुल मिलाकर समकालीन गजल के चाहने वालों के लिए संग्रह पठनीय है.
पुस्तक : बादल बंद लिफाफे हैं (गजल संग्रह)
शायर : अभिनव अरुण
प्रकाशक : अंजुमन प्रकाशन,
942 आर्य कन्या चौराहा, मुट्ठीगंज,
इलाहाबाद-211003
मूल्य : 140 रुपये
पृष्ठ : 160
कविता संग्रह : माँद से बाहर
मीडिया में ढाई दशक से सक्रिय, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहने वाले कवि अभिनव अरुण की सौ से
अधिक कविताओं का संग्रह है ‘माँद से बाहर’. अथ से इति तक सबकुछ ठीक ठाक होने की कामना और प्रयास की उपज हैं अभिनव अरुण की कवितायें. सामाजिक असामनता, छीजते जीवन मूल्य, बाजार और इंसान का संघर्ष संग्रह की कविताओं का मुख्य स्वर है. बड़ी बात ये भी है कि कवि ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है ‘चट्टानों को तोड़ते हुए टूटते जाते हों हम भले ही/पर जुड़ते जाते हैं हाथ से हाथ/बनती जाती हैं मानव श्रृंखलाएं/निश्चित ही सूरज के जागने तक कायम रहेगा यह सिलसिला’ या ‘हाथ के ग्लेशियर पिघलेंगे/नुकीले हिमखंडों से टकराना सीखा है हमने’. अभिनव कविता को ही कविता की पूर्व पीठिका मानते हैं. उन्होंने समालोचना की दीवार बंद कर रखी है, वे कहते हैं- ‘मैंने कवितायें लिखीं/अपने नाखूनों को कलम/बदन को दवात और लहू को सियाही बनाकर,’ ‘मुझे प्रशस्ति नहीं/समालोचना नहीं/चाहिए तो बस एक/और कविता की पूर्व पीठिका’. कबीर की काशी में सक्रिय नयी पीढ़ी के रचनाकारों में अभिनव अरुण जिस तरह अपनी गजलों में रवां हैं उसी तरह कविताओं में भी प्रभावी हैं. खरी खरी बात बड़े सलीके से कहते हैं. ‘ये केंचुल अब उतारो/फेंक भी दो/दिखाओ दांत अपने/जहर वाले’ वे चिंतित हैं ‘हमने एक नदी को
बांधा और अब करते हैं, रेत की पुजैया/किनारे रुकी/नाव की लाश पर’. अपने सटीक स्वरों के गंभीर उद्घोषक के साथ अभिनव की कवितायेँ ‘मांद से बाहर’ हैं.
संग्रह पठनीय और विचारोत्तेजक है.
पुस्तक : माँद से बाहर (कविता संग्रह)
रचनाकार : अभिनव अरुण
प्रकाशक : अंजुमन प्रकाशन, 942 आर्य कन्या चौराहा,
मुट्ठीगंज, इलाहाबाद-211003
मूल्य : 140 रुपये
पृष्ठ : 160
साहित्य समाचार
बरगद की छांव तले कहानी पाठ
(दूसरी कड़ी)
जबलपुरः बरगद की छांव तले कहानी पाठ की दूसरी कड़ी में डॉ. कुंवर प्रेमिल ने अपनी कहानी ‘‘पांचवां बूढ़ा’’ का कहानी पाठ युवा और वृद्धजनों के बीच किया. पांचवें बूढ़े के किरदार ने सभी को चौंका दिया. ऐसे किरदार विघ्न संतोषी की श्रेणी में आते हैं. ये हर जगह उपस्थिति हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में अग्रणी रहते हैं. जन समूह की उपस्थिति से यह सिद्ध हो गया कि लोग कहानी सुनना पसंद करते हैं. भले ही उनके पास कहानी पढ़ने के लिए समयाभाव है.
इसके बाद भाई आनन्द जैन का जन्म दिन एकदम सादे परिवेश में मनाया गया. सामाजिक एवं पारिवारिक आयोजनों में साहित्य को शामिल करना आज की जरूरत है. साहित्य से परिवारों की बढ़ती दूरी को पाटने के लिए ऐसे आयोजनों का होना बेहद-बेहद जरूरी है. बिना कोई गिफ्ट दिए मात्र हल्दी-चावल का टीका लगाकर ‘तुम जियो हजारों साल’ के सामूहिक गान से वातावरण सजीव हो उठा.
रघुवीर अंबर, शंकर सिंह, नरेन्द्र गर्ग, लोकेश नाथानी, एस.एनत्र द्विवेदी, योगेश खंडेलवाल, डॉ. अरुण जती, दीपक ठाकुर, राहुल हल्दकार की उपस्थिति ने अपनी पूरी सहभागिता प्रदान की, वहीं वयोवृद्ध के. एन. शर्माजी ने भी अपना जन्म दिन इसी जगह खुले आकाश के नीचे बरगद की छांव तले मनाने की इच्छा जाहिर की, वहीं डॉ. निरंजन जैन ने कार्यक्रम को आत्मीयता से जोड़कर देखा. उन्होंने वटवृक्ष को बोधिवृक्ष की संज्ञा प्रदान करते हुए कहा- ‘घर परिवार से अलग अपनी मित्र मंडली को भी अपने से जोड़कर रखना मित्रता के मायने रखता है.’
डॉ. कुंवर प्रेमिल द्वारा प्रदत्त निःशुल्क किताबों, पत्रिकाओं के वितरण (प्राची के अंक) की भी भूरि-भूरि प्रशंसा की गई. चुटकुले, क्षणिकायें, गीतिकाएं आदि ने समां बांधा तथा अंत में स्वल्पाहार वितण कर आयोजन की समाप्ति हुई.
विशेषः
बरगद की छांव तले कहानी पाठ के कार्यक्रम को ‘प्राची’ पत्रिका ने गोद लेकर एक महत्त्वपूर्ण कार्य को अंजाम दिया है. ‘प्राची’ के संपादक राकेश भ्रमर जी उक्तार्थ बधाई के पात्र हैं. आशा है, ऐसे किसी कार्यक्रम में जब भी वे कभी जबलपुर में हुए, शामिल होकर मनोबल बढ़ाएंगे. उन्होंने भी महंगे आयोजनों के बदले ऐसे सादे आयोजनों की प्रशंसा कर अपनी सहमति प्रदान की है.
प्रस्तुति : डॉ. कुंवर प्रेमिल,
सम्पादक प्रतिनिधि लघुकथायें/वार्षिकी
राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान कार्यक्रम
सरगुजाः जैव विविधता एक ऐसा संसाधन है जो एक बार समाप्त हो जाने पर दुबारा नहीं प्राप्त किया जा सकता अर्थात इसका विलुप्तीकरण हमेशा के लिए हो जाता है. जैव विविधता का संरक्षण आज पूरे विश्व में चिन्ता का विषय है. उक्ताशय के विचार राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री विजय यादव ने व्यक्त किये. भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुदानित जन कल्याण के परिषद् के सहयोग से छत्तीसगढ़ शबरी सेवा संस्थान लखनपुर ने यह आयोजन किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता पुरस्कार से सम्मानित श्री अंचल सिन्हा ने की और खतरे में पड़ी विभिन्न प्रजातियों तथा उनके विलुप्ति के कारणों पर प्रकाश डाला तथा बच्चों को आदिवासी संस्कृति तथा उससे वन तथा वन्य जीव संरक्षण को समझाया. श्री सुरेन्द्र भगत ने वृक्षारोपण के लाभ से अवगत कराया तथा प्रदूषण के मानवीय कारणों पर प्रकाश डाला. श्रीमती प्रतिभा सिंह ने स्वच्छ पर्यावरण की सुखद कल्पना की बात की.
कार्यक्रम का संचालन सुरेन्द्र साहू ने करते हुए कहा कि भूमि के बंजर होने का प्रमुख कारण अत्यधिक चराई, वनों में आग तथा कीटनाशकों को प्रयोग है. रासानयिक उर्वरकों का उपयोग भी इसका प्रमुख कारण है.
कार्यक्रम के बाद स्थानीय विद्याालयों के बच्चों ने पूरे ग्राम की रैली निकालकर भ्रमण किया तथा वृक्षों की सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक किया. रैली का संचालन श्री नरेन्द्र गिरी, उमेश बघेल तथा ओंकार सिंह ने किया. कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन व्याख्याता पंचायत श्री महिपाल मिंज ने किया. स्थानीय वृक्षारोपण, जल सरंक्षण तथा कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग करने हेतु अपने परिवार को जागरूक करने की शपथ ली.
प्रस्तुतिः सुरेन्द्र साहू, लखनपुर, सरगुजा
काव्य गोष्ठी का आयोजन
नई दिल्लीः विगत दिवस साहित्य मंथन संस्था द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी डॉ. प्रेम भावना शुक्ल के निवास स्थान पश्चिम विहार (पूर्व) में संपन्न हुई. इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. आशा जोशी, जबलपुर से पधारे डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’, श्री दरवेश भारती, श्री अम्बर खरबंदा, सर्वेश चंदौसी तथा दिल्ली से स्नेह सुधा नवल, सुषमा भंडारी, डॉ.भावना शुक्ल, डॉ. ज्योति अग्रवाल, राज भंडारी, सुमन आदि ने काव्य रस की गंगा बहाई तथा कार्यक्रम की. अध्यक्षता की डॉ. हरीश नवल जी ने, कुशल संचालन किया श्री अनिल वर्मा मीत जी ने और आभार व्यक्त किया श्री प्रेम नारायण शुक्ल ने.
प्रस्तुतिः डॉ. भावना शुक्ल, नई दिल्ली
श्री गोविन्द हिन्दी सेवा समिति का ऐतिहासिक साहित्यिक आयोजन
मुरादाबादः श्री गोविन्द हिन्दी साहित्य सेवा समिति (पंजी.) के तत्वावधन में दिनांक-19/20-05-2017 तक दो दिवसीय साहित्य सम्मान समारोह-2017 का आयोजन आर.एस.डी. एकेडमी मुरादाबाद सांस्कृतिक सभागार में आयोजित किया गया जिसमें बृहद कवि सम्मलेन एवं साहित्यकार सम्मलेन की आयोजना डा.रामवीर सिंह ‘वीर’ के संयोजन में की गई.
दो दिवसीय समारोह की अध्यक्षता बरेली के वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमेश विकट के की. मुख्य अतिथि थे केलिफोर्निया (अमेरिका) से पधारे प्रो. वेद प्रकाश बटुक, विशिष्ट अतिथि थे जबलपुर से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार डा. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’.
डा. महेश दिवाकर द्वारा संचालित कार्यक्रम में मंचासीन अतिथियों के साथ देश के विभिन्न प्रदेशों- असम, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, आदि के साहित्यकारों, शिक्षाविदों और पत्रकारों को आयोजक-डा. रामवीर सिंह ‘वीर’ द्वारा अंगवस्त्र, स्मृति चिह्न व प्रमाण पत्र प्रदान कर विभिन्न अलंकारों जैसे-हिन्दी भाषा भूषण, हिन्दी काव्य भूषण, हिन्दी काव्य रत्न, हिन्दी भाषा रत्न, आदि उपाधियों से सम्मानित किया गया, जिनमें सर्वश्री महाकवि अनुराग, डा. दर्द ह्रयारण (झाँसी), डा. सलमा जमाल (जबलपुर), डा. भावना शुक्ल (दिल्ली), रश्मि अग्रवाल (नजीबाबाद), प्रो. पुष्प रानी (कुरुक्षेत्र), डा. अशोक कुमार गुप्त ‘अशोक’ (कानपुर), प्रो.ललिता बी ‘जोगड़’, विशाल के.सी. असम, मीरा भटनागर (मुजफ्फर नगर), सुशीला शर्मा (मुजफ्फर नगर), डॉ. रंजना गौड़ (फैजाबाद), सतीश शर्मा (बरेली), सुनीता शर्मा गुरुग्राम ,प्रो. दिनेश गौड़
गोधरा, राजवाला राज हिसार, डा. बलजीत सिंह हिसार, डा.नवी अहमद ‘मंसूरी’ डा. राम प्रवाल श्रीवास्तव मुरैना, मुकेश कुमार करनाल, डा. संजय कुमार पटना, पुष्प देवी पाठक पटना, एमी माह्जफी हुसैन लखीमपुर (असम), डा. ए.पी गौड़, फैजाबाद, डा. स्वदेश मल्होत्रा फैजाबाद, डा. ओम प्रकाश शुक्ल ‘अमिय’, सुमन रानी पलवल, चौधरी देवेन्द्र सिंह, रफी अहमद, राम गोपाल मुरादाबाद आदि को समादरित किया गया. आर.एस.डी एकेडमी के संचालकों के सहयोग के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया. समारोह के सन्दर्भ में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए दैनिक नवीन दुनिया एवम दैनिक जयलोक के पूर्व संपादक एवम जबलपुर के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सुमित्र ने कहा कि देश के विभिन्न प्रान्तों से बड़ी संख्या में एकत्र साहित्यकार राम वीर जी की व्यावहारिकता और उनकी गुण ग्राहकता का प्रमाण है. विषम स्तिथियों में सालता पूर्वक संपन्न हुए इस आयोजन के लिए मैं डा. राम वीर सिंह वीर के हार्दिक बधाई देता हूँ.
नई दिल्ली के समाज सेवी श्री प्रेमनारायण शुक्ल ने कहा कि भाई राम वीर जी ने अपने पिता की स्मृति में जो श्रद्धा आयोजन किया है. वह नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा दायक है.
प्रस्तुतिः अजय सिंह, मुरादाबाद
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