सम्पादकीय मैं पोल खोलवाल हूं खोलवाल हूं मैं पोल खोलवाल हूं. काजल की कोठरी में रहता हूं, इसलिए सभी मुझे काजलीवाल भी कहते हैं. भगवान ने मुझ...
सम्पादकीय
मैं पोल खोलवाल हूं खोलवाल हूं
मैं पोल खोलवाल हूं. काजल की कोठरी में रहता हूं, इसलिए सभी मुझे काजलीवाल भी कहते हैं. भगवान ने मुझमें ऐसी प्रतिभा कूट-कूटकर भरी है, कि मैं सबके काले कारनामों की जानकारी रखता हूं, परन्तु किसी को मेरे काले कारनामों की जानकारी नहीं मिलती. मैं दूसरों के काले कारनामे समय-समय पर जनता के सामने उजागर करता रहता हूं, इसीलिए किसी का ध्यान मेरे कारनामों की तरफ नहीं जाता. अपने इसी गुण के कारण जनता ने मुझे एक छोटे से राज्य का शासन भी सौंप दिया है. मैंने उसका प्रशासन अपने तमाम सेनापतियों को सौंप दिया है, और स्वयं दूसरे राज्यों को हड़प करने के षड्यंत्र में रात-दिन व्यस्त रहता हूं. मैं बाबर और सिकन्दर की नीति पर विश्वास करता हूं, इसलिए चक्रवर्ती राजा बनने के सपने मुझे सताते रहते हैं.
मैं अपने नाम को सार्थक करने के लिए दूसरों के काले कारनामों को अपने दिमागी कीचड़ से धोता रहता हूं. ये अलग बात है कि उनको सफेद करने का कोई साबुन यानी सबूत मेरे पास नहीं होता है. लेकिन कोई बात नहीं. गाली देकर भाग जाना मेरे स्वभाव का एक विलक्षण गुण है. इसी गुण के कारण कितने ही असली चोर बच निकलते हैं, जो भीड़ के बीच में आकर ‘चोर...चोर...पकड़ो-पकड़ो’’ करके भाग निकलते हैं और लोग नकली चोर को पकड़ लेते हैं. मेरे इसी गुण के कारण तमाम नेताओं, उद्योगपतियों के ऊपर आरोप लगाने के बाद भी न तो मैं किसी को उनके काले कारनामों का कोई प्रमाण दे पाया, और न ही कोई मुझे पकड़ पाया.
चूंकि मैं दूसरों के काले कारनामों को उजागर करता हूं, इसलिए मैं अपने अन्दर के अंधेरे से अनभिज्ञ हूं. बुद्धिजीवी कहते हैं कि दीपक तले अंधेरा होता है. मैं तो वैसे भी काजलीवाल हूं. मेरे चारों तरफ काजल की काली कोठरियां हैं, उनमें अंधेरा ही अंधेरा है. इसी अंधेरे को भगाने के लिए मैं सबके काले कारनामों को प्रकाश में लाने का प्रयास कर रहा हूं, भले ही मैं स्वयं काजल से काला होकर अंधेरे में गुम होने की कगार पर हूं, परन्तु मैं अंधेरे में गुम होनेवाला नहीं हूं. मैं सबको डुबोकर ही गंगा के काले पानी में डुबकी लगाऊँगा. परन्तु अफसोस कि अब कोई मेरी बातों पर विश्वास नहीं करता. कहते हैं न कि सत्य कड़वा होता है. तभी तो लोग मेरी बातें नहीं सुन रहे हैं और मीडिया तो पहले से ही भ्रष्ट है. वह भ्रष्टाचारियों के तलवे चाटता है, मेरे जैसे ईमानदार पोल खोलवाल की सुनता ही नहीं.
और अब तो हद हो गयी है. मेरी सेना के कई सेनापति भी मेरी बातों पर अविश्वास करने लगे हैं. कुछ तो छोड़कर भाग गये हैं, कुछ मेरे खिलाफ बगावत करने लगे हैं. परन्तु ये कायर सेनापति नहीं जानते कि मैं सिकन्दर हूं, मर जाऊंगा, परन्तु रणभूमि नहीं छोड़ूंगा.
मेरी सेना में एक कपि है, जिसे मैंने धरती से उठाकर आसमान पर बिठा दिया था. उसे नायक से अधिकनायक बना दिया था. अपने राज्य का सबसे कमाऊ मंत्रालय उसे दिया था, परन्तु कपि तो कपि ही होता है. उसके पास दिमाग कहां से आता? कपि को केवल नकल करना आता है. उसने मुझसे कोई सीख नहीं ली. अपने काले कारनामों को छिपाने के लिए सबसे आवश्यक होता है कि दूसरे के काले कारनामों को चीख-चीखकर जनता के समक्ष खोलते रहो. कोई आपकी तरफ ध्यान ही नहीं देगा. मैं अभी तक यही कर रहा था, परन्तु इस कपि नाम के बंदर ने मेरा सारा खेल बिगाड़ दिया.
अब इसे अक्ल तो है नहीं. न खुद कमा पाया, न कुछ कमाकर मुझे दिया. अब मैं अगर किसी सत्य नाम के मुनि के साथ साठ-गांठ करके अपनी सात पुश्तों के लिए धन जमा कर रहा हूं तो उसके पेट में क्यों मरोड़ उठ रही है. कहावत है, कि भूखा मोटे पेटवाले को देखकर जलता है और झोपड़ीवाला महलों को देखकर उनमें आग लगाने के सपने देखता है. यही हाल कपि का भी हुआ. उसे मेरे चाटुकार दरबारियों के विदेशी दौरे से उल्टी होने लगी और मेरे धन-साम्राज्य को बढ़ाने से उसको इतने सारे दस्त होने लगे कि घर छोड़कर उसे खुले मैदान में आना पड़ा. अब वह पूरे राज्य में घूम-घूम कर कॉलराग्रस्त व्यक्ति की तरह उल्टी-दस्त कर रहा है. परन्तु इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि झूठ कभी सत्य से नहीं घबराता और चोर कभी पुलिस से नहीं डरता.
अब देखिए न्, मैं भी किसी से कहां डरता हूं? लोग मेरी बातों पर विश्वास करें या न करें, मैं तो सबकी पोल खोलता रहूँगा. आज कपि मेरी पोल खोल रहा है, तो इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. हाथी अपनी मस्त चाल से चलता रहता है, और कुत्ते भौंकते रहते हैं. कपि तो कुत्ता भी नहीं, वह तो एक बंदर है और सभी जानते हैं कि बंदर केवल मनुष्यों की भोंडी नकल उतार सकता है.
कपि नाम का बंदर मेरे साथ रहते हुए भी यह नहीं सीख पाया कि किसी पर आरोप लगाओ तो सबूत मत दो. मीडिया और जनता के सामने चीख-चिल्लाकर आरोप लगाओ और फिर महीने-दो महीने के लिए गुम हो जाओ. लोग कांव-कांव करके फिर आपके अगले हमले का इंतजार करेंगे. परन्तु यह कपि तो इतना बेवकूफ़ निकला कि एण्टी करप्शन और सीबीआई दफ्तर जाकर मेरे खिलाफ सबूत पेश कर रहा है.
इधर-उधर काक्रोच की तरह दौड़ रहा है. इसकी समझ में नहीं आ रहा है कि कौन-सा आरोप कहां लगाए, और कौन-सा सबूत किसको पेश करे?
भला हो, कि मैंने इस बेवकूफ़ को यह नहीं बताया था कि राजनीति में केवल आरोप लगाये जाते हैं, उन्हें साबित नहीं किया जाता. साबित करने लगोगे, तो दो दिन में ही लोग लात मारकर आपको राजनीति से बाहर कर देंगे. मुझे देख लो, चार-पांच साल से राजनीति कर रहा हूं. झूठ की बिना पर सबकी पोल खोल रहा हूं, परन्तु मजाल है कि कोई मुझे राजनीति से बाहर कर दे. जो मेरे खिलाफ गये, वह राजनीति से बाहर हो गये. प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्! देख लीजिए- चाहे वह अशांत विभूषण हों, या कामेन्द्र जाधव! और भी नाम हैं, जिन्हें आप सभी बखूबी जानते हैं. आपके उर्वरक दिमाग में वह नाम घुमड़ रहे होंगे.
मेरे पूर्वजों ने मुझे यह सिखा दिया था कि चूंकि मैं पोल खोलवाल हूं, इसलिए सबके बारे में झूठे प्रचार करते रहो. नहीं करोगे, तो इतने सारे सच्चे आरोप कहां से लाओगे? रोज चर्चा में बने रहने के लिए झूठे आरोप गढ़ने पड़ेंगे. आरोप नहीं लगाओगे, तो लोग आपको भूल जायेंगे. इसी मूल मंत्र पर मैं आज भी कायम हूं. आपके घर में बच्चा भी पैदा हो, तो किसी दूसरे के ऊपर आरोप लगा दो कि उसकी साजिश से पैदा हुआ है. कोई भी बात अपने ऊपर मत लो.
लेकिन अगर कोई आपके ऊपर सही आरोप लगाए, तो कभी उसका खंडन मत करो. खंडन करोगे, तो लोगों को विश्वास हो जायेगा कि आपके ऊपर लगाये गये आरोप सत्य हैं. चुप रहो. कुछ दिन बाद लोग चुप हो जायेंगे और जब लोग चुप हो जायें, तो एक दिन अचानक जनता के समक्ष आकर घड़ियाली आंसू बहाते हुए उनकी सहानुभूति बटोरने के लिए, उनको यह बताने का प्रयास करो कि आप दुनिया के सबसे प्रताड़ित व्यक्ति हैं, और चूंकि आप भ्रष्टाचारों और बेईमानों की पोल खोलते रहते हैं, इसलिए ये लोग षड्यंत्र रचकर आपकी सीधी-सीधी जिन्दगी में गरल घोलने का काम कर रहे हैं. बस उसके बाद अगले कई महीनों तक आपकी राजनीति पटरी पर सीधी चलने लगेगी!
कपि नाम के बंदर की पोल खोल से मैं नहीं घबराया, जनता के सामने भी नहीं आया, मीडिया को बताने की आवश्यकता ही नहीं थी. बस धीरे-धीरे मामला ठंडा पड़ता गया. जब मामला मीडिया और जनता में ठंडा हुआ तो मैंने भी अपनी चाल चल दी. आकर सभी के सामने रोया, लोग पिघल गये और मुझे माफ कर दिया.
मेरे भाइयों, मेरी बात सदा याद रखना, जब आपसे काम न हो पा रहा हो, तो चिल्ला-चिल्ला कर कहते रहो कि आपके विरोधी और जनता के दुश्मन आपको काम नहीं करने दे रहे हैं और जब आप भ्रष्टाचार और बेईमानी में लिप्त हो, तो दूसरों पर इल्ज़ाम लगाने में कभी पीछे न रहो, वरना लोग आप पर इल्ज़ाम लगा देंगे. फिर भी अगर आप पर इल्जाम लग जायें, तो उनका जवाब मत दो. जब लोग भूल जायें, तो रोकर अपने पीड़ित होने का अहसास कराओ.
याद रखो, युद्ध में वही जीतता है, जो पहला वार करता है, इसलिए लड़ाई चाहे ईमानदारी की हो, या बेईमानी की, पहला वार स्वयं करो. मैं सभी पर आरोप लगाता रहा, इसलिए इतने दिन तक आरोपों से बचता रहा, परन्तु अंत में ‘घर का भेदी लंका ढाये’ वाला मेरा हाल हो गया. कोई बात नहीं, कपि को नहीं पता, मैं रावण नहीं, अहिरावण हूं और अहिरावण को मारने को मंत्र उसके पास नहीं है.
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- राकेश भ्रमर
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