सोने की चिड़िया कहलाने वाला मेरा देश भारत समय -समय पर आक्रमणकारियों के द्वारा लूटा जाता । हमारी विवश्ता कि हम अपने को लुटवाते रहे । महमूद गज...
सोने की चिड़िया कहलाने वाला मेरा देश भारत समय -समय पर आक्रमणकारियों के द्वारा लूटा जाता । हमारी विवश्ता कि हम अपने को लुटवाते रहे । महमूद गजनवी से लेकर मुगल सल्तनत के नष्ट होने तक भारत की अपार सम्पदा , धरोहर एवं संस्कृति को लूटा जाता रहा ।
रामकृष्ण , विश्वामित्र , वशिष्ठ , अपाला गार्गी आदि विद्वतजनों की यह भूमि , यदि वर्तमान पर दृष्टिपात करें, तो 'अंधेर नगरी के सिवा कुछ और नजर नहीं आती । स्वार्थ लिप्सा में लिप्त हम किसी के मान सम्मान की हत्या करने में जरा भी चूक नहीं करते है , मान - सम्मान को छोड़ इंसान की भी हत्या कर देते हैं।
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महत्वाकांक्षा की पूर्ति में उतावले हम उस अंधे धृतराष्ट्र तथा आप उस दुर्योधन की की भाँति है है जो पूरे कुल का विनाशक है ।
हर युगीन परिस्थितियाँ बदलती है जिस समय भारतेन्दु के इस नाटक की रचना हुई तब से आज तक परिस्थितियों में अन्तर आया है । अंधेर नगरी तो हर युग में मौजूद रही , बस उसका स्वरूप बदला है । भ्रष्टाचार , सत्ता की जड़ता , अन्याय पर आधारित व्यवस्था जो किसी मूल्य की नहीं है । यह तो हर युग की विशेषता रही है । जिस राज्य में विवेक - अविवेक का भेद नहीं होता उस राज्य में प्रजा कैसे सुखी रह सकती है ? क्योंकि भ्रष्टाचार व्यवस्था की आत्मा में गहराई से समाया हुआ है और बड़े - बड़े चोर सरेआम घूमते रहते है ।
महत्वाकांक्षा की पूर्ति मेंआमादा हम उस शिष्य की के सदृश है जो भारतेन्दु के नाटक " अंधेर नगरी " में अपने गुरू को छोड़ अय्याशी जीवन व्यतीत करने के लिए अंधेर नगरी रूक जाता है । जहाँ पर हर चीज का भाव ' टका सेर ' पाता है । टका सेर से मेरा आशय वोटों को बटोरने की राजनीति की आड़ में एवं वर्गगत समानता की आड़ में सत्तापक्ष द्वारा चली गयी कूटनीति
चालों से है , ये कूटनीतिक चालें आरक्षण एवं सामाजिक समानता के नाम पर लोगों से छल कर रही है ।
"रिश्वत की संस्कृति " सरकारी और गैर सरकारी महकमे में पूरे प्रभाव के साथ जीवित है जो घोटालों का ही सुधरा रूप है कहीं भी किसी भी डिपार्टमेंट में छोटे से छोटा , बड़े से बडा काम बिना रिश्वत नही होता । सत्ता में कोई भी आये , सभी जनता का खून चूसते है जनता को इन्तजार रहता है कि कोई उद्वारक आयेगा और युगों से चली आ रही व्यवस्था में सुधार होगा । जिसके कर्मों से कुशासन रूपी अंधा राजा फाँसी पर लटकेगा ।
और सुशासन रूपी चेला (शिष्य ) दूसरे शब्दों में जनता या देशवासियों को मुक्ति मिलेगी ।
यहीं हालात न्यायलयों की है "जिसकी लाठी , उसकी भैंस "। न्याय उसी को मिलेगा जिसकी लाठी में दम है । काफी लम्बी प्रक्रिया के बाद अपराधी साफ बच जाता है निर्दोष को ही सजा मिलती है और गरीब तारीख पर तारीख लेते - लेते या तो मर जाता है या सुसाइड कर लेता है ।
'अंधेर नगरी की " यहीं प्रासंगिकता है कि दुनियाँ के किसी भी देश की बदलती शासन की परम्परा का लम्बा इतिहास "अंधेर नगरी " से स्वत: जुड़ जाता है । "अंधेर नगरी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रजातंत्र की घोर असफलताओं और व्यवस्थाओं के पतन का प्रतीक है ।
संक्षिप्त परिचय
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पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी
पदस्थ : शान्ति निकेतन कालेज आॅफ
बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर
साइंस आगरा
प्राचार्या,
पोस्ट ग्रेडुएट कालेज आगरा
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उप संपादक "मौसम " पत्रिका में
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2012 से फेसबुक पर सक्रिय
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साहित्यिक सफरनामा :
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विद्यार्थी जीवन स्कूल की मैगजीन
में छपा करती थी
तत्पश्चात कैरियर की वजह ब्रेक हुआ
फिर वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारी के कारण
बाधित जनवरी , 2015 में
"सत्य अनुभव है "
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आन लाईन पत्रिका में प्रकाशित हुई ।
मैगजीन जिनमें प्रकाशित
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India Ahead
स्वर्गविभा आन लाइन पत्रिका
अटूट बन्धन आफ लाइन पत्रिका
झकास डॉट काम
हिंदी लेखक डॉट काम
हारीजन हिन्द
अनुभव पत्रिका
जय विजय
वेब दुनिया
मातृभाषा मंच
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शब्द नगरी
रचनाकार
पाख़ुरी
शब्दों का प्याला
सहज साहित्य
साहित्य पीडिया
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भारतदर्शन अन्तराष्टीय पत्रिका
अखबार जिनमें प्रकाशित
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सान्ध्य दैनिक
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आदि अखबारों में रचनायें
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में लेख एवं शोध पत्र
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डॉ मधु त्रिवेदी
itna andher nagri par likha nahi hai, jitna uske niche parichay likh diya hai... content badhaiye!!!!
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