श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग राजा दशरथ पुत्री शान्ता एवं ऋष्यश्रृंग कथा-प्रसंग ‘ मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता ’’मानस श...
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग
राजा दशरथ पुत्री शान्ता एवं ऋष्यश्रृंग कथा-प्रसंग
‘मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता
’’मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति’’
अनेक श्रीरामकथाओं में श्रीदशरथजी के पुत्रेष्ठि-अश्वमेध यज्ञ तथा उसमें शान्ता एवं ऋष्यश्रृंग का वर्णन पढ़ने-सुनने का ईश्वरकृपा से सौभाग्य प्राप्त होता है। यह भी कथा में कहा जाता है कि शान्ता राजा दशरथजी की मझली रानी श्री सुमित्राजी से उत्पन्न सुन्दर कन्या थी । उसे दशरथजी ने उनके मित्र अंगदेश के राजा रोमपाद जो कि पुत्रहीन थे उन्हें शान्ता दत्तक पुत्री के रूप में दे दी थी । अनेक रामकथाओं में इसका वर्णन है । श्रीरामचरितमानस के अनुसार यथा -
एक बार भूपति मन माहि । भै ग्लानि मोरें सुत नाहीं ॥
गुर गृह गवउ तुरत महिपाला । चरन लागि करि बिनय बिसाला ॥
श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड -188-1
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एक बार राजा दशरथ के मन में बड़ी ग्लानि हुई कि मेरे पुत्र नहीं है । राजा तुरंत ही गुरू वशिष्ठजी के घर गये और चरणों में प्रणाम कर विनय की । राजा ने अपने दुःख और सुख की बात वशिष्ठजी को बतायी। वशिष्ठजी ने उन्हें अनेक प्रकार से समझाया कि धैर्य धारण करों , तुम्हारे चार पुत्र होंगे जो तीनों लोकों में प्रसिद्ध और भक्तों के भय हरने वाले होंगे ।
सृंगी रिषिहिं वसिष्ठ बोलावा। पुत्रकाम सुभ जग्य करावा ॥
भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें। प्रगटे अगिनि चरू कर लीन्हें ॥
श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड -188-3
वशिष्ठजी ने श्रृंगीऋषि को बुलाया और शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया । मुनि के भक्ति सहित आहुतियाँ देने पर अग्निदेव हाथ में चरू (हविष्यान-खीर) लिये प्रगट हुए तथा रानियों को खीर बाँटकर दे दी । वे रानियाँ इससे पुत्रवती हुईं ।
यहीे कथा अध्यात्मरामायण में भी इस प्रकार वर्णित है -
ततोऽब्रवीद्वसिष्ठस्लं भविष्यन्ति सुतास्तवः।
चत्वारः सत्वसम्पन्ना लोकपाला इवापराः ॥
शान्तार्भारिमानीय ऋषश्रृंग तपोधनम् ।
अस्माभिः सहितः पुत्राकामेष्टिं शीध्रमाचरः॥
अध्यात्मरामायण बालकाण्ड सर्ग 3-4 -5
पुत्र न होने से दुःखी राजा दशरथजी की बात सुनकर वशिष्ठजी ने कहा - तुम्हारे अत्यन्त ही सामर्थ्यवान एवं साक्षात््् दूसरे लोकपालों के समान चार पुत्र होंगे । तुम शान्ता के पति तपोधन ऋष्यश्रृंग को बुलाकर शीध्र ही पुत्रोष्टि यज्ञ का अनुष्ठान करो ।
आनन्द रामायण में शान्ता एवं ऋष्यभृंग के बारे मेें इस प्रकार का वर्णन है -
ययौ नृपोऽपि नगरीं गुरूं वृत्तं न्यवेदयत् ।
वसिष्ठो नृपतेदौषशांत्यर्थं तुरगाध्वरम् ॥
नृपेण कारयामास साकेते सरयूतटे ।
रोमपाद इति ख्यातस्तस्मै दशरथः सखा ॥
शांता स्वकन्यां प्रायच्छत्तद्राष्टेऽभृदवर्षणम् ।
विभांडकाश्रमं वारनारीः संपेष्य तत्सुतम् ॥
रोमपादो मोहयित्वा ऋष्यश्रृंगं समानयत् ।
वारस्त्रियों वने गत्वा समानिन्युऋर्षेःं सुतम् ॥
नाट्यसंगीतवादित्रैर्विभ्रमालिंगनार्हणैः।
तत्प्रतापादभृदवृष्टिः पुत्रोऽपि नृपतेरभृत् ॥
तत स्तुष्टो रोमपादस्तस्मै शांता ददौ सुताम् ।
दशरथोऽपि स्वपुरीमानयामास तं मुनिम् ॥
आनन्दरामायण -साकाण्ड सर्ग 1-96-101
राजा दशरथ ने अयोघ्या नगरी में आकर श्रवणकुमार की शब्दभेदी बाण से मृत्यु हो जाने तथा उसके अंधे माता-पिता के शाप की बात अपने गुरू वशिष्ठजी को सुनाई । कुछ दिनांें उपरांत वशिष्ठजी ने राजा के दोष निवृत्ति तथा पुत्र प्राप्ति के लिये सरयूनदी के किनारे ऋष्यश्रृंग को बुलाकर अश्ववेध यज्ञ करवाया । राजा दशरथ के मित्र अंगदेश के राजा रोमपाद ने अपनी शान्ता नाम की दत्तक कन्या ऋष्यश्रृंग को दे दी थी क्योंकि राजा रोमपाद के देश में वर्षा न होने तथा उन्हें कोई पुत्र न होने के कारण मंत्रियों के परामर्शानुसार ऋष्यश्रं्ग के पिता विभाण्डक के आश्रम से वेश्याओं द्वारा मोहित करवाकर ,उन्हें अपने देश में बुलवाया था । वैश्याएं वन में गई , नाच गाना गा कर बाजे बजाकर ,हावभाव आलिंगन तथा पूजा आदि के द्वारा मोहित करके ऋष्यश्रृंग को ले आयी । उनके यज्ञ कराने से राज्य में वृष्टि हुई और राजा को ( रोमपाद को)पुत्र प्राप्त हुआ । इससे प्रसन्न होकर राजा सोमपाद ने ऋष्यश्रृंग को अपनी शांता नाम की दत्तक कन्या दान करके दे दी । राजा दशरथ भी ऋष्यश्रृंग को अपने नगर ले आये । वाल्मीकीय रामायण में एैसा ही वर्णन है -
चिन्तयानस्य तस्यैवं बुद्धिरासीन्महात्म्नः
सुतार्थं वाजिमेघेन किमर्थ न यजाम्यहम् ॥
वा.रा.बाल सर्ग -8-2
पुुुत्र के लिये चिंता करते समय एक दिन महामनस्वी नरेश (दशरथजी) के मन में यह विचार आया कि पुत्र प्राप्ति के लिये अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान क्यों न करू ? पुत्र के लिये अश्वमेध यज्ञ की बात सुनकर उनके सखा विश्वसनीय मंत्री सुमन्त्रजी ने एकान्त में पुत्र प्राप्ति से सम्बधित ऋषि सनत्कुमार के द्वारा ऋषियों के पुत्र की कथा सुनायी है जो कि इस प्रकार है -
इक्ष्वाकुणां कुले जातो भविष्यति सुधार्मिकः ।
नाम्ना दशरथों राजा श्रीमान् सत्यप्रतिश्रवः ॥
अंगराजेन संख्य च तस्य राज्ञो भविष्यति ।
कन्या चास्य महाभागा शान्ता नाम भविष्यति ॥
पुत्रस्त्वगस्य राज्ञस्तु रोमपाद इति श्रुतः।
तं स राजा दशरथो गमिष्यति महायशाः ॥
अनपत्योंऽस्मि धर्मात्मञ्शान्ताभर्ता मम क्रतुम ।
आहरेत त्वयाऽऽझपाप्तः संतानाथंर् कुलस्य च ॥
वा. .रा.बाल 11-2 से 5 उन्होंने कहा था कि इक्ष्वाकुवंश में दशरथ नामक प्रसिद्ध एक श्रेष्ठ धार्मिक सत्यपतिज्ञ राजा होंगे । उनकी अंगराज के साथ मित्रता होगी । अंगराज के एक परम सौभाग्य शालिनी कन्या होगी, जिसका नाम होगा शांता। अंगदेश के राजकुमार का नाम रोमपाद होगा । महायशस्वी राजा दशरथ उनके पास जायेंगे और कहेंगे- घर्मात्मन । मै संतानहीन हूॅ। यदि आप आज्ञा दे तो शांता के पति ऋष्यश्रृंग मुनि चलकर मेरा यज्ञ करा दे। इससे मुझे पुत्र की प्राप्ति होगी ओर मेरे वंश की रक्षा हो जावेगी।
सुमन्त्रजी ने बताया कि महर्षि कश्यप के पुत्र विभाण्डक होगे । उनके भी एक पुत्र होगा जिसका नाम ऋष्यश्रृंग होगा । वे सदा ही वन में रहेंगे । उसी समय अंगदेश में रोमपाद नामक बड़े प्रतापी बलवान राजा होंगे । उनके द्वारा धर्म में उल्लंघन हो जाने से उनके राज्य में अनावृष्टि हो जावेगी ।
महाराज दशरथ ने अपनी कन्या शांता का विवाह कर दीजिये। बस इस उपाय से वे अयोध्या में सरयूतट पर आकर आपका यज्ञ सम्पन्न हो जावेगा तथा पुत्र प्राप्ति हो जावेगी। ऋृष्यश्रंग का शांता के विवाह से उनके यहाँ अंग देश में वर्षा तथा पुत्र प्राप्त हुआ था ।
विमाण्डक, कश्यप ऋषि के पुत्र थे। ऋष्यश्रृग मुनिवर विभाण्डक के पुत्र थे। ऋषि एक कुण्ड में समाधि लगाकर बैठे थे । उसी समय उधर से उर्वशी अप्सरा निकली, उसे देखकर उसके सौन्दर्य से मोहित होने पर मुनि का तेज स्खलन हो गया । उसे जल के साथ एक मृगी पी गई । उसीसे उनका (श्रष्यश्रृंग का) का जन्म हुआ । माता (मृगी) के समान उनके सिर पर भी श्रृंग होने की संभावना थी ।अतः उनके पिता विभाण्डक मुनि ने इनका नाम ऋष्यश्रृंग रख दिया । इस तरह ऋष्ंयश्रृग ऋषि शान्ता के पति होने के कारण श्री दशरथ के दामाद थे तो दूसरी तरह चारों भाईयों की शांता बहिन भी थी । साथ ही साथ अंग देश के राजा रोमपाद जो कि दशरथजी के मित्र भी थे उनकी दत्तक पुत्री भी बनी रही ।
मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता
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मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति’’
Sr.MIG-103,व्यासनगर,
ऋषिनगर विस्तार उज्जैन (म.प्र.)पिनकोड- 456010
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