श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग श्रीरामकथाओं में त्रिजटा का श्रेष्ठ चरित्र चित्रण मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता ’’मानस शिरोमण...
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग
श्रीरामकथाओं में त्रिजटा का श्रेष्ठ चरित्र चित्रण
मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता
’’मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति ’’
त्रिजटा राक्षसी के बारे में श्रीरामकथाओं में एक राक्षसी होने के उपरांत भी उसे एक ममतामयी स्त्री पात्र का स्थान दिया है अतः यहाँ सभी श्रीरामकथाओं का संक्षिप्त वर्णन दिया जा रहा है। अशोकवाटिका में रावण ने सीताजी को राक्षसियों के मध्य रखकर भयभीत कर अपने वश में करना चाहा । रावण ने सब राक्षसियों से कहा कि -
मास दिवस महुँ कहा न माना । तौं मैं मारबि काढ़ि कृपाना ॥
श्रीरामचरितमानस सुन्दरकाण्ड ः 9-5 यदि महीने भर में सीताजी ने मेरा कहा न माना तो इसे तलवार निकालकर मार डालूँ।
दोहा - भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिन बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धर हिं रूप बहु मंद ॥
त्रिजटा नाम राच्छसी एका। रामचरन रति निपुन बिबेका ।
सबन्हौं बोलि सुनाएसि सपना । सीतहि सेई कहु हित अपना॥
सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी॥
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खर आरूढ़ नगन दससीसा । मुन्डित सिर खंण्डित भुजबीसा ॥
एहि विधि सो दच्छिन दिसि जाई । लंका मनहूं विभीषण पाई ।
नगर फिरी रधुबीर दोहाई । तव प्रभु सीता बोलि पठाई ॥
यह सपना मैं कहऊँ पुकारी। होहहि सत्य गएँ दिन चारी ॥
तासु बचन सुनिते सब डरी। जनक सुता के चरनन्हिं परीं ॥
श्रीरामचरितमानस सुन्दरकाण्ड दोहा 10, 1-4
त्रिजटा रावण की राक्षसियों में प्रमुख थी। वह विभीषण के ही समान साधु-प्रकृति की थी। श्रीराम के चरणों में दृढ़प्रीति थी । रावण एक माह का समय सीताजी को सोच विचार का देकर अपने महल में चला गया। यहाँ राक्षसियाँ रावण के आदेशानुसार बडे भयंकर-विकराल रूप धर कर सीताजी को भय दिखलाने लगी।
वहाँ त्रिजटा नाम की राक्षसी थी। उसकी श्रीराम के चरणों में प्रीति थी और विवेक (अच्छे-बुरे की पहचान करने) में चतुर थी उसने सब राक्षसियों को बुलाकर अपना स्वप्न सुनाया और कहा- सीताजी की सेवा करके अपना कल्याण कर लो उसने कहा कि मैंने स्वप्न में एक वानर को लंका दहन करते देखा है । उस वानर द्वारा राक्षसों की सम्पूर्ण सेना मार दी गई। रावण नंगा है और गदहे पर सवार है उसके सिर मुँडे हैं । बीसों भुजाएँ कटी हुई हैं । इस प्रकार से वह दक्षिण दिशा की ओर जा रहा है (यमराज का स्थान शास्त्रों में दक्षिण दिशा में है ) तथा मानो कि विभीषण ने लंका प्राप्त कर ली है।इसके पश्चात् श्रीराम ने सीताजी को बुला लिया । त्रिजटा नें उन सब राक्षसियों से कहा कि मेरा यह स्वप्न चार दिनों में (साधारणतः कुछ दिनों) बाद सत्य होकर रहेगा। त्रिजटा की यह बात सुनकर सब राक्षसियाँ डर गई और जानकीजी के चरणों में गिर गई ।
त्रिजटा का श्रीरामचरितमानस में चरित्र श्रीराम के भक्त के रूप में वर्णित सा लगता है । वह जन्म से राक्षसी अवश्य थी किन्तु मन-बुद्धि-विवेक कर्म से पहले स्त्री थी। वियोगिनी सीता को त्रिजटा का बड़ा सहारा था। जब कभी भी सीता को कष्ट हुआ उन्होंने त्रिजटा को निवारण के लिये कहा है। सीताजी ने एक स्थान पर त्रिजटा को माता कहकर भी सम्बोधित किया है । इससे त्रिजटा का चरित्र राक्षसवृत्ति पात्रों में न होकर ममतामयी माता का बन जाता है यथा -
त्रिजटा सन बोलिं कर जोरी। मातु बिपति संगिनी तै मोरी ॥
श्रीरामचरितमानस सुन्दरकाण्ड - 11-1/2
सीताजी हाथ जोड़कर त्रिजटा से बोली हे माता ! तू मेरी विपत्ति की संगिनी है । इस तरह त्रिजटा का चरित्र श्रीराम एवं सीता की भक्ति से परिपूरित प्रतीत होता है ।
सीताजी जब श्रीराम के विरह में असहनीय अवस्था में पहुँच गई तब त्रिजटा से कहा -
आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई ।
सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी ॥
सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुझाएसि ॥
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी॥
श्रीरामचरितमानस सुन्दरकाण्ड 11-1-2-3
सीताजी हाथ जोड़कर बोली हे माता! तू मेरी विपत्ति की संगनी है ।शीघ्र ही कोई ऐसा उपाय कर जिससे मैं शरीर छोड़ (त्याग) सकूँ । विरह असहनीय हो गया है । काठ(लकड़ी) लाकर चिता बना दे । हे माता ! फिर उसमें आग लगा दे । हे सयानी! तू मेरी प्रीति को सत्य कर दे । रावण की शूल के समान दुःख देने वाली वाणी कानों से कौन सुने?सीताजी के वचन सुनकर त्रिजटा ने चरण पकड़कर उन्हें समझाया और प्रभु (श्रीराम) का बल और सुयश सुनाया । त्रिजटा ने कहा हे राजकुमारी ! सुनो रात्रि के समय आग नहीं मिलेगी। ऐसा कहकर वह अपने घर चली गई ।
श्रीराम ने रावण से युद्ध के समय उसके सिर, भुजाएं, धनुष काट डाले किन्तु वे पुनः बढ़ गये जैसे तीर्थ में किये हुए पाप बढ़ जाते हैं । इसी युद्ध मेें एक बार हनुमानजी आदि सब वानरों को मूर्छित करके सन्ध्या का समय पाकर रावण हर्षित हुआ । समस्त वानरों को मूिच्र्छत देखकर रणवीर जाम्बवान् दौंड़े । जाम्ववान् ने अपने दल का विध्वंस देखकर क्रोध करके रावण की छाती पर लात मारी। इससे रावण व्याकुल होकर रथ से पृथ्वी पर गिर पड़ा । जाम्बवान्जी ने रावण को मदेखकर उसे लात मारकर श्रीराम के पास गये । रात्रि में ही रावण कें सारथी ने उसे रथ में डालकर होश में लाने का प्रयत्न करने लगा।
उस रात की सम्पूर्ण घटना का विवरण त्रिजटा ने सीताजी को सुनायी । शत्रु के सिर और भुजाओं की बढ़ती संख्या का संवाद सुनकर सीताजी के ह्नदय में भय हुआ। सीताजी ने बड़ी उदासी से त्रिजटा से कहा-हे माता ! बताती क्यों नहीं? क्या होगा ? इस सम्पूर्ण विश्व को दुःख देने वाला रावण कैसे मरेगा? त्रिजटा ने कहा हे राजकुमारी सुनो देवताओं का शत्रु रावण ह्नदय में बाण लगते ही मर जायेगा।
प्रभु ताते उर हतइ न तेहि । ए हिके ह्नदयँ बसति बैदेही ॥
श्रीरामचरितिमानस लंकाकाण्ड 98-7
श्रीराम उसके ह्नदय में बांण इसलिये नहीं मारते कि इसके ह्नदय में जानकीजी (स्वयं आप) बसती है । श्रीराम यह सोच विचार करके कि रावण के ह्नदय में जानकी का निवास है , जानकी के ह्नदय में मेरा निवास है और मेरे उदर में अनेकों भुवन हैं। अतः रावण के ह्नदय में बांण मारनें से अनेक भुवनों का नाश हो जायेगा । यह सुनकर सीताजी को बड़ा विषाद उत्पन्न हुआ । त्रिजटा ने फिर कहा -हे सुन्दरी! महान संदेह का त्याग कर दो । अब सुनो कि शत्रु इस प्रकार कब मरेगा ।
दोहा - काटत सिर होइहि बिकल छुटि जाइहि तव ध्यान।
तब रावनहि ह्नदय महुँ मरिहहिं रामु सुजान॥
श्रीरामचरितमानस दोहा 99 लंकाकांड
रावण सिरों के बार-बार काटे जाने से जब वह व्याकुल हो जावेगा और उसके ह्नदय से तुम्हारा ध्यान छूट जायेगा । तब सुजान (अन्तर्यामी) श्रीराम रावण के ह्नदय मे बांण मारेंगे। ऐसा कहकर त्रिजटा अपने घर चली गई। इस प्रकार अनेक समय त्रिजटा ने श्रीसीताजी के विषाद-दुःख चिन्ता के समय एक माता के समान ध्यान रख उनका सामने करने की दूरदृष्टि से मनोबल गिरने नहीं दिया ।
अध्यात्मरामायण में त्रिजटा का वर्णन
त्रिजटा नाम की एक वृद्धा राक्षसी के सद्व्यवहार एवं स्वप्न का वर्णन अध्यात्मरामायण के सुन्दरकांड के द्वितीय सर्ग में श्लोक 47 से 58 तक वर्णित है -
एवं तां भीषयन्तीस्ता राक्षसीर्विकृताननाः ।
निवार्य त्रिजटा वृद्धा राक्षसी वाक्यमब्रवीत॥
श्रृणुध्वं दुष्टराक्षस्यों मद्वाक्यं वो हितं भवेत॥
न भीषयध्वं रूदतीं नमस्कुरूत जानकीम् ।
इदानीमेंव में स्वप्ने रामः कमललोचनः ॥
आरूहयैरावतं शुभ्रं लक्ष्मणेन समागतः।
दग्ध्वा लंकापुरी सर्वां हत्वा रावणमाहवे ॥
सीताजी को इस प्रकार डराती हुई उन विकृतवदना राक्षसियों को रोककर त्रिजटा नाम की एक वृद्धा राक्षसी बोली-अरी दुष्टा राक्षसियों ! मेरी बात ध्यान पूर्वक सुनो क्योंकि इसमें तुम्हारा ही हित होगा। तुम इस रोती ,बिलखती जानकीजी को भयभीत मत करो इन्हें नमस्कार करो। त्रिजटा ने कहा कि उसने अभी-अभी एक स्वप्न देखा है जिसमें भगवान् श्रीराम लक्ष्मण सहित श्वेत ऐरावत हाथी पर चढ़कर आये हैं और मैंने उन्हें सम्पूर्ण लंकापुरी को दहन कर तथा रावण को युद्ध में मारकर सीताजी को अपनी गोद में लिये पर्वत-शिखर पर बैठे हुए देखा है । रावण गले में मुण्डमाला पहने , शरीर में तेल लगाये, नग्न होकर अपने पुत्रों-पौत्रों सहित गोबर के कुण्ड में डूबकी लगा रहा है तथा विभीषण प्रसन्नचित्त होकर रधुनाथजी के पास बैठा हुआ अत्यन्त ही भक्तिपूर्ण उनके चरणों की सेवारत है । इससे सिद्ध होता है कि श्रीरामचन्द्र अनायास ही रावण का कुल सहित अंत कर विभीषण को लंका का राज्य देगें तथा सुमुखी जानकी को गोद मेें बिठाकर निसंदेह अयोध्या चले जायेंगें ।
इस प्रकार अध्यात्मरामायण में त्रिजटा वृद्धा राक्षसी ने सीताजी से प्रेमपूर्वक व्यवहार की शिक्षा अन्य राक्षसियों को दी तथा स्वप्न के आधार पर रावण के कुलसहित मृत्यु की भविष्यवाणी बताकर दूसरी ओर सीताजी को धैर्य पूर्वक रावण से भयभीत न होने का कहा ।
आन्नदरामायण में त्रिजटा का वर्णन
त्रिजटा के चरित्र का लगभग ऐसा ही चित्रण आनन्दरामायण के सारकाण्ड के सर्ग नवमः में है त्रिजटा को यहा विभीषण की अनुजा एवं अनुगामिनी भी वर्णित किया गया है । यथा -
जानकीं तां स्वशब्दैश्च तथा क्ररोक्तिभिर्मुहः।
आस्यविंदीर्णखड्गद्यैर्भीषयन्स्यः करादिभिः॥
निवार्थ त्रिजटानाम्नी विभीषणप्रियाऽनुगा।
ताः सर्वा राक्षसीर्वेगाद्वाक्यमाहाथ सादरम् ॥
न भीषयध्वं रूदतींनमस्कुरूत जानकीम्।
सुचिन्है राधवः स्वप्ने मया दृष्टोऽय जानकीम् ॥
मोचयामास दग्ध्वेमां लंकां हत्वा तु रावणम् ।
रावणौ गोमयहृदे तैलाभ्यक्तो दिगंबरः ॥
आन्नदरामायण सारकाण्ड सर्ग 9-100-103
रावण के चले जाने पर उसकी आज्ञा से राक्षसियाँ अपने भयानक वाक्यों से मुँह फाड़कर, तलवार एवं अंगुलियों के संकेतों से सीता को भयभीत करने लगी ।
उसी समय विभीषण की प्रिया अनुगामिनी त्रिजटा राक्षसी ने राक्षसियों को ऐसा करने से रोका और उन सब को समझाकर कहा कि इस रोती हुई जानकीजी को तुम मिलकर डराओ नहीं, अपितु उसके बदले उन्हें नमस्कार करो। मैंने आज स्वप्न में श्रीराम को सुन्दर चिन्हों से युक्त देखा है और यह भी देखा है कि उन्होंने जानकी को छुड़ाकार लंका को जलाया तथा रावण को मार डाला है । तेल लगाये हुए रावण गोबर के गड्डे में गिर गया है । मैंने आज स्वन्प्न में यह देखा है ।
इस कारण सीता को सताने का या भयभीत करने का साहस नहीं करना चाहिये। राम से अभय दिलवाने वाली इस जानकी की तुम्हें सेवा करनी चाहिये । यदि तुम इन्हें दुःख दोगी तो जानकी अपने पति श्रीराम के द्वारा तुम्हें मरवा देगी । त्रिजटा के इस कथन को सुनकर सभी राक्षसियाँ व्याकुल होकर चुप हो गई । इन सब तथ्यों के आधार पर यहीं बात स्पष्ट होती है कि लंका में त्रिजटा राक्षसी होकर भी सीताजी की हितचिन्तक तथा श्रीराम की भक्त थी ।
वाल्मीकीय रामायण में त्रिजटा का वर्णन
वाल्मीकीय रामायण में भी त्रिजटा का चरित्र जन्म से राक्षसी होकर भी कर्म से अलग बताया है अशोक वाटिका में राक्षसियाँ सीताजी से पापपूर्ण विचार रखने वाली सीते। आज इसी समय ये राक्षसियाँ मौज के साथ तेरा यह माँस खायेगी। इन सब राक्षसियों की बातों से डरायी जाती सीता को देखकर बूढ़ी राक्षसी त्रिजटा जो उस समय सोकर उठी थी उन सबसे कहा-नीच निशाचरियों ! तुम सब अपने आप को ही खा जाओ। तुम सब राजा जनक की प्यारी बेटी एवं राजा दशरथ की पुत्रवघू सीता को खा नहीं सकती ।
मैंने अत्यन्त ही भयंकर और रोमांचकारी स्वप्न देखा है जो राक्षसों के विनाश की और सीताजी के अभ्युदय की सूचना देने वाला है । यह सुनकर सब राक्षसियाँ क्रोध से मूर्छित हो गई तथा भयभीत हो गई । उसके पश्चात् त्रिजटा से कहा -तुमने आज यह कैसा स्वप्न देखा है ? तब त्रिजटा ने स्वप्न के बारे में ऐसा बताया कि आकाश में चलने वाली एक दिव्य शिविका है जो कि हाथी दाँत से बनी है । इसमें एक हजार धोड़े जुते हुए हैं और श्वेत पुष्पों की माला तथा श्वेत वस्त्र धारण किये स्वयं श्रीराम -लक्ष्मण के साथ उस शिबिका पर चढ़कर यहाँ पधारे है । उसी समय मैंने सीताजी को भी श्वेत वस्त्रों सहित श्वेत पर्वत शिखर पर बैठे देखा है जो चारों और समुद्र से धिरा हुआ है । कुछ देर बाद श्रीराम लक्ष्मण को चार दांत वाले विशाल गजराज पर बैठे देखा। दोनों भाई श्वेत वस्त्रों में श्रीसीताजी के पास गये । कुछ देर बाद श्रीराम लक्ष्मण सहित श्रीसीताजी हाथी पर बैठी लंका के ऊपर दिखाई दी। कुछ देर बाद श्रीराम लक्ष्मण श्रीसीताजी सहित उन्हें पुष्पक विमान पर बैठाकर उत्तर दिशा की ओर जाते हुए देखा।
त्रिजटा ने रावण को सपने में मुड़ मुड़ायेे तेल से नहाकर लाल कपड़े पहने हुए देखा। वह मदिरा पीकर मतवाला होकर करवीर के फूलों की माला पहने हुए पुष्पक विमान से जमीन पर गिर पड़ा । इतना ही नहीं
कृष्यमाणः स्त्रिया मुण्डो दुष्टः कृष्णाम्बर पुनः ।
रथेन स्वरयुक्तेन रक्तमाल्यानुलेपनः ॥
पिबंस्तैल हसन्नृत्यन् भ्रान्ताचित्ता कुलेन्द्रियः ।
गर्दभेन ययों शीघ्रं दक्षिणां दिशमास्थितः॥
श्रीवा.रा.सुन्दरकांड सर्ग 27-26
एक स्त्री उस मुण्डित मस्तक रावण को कहीं खींचे लिये जा रही थी। उस समय मैंने पुनः देखा रावण ने काले कपड़े पहन रखे हैं । वह गधे जुते हुए रथ से यात्रा कर रहा था । लाल फूलों की माला और लाल चन्दन से विभूषित था। तेल पीता , हँसता और नाचता था । वह गधे पर सवार होकर दक्षिण दिशा की ओर जा रहा था ।
इतना ही नहीं त्रिजटा ने अन्य राक्षसियों को बताया कि उसने स्वप्न में मल के कीचड़ (पंक) मे पड़ा देखा। एक काले रंग की स्त्री जो कीचड़ में लिपटी हुई थी वह लाल वस्त्र पहने हुए रावण का गला बाँधकर दक्षिण दिशा में ले गई । उसने उसका भाई कुम्भकरण भी उसी अवस्था में देखा गया उसके पुत्र भी मुड़-मुड़ाये तेल में नहाये दिखाई दिये ।
राक्षसों मेें एक मात्र विभीषण श्वेत छत्र लगाये , श्वेत वस्त्र तथा श्वेत माला ,श्वेंत चन्दन और अंगराज लगाये दिखाई दिया । विभीषण के पास शंख ध्वनि एवं नगाड़े बजाये जा रहे थे । वह चार दाँत वाले दिव्य गज पर आरूढ़ आकाश में दिखाई दिया ।
मैंने स्वप्न में देखा कि रावण की सुरक्षित लंका में श्रीराम के दूत बनकर आये हुए एक वेगशाली वानर ने लंका जलाकर भस्म कर दी। अतः राक्षसियों! जनकनंन्दिनी सीता केवल प्रणाम करने से प्रसन्न हो जायेगी तथा तुम्हारे जीवन की रक्षा करेगी । इन्हें भयभीत मत करो ।
त्रिजटा का महाभारत के वनपर्व में वर्णन
सीताजी ने राक्षसियों से कहा कि मैं अपने स्वामी श्रीराम के बिना जीना ही नहीं चाहती । प्राण प्यारे के वियोग में निराहार ही रह कर इस शरीर को सुखा डालूँगी , किन्तु उसके सिवा पर पुरूष की कल्पना भी नहीं करूँगी। यही बात सत्य मानो जो कुछ करना हो करो। इस बात को सुनकर राक्षसियाँ रावण को सूचना देने चली गई । इनके चले जाने के उपरांत एक त्रिजटा नाम की राक्षसी वहाँ से नही गई । वह धर्म को जानने वाली और प्रिय वचन बोलने वाली थी। उसने सीताजी को घैर्य-सात्वना देते हुए कहा-‘‘ सखी ’’ मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ । मुझ पर विश्वास कर हृदय से भय निकाल दो लंका में एक वृद्ध श्रेष्ठ राक्षस अविन्ध्य है । वह वृद्ध होने के साथ ही बुद्धिमान और श्रीराम के हित चिन्तन में लगा रहता है । उसी ने तुमसे कहने के लिये यह संदेश भेजा है । तुम्हारे स्वामी महाबली भगवान् श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ कुशलपूर्वक हैं । वे इन्द्र के समान ही तेजस्वी वानरराज सुग्रीव के साथ मित्रता करके तुम्हें छुड़ाने में प्रयत्नरत हैं । तुम्हें रावण से भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है ।
नलकुबेर ने रावण को श्राप दे रखा है , उसी से तुम सुरक्षित हो । एक बार रावण ने नलकूबेर की स्त्री रम्भा का स्पर्श किया था , इसी से उसको शाप हुआ। अब वह राक्षस किसी भी पर स्त्री को विवश करके उस पर बलात्कार नहीं कर सकता। श्रीराम एवं लक्ष्मण शीध्र ही यहां आने वाले है। श्रीराम सुग्रीव के साथ आकर तुम्हें यहाँ से छुड़ा ले जायेंगे।
मैने भी अनिष्टकारी सूचना देनें वाले अत्यन्त ही धोर भयानक स्पप्न देखे हैं । जिनसे रावण का विनाशकाल निकट दिखाई दे रहा है । सपने में देखा कि रावण का सिर मूँड़ दिया गया है ,उसके सारे शरीर में तेल लगा है वह कीचड़ में डूब रहा है वह गदहों के जुते रथ पर नाच रहा है।उसके साथ कुम्भकर्ण भी सिर मुँडा-मुड़ाये लाल चन्दन लगाये , लाल लाल पुष्पों की माला पहने नग्न होकर दक्षिण दिशा की ओर जा रहा है । विभीषण श्वेत छत्र धारण किये हुए श्वेत पगड़ी पहने श्वेत पुष्प ,श्वेत चन्दन लगे श्वेत छत्र सहित श्वेत पर्वत पर खड़े दिखाई पड़ रहे है । विभीषण के चार मंत्री भी उसके साथ उन्हीं के वेष में देखे गये है । ये सभी आने वाले संकटों से मुक्त है ।
भगवान् श्रीराम के बाणों से समुद्र सहित सम्पूर्ण पृथ्वी आच्छादित हो गई है । अतः यह निश्चय है कि तुम्हारे पति देव का सुयश समस्त भू-मण्डल में फैल जायेगा । सीते! अब तुम शीघ्र ही अपने पति और देवर के मिलकर प्रसन्न होगी । त्रिजटा की बात सुनकर श्रीसीताजी के मन में आशा का संचार हुआ ।
इस तरह श्रीरामचरितमानस , अध्यात्मरामायण,आनन्दरामायण, वाल्मीकीय रामायण, तथा महाभारत के वन पर्व में त्रिजटा का श्रीसीताजी के साथ व्यवहार एवं वार्तालाप बहुत ही हृदयस्पर्शी हैं । एक राक्षस राज्य में त्रिजटा का राक्षसी होकर मानवीप्रवृत्ति होना अपने आप में विचारणीय चिन्तनीय विषय है । श्रीरामजी की कृपा थी कि विभीषणजी एवं त्रिजटा जैसे राक्षस जाति में होकर उनकी कृपा भक्ति व आशीर्वाद से रामकथा के कीर्तिमान पात्रों की गणना में अग्र पंक्ति में दिखाई देते है । मानस पीयूष में भूषण टीकाकार ने त्रिजटा को विभीषण की पुत्री बताया है । त्रिजटा तीन गुणों से जटित होने के ही कारण उसका नामकरण त्रिजटा है । रामचरण रति अर्थात श्रीराम के चरणों में प्रेमभक्ति,व्यवहार से अत्यन्त ही चतुर, निपुणता और विवेक अर्थात अच्छे बुरे की पहचान ये तीन गुण उसमें थे । आज का समाज मानव वृति से राक्षस वृति की ओर अग्रसर है । अतः त्रिजटा के जीवन से राक्षसवृत्ति से मानवीय संस्कार वृत्ति व्यवहार की शिक्षा प्राप्त कर सकता है ।
श्रीराम के विरह में दग्ध सीताजी के मन में सकारात्मकता का संचार करने वाली ममतामयी त्रिजटा मानवीय गुणोंसे परिपूर्ण है और समाज के लिये वन्दनीय तथा अनुकरणीय है ।
इति
मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता
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मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति’’
Sr.MIG-103,व्यासनगर,
ऋषिनगर विस्तार उज्जैन (म.प्र.)पिनकोड- 456010
Email:drnarendrakmehta@gmail.com
Lekin Trijata to bridh dikhai hai
जवाब देंहटाएंFir wo Binhishan ki putri kaise ho sakti hai , kripya duvidha door Kare