------------------------------------------ पीते आये आज तक जो जनता का रक्त वही अधम इस दौर में बनें देश के भक्त | “ तेरी रक्षा मैं करूं...
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पीते आये आज तक जो जनता का रक्त
वही अधम इस दौर में बनें देश के भक्त |
“ तेरी रक्षा मैं करूं हो मत नारि अधीर “
चीर खींचते वो कहे “ बढ़ा रहा मैं चीर ” |
जिसके मन-भीतर बसा अहंकार छल द्वेश
दुष्ट आज धारण किये गुरु नानक का वेश |
भगतसिंह-आज़ाद की कुर्बानी कर याद
धीरे-धीरे जाल को बिछा रहा जल्लाद |
कभी खत्म होती नहीं वीरों की तादाद
भगतसिंह हैं और भी भगतसिंह के बाद |
खल के सम्मुख क्यों करे बन याचक सम्वाद
खरबूजे की कब सुनी चाक़ू ने फरियाद |
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हर सहमति मुझसे बने कहता है प्रतिकार
“ मैं जल का भण्डार हूँ “ बोल रहा अंगार |
बाँट रहा वो आजकल केवल ख्वाब हसीन
वो रोटी देता नहीं, रोटी लेता छीन |
उसने ऐसे कर दिया ‘सही सोच’ का अंत
पतझर को हम देखकर बोलें आज ‘ वसंत ‘ |
चिन्तन को कुछ भी नहीं आज हमारे पास
धीरे-धीरे आ रही हमें गुलामी रास |
आमों की चाहत लिए बोने लगे बबूल
अंधभक्त हम कह रहे अब काँटों को फूल |
धर्मग्रन्थ कोई उठा इतना-सा है मर्म
ऊंचनीच के भेद को नहीं जानता धर्म |
अंधकार अब कह रहा-“मुझसे सुखद प्रभात”
करता छँटना आजकल जल-संचय की बात |
मरुथल कहे-“समुद्र हूँ“ अति इतराकर आज
गड्ढे का ‘उपनाम‘ है यारो अब ‘गिर्राज‘ |
“इसी नीति से सुख मिले“, ऐसी बातें छोड़
क्यों जनता के घाव पर नीबू रहा निचोड़ |
ढाई आखर प्रेम की बदल रही तासीर
सम्प्रदाय की बात अब करने लगा कबीर |
इस युग के जगदीश कब रह पाए जगदीश
जैसे ही सत्ता मिली उग आये दश शीश |
शब्द-जाल नूतन लिए मुस्काता सैयाद
रखकर अपना नाम अब “ देशभक्त आज़ाद “ |
यही सत्य है मानिए “मरता नहीं विचार”
सभी दमित चिंगारियाँ बन जातीं अंगार |
इससे ज्यादा और क्या होगा देश महान
आज मछलियाँ कर रहीं बगुलों का गुणगान |
दृश्य आज का देख कवि शोक न कर तू व्यक्त
अब जब सारी मछलियाँ बगुले की हैं भक्त |
जिसमें प्यारी मछलियाँ भरती मिलें उछाल
मगरमच्छ उस ताल में रही सियासत डाल |
दृश्य आज का देखकर हुआ कबीरा दंग
नाच रही हैं मछलियाँ मगरमच्छ के संग |
मछली के काँटा फँसा, कतर कबूतर-पंख
फूँक रहा वो आजकल विश्व-शांति के शंख |
कोयल कागा का करे मंच-मंच सम्मान
धीरे-धीरे हो रहा अपना देश महान |
चले उजाला खोजने, उसकी मिली न थाह
घना अँधेरा देखकर बोल रहे हम ‘वाह’ |
दो देशों के बीच है आज मुनाफा शुद्ध
बातें होंगी युद्ध की, कभी न होगा युद्ध |
बल पा ख़ूनी शेर का शेर बनें खरगोश
यही शेर ठंडा करे कल को इनका जोश |
चीर बढ़ाने के लिए नहीं उठेगा हाथ
दुर्योधन के साथ है अब का दीनानाथ |
क्रन्दन चीख-पुकार पर दूर-दूर तक मौन
आज जटायू कह रहा ‘सीता मेरी कौन‘?
करता खल की वन्दना, सज्जन को गरियाय
कौरव-कुल का साथ ही अब तो कवि को भाय |
अन्जाने भय से ग्रसित रहा निरंतर काँप
लगता आज विपक्ष को सूँघ गया है सांप |
लोकतंत्र में लोक की कर दी हालत दीन
पत्रकार बगुला बने, जनता जैसे मीन |
एक सुलगते प्रश्न को पूछ रहा है यक्ष
दुबक गया किस लोक में जाकर आज विपक्ष |
उत्पीड़न-अन्याय लखि नहीं खौलता रक्त
हम सब होते जा रहे रक्तबीज के भक्त |
देव-सरीखे ‘सोच’ की आफत में है जान
छल भोले को पा गया भस्मासुर वरदान |
होगी लघु उद्योग पर माना भीषण चोट
रोजगार देगा मगर, कल सबको रोबोट |
सदियों से जिसको मिली “ भाट “ नाम से ख्याति
न्यूज़-चैनलों पर दिखे इस युग वही प्रजाति |
अब तो अति मजबूत हैं कौरव-दल के हाथ
चक्रब्यूह को मिल गया पत्रकार का साथ |
जुटे यज्ञ करने यहाँ कुछ चैनल-अख़बार
बस जनता की दे रहे आहुतियाँ मक्कार |
जन-सेवक तेरे लिए लाये दारू-भाँग
इनसे कपड़े-रोटियां ओ जनता मत मांग |
अपनी कटती ज़ेब पर ये रहता है मौन
इस गूंगे युग को जुबां बोलो देगा कौन ?
सूरदास जैसे नयन हमको हैं बेकार
हम अंधे धृतराष्ट्र हैं , संजय ज्यों अख़बार |
शब्द-शक्तियों को किया अब सत्ता ने अंध
सम्प्रदाय की आ रही अब कविता से गंध |
युग-युग से लोकोक्ति यह होती आयी सिद्ध
लाश बिछी हों हर तरफ यही चाहता गिद्ध |
बना किसानों के लिए इतना आज विधान
रोये अपनी नियति पर अब हर साल किसान |
सोचे सुस्त विपक्ष अब-“ लूं मैं माखन लूट
यदि बिल्ली के भाग से छींका जाये टूट |
अब शासन में कंस के कान्हा का है साथ
मिला रही है रौशनी अंधकार से हाथ |
वानर-सेना हो गयी अब रावण के संग
बहुत कठिन है जीतना रघुनंदन को जंग |
बिना विचारे सत-असत चुनना अपना काम
फर्क नहीं पड़ता हमें रावण हो या राम |
हर कोई हैरान है लखि सत्ता का रूप
और अँधेरा हो गया जब से आयी धूप |
नित अबलाएँ छेड़ते गुंडे रहे दहाड़
डर के मारे हम रखें अपनी बंद किबाड़ |
भीषण गर्मी में जगे मन में फीलिंग कूल
चमत्कार यह कर रहा आज कमल का फूल |
बल पा ख़ूनी शेर का शेर बनें खरगोश
यही शेर ठंडा करे कल को इनका जोश |
चीर बढ़ाने के लिए नहीं उठेगा हाथ
दुर्योधन के साथ है अब का दीनानाथ |
क्रन्दन चीख-पुकार पर दूर-दूर तक मौन
आज जटायू कह रहा ‘सीता मेरी कौन‘?
करता खल की वन्दना, सज्जन को गरियाय
कौरव-कुल का साथ ही अब तो कवि को भाय |
अन्जाने भय से ग्रसित रहा निरंतर काँप
लगता आज विपक्ष को सूँघ गया है सांप |
लोकतंत्र में लोक की कर दी हालत दीन
पत्रकार बगुला बने, जनता जैसे मीन |
एक सुलगते प्रश्न को पूछ रहा है यक्ष
दुबक गया किस लोक में जाकर आज विपक्ष |
उत्पीड़न-अन्याय लखि नहीं खौलता रक्त
हम सब होते जा रहे रक्तबीज के भक्त |
देव-सरीखे ‘सोच’ की आफत में है जान
छल भोले को पा गया भस्मासुर वरदान |
होगी लघु उद्योग पर माना भीषण चोट
रोजगार देगा मगर, कल सबको रोबोट |
सदियों से जिसको मिली “ भाट “ नाम से ख्याति
न्यूज़-चैनलों पर दिखे इस युग वही प्रजाति |
अब तो अति मजबूत हैं कौरव-दल के हाथ
चक्रब्यूह को मिल गया पत्रकार का साथ |
जुटे यज्ञ करने यहाँ कुछ चैनल-अख़बार
बस जनता की दे रहे आहुतियाँ मक्कार |
जन-सेवक तेरे लिए लाये दारू-भाँग
इनसे कपड़े-रोटियां ओ जनता मत मांग |
अपनी कटती ज़ेब पर ये रहता है मौन
इस गूंगे युग को जुबां बोलो देगा कौन ?
सूरदास जैसे नयन हमको हैं बेकार
हम अंधे धृतराष्ट्र हैं , संजय ज्यों अख़बार |
शब्द-शक्तियों को किया अब सत्ता ने अंध
सम्प्रदाय की आ रही अब कविता से गंध |
धर्म-जाति की सब लिए हाथों में शमशीर
महंगाई से जो लड़े , दिखे न ऐसा वीर |
गोरे बन्दर की जगह काले बन्दर आज
इस आज़ादी पर करें कैसे भैया नाज़ |
चाल हमारे हाथ पर उसके हाथ रिमोट
गिरनी है अब सांप के मुँह में ही हर गोट |
सत्ता के उपहास को जनता जाती भूल
रोज मनाते आ रहे नेता अप्रिल-फूल |
दिए सियासी फैसले मुंसिफ ने इस बार
सुबकन-सिसकन से भरे जनता के अधिकार |
अब क्या होगा बोलिए शंकर भोलेनाथ
नेताजी को मिल गया पत्रकार का साथ |
तूने जो वादे किये मुकर गयी हर बार
राजनीति तेरा बता मुंह है या मलद्वार |
गुब्बारों से आलपिन जता रही है प्यार
क्यों न समझ आता तुझे सत्ता का व्यवहार |
हुआ आज सद्भाव का ज़हरीला मकरंद
देशभक्त कहने लगा अपने को जयचंद |
मीरजाफरों के लिए वक़्त हुआ अनुकूल
इनके हाथों में दिखें देशभक्ति के फूल |
पेट्रोल का साथ ले कहता है अंगार
मैं लाऊँगा मुल्क में अमन-चैन इस बार |
भक्तो लड्डू बांटिए प्रगट न कीजे खेद
हर नेता की हो गयी काली भैंस सफेद |
रक्तसनी तलवार सँग जिनके हैं अब ठाठ
सहनशीलता का हमें सिखा रहे हैं पाठ |
देशभक्ति के नाम पर प्रचलन में यह राग
सहनशील अब जल नहीं, सहनशील है आग |
हर गर्दन इस दौर में घोषित है गद्दार
सहनशील अब बन गये बस चाकू-तलवार |
पत्रकार का हो गया नेता से गठजोड़
दोनों मिलकर देश की बाँहें रहे मरोड़ |
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रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
Mo.-9634551630
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