एक थी आस्था जो बहुत प्यारी थी। सबकी दुलारी थी। बहुत शैतान थी। करती सबको परेशान थी। बोलने में बहुत प्यारी। लगती थी सबसे न्यारी। सबकी थ...
एक थी आस्था
जो बहुत प्यारी थी।
सबकी दुलारी थी।
बहुत शैतान थी।
करती सबको परेशान थी।
बोलने में बहुत प्यारी।
लगती थी सबसे न्यारी।
सबकी थी मन भावन।
झरती जैसे सावन।
मन के बहुत समीप सी।
दीपावली की दीप सी।
फिर एक अंतराल।
लंबा सूना सा काल।
फिर एक दिन प्रकट हुई आस्था।
निश्छल मुस्कान लिए।
सौंदर्य की शान लिए।
मन मे प्रतिबिंबित।
जीवन आनंदित।
कर्तव्यों के पथ पर।
कर्म से अभिसिंचित।
शुभ्र धवल सौंदर्य सिक्त
पुष्पगन्ध देह युक्त।
सभी संबंधों का निर्वहन।
प्रेमयुक्त संवहन।
स्नेहसिक्त प्रेमयुक्त आस्था
सबकी स्नेहमयी आस्था
श्री राम विवाह
सुशील शर्मा
श्री जनक जी बने घराती।
पूरा अवध बना है बाराती।
चारों भाई बने हैं दूल्हे।
सबके नुते हैं चूल्हे।
जनक जी करें अगवानी।
सुन्दर सजी राजधानी।
चारों बहनें बनी है बन्नी।
दावत में बनी है सिन्नी।
जनकपुरी में मचो है हल्ला।
दूल्हा बन के आये राम लल्ला।
समधी गले मिल रहे हैं।
खुशी से सब खिल रहे हैं।
सीता मैया को हल्दी चढ़ी है।
शुभलग्न में भाँवर पड़ी है।
अब आयी विदा की बेला।
बहा देखो आंसुओं का रेला।
रो रही है मैया प्यारी।
रोवें चारों जनक दुलारी।
बेटियाँ जनक जी तुम्हारी।
बहु नहीं प्राण हमारी।
पलकों पे बिठा के रखेंगे।
बेटी बना कर रखेंगे।
बाबुल से लेके विदाई।
बिटिया हुई अब पराई।
चारों बहुएं है प्यारी प्यारी
बलैयां ले रहीं तीनों महतारी।
सुख दुःख
छंद -दोहा
सुशील शर्मा
सुख दुःख सदा न जानिए ,जीवन के हैं अंग।
सुख में मन हर्षित रहे ,दुःख में सब बदरंग।।
सुख वैभव क्षण मात्र हैं ,रहें न सब के पास।
सपने जैसा छूटता ,खुली आँख की आस।।
सुख दुःख मन के फेर हैं ,इंद्रधनुष से रंग।
एक पल सुख के साथ है ,एक पल दुख के संग।।
आग तपे कुंदन बने ,दुःख जीवन की आन।
दुख से मन निर्भय बने ,कर शत्रु मित्र पहचान।।
सुख सपना सा जानिए ,दुःख का नहीं जबाब।
जब दोनों मन में रहें ,जीवन बने गुलाब।।
मिलन -बिछोह
छंद -चौपाई ,सोरठा
जीवन मिलन बिछोह किनारे। उर आनंद मगन मन सारे।
चिरगतिमय जीवन संसारा। प्रणय अटल तन मन सब वारा।।
तन विछोह मन विसरत नाहीं। पिया दरस बिन अब सुख नाहीं।
विरह अनल धधकत मन ऐसे। वन सुलगत दावानल जैसे।
आतुर नयन अश्रु ढलकाई। पिय विछोह अब सहा न जाई।
जल बिन मीन तड़फती कैसी। मन की गति पिय बिन है ऐसी।
तन मन मिलन ह्रदय सुखदायी। तप्त धरा जिमी बरसा पायी।
आतुर मन पिया संग झूमे। जैसे भ्रमर पुष्प को चूमें।
मिलन विछोह जगत की माया। जीवन में रहते हमसाया।
विरह वेदना दर्द जगाता। मिलन मधुरतम सुख बरसाता।
सोरठा -
प्रेम मिलन की आस ,ईश्वर बिन मिले न चैन।
आशा संग विश्वास ,दीनन ओर विलोक मन।।
आना जाना
छंद -दोहा
जीवन आना जगत में ,मौत विदा की रात।
आना जाना नित्य है ,ज्यों संध्या परभात।
जीव मृत्यु बंधन अटल ,ज्यों पतंग की डोर।
एक सिरा जीवन बंधा ,मृत्यु दूसरी छोर।
काल चक्र की गति अगम ,जानत नहीं सब कोय।
निर्विकार घूमत सदा ,जनम मरण संजोय।
जनम मरण आभास हैं ,सतत रहें गतिमान।
एक समय संग दौड़ना ,एक शान्ति प्रतिमान।
जीवन अविरल चेतना ,गतिधारण आवेग।
मौत गहन निद्रा सरिस ,प्राण रहित संवेग।
सद्गुरु मील का चिन्ह है,आगे पंथ अनेक।
आवागमन मिटाय के ,जो दे ज्ञान विवेक।
सरकारी स्कूल चलें हम
सुशील शर्मा
बच्चों को स्कूल भिजाएँ।
अक्षरब्रह्म का ज्ञान कराएं।
बच्चे तो अनगढ़ माटी हैं।
इनको सुन्दर गुलदान बनाएं।
शिक्षा सम्मानों की खेती है।
आओ इनका मान कराएं।
विद्यालय शिक्षा के मंदिर हैं।
बच्चों से पूजन करवाएं।
निजी विद्यालय बनी दुकानें।
इसका सबको भान कराएं।
राजेन्द्र प्रसाद से प्रणव मुखर्जी तक।
सरकारी विद्यालय का मान बढ़ाएं।
कलाम,बसु,रामानुज,टैगोर
सरकारी स्कूलों की शान बढ़ाएं।
मोदी शिवराज नीतीश मनमोहन।
इन स्कूलों में पढ़ भारत का सम्मान बढ़ाएं।
निजी स्कूलों से नहीं लुटना है ध्यान रहे।
सरकारी स्कूलों में प्रवेश ले सम्मान कराएं।
शम्मा जलती रही
सुशील शर्मा
शम्मा जलती रही रात ढलती रही।
बात बन बन के यूं ही बिगड़ती रही।
चांद हंसता रहा बेबसी पर मेरी।
आंख रिसती रही यादों में तेरी।
वक्त चलता रहा प्रीति झरती रही।
शम्मा जलती रही रात ढलती रही।
जिंदगी घाव बनके सिसकती रही।
मौत बेबफा सी मटकती रही
न मौत पास आई न जीवन मिला।
कुछ इस तरह से चला ये सिलसिला।
प्रीत मेरी आँखों में तेरी खटकती रही।
शम्मा जलती रही रात ढलती रही।
उम्र आइनों के दर से गुजरती रही।
जुल्फ गालों पे ढल के संवरती रही।
गैर गलियों से तेरी गुजरते गए।
स्वप्न सारे यूं ही बिखरते गए।
जाम ढलते रहें महफिल सजती रही।
शम्मा जलती रही रात ढलती रही।
महाराणा प्रताप की वीरता को समर्पित कविता।
महाराणा प्रताप
छंद-आल्हा या वीर
(16,15 पर यति गुरू लघु चरणांत)
सुशील शर्मा
राणा सांगा का ये वंशज
रखता था रजपूती शान।
कर स्वतंत्रता का उदघोष,
वह भारत का था अभिमान।
मान सींग ने हमला करके
राणा जंगल दियो पठाय।
सारे संकट क्षण में आ गए
घास की रोटी दे खवाय।
हल्दीघाटी रक्त से सन गई,
अरिदल मच गई चीख पुकार।
हुआ युद्ध घनघोर अरावली,
प्रताप ने भरी हुंकार।
शत्रुसमूह ने घेर लिया था,
डट गया सिंह सा कर गर्जन।
सर्प सा लहराता प्रताप,
चल पड़ा शत्रु का कर मर्दन।
मान सींग को राणा ढूंढे,
चेतक पर बन के असवार।
हाथी के सिर पर दो टापें,
रख चेतक भर कर हुंकार।
रण में हाहाकार मचो तब,
राणा की निकली तलवार
मौत बरस रही रणभूमि में,
राणा जले हृदय अंगार।
आँखन बाण लगो राणा के,
रण में न कछु रहो दिखाय।
स्वामिभक्त चेतक ले उड़ गयो,
राणा के लय प्राण बचाय।
मुकुट लगा कर राणा जी को,
मन्नाजी दय प्राण गँवाय।
प्राण त्याग कर घायल चेतक,
सीधो स्वर्ग सिधारो जाय।
सौ मूड़ को अकबर हो गयो
जीत न सको बनाफर राय।
स्वाभिमान कभी नही छूटे
चाहे तन से प्राण गँवाय।
कुंडलियां
(भारत -पाक संबंधों पर )
सुशील शर्मा
1.
कूकर कौआ लोमड़ी ,ये होते बदजात।
लठ्ठ से इनको मारिये ,तब ये सुनते बात।
तब ये सुनते बात,पाक है लोमड़ ऐसा।
छाती पर हो लात ,बिलखता कूकर जैसा।
कह सुशील कविराय ,मिटा दो पाक का हौआ।
घुस कर मारो आज ,भगा दो कूकर कौआ।
2.
सीमा पर सेना लड़े ,घर उजाड़ें गद्दार।
कश्मीर में केसर जहर,कैसे होय उद्धार।
कैसे होय उद्धार,जहर है घर में अंदर।
सैनिक सीमा पास,ये घर में मस्त कलंदर।
कह सुशील कविराय,जहर इनको दो धीमा।
मन में लगी है आग ,ख़त्म है सहन की सीमा।
3.
पाकी सेवा में लगे ,कुछ हैं वतन हराम।
भारत का खाएं पियें ,बनकर पाक गुलाम।
बनकर पाक गुलाम ,लाज नहीं इन्हे आवे।
रटे पाक का नाम ,भारत न इनको भावे।
कह सुशील कविराय,निकालो इनकी झाँकी।
कर दो काम तमाम,भगा दो ये ना पाकी।
आज विश्व तम्बाखू निषेध दिवस है।
सुशील शर्मा
दोहे
तम्बाखू मुंह मे रखें, आती मौत करीब।
अपने पीछे छूटते, बनते लोग गरीब।
गुटका पान चबाय के, लोग दिखाते शान।
सिगरेटों की आग में ,टूटे सब अरमान।
लतें तम्बाखू से भरी,बहुत बुरी श्रीमान।
केंसर कोढ़ बुलाय के, लोग गंवाएं जान।
जीवन ये अनमोल है, नशा बिगाड़े बात।
तन मन को जर्जर करे, घर मे दुख बरसात।
पान तम्बाखू छोड़ कर, काम करो तुम नेक।
जीवन सुखद बनाय के,खुशियां चुनो अनेक।
*कुंडलिया*
गुटखा पान चबाय के,लोग दिखाते शान।
सिगरेटों की आग में,टूटे सब अरमान।
टूटे सब अरमान,केंसर द्वार को तांके।
हृदय रोग तड़फाय, मौत आंखों में झांके।
कह सुशील कविराय,नशा देता है झटका।
नशा नाश का मूल, मत चबा खैनी गुटखा।
*कुंडलियां*
परिपक्वता
सुशील शर्मा
अंतर हृदय परिपक्वता, मन में प्रेम बढ़ाय।
नीरस मन रस से भरे,जनम सफल हो जाय।
जनम सफल हो जाय, दुख नही मन में झांके।
प्रेम सुमन खिल जाय,शत्रुता दूर से तांकें।
कह सुशील कविराय,प्रेम का मारो मंतर।
सरल हृदय हो जाय, कलुष है जिसके अंतर।
☘☘☘☘☘☘☘☘
मानव मन अपरिपक्व है, इधर उधर लग जाय।
मन को जो बस में करे, वह महान कहलाय।
वह महान कहलाय,जानिए उसको समुचित।
वह मानव गंभीर,सदगुणों से वह सिंचित।
कह सुशील कविराय,सुखी है वह मानव तन।
सदा परिपक्व दिखाय,श्रेष्ठ अति वह मानव मन।
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(विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता)
*भाषण से संरक्षण*
सुशील शर्मा
मैंने शपथ ली थी
विश्वपर्यावरण दिवस पर
दस पौधे लगाऊंगा।
पौधे लगे और सूख गए।
मैंने भाषण दिया था
मुख्य अतिथि बन कर।
हमें जंगलों को बचाना है।
मेरे तीन ट्रक लकड़ी से
भरे वन विभाग में खड़े हैं।
रिश्वत के इंतजार में।
मैंने विद्यालय में बच्चों
को समझाया था।
पेड़ हमें प्राणवायु देते हैं
उनका हमें संरक्षण करना है
उसी दिन विद्यालय परिसर के
पांच पेड़ कटवाए क्योंकि
उनकी लकड़ियों से
घर का फर्नीचर बनवाना था।
जगदीश चंद्र बोस ने कहा था
पेड़ों में जीवन होता है,उन्हें भी दर्द होता है।
इसके बाबजूद भी मैने कई पेड़ों का कत्ल किया।
कल नदी संरक्षण पर सेमिनार था।
मैंने लोगों को बताया कि
रेत खनन से नदी मर जाती है।
उसी रात मेरे दस डम्फर
रेत की खुदाई कर रहे थे।
हम जो हैं वो होते नही हैं
जो है वो दिखते नही हैं।
आज भी मैं विश्व पर्यावरण
दिवस पर मुख्य अतिथि हूँ।
बोलो कौन सा भाषण दूँ?
(विश्वपर्यावरण दिवस पर कविता)
3. कुंडलियां
सुखी जीवन
जीवन की बगिया सजी ,बही ख़ुशी की बयार।
रिश्तों संग दावत उड़ी ,पनपा प्रेम अपार।
पनपा प्रेम अपार,सभी सुख लगते अपने।
जीवन चढ़ा उतार ,दिखाते सुन्दर सपने।
कह सुशील कविराय ,दुखी न अब तक ये मन।
अंदर से बौराय ,ख़ुशी में बीता जीवन।
माता पिता
माता पिता का रूप है ,इस शरीर के संग।
पिता बीज का धर्म है ,माँ वसुधा का अंग।
माँ वसुधा का अंग,बच्चे पौधा के जैसे।
सिंचित प्रेम अपार ,बिना चिंता के ऐसे।
कह सुशील कविराय ,बचपना कभी न जाता।
पिता मील का पत्थर ,ईश से बढ़ कर माता।
जीवन मृत्यु
आना जाना जगत में ,सृष्टि नियम आधार।
एक पल आवन होत है ,दूजे मरण विचार।
दूजे मरण विचार,कोई न अमर यहां पर।
जनम मौत एक संग ,जाना है फिर लौटकर।
कह सुशील कविराय,मौत जीवन का बाना।
अविरल घूमे चाक ,लगा है आना जाना।
जीवन का मर्म
जीवन जीना मात्र ही ,नहीं मनुज का धर्म।
अभिनव अर्थ प्रदान कर ,पहचानों ये मर्म।
पहचानों ये मर्म,उजाला जग में कर दो।
अंधियारों से न डरो ,तम को ज्योति से भर दो।
कह सुशील कविराय,तान कर अपना सीना।
अन्यायों से लड़ कर ,सीख लो जीवन जीना।
कुंडलिया
विषय-रजनीगंधा
सुशील शर्मा
रजनीगंधा फूल सा,
महक उठा संसार।
प्रिय संगम ऐसा हुआ,
तन पर चढ़ा खुमार।
तन पर चढ़ा खुमार,
प्रमुदित हृदय का आँगन।
रजनीगंधा खिला ,
आज जीवन के मधुवन।
कह सुशील कविराय,
खिला तन प्रेम सुगंधा।
अनुपम रूप अनूप ,
देह है रजनीगंधा।
रजनीगंधा की महक,
फैली चारों ओर।
प्रीतम मादक हो रहे,
चला नही कछु जोर।
चला नहीं कछु जोर,
बांह जरा ऐसी जकड़ी।
तन में उठत मरोड़,
कलाई ऐसी जकड़ी।
कह सुशील कविराय,
प्रेम बिन जीवन अंधा।
मृदुल प्रेम प्रिय संग,
मन बना रजनीगंधा।
गीत
विषय-रजनीगंधा
सुशील शर्मा
रजनीगंधा की खुशबू फैली है आँगन में।
सारी खुशियां भर दी है तुमने दामन में।
प्रियतम जबसे जीवन मे तुम आये हो।
बादल जैसे बन कर तुम छाए हो।
सूखे जीवन मे जल धार बही।
अब न कोई प्यास बाकी रही।
रजनीगंधा फूला है रातों में।
रात कट गई बातों ही बातों में।
अब न जाना छोड़ के इस प्रेमी पागल को।
जी भर कर बरसा दो प्रेम के बादल को।
रजनीगंधा के फूल सजे हैं गजरे में।
न जाने क्या बात है तेरे कजरे में।
सुरभित तन मन रजनीगंधा फूला है।
मन मतंग प्रियतम संग झूला झूला है।
आओ प्रियतम जीवन का सत्कार करें।
रजनीगंधा सी सुगंध सा प्यार करें।
इच्छा शक्ति
छंद -कुंडलियां
सुशील शर्मा
1.
अंधी बहरी जनम से ,हेलन केलर नाम।
मात पिता चिंतित रहें ,रोते सुबहा शाम।
रोते सुबहा शाम,भविष्य क्या इसका होगा।
फूटे इसके भाग ,पाप क्यों इसने भोगा।
कह सुशील कविराय ,साथ न कोई सम्बन्धी।
हेलन थी असहाय ,जनम से गूंगी अंधी।
2.
शिक्षक गुरु उसको मिली ,ऐन सुलिवान नाम।
नया जनम उसको मिला ,पढ़ती सुबहा शाम।
पढ़ती सुबहा शाम,सीख गई सारी शिक्षा।
बनन लगे सब काम ,पास की सभी परीक्षा।
कह सुशील कविराय ,बनो स्वाभिमानी रक्षक।
लड़कर जीतो आज ,जिजीविषा अपना शिक्षक।
3. .
इच्छा शक्ति अगर आपकी ,होती है मजबूत।
कठिन काम सीधे लगें ,मिले सम्मान अकूत।
मिले सम्मान अकूत,सफलता पास बुलावे।
जीवन बने सुयोग ,विपत फिर पास न आवे।
कह सुशील कविराय ,मांग प्रभु चरणों की भक्ति।
कार्य होय सब सिद्ध ,जगा जीवनी इच्छा शक्ति।
4.
जो मन को आगे करे ,सो ही पीछे होय।
मन को जो पीछे करे ,जग जीते वो सोय।
जग जीते वो सोय,वो कभी हार न माने।
पूरे होवें काम ,सभी जो मन में ठानें।
कह सुशील कविराय,नहीं तुम हारो जीवन।
मौत खड़ी बौराय ,ठान कर निकले जो मन।
गीतिका☘☘
सुशील शर्मा
काश तुम मेरे होते।
पास न अंधेरे होते।
जीवन बदल जाता।
सपने सुनहरे होते।
मिल जाते हमें गर तुम।
खुशियों के बसेरे होते।
यादों की रात होती।
मिलन के सबेरे होते।
जब्त हैं मेरे सीने में
दर्द ये गहरे होते।
ता उम्र मुस्कुराते रहते।
गर सामने ये चेहरे होते।
ख्वाब बस आंखों में है।
संग तेरे फेरे होते।
क्या वो किसान थे
सुशील शर्मा
हिंसा को भड़काने वाले
ये किसान नही हो सकते।
जीवन को सुलगाने वाले
ये किसान नही हो सकते।
खेतों में जो श्रम का पानी देता है।
फसलों को जो खून की सानी देता है।
फसलों को आग लगाने वाले
ये किसान नहीं हो सकते।
हिंसा को भड़काने वाले
ये किसान नही हो सकते।
खुद भूखा रहकर जो औरों को भोजन देता है।
खुद को कष्ट में डाल दूसरों को जीवन देता है।
सड़कों पर दूध बहाने वाले
ये किसान नही हो सकते।
हिंसा को भड़काने वाले
ये किसान नही हो सकते।
कर्ज में डूबे उस किसान कि क्या हिम्मत है।
घुट घुट कर मर जाना उसकी किस्मत है।
बच्चों पर पत्थर बरसाने
वाले ये किसान नही हो सकते।
हिंसा को भड़काने वाले
ये किसान नही हो सकते।
राजनीति की चौपालों पर लाशें है।
इक्का बेगम और गुलाम की तांशें हैं।
लाशों के सौदागर दिखते
ये किसान नही हो सकते।
हिंसा को भड़काने वाले
ये किसान नही हो सकते।
सीने पर जिसने गोली खाई निर्दोष था वो।
षडयंत्रो का शिकार जन आक्रोश था वो।
राजनीति के काले चेहरे
ये किसान नही हो सकते।
हिंसा को भड़काने वाले
ये किसान नही हो सकते।
जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं*
प्रिय अनुज आगे बढ़ो तुम
संघर्ष के कांटे चुनो तुम।
प्रेम की भाषा से बुनकर।
फूल की माला सी चुनकर।
सबको लेकर साथ चलना।
तय है मंजिल तुमको मिलना।
न भटकना रास्ते से।
जिंदगी के वास्ते से।
निकल पड़े कर्तव्य पथ पर।
धर्म और ईमान रथ पर।
जन्मदिन तुमको मुबारक।
बनो तुम ऐश्वर्य धारक।
दीर्घायु सदाचरण के बनो केंद्र
ब्रम्हकुल भूषण प्रिय *नागेन्द्र*।
स्नेहाशीष
सुशील शर्मा
12 जून 2017
आषाढ़ कृष्ण तृतीया।
पार करती सियासत।
सियासत
सुशील शर्मा
गरीब की रोटी से
लटकती सियासत
किसान खून से
लथपथ सियासत
कभी सत्ता में
कभी विपक्ष में
सियासत
कभी जीत में
कभी हार में
सियासत
अभिव्यक्ति नाम पर
नंगी नचती सियासत।
सेना को कोसकर
मुस्कुराती सियासत।
धार्मिक उन्माद को
धधकाती सियासत।
गरीबों के धंधों को
धूल में मिलाती सियासत।
माल्या के कर्जों को।
जनता से वसूलती सियासत।
अपने ही पैसों के लिए
हमको तरसाती सियासत।
सांसों पर भी टैक्स
लगाती ये सियासत।
मीडिया को भोंपू
बनाती ये सियासत
जे येन यू में भारत विरोधी
नारे लगाती ये सियासत।
भारत का खाकर
पाकिस्तान चिल्लाती
ये सियासत।
जातिवाद ,भाषावाद में
मुस्कुराती ये सियासत।
सामाजिक सरोकारों से
दूर जाती सियासत।
देश के गद्दारों संग
चाय पीती सियासत।
बेशर्मी की सारी हदें
पार करती सियासत।
सद्गुण और संस्कार
सुशील शर्मा
दोहे -
सद्गुण को अपनाइये ,सद्गुण सुख की खान।
सद्गुण से साहस मिले ,नीचा हो अभिमान।
बुरे विचारों को तजे,बने आचरण शील।
सद्गुण से सिंचित करे ,विनय विवेक सुशील।
सद्गुण से वंचित रहें ,काम क्रोध मद लोभ।
कायरता मन में रहे ,जीवन बने विक्षोभ।
साहस और विवेक हैं ,सद्गुण की पहचान।
जीवन संयम से जियो ,सब कोई दे सम्मान।
काँटों भरा है रास्ता ,सद्गुण से आसान।
सद्गुण जीवन में रहे ,क्यों भटके इंसान।
कुंडलियां-
चिंतन ऐसा कीजिये ,मन में रहे उमंग।
जीवन दशा सुधारिये ,मन सद्गुण के संग।
मन सद्गुण के संग ,लगन अंदर हो ऐसी।
जीवन बने पतंग ,डोर सद्गुण के जैसी।
कह सुशील कविराय ,मथो तुम ऐसा मंथन।
जीवन हो नवनीत ,मथानी जैसा चिंतन।
।जीवन के निर्माण में ,सद्गुण बनें विशिष्ट।
संस्कार गर न मिलें ,बालक बनें अशिष्ट।
बालक बनें अशिष्ट,आचरण आती लघुता।
जीवन हो प्रतिकूल ,बढे मन अंदर पशुता।
कह सुशील कविराय ,संयमित ऐसा हो मन।
सुन्दर सुघड़ विचार ,नियंत्रित होता जीवन
टन टन बज गई घंटी
(बाल कविता)
सुशील शर्मा
टन टन टन बज गई घंटी।
गुरुजी की उठ गई शंटी।
गर्मी की छुट्टी फुर्र हो गई
गुरुजी की गुर्र शुरू हो गई ।
गोलू भोलू खेलना बन्द
पढ़ना इनको नही पसंद।
मम्मी ऊपर से चिल्लाएं
पापा गुस्से में आंख दिखाएं।
सारी मस्ती भई छूमंतर।
पढ़ाई का डंडा है सिर पर।
सुबह सुबह स्कूल को जाना।
होम वर्क फिर करके लाना।
धमा धम्म सब कूदें खिड़की से।
डर गए सब मेडम की झिड़की से।
लंच में हम सब लूट मचाएं।
आलू रोटी हम क्यों खाएं।
मोहन की लूटी थी मिठाई।
कक्षा में पड़ गई पिटाई।
छुट्टी के दिन बीते रे भाई।
अब मन लगा कर करो पढ़ाई।
भोलू गोलू बिट्टो बंटी।
टन टन टन बज गई घंटी।
प्रीत के गीत
सुशील शर्मा
प्रीत के गीत सुनाओ सजनवा--
प्रीत के गीत सुनाओ।
हमरे मन बस जाओ सजनवा
प्रीत के गीत सुनाओ।
कलियन चुन चुन सेज सजाई।
फिर भी तू न आये हरजाई।
अब तो गले लगाओ सजनवा
प्यास अधूरी बुझाओ सजनवा
प्रीत के गीत सुनाओ।
प्रीत के गीत सुनाओ सजनवा--
प्रीत के गीत सुनाओ।
अमवा की डाली पे बैठा रे सांवरिया।
बाजत वंशी मैं भई री वाबारिया।
अब न तुम तरसाओ सजनवा।
पास तो मुझे बुलाओ सजनवा
प्रीत के गीत सुनाओ
प्रीत के गीत सुनाओ सजनवा--
प्रीत के गीत सुनाओ।
मन में उठत हिलोर कन्हाई।
प्रीत तेरी आँखों में समाई।
जीवन धन बन जाओ सजनवा।
अब तो मन मुस्काओ सजनवा।
प्रीत के गीत सुनाओ।
प्रीत के गीत सुनाओ सजनवा--
प्रीत के गीत सुनाओ।
प्रीत के गीत सुनाओ सजनवा--
प्रीत के गीत सुनाओ।
हमरे मन बस जाओ सजनवा
प्रीत के गीत सुनाओ।
चुनावी हथकंडे
सुशील शर्मा
रास्ते मे देखा
एक नेता जैसा
आदमी....
एक गरीब के पैर
पर पड़ा था।
मुझे आश्चर्य हुआ
पता चला वह
चुनाव में खड़ा था।
कुछ दूर
गरीबों का
मोहल्ला था।
देखा वहां
बहुत हल्ला था।
वहां एक घटना घटी।
घर घर शराब बटी।
रात में जब
सब सो रहे थे।
नेताजी...
चुनाव के बीज
बो रहे थे।
नेता जी के लोग
दुबक कर
मलाई
चाट रहे थे।
चुनावी पर्चियां में
रख कर
पांच सौ के नोट
बांट रहे थे।
नेता जी महिलाओं
से रिश्ते सान रहे थे।
किसी को माँ
किसी को बहन
किसी को भाभी
मान रहे थे।
एक जगह
लट्ठ भंज रहे थे।
देखा
नेता जी के विरोधी
मंज रहे थे।
कुछ प्यार
कुछ मनुहार
बांकि फुफकार
कुछ पैसे
कुछ डंडे
ये हैं नेता जी के
चुनावी हथकंडे।
एक पेट की और खेत की कविता
सुशील शर्मा
पेट की कविता में
कांधे पर बीबी का शव
रखे दाना मांझी है।
अस्पताल में
मौत से लड़ता
आम आदमी है।
कूटनीति के गलियारों में
लटकती गरीब की रोटी है
सैनिकों की पतली दाल है
गोदामों में सड़ता अनाज है।
सड़कों पर फिकती सब्जियां है।
दूध के लिये बिलखता बच्चा है।
सड़कों पर बहता दूध है।
खेत की कविता में
जमीन हड़पते बड़े किसान है।
तड़पते भूमिहीन किसान है।
साहूकारों के चुंगल है।
बैंकों का विकास है।
कर्जमाफी के लिए चिल्लाते
अपनी फसलों को जलाते
जहर खाते मरते किसान है।
कविता खेत का दर्द गाती है।
कविता भूखे पेट सुलाती है।
पेट की कविता में
दर्द है अहसास है।
भूख है भाव है।
खेत की कविता में
किसान है सूखा है।
कर्ज है फांसी है।
मंडी हैं बोलियां है।
निर्दोषों पर गोलियां है।
कविता चाहे खेत की हो
या पेट की हो।
दोनों में दुख है दर्द है।
आहत भरी गर्द है।
कुछ तो है
सुशील शर्मा
कुछ तो है अंदर
जो तुमसे जुड़ा है।
कुछ तो है मुझ में
जो तुम्हारे साथ खड़ा है।
नदी के दो किनारों की तरह
समांतर चलते हुए भी।
जो चाहकर भी नही मिल सकते
तुम अंतर में उतरती हो
किसी झरने सी लहराती
और मैं छू लेता हूँ
तुम्हारे मन की अनंत गहराइयों को।
मेरे दर्द में तुम चिहुंक उठती हो
और तुम्हारा दर्द मुझे
चीर देता है किसी तरबूज की तरह।
तुम्हारी खुशी मुझे स्पंदित
कर आसमान में उड़ाती है।
मेरी खुशी में तुम कुलांचे
मारती हो हिरणी की तरह।
नदी के किनारे अकेली बैठी
तुम करती हो मेरा इंतजार।
आंख उठा कर गर तुम देख लेती दूसरी तरफ।
मेरी आँखों मे तुम थी एकटक।
इस जन्म में हम रिश्तों में तो नही बंधे।
तुम्हारा तन किसी और का है।
मेरा तन किसी और का।
किन्तु मन आज भी चुपके से
खड़ा होता है तुम्हारे पीछे
सरगोशियां करता हुआ।
योग पर कविता
सुशील शर्मा
चित्त वृतियों पर नियंत्रण योग है।
जीव का परमात्मा से मंत्रण योग है।
यम नियम संयम से तुम मन संवारो।
शुद्ध बुद्धि प्रेम से तुम सबको पुकारो।
यम नियम आसन लगा कर बैठिए।
प्राण को प्रत्यहार से समेटिये।
ध्यान जब समाधि पर विमुक्त हो।
देह सब व्याधियों से तब मुक्त हो।
इदम अहम परम से मन संयुक्त है।
द्वेष तृष्णा धारित भावों से युक्त है।
अंतःकरण की शुचिता का अभ्यास हो।
सद्भावना समता और विश्वास हो।
कर्म ज्ञान और भक्ति का संयोग हो।
देह मन और हृदय का योग हो।
देह के भीतर का जादू तुम जगाओ।
देह और मन को एक कर मुक्ति पाओ।
पर्यावरण का संतुलन ही योग है।
मानव प्रकृति तादाम्य ही सुयोग है।
सावन गीत-1
सुशील शर्मा
घन घन घन घन गरजे बदरवा
पिया तोसे लिपट मैं जाऊं
झर झर झर झर बरसे सावन
पिया तोहे मैं गले लगाऊं।
बैरी सवनवा ऐसो तारे
बूंदों में अगन सी डारे।
बैरी न समझे मेरी बेचैनी।
पिया संग हो रई सेना सैनी
रिम झिम बरसे सवनवा।
घन घन घन घन गरजे बदरवा
पिया तोसे लिपट मैं जाऊं।
झर झर झर झर बरसे सावन
पिया तोहे मैं गले लगाऊं।
प्रीतम न समझें नैनों की भाषा।
क्या है मेरे मन की अभिलाषा।
सावन के मौसम में ऐसे रूठे।
मिलन के वादे हो गए झूठे।
हमरी ने माने बैरी सजनवा।
घन घन घन घन गरजे बदरवा
पिया तोसे लिपट मैं जाऊं
झर झर झर झर बरसे सावन
पिया तोहे मैं गले लगाऊं।
पिया के नाम की मेहंदी लगाई।
फिर भी न मोहे देखे हरजाई।
व्याकुल तन मन जियरा तरसे।
अब की बरस जो सावन बरसे।
असुंओं संग बह जाए कजरवा।
घन घन घन घन गरजे बदरवा
पिया तोसे लिपट मैं जाऊं
झर झर झर झर बरसे सावन
पिया तोहे मैं गले लगाऊं।
हाइकु -93
वट ,तुलसी , पीपल
सुशील शर्मा
मनोपूरक
वटसावित्री व्रत
पति दीर्घायु।
अक्षय वट
यक्षवासक तरु
यक्षवारूक़
सुभद्रवट
घनी विस्तृत छाया
श्यामन्यग्रोथ
वृद्धों का साया
बरगद की छाया
शीतल काया।
सर्व औषधि
मानव संजीवनी
आयुवर्धिनी।
घर में बेटी
तुलसी का बिरवा
स्वर्ग का द्वार।
कृष्ण जीवनी
वृन्दावन नंदनी
विश्वपावनी।
लक्ष्मी स्वरूपा
नारायण श्रीप्रिया
विश्वपूजिता।
अंत समय
मुख तुलसीदल
स्वर्गारोहित।
घर की छत
ऊग आया पीपल
बेटियों जैसा।
जलता दीया
पीपलवट नीचे
आशा विश्वास।
पीपल छाँव
बैठता बूढ़ा गांव
यही हैं ठाँव।
अश्वथ वट
नारायण रूपाय
अच्युत सम।
हाइकु -94
तिथियां
सुशील शर्मा
तिथि का मान
अहोरात्र संज्ञान
नक्षत्र ज्ञान।
नंदा तिथियां
प्रथमा ,एकादशी
षष्टी समृद्धि।
भद्रा तिथियां
द्वितीया व सप्तमी
द्वादशी श्रेष्ठा।
जया तिथियां
तृतीया त्रियोदशी
अष्टमी स्वर्णा।
रिक्ता तिथियां
चतुर्थी चतुर्दशी
नवमी नित्या।
पूर्णा पूर्णिमा
दशमी अमावस
पंचमी पूर्ति।
तिथि सकला
चंद्र की एक कला
प्रारम्भ शुक्ला।
दीप की माला
अमावस गहन
तम सघन।
अक्षय तिथि
शुक्ल पक्ष बैसाख
शुद्ध तृतीया।
गौरी गणेश
विराजते घर में
चतुर्थी सिद्धा।
शारदा पूजा
बसंत की पंचमी
शुभं करोति।
परम पुण्या
एकादशी मुहूर्त
शुभ कर्मण्या।
शरद चंद्र
पौर्णमासी निर्मल
शुभ्र ज्योत्सना।
शुभ पूर्णिमा
पूर्ण कला चन्द्रमा
पूर्ण कामना।
पितर तिथि
अमावस अपूर्णा
तमस गति।
हाइकु -95
सौर मंडल ,नवग्रह
सुशील शर्मा
हमारी पृथ्वी
एन्ड्रोमीडा गैलेक्सी
बिंदु स्वरुप।
सौरमंडल
खगोलकीय पिंड
ग्रह समूह।
सृष्टि निर्माण
ग्रह रचनाक्रम
जीवन प्राण
सूर्य है पिता
माता है वसुंधरा
प्राण नियंता।
शस्य श्यामला
कल कल निनाद
धरा अचला।
सूर्य देवम
आदित्यहृदयम
नमोनमामि।
वैदिक सोम
मन प्रधान देव
निषादिपति।
मंगल उग्र
अग्नितत्व अनुगामी
पृथ्वी तनय।
चंद्र तारक
व्यापार प्रतिनिधि
शुद्ध हैं बुध।
धर्म धारक
ज्ञान विद्या कारक
देवों के गुरु।
भृगु के पुत्र
दानव पुरोहित
सुख कारक।
सूर्य पुत्रम
दंड अधिष्ठात्राम
न्याय मित्रम।
राहू का काल
अशुभ अवरोही
केतु है छाया।
हाइकु -96
नक्षत्र
सुशील शर्मा
गोचर वश
परिवर्तित होता
नक्षत्र मान।
चन्द्रमा पथ
सत्ताईस नक्षत्र
भ्रमण रथ।
अश्वनी श्रेष्ठ
गण्डमूल नक्षत्र
शांति अरिष्ट।
मस्तिष्क क्षेत्र
भरणी परिक्षेत्र
उग्र प्रकृति।
कृतिका केंद्र
व्यक्तित्व पुरुषेन्द्र
शौर्य नरेंद्र।
रोहणी उष्ण
चन्द्रमा सा चमके
जन्मे थे कृष्ण।
मधु सा मृदु
मृगशिरा नक्षत्र
कला में दक्ष।
आर्द्रा प्रधान
सरल संस्कारित
बुद्धि प्रदान।
ज्ञान संयुक्त
पुनर्वसु नक्षत्र
विद्या से युक्त।
अति दुर्लभ
गुरु से पुष्य योग
सिद्धि सुलभ।
अश्लेषा दर्प
कुण्डलनी की शक्ति
प्रवृत्ति सर्प।
मघा मूषक
मेहनती मुखर
बुद्धि प्रखर।
पूर्वा फाल्गुनी
आनंद से विश्राम
सुख के धनी।
बुध आदित्य
उत्तरा फाल्गुनी
जल है तत्व।
हस्त नक्षत्र
हनुमत प्रकटे
सुख सर्वत्र।
चित्रा चिन्मय
साहस से सिंचित
धैर्य वंचित।
स्वाति चरित्र
दया संवेदनशील
मोती सदृश्य।
विशाखा मित्र
सामर्थ्य प्रदर्शन
लालच लिप्त।
ज्येष्ठा का चित्र
पारलौकिक विद्या
परम मित्र।
मूल का बंध
गुप्त विद्या सम्बन्ध
जड़ प्रबंध।
विस्तृत सोच
पूर्वाषाढ़ आरोग्य
ज्योतिष भोग्य।
उत्तराषाढ़ा
प्रफुल्लित स्वाभाव
धार्मिक भाव।
बलि का दान
वामन भगवान
श्रवण मान।
धर्म में निष्ठा
धनवान धनिष्ठा
सुख का सृष्टा।
गुप्त रहस्य
शतभिषा भेषिज
राहु की रार।
दो मुंहा चित्र
पूर्व भाद्रपद का
सही चरित्र।
शिव संकल्प
उतरा भाद्रपद
नहीं विकल्प।
रेवती पुत्र
तेजस्वी प्रतिष्ठित
मान का मित्र।
राम का जन्म
अभिजित नक्षत्र
शरणं मम।
हाइकु -96
मेघ /बादल
बिजली /दामिनी
बारिश /बरसात /सावन
सुशील शर्मा
झरते मेघ
ह्रदय का गुबार
पानी सा बहा।
करो शीतल
बरस कर मेघ
तपा भूतल।
झरो ओ मेघ
बरस लो सतत
बुझे तपन।
सृजन पंथ
आकाश से बरसे
मेघ अनंत।
मेघ सिन्दूर
सुहागिन है धरा
मांग में भरा।
तेरी चुनरी
छत पर बादल
चाँद का साया।
पिया आवन
बदरिया सावन
झरता मन।
चाँद आशिक
बिजलियाँ छेड़ता
बदरी हंसी।
बूंदों ने छुआ
यादों का सिरहाना
तुम्हारी यादें।
धानी चूनर
बारिश छम छम
बिंदी बिजुरी।
सावन मीत
रिमझिम के गीत
तुमसे प्रीत।
मेघ का दर्द
बिजली में चमका
बारिश आंसू।
नीलाभ नभ
बल खाती दामनी
मेघ स्वामिनी।
मेघ की प्रिया
तड़ित प्रवाहनी
तीव्र गामनी।
दीप्ति सी द्युति
दामनी सी दमके
दिग दिगंत।
बिजुरी गिरा
सुख चैन लूट के
क्यों तुम गए ?
मैं चपला हूँ
आसमां के सीने में
छुपी बला हूँ।
मन का बल्व
प्रीत तेरी बिजली
मुस्कान स्विच।
नाचता मोर
सावन में पपीहा
गाये मल्हार।
सूखा सावन
गुजर गया मेघ
प्यासी धरती।
उधार मांगी
अंजुरी भर बूंदें
कंजूस मेघ।
तुम्हारा प्रेम
शहर का बादल
बिन बूंदों का।
सूखे तालाब
तरसती नदियां
बारिश कहाँ ?
दीप्त बदन
विद्युत् से नयन
स्पंदित मन।
मेघ मल्हार
दामनी द्युतिकार
जल फुहार।
गिरती धार
झर झर बौछार
पिया पुकार।
भीगा सावन
घन मनभावन
आओ साजन।
सुशील शर्मा
हाइकु-97
योग
सुशील शर्मा
चित्तवृत्तियाँ
मन को उकसाती
करो निरोध।
यम नियम
आसान प्राणायाम
धरो धारण।
ध्यान समाधि
संयमन संयोग
दूर हो व्याधि।
हृदय शुद्ध
रक्त का संवहन
लगा आसान।
तन से मन
योग अंतःकरण
स्वस्थ जीवन।
प्रकृति प्रेम
मानव आचरण
योग के ध्येय।
मन अहम
इदम से परम
योग नमम।
योग संदेश
कर्म ज्ञान भक्ति का
हो समावेश।
एकाग्र मन
आचरण शुचिता
योग जीवन
एक चोका कविता-ओ रे पिया-1
(वर्ण विन्यास-5757......77)
सुशील शर्मा
तुमको देखा
कई जन्मों का लेखा
मन मतंग
प्यार भरी उमंग
हाथों में हाथ
प्रेम की बरसात
ओ मोरे पिया
डोले रे मेरा जिया
मन की बातें
छोटी सी लगें रातें
चांद है बैरी
झांके मेरी देहरी
ओ मोरे राजा
मिलने आज आजा
ओ दिलदार
चलो झील के पार
प्यारी बतियाँ
धड़कती छतियाँ
बोलते नैना
कितना प्यार है ना
आई हूं पास
आशा और विश्वास
पिया तुम्हारे साथ।
सुशील शर्मा
7.6.2017
चोका-2
प्रीत के गीत
मिलन का संगीत
गाता है मन
जीवन मधुवन
प्रेम अगन
प्रीतम तेरा साथ
जन्मों की आस
बनूँ तेरी दुल्हन
झूमे सावन
प्रिय मन भावन
प्रेम रतन धन
सुशील शर्मा
चोका-3
पल की खुशी
छोटी सी है जिंदगी
जियो बिंदास
हंसता हुआ पल
मिले मुश्किल
बीता हुआ कल
यादों में शेष
खुशियों का आकाश
ढूंढे तू कहाँ
अंदर है विश्वास
जीने की कला
मन मे भर खुशी
कर सबका भला।
चोका-4
सुशील शर्मा
धर्म की ध्वजा
सत्य प्रेम संकल्प
नित नवीन
मानवता प्रवीण
जीवन ज्योति
ईश्वर अनुभूति
धर्म का पथ
आचरण प्राकृत
नियमानुसार
करें सब आचार
जप और भक्ति
धर्म निहित शक्ति
धर्म के गुण
प्रेम शुद्धि सहिष्णु
समन्वय आचार।
चोका-5
सुशील शर्मा
मन का तन
दर्द के पैरहन
सांसे लिबास
दिन हैं बुझे बुझे
राते उदास
लब्ज़ है रुके रुके
बातें है खास।
मौन है मुखरित।
बोलती सांस
मिलन की उम्मीद
मन मे आस
यादों में सज रहा
प्रेम विन्यास
चलो आज नाचते
मधुवन में रास।
चोका -6
मीठी चुभन
पिया संग मिलन
प्रेम अगन
मन की धड़कन
बैरी नयन
तिरछी चितवन
ताकें सजन
मीठी सी छुअन
मांगे बदन
बरसता सावन
जीवन मधुवन
चोका -7
जीवन धन
सदगुण संस्कार
शुद्ध विचार
चिंतन से चरित्र
लगन श्रम
परोपकार मित्र
आध्यात्मिक चिंतन
मन मंथन
संस्कार का सिंचन
प्रेम साकार
सदगुण आधार
जीवन का सार
चोका-8
सुशील शर्मा
स्त्री के दायरे
देह के इर्दगिर्द
उलझे ताने।
रिश्ते बुने लिबास
झूठे विश्वास
गुमराह सपने
टूटती आस
बियावान जंगल
गिद्ध निगाहें
शिकारियों के जाल
फंसता जाता
आशंकित सा मन
सलीबों पर
लटकता जीवन
कैसी है उलझन।
चोका-9
सुशील शर्मा
बोझिल यादें
चिड़िया सी चहकी
तुम्हारी बातें
कलियों सी महकी
ये मुलाकातें
खनकते शब्दों सा
तुम्हारा प्यार
भावनाओं का रथ
सहमा स्पर्श
प्रेम का आकर्षण
बना समीकरण।
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