गुरु घासीदास प्रवर्तित सतनाम संस्कृति में योग एक अभिन्न अंग है। या यूं कहें - अनुयायी और साधक सहज कर्म योग में प्रवृत्त रहते हैं। सतनाम सुमर...
गुरु घासीदास प्रवर्तित सतनाम संस्कृति में योग एक अभिन्न अंग है। या यूं कहें - अनुयायी और साधक सहज कर्म योग में प्रवृत्त रहते हैं।
सतनाम सुमरन ध्यान और समाधि यहाँ विशिष्ट संस्कृति है।
गुरु घासीदास के पूर्वज मेदनीराय गोसाई संत प्रवृत्ति के थे। वे गिरौदपुरी परिछेत्र में ख्याति नाम नाडी वैद्य रहे। मानव के साथ- साथ अवाक पशुओं के चिकित्सा कर उनकी दुख और पीड़ा का शमन करते थे। वे अपना नित्य कर्म सतनाम सुमरन और सहज ध्यान योग से आरंभ करके कर्मयोग में निरत हो जाया करते थे।
मेदनीदास /महगूदास के यहाँ अनेक सिद्ध साधु महात्माओं निरन्तर आगमन होते रहते और मानव कल्याण के साथ साथ जीवन के मुक्ति के संदर्भ में साधु संगत समय समय पर होते रहते।
बाल्यावस्था में ही शिशु घासी को विरासत से मानव और पशुओं की पीडा दुख का शमन करने की कला कौशल मिल गये थे। और साधु महात्माओं के दर्शन व सत्संग भी। अनेक सहजयान- ब्रजयान के साथ साथ गोरख पंथी साधुओं का सान्निध्य मिलते रहे हैं।
जन्म के तत्क्षण बाद एक साधु का नवजात शिशु का दर्शन करने आना और बालक को गोद में लेकर आंगन में नाचना तथा उनके चरणों में शीश नवाना एक विलक्षण बालक के शुभागमन का अप्रतिम संदेश है-
आये जोगी द्वार में एक साधु आये द्वार में।
बालक रुप देख मोहाए आये साधु द्वार में
चरण म माथा टेकाए आये साधु द्वार में। ( संदर्भ सतनाम संकीर्तन पृष्ठ ७)
धीर गंभीर संत प्रवृत्ति उनके बाल चरित में अनायास झलकता है।इसका रोचक व मुग्धकारी वर्णन दृष्टव्य है-
दिन दिन बढ़े अंगना गली खोर खेलय
एक समय के बाते ये न
खेलय गुल्ली डंडा
परगे गांव म डंका
मरे चिर ई ल करदिन चंगा ...(सं वही पृ १०)
इस तरह देखे तो पशु पंछी के प्रति प्रेम और उनके धायल अवस्था में उपचार कर नव जीवन देना महत्वपूर्ण है।
इसी तरह गन्ने बाड़ी में सर्पदंश से पीड़ित साथी बुधारु का उपचार से विशिष्ट ख्याति फैलने लगते हैं-
बाल पन म महिमा देखाए
चिर ई अउ बुधरु ल जियाये
(सं सतनाम सरित प्रवाह )
किशोरावस्था के बाद नवयुवक घासी द्वारा एकान्त में ध्यान चिन्तन करना और कुछ असामान्य सा कार्य जैसे बलि हेतु ले बकरा को मुक्त करना और स्वतः हल चलाकर अंधविश्वास का दमन करना गरियार बैल को प्रेम से सहलाकर अधर नागर चलाना अप्रतिम कार्य रहा है। यह सब कार्य एक विशिष्ट सूक्ष्म शक्ति से संचालित हुआ। जिसे हम कह सकते हैं कि गुरु बाबा को यह शक्ति उन्हें यौगिक क्रियाओं से प्राप्त विशिष्ट शक्ति से रहा।
कुछ कह सकते है कि एकाएक उसने यह सब कैसे अर्जित किया? इनका सहज सा उत्तर कि वह एक अज्ञात साधु जो उन्हें बाल अवस्था में पाकर आंगन में नाचे और उनके चरण छुए ।तो यही उन्हें स्पर्श या रेकी योग से आध्यात्मिक शक्ति जो साधारण जनमानस को समझ न आए इसलिए रहस्य है । नहीं दिखने के कारण अलौकिक है ।चमत्कार सा लगने लगे।
गांव के ग्रामीण जन्य घासी को जदुहा होने और तंत्र साधना करने वाले हठयोगी होने की बातें कहने लगे। धुन के पक्का घासीदास कही वैराग्य आदि लेकर साधु जोगी न बन जाय इसलिए उनका विवाह एक सुन्दर कन्या सफुरा से कर दी गई।
पर सफुरा संयोग से विलक्षण और सहज योग की क्रिया अपने पिता महंत अंजोरदास से अर्जित की हुई. थी। यह संयोग भी विलक्षण थे-
सिरपुर नगर के मंहत नाम्ही अंजोरदास ग
ओकर सुध्धर क इना
नाव सफुरा ताय ग
उज्जर उज्जर रुप ओकर
ज इसे फूल कांस ग
ये दे शोभा बरन नही जाय ग ..सतनाम संकीर्तन पृ १३
विवाहोपरान्त सहज और कर्म योग चलते रहा पर इस बीच अनहोनी हुआ । उनके ७ वर्ष के ज्येष्ठ पुत्र अम्मरदास का खो जाना दुख का सबब बना ।कहते है उस विलक्षण बालक को किसी साधू ने योग सिद्धी की दीछा हेतु साथ वन ले गये।
वे मन शान्ति प्रयोजनार्थ तीर्थ यात्रियों के जत्थे में सम्मिलित होकर जगन्नाथ पुरी प्रयाण किए ।इस दरम्यान उन्हें साधु संगत मिला और अनेक पाखन्ड कुरीतियों से रुबरु हुए -
धरिन रद्दा जगन्नाथ के गजब सुनिस बडाई।
दीन दुखिया दुख देखिस अउ पंडा के लुटाई ।।
कपडा रंगाये मिले गोरख मुनी बबा ब इठिन उन के पास।
सुनिन परवचन मुनि के पुरा न इ होइस आस
रंगहा कपडा फेर मन न इ रंगे
देखे लहुटत चंद्रसेनी म बलि छैदत्ता पाडा।
मन बिचलित हालाकान जीव हिंसा गाडा गाडा
देख बबा के मन भिरंगे तीरथ में शांति न इ पाए ....
माध पुन्नी के पुनवास म सतनाम उच्चारे .....वही पृ १७
अब वह आत्म ज्ञान और अनेक तरह के रहस्य को समझने सहज योग के स्थान पर हठ योग साधते हैं और कठोर अग्नि तपस्या में लीन हो ६ माह तक कठोर साधना सोनाखान जंगल में करते हैं। और छाता पहाड़ में ध्यान समाधि करते थे।
इस दरम्यान पुत्र संताप और पति वियोग से सफुरा अवचेतन अवस्था में घर पर ही भाव समाधि ली। और उधर घासीदास कठोर हठ योग अग्नि समाधि में प्रवृत्त हुये।
कुण्डली जागरण और अनेक तरह के अपरा ज्ञान से अभिभूत घासी को अहसास हुआ कि अब घर जाया जाए।
जब पता चला कि सफूरा का देहान्त हो गया और उसे दफना दिया गया है। तो वह मानने तैयार नहीं हुये कि उनकी कैसी मृत्यु होगी। वह भावलीन समाधि में सिद्धहस्त हैं । उसका कब्र खोदो ....उसे जागरण करते हैं। बात बिजली की करेन्ट की भांति सर्वत्र फैल गई । हजारों की उपस्थिति में माता सफुरा को उनकी समाधि से मुक्त करवाकर चेतना सम्पन्न किए। नवजीवन दिये इस प्रसंग को देखे-
ब्रह्मांड में सांस चढ़ा के करे गुरु योगासन
जोति समागे लाश म करे नर नारि दरसन
सतनाम सुमर के बबा देवय अमृतपानी....
इस तरह उनकी ख्याति सर्वत्र फैल गई ।गुरु भी अपनी विशिष्ट ज्ञान कला कौशल को सहज योग से सदैव साधते रहे औरा धौरा तेन्दु वृक्ष के नीचे उनका ध्यान योग समाधि चलते और धूनी जलाते भीषण वन में साधनारत रहते।
एक दिन अपार भीड़ के समक्ष सतनाम पंथ का सिद्धान्त और उपदेश तथा लोकाचार व सहज योग को व्यवहृत करने सात्विक जीवन व सत्य को सदैव अपने अंतःकरण में धारण और व्यवहार करने की उपदेशना देते सतनाम धर्म ( पंथ ) का प्रवर्तन किए।
नित्य प्रात और संध्या सूर्योपासना करते सात्विक जीवन यापन करना और सतनाम धुनि में निमग्न कर्मयोग ही सतनाम का आधार है। हर अच्छाइयों का समन्वय सतनाम में सन्निहित है। पंचाक्षर सतनाम का नित्य सुमरन स्नान सूर्योपासना और ध्यान कर कर्म में लीन अभाव के मध्य जितना है उतने में संतुष्ट सुखमय जीवन ही सतनाम का मरहम और धरम है ।
गुरु घासीदास के साधना अवस्था में पद्मासन मुद्रा और उनके उपदेश देते अभय मुद्रा तथा सर्व मंगल की कामना करते अर्ध निमिलित नयन ध्यान मुद्रा की चित्र अत्यन्त लोकप्रिय है। यह सभी तथ्य उनके महायोगी होने का साक्ष्य है। जिसने संसार में मानव के दुख के निदान बताये । ७ सिद्धांत असंख्य उपदेश ४२ अमृतवाणी २७ मुक्तक और सुन्दर भावप्रवण पंथी गीत मंगलभजन व सामूहिक प्रदर्शन हेतु पंथी नृत्य जिसे देख सुन तन मन वचन पवित्र होते है। दुख का तिरोभाव हो जाते है और अन्तकरण में आनंद समाते हैं।
इनके लिए वे गुरु संत महंत भंडारी साटीदार जैसे धार्मिक पद सृजित किए।जो अध्यात्म की परिचालन करते सतनाम दर्शन को व्यवहारिक स्वरुप देते हैं। जमीन के नीचे ढाई तीन पांच और सप्त दिन की विशिष्ट भू समाधि आज भी सतनामियों में प्रचलित है ।इसके सैकड़ों साधक वर्तमान में है।इसी तरह जल समाधि अग्नि समाधि और सहज प्रचलित है।गुरु वंशज गुरु मुक्ति साहेब जल समाधि में प्रवीण है जो गुरुद्वारा खपरीधाम सरोवर में प्रति सोमवार संध्या जल समाधि लेते हैं हजारों श्रद्धालु एकत्र हो दर्शन लाभ लेते हैं।
गुरु घासीदास के सम्मान व उनके समकक्ष न होने के लिए अग्नि समाधि अब तक कोई नहीं लिए है। सहज समाधि हर किसी के लिए है और इसे लाखों लोग लेते आ रहे हैं।
जहां दुख है वहाँ सतनाम नहीं बल्कि दुखों के बीच ही सुख भाव में रहकर सद्कर्म करते दुख का निदान ही सतनाम का प्रयोजन है। इस तरह देखें तो
जन्म और सुखमय जीवन का उपाय सतनाम में है यह उपाय या युक्ति ही सहज योग है।
सत श्री सतनाम
डा- अनिल भतपहरी, रायपुर छग
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