आजकल राजनीति में अपशब्द और गाली-गलौज एक फैशन की तरह चलन में आ गया है। पात्र और प्रकरण कोई भी हो, आव देखा न ताव, बस जड़ दी कोई एक मोटी सी गाली...
आजकल राजनीति में अपशब्द और गाली-गलौज एक फैशन की तरह चलन में आ गया है। पात्र और प्रकरण कोई भी हो, आव देखा न ताव, बस जड़ दी कोई एक मोटी सी गाली। बाद में वही गाली चर्चा का एक विषय बन जाती है। क्या सचमुच उसे गाली कहा जा सकता है ? वह गाली है भी या नहीं। क्या वह पूरी तरह से नकारात्मक है ? क्या उसका कोई सकारात्मक पहलू नहीं है ? बुद्धिजीवी ऐसी चर्चाओं में खूब रस लेते हैं। बाल की खाल निकालते हैं।
‘गुंडा’ भी एक गाली है। इसे आजकल किसी के ऊपर भी बड़ी सहजता से चस्पां कर दिया जाता है। और तो और हमारे आर्मी चीफ, जनरल रावत, तक को “सड़क का गुंडा” बता दिया गया। बेनी प्रसाद वर्मा ने मोदी जी के प्रधान-मंत्री बनने से पहले उन्हें आर एस एस के “सबसे बड़े गुंडे” कहकर सम्मानित (?) किया था।
अजब नहीं तुक्का जो तीर हो जाए / दूध फट जाए कभी तो पनीर हो जाए
मवालियों को न देखा करो हिकारत से / न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए ..
पुलिस को तो “वर्दी वाला गुंडा” कहना आम बात है। छोटे-मोटे अपराधी गली-छाप गुंडे कहलाते हैं। कुछ टेक्स सरकार लगाती है, कुछ गुंडे वसूल करते हैं। इसे ‘गुंडा-टेक्स’ कहा जाता है। गुंडों से बचने के लिए हमारे यहाँ बाकायदा गुंडा-एक्ट हैं, एंटी-रोमियो गुंडा एक्ट भी है। गुंडा-स्क्वाड है। आम जनता जो गुंडों और गुंडा-एक्ट, दोनों से ही त्रस्त है अक्सर सवाल करती है, क्या गुंडा स्क्वैड वास्तव में गुंडों को बचाने के लिए गुंडों का ही स्क्वाड तो नहीं है ? और उसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाता। सभी को विदित है कि बहुत से सफ़ेद-पोश लोग अपने स्वार्थ साधने के लिए ‘किराए के गुंडे’ भी पाल लेते हैं।
उत्तर भारत में जो हिन्दुस्तानी ज़बान बोली जाती है, उसमें गुंडा शब्द का अर्थ बदमाश, दुर्वृत्त, खोंटे चाल- चलन वाला, उदंड और झगड़ालु व्यक्ति से लगाया जाता है। गुंडाशाही, गुंडागर्दी, गुंडई और गुंडाराज जैसे पद भी ‘गुंडा’ शब्द से ही बने हैं। किन्तु दक्षिण भारत की भाषाओं में प्राय: ‘गुंड’ और ‘गुंडा’ शब्दों में कोई अनैतिक और नकारात्मक भाव नहीं है। मराठी में ‘गाँव-गुंड’ ग्राम नायक या ग्राम-योद्धा है। वहां गुंडा के मूल में प्रधान या नेता का भाव है। तमिल में भी गुंडा शब्द एक शक्तिशाली और ताकतवर नायक की अर्थवत्ता प्रदान करता है। ‘गुंडराव’ ‘गुंडराज’ जैसे पद इसका उदाहरण हैं।
वस्तुत: ‘गुंड’ का अर्थ किसी उभार या गाँठ से है। किसी समतल जगह पर कोई भी उभार अपनी एक विशिष्ठता की छाप छोड़ता है। इसी तरह समाज में किसी व्यक्ति का उभार उसे ख़ास बना देता है। वह समाज का नायक हो जाता है। गुंड का अर्थ इस प्रकार नायक, योद्धा या शूरवीर से लगाया जाता है।
किन्तु शब्दों के अर्थ में भी अर्थावनति देखी जा सकती है। यह अर्थावनति गुंड के साथ भी हुई। गुंड जो किसी समूह का नायक था बाद में अपनी उदंड और अहंकारी वृत्ति के चलते एक खल-चरित्र बन गया। गुंडा शब्द में नायक की अर्थवत्ता तो कायम रही पर वह अशिष्ठ व्यवहार करने वाला नायक हो गया।
हिन्दी के अधिकतर कोशों में गुंड और गुंडा शब्दों की व्युत्पत्ति संस्कृत के “गुन्डक:” पद से बताई गई है। संस्कृत में गुन्डक का अर्थ धूलि या धूलमिला आटा है। तैलपात्र तथा मंद स्वर को भी गुन्डक कहा जाता है। संस्कृत के गुन्डक में इस प्रकार न तो नायकत्व की भावना है और न ही कोई दुर्वृत्ति है। अत: मेरी समझ के यह परे है कि हिन्दी के अधिकांश कोशों में गुंड या गुंडा की व्युत्पत्ति संस्कृत के गुन्डक से क्योंकर दिखाई गई है। मेरी सुविचारित धारणा है कि गुंडा शब्द सबसे पहले उत्तर-भारत में हिन्दुस्तानी ज़बान में पश्तो भाषा से आया है।
पश्तो पठानो की मुख्य भाषा है। इसे पख्तो भी कहा जाता है। यह हिन्दी-ईरानी भाषा परिवार की एक उपशाखा है। ईरान में इसे पूर्वी ईरानी भाषा माना जाता है। पश्चिमी अफगानिस्तान में भी यही भाषा बोली जाती है। इसीलिए इसे अफगानी भाषा भी कहते हैं। अफगानिस्तान में फारसी के साथ साथ पश्तो को भी राजभाषा का दर्जा दिया गया है। भारत की स्वतंत्रता के पहले एक समय था जब काबुल से व्यापार करने हेतु पठान लोग भारत आया करते थे। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कहानी काबुलीवाला में भारत से काबुल के लोगों का भारत का भावनात्मक सम्बन्ध बेहतर तरीके से उभारा गया है। उत्तर भारत में पश्तो भाषा के कुछ शब्द फारसी और अरबी के माध्यम से भी उर्दू जबान में अपना लिए गए। गुंडा शब्द जिसका अर्थ पश्तो में बदमाश व्यक्ति से है उर्दू में अपना लिया गया और उसने हिन्दुस्तानी ज़बान में अपना स्थान बना लिया। बदमाश के अर्थ में गुंड या गुंडा शब्द दक्षिण भारत में बहुत बाद में पहुंचा।
कहते हैं बस्तर के आदिवासियों ने जब अंग्रेजों के खिलाफ एकजुटता दिखाई तो उसका नेत्तृत्व एक वीर ‘गुंडा धुर’ नामक व्यक्ति ने किया था (१९१०)। बेशक यह गुंडा पश्तो ज़बानवाले बदमाश के अर्थ वाला गुंडा नहीं था। इस व्यक्ति का नाम ही गुंडा था, गुंडा - जो सामान्य लोगों से ऊपर उठकर उनका नेत्तृत्व करे। लेकिन क्योंकि गुंडा धुर एक जुझारू व्यक्ति था, भिड़ने झगड़ने से कतराता नहीं था, अंग्रेजों ने इसीलिए उसे बदमाश के अर्थ में गुंडा कह कर उसकी अवमानना की। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि भारत में बदमाश के अर्थ में “गुंडा” शब्द का प्रयोग अंग्रेजों की देन है। गुंडा शब्द इससे बहुत पहले पश्तो भाषा से (वाया फारसी और अरबी) हिन्दुस्तानी ज़बान में आ चुका था। हाँ, बदमाश के अर्थ में अगर आप गुंडा शब्द बीसवीं शताब्दी से पहले देखना चाहे तो हिन्दी में आपको यह नहीं मिल सकेगा।
हिन्दी साहित्य में जयशंकर प्रसाद की कहानी, “गुंडा” एक कालजयी कहानी है। यह बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ही लिखी गई थी। इसमे उन्होंने राजनैतिक और सामाजिक स्थितियां किस तरह अच्छे भले इंसान को गुंडा बना देतीं हैं, इसका चित्रण करते हुए यह दिखाया है कि एक गुंडा भी आखिर इंसान होता है और उसकी संवेदनशीलता पूरी तरह मर नहीं जाती। इस भाव को साहित्यकारों और कलाकारों ने अपनी रचनाओं में अक्सर अभिव्यक्त किया है।
डा. सुरेन्द्र वर्मा
(मो. ९६२१२२२७७८)
१९, एच आई जी / १,सर्कुलर रोड
इलाहाबाद – २११००१
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