कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी की घटना है। उत्तरी भारत में करवा चौथ के त्यौहार को धूमधाम से मनाया जा रहा था। करवा चौथ को स्त्रियां व्...
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी की घटना है। उत्तरी भारत में करवा चौथ के त्यौहार को धूमधाम से मनाया जा रहा था। करवा चौथ को स्त्रियां व्रत रखती हैं तथा अपने पति के स्वस्थ तथा दीर्घायु होने की कामना करती हैं। रात्रि में चँद्रमा की पूजा-अर्चना के बाद व्रत पूर्ण होता है। उस दिन भी स्त्रियां सोलह शृंगार कर पूजा का समान सजा कर अपने घरों की छत पर चढ़कर चन्द्रोदय का इन्तजार कर रही थीं। कृष्णपक्ष की चतुर्थी होने के कारण उस दिन चन्द्रमा को 9 बजकर 12 मिनट पर उदित होना था। स्त्रियां 8 बजे से ही अपने घरों की छतों पर चढ़कर पूजा अर्चना की तैयारी करने लग गई थीं। बुजुर्ग महिलाएँ व्रत करने वाली महिलाओं को चौथमाता की कहानी सुना रही थीं। जो महिलाएँ कहानी सुन चुकी थी वे बातें कर के या पारम्परिक गीत गा कर चाँद के निकलने का इन्तजार कर रही थी। हरकौर भी छत पर परिवार की अन्य स्त्रियों के साथ चन्द्रोदय का इन्तजार कर रही थी। आज की करवा चौथ उसके लिए अब तक मनाई गई अन्य करवा चौथ से अलग थी। हरकौर का पति हरभान सिंह भारतीय वायुसेना का होनहार अधिकारी था। हरभान का चयन भारतीय प्रथम समानव चन्द्र अभियान दल के सदस्य के रूप में हुआ था। भारत इससे पूर्व कई मानव रहित चन्द्रयान भेजकर चन्द्र सतह के विषय में बहुत कुछ जानकारी जुटा चुका था। इस समानव अभियान का लक्ष्य चन्द्रमा पर प्रथम मानव बस्ती बसाने की विस्तृत योजना को अन्तिम रूप देना था। इस अभियान दल का यान चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतर चुका था। चंद्रमा पर उतरने वाले प्रथम तीन भारतीयों में हरकौर का पति हरभान भी था। ?
हरकौर की सहेलियाँ हरकौर से मजाक करते हुए कह रही थी कि आज तो तेरे लिए विशेष चन्द्रोदय होगा। चन्द्रमा के साथ-साथ तेरे साहब भी चाँद पर टहलते हुए नजर आएंगे। हरकौर सहेलियों की बातें सुनते हुए गर्व अनुभव कर रही थी। वह मन ही मन भारतीय अभियान के सफल होने तथा हरभान सिंह के सकुशल लौट आने की कामना कर रही थी। पूर्व का आकाश एकदम साफ था। व्रत करने वाली सभी महिलाएँ तथा उनके परिवारजन इस बात के लिए निश्चिन्त थे कि समय पर चन्द्र दर्शन हो जाएगा। सभी महिलाएँ समय पर पूजा अर्चना कर अपना व्रत पूरा कर सकेंगी। ज्यों-ज्यों चन्द्रोदय का समय समीप आ रहा था सभी की नजरें पूर्व दिशा की ओर केन्द्रित होती जा रही थी। समय होने के बाद भी चन्द्रोदय नहीं हुआ। बहुत इन्तजार करने पर भी चन्द्रमा के दर्शन नहीं हुए तो लोगों की बेचैनी बढ़ने लगी। कुछ लोग पंचांग वालों की लापरवाही पर झल्ला रहे थे कि समय की गणना ठीक से नहीं करते। कुछ विनोदी स्वभाव के लोग यह कह कर चुटकी ले रहे थे कि नेताओं के लिए तो मशहूर है कि बहुत इंतजार कराने के बाद वे अपने प्रशंसकों के मध्य पहुंचते हैं मगर चन्दामामा को यह बीमारी कब से हो गई। हरकौर के लिए यह चन्द्रोदय बहुत महत्त्व रखता था। चन्द्रोदय में हो रही देरी के साथ उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। साथ ही वह अपने मन को समझा रही थी कि चाँद को क्या होना है वह तो दुनिया के किसी न किसी भाग में तो चमक ही रहा होगा। आज ही तो सुबह उसने अन्तरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के माध्यम से अपने पति से फोन पर बात की थी। कितना खुश था हरभान अपनी उपलब्धि से। बता रहा था कि चन्द्रमा से देखने पर पृथ्वी भी चन्द्रमा की तरह दिखाई दे रही है। फर्क सिर्फ इतना है कि चरखा कातती हुई बुढ़िया की जगह मुस्कुराती हुई हरकौर दिखाई दे रही है।
इन्तजार करते-करते 10 बज गए। लोगों के धैर्य की सीमा समाप्त होने लगी थी। वैसे भारतीयों के कई त्यौहार वर्षा में आते हैं जब महिलाओं को चन्द्रदर्शन के बाद व्रत खोलना होता है। आकाश में बादलों की उपस्थिति के कारण चन्द्र दर्शन आसानी से नहीं हो पाता है तथा व्रतधारी महिलाएँ भूखी प्यासी रह कर चन्द्र दर्शन का इन्तजार करती रहती हैं। उस दिन पूर्व दिशा तो क्या सम्पूर्ण आकाश में बादल का कहीं नामोनिशान नहीं था। ऐसे में चन्द्रमा का नहीं दिखाई देना सभी के लिए कौतूहल का विषय बन गया था। हरकौर सोच रही थी कि उसने तो अपने व्रत में कोई कमी नहीं की फिर चौथ माता उसकी परीक्षा क्यों ले रही है? इतने में कोई खबर लाया कि टीवी पर समाचार आ रहा है कि पृथ्वी का एक मात्रा प्राकृतिक उपग्रह चन्द्रमा पृथ्वी की कक्षा से अचानक हो गायब है। इस समाचार पर यकायक किसी को विश्वास नहीं हुआ। लोग छतों से उतर कर लोग टेलीविजन के सामने एकत्रित होने लगे थे। कुछ टेलीविजन चैनलों ने व्रतधारी महिलाओं को चन्द्रमा के दर्शन टेलीविजन के पर्दे पर कराने की तैयारी कर रखी थी। चन्द्रमा के समय पर नहीं दिखने के कारण समाचार का एक अत्यधिक रोमांचक मुद्दा मिल गया था। वे चैनल अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों के हवाले से चन्द्रमा के पृथ्वी की कक्षा में नहीं होने का समाचार प्रसारित कर रहे थे। यह सब क्यों और कैसे हुआ इस विषय में कोई भी कुछ नहीं बता पा रहा था। हरभान के परिवार वालों ने घबराकर भारतीय चन्द्र अभियान नियंत्रण कक्ष से सम्पर्क किया तो वहाँ केवल इतना ही बताया गया कि चन्द्रयान से उनका सम्पर्क उस समय नहीं हो पा रहा था। कुछ ही समय में पूरे विश्व का ध्यान उस अनहोनी घटना की ओर आकर्षित हो गया था। लोग चन्द्रमा के विषय में अधिक से अधिक जानने को उत्सुक हो चुके थे। नई जानकारी जुटाने के लिए बार बार चैनल बदल रहे थे। लोगों में घबराहट नहीं फैल जावे, इस हेतु धैर्य बनाए रखने की सलाह सरकारों व वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही थी। इसके बावजूद कई लोगों को दिल का दौरा पड़ चुका था। हरभान की पत्नी
भी बेहोश हो चुकी थी। दिन गुजर रहे थे मगर किसी को कुछ पता नहीं चल पा रहा था कि चंद्रमा का क्या हुआ? पांचवें दिन नासा ने घोषणा की कि उनका सम्पर्क भारतीय चन्द्रयान से हुआ है तथा अभियान के सभी सदस्य सुरक्षित हैं। इस समाचार से भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में खुशी की लहर दौड़ गई थी। सभी यह जानने को उत्सुक थे कि भारतीय अन्तरिक्ष यात्री कहाँ है? चन्द्रमा कहाँ है? कुछ घंटों बाद भारतीय वैज्ञानिकों का सम्पर्क भी चन्द्रयान से हो गया। चन्द्रयान के यात्रियों ने जो बताया वह और भी विस्मयकारी था। उन्होंने बताया कि वे चन्द्रमा की सतह पर ही है मगर चन्द्रयान में कैद है। उन्हें लग रहा था कि किसी ने उनके यान के नियंत्रण को बलात अपने कब्जे में कर लिया है। उसी के कारण उनका सम्पर्क सभी से कट गया था। अब वे पृथ्वीवासियों से सम्पर्क कर पा रहे हैं तो शायद उस अदृश्य शक्ति की इच्छा से ही सम्भव हो पा रहा हैं। जब उन्हें यह बताया गया कि चन्द्रमा पृथ्वी से दिखाई नहीं दे रहा है तो वे चिन्तित हो गए। वे कुछ और बता पाते तभी सम्पर्क कट गया। सम्भावना यह भी थी कि किसी ने सोद्देश्य सम्बन्ध काट दिया था। हरपाल के सुरक्षित होने के समाचार से हरकौर को कुछ राहत मिली। वह होश में आ गई थी मगर उसने चन्द्रमा दिखने या हरपाल के घर लौटने तक व्रत खोलने से मना कर दिया था। चिकित्सक ग्लूकोज व औषधियों के बल पर उसके स्वास्थ्य को सुधारने का प्रयास कर रहे थे। हरकौर के कारण करवा चौथ के व्रत की ओर लोगों की उत्सुकता बढ़ गई थी। टेलीविजन चैनल चौथमाता के सम्बन्ध में कई कहानियां विभिन्न अंचलों से निकाल कर कई कई बार प्रसारित कर चुके थे। चौथमाता के भजनों के ऑडियो-वीडियो कार्यक्रमों का सैलाब आ चुका था मगर चन्द्रयान की गुत्थी अभी भी ज्यों की त्यों उलझी हुई थी।
एक दिन फिर अचानक चन्द्रयान से भारतीय अन्तरिक्ष नियंत्रण केन्द्र का सम्पर्क हो गया। दल के सदस्यों से टुकड़ों टुकड़ों में जानकारी प्राप्त होने लगी। इस जानकारी से चांद की चोरी के रहस्य पर से पर्दा धीरे धीरे करके उठने लगा। जो जानकारी प्राप्त हो रही थी उसका सार यह था कि चन्द्रमा को पृथ्वी की कक्षा से हटा कर मंगल व बृहस्पति ग्रहों के बीच क्षुद्रग्रह पट्टिका में कुछ बाहर स्थापित कर दिया गया था। पृथ्वी भी बुद्ध व शुक्र की तरह प्राकृतिक उपग्रह विहीन ग्रहों की सूची सम्मिलित हो गई थी। चन्द्रमा को पृथ्वी की कक्षा से निकाल इतनी दूरी पर ले जाने वाले जीव कुम्भ राशि में स्थित शतमिषा नक्षत्र क्षेत्र के निकासी हैं। देखने में वे जीव कैसे हैं इसकी जानकारी नहीं मिल पाई क्योंकि कोई भी एलियन भारतीय दल के सामने नहीं आया था। वे चन्द्रयान के कम्प्यूटर की स्क्रीन पर ही सांकेतिक आदेश निर्देश दे रहे थे।
चन्द्र अभियान दल के सदस्यों ने बताया कि करवा चौथ की रात (भारतीय समयानुसार) वे अपने यान से निकल कर चन्द्रतल पर विचरण की तैयारी कर रहे थे कि मानीटर क्रमांक 4 पर उभरे दृश्य ने उनके होश उड़ा दिए। उन्होंने देखा कि एक साथ सैकड़ों अन्तरिक्ष यान चन्द्रमा की ओर बढ़ रहे हैं। सभी ने ये अनुमान लगाया कि किसी पृथ्वी बाह्य सभ्यता के प्राणियों ने उन पर हमला पर दिया है। अभियान दल के सभी सदस्य भय से कांपने लगे थे। एक दो ने हिम्मत कर पृथ्वी स्थित नियंत्रण कक्ष से संपर्क करने का प्रयास किया तो देखा कि संचार प्रणाली ठप्प है। इस पीड़ादायक दृश्य को चन्द्र अभियान दल के सदस्य अधिक देर तक नहीं देख पाए। यह भय का प्रभाव था या हमलावर प्राणियों द्वारा की कोई क्रिया कि देखते ही देखते अभियान दल के सभी सदस्य बेहोश हो गए। जब तन्द्रा टूटी तो संपूर्ण परिदृश्य बदल चुका था। दल के सभी सदस्य अपने आप को जिन्दा पाकर रोमांचित थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि जो दृश्य उनकी स्मृतियों में अंकित था वो सच था या सपना। मगर इतने लोग एक साथ एक ही सपना तो नहीं देख सकते थे। हमलावरों की तरह आए सैकड़ों यान किसके थे? उनका उद्देश्य क्या था? जैसे कई प्रश्न उसके मस्तिष्क को बार-बार बींध रहे थे। यदि वे पृथ्वी के दुश्मन थे तो उन्होंने चन्द्र अभियान दल के सदस्यों को हानि क्यों नहीं पहुँचाई? दल के सभी सदस्य और उनका यान सुरक्षित थे। वे अभी भी चन्द्रमा की सतह पर अपने यान में ही थे। मगर चन्द्रमा के समीप के आकाश की स्थिति पूर्णतः बदल गई थी। पृथ्वी उन्हें नजर नहीं आ रही थी। कुछ समय बाद ही चन्द्र अभियान दल को अज्ञात एलियनों से सांकेतिक भाषा में संदेश मिलने लगे, घबराओ नहीं, पृथ्वी के बहादुर प्रतिनिधियों। तुम हमें नहीं जानते मगर हम तुम्हारी सभी गतिविधियों से परिचित हैं। हमने तुम्हें अपनी उपस्थिति का आभास अभी तक नहीं होने होने दिया किन्तु अब आवश्यक हो गया है कि हस्तक्षेप किया जावे।
हमें मालूम है कि तुम्हारी चन्द्र योजना का उद्देश्य चन्द्रमा को अन्तरिक्ष स्टेशन बना कर बाह्य अन्तरिक्ष में मानव सभ्यता का प्रसार करना है। इसमें कोई बुराई नहीं है। हम भी शतभिषा नक्षत्र से पुष्य नक्षत्र तक की यात्रा करते रहते हैं। इस मार्ग पर अनेक उपग्रहों पर अपनी बस्तियां भी बसा रखी हैं। इस मार्ग पर यात्रा करते हुए हम पृथ्वी वासियों की टोह लेते रहते हैं। अन्तरिक्ष विचरण में पृथ्वी वासियों द्वारा की गई प्रगति से हम प्रभावित हैं। मगर मानव के व्यवहार से हम खिन्न हैं। आप लोगों ने पृथ्वी के वातावरण को इतना दूषित कर दिया है कि आप लोगों के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लगने लगा है। इसी कारण आप पृथ्वी से पलायन करने की योजना बना रहे हैं। हमारा मानना है कि मानव अभी अन्तरिक्ष में अन्यत्र बसने योग्य नहीं हुआ है। अतः हमने मानव के अन्तरिक्ष अभियान को बाधित किया है। हमने ही पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह चन्द्रमा को पृथ्वी की कक्षा से उठा कर बृहस्पति की कक्षा में स्थापित कर दिया है। अब आपके लिए अन्तरिक्ष में बसना आसान नहीं होगा। चन्द्रयान के यात्रियों घबराओ नहीं, यदि पृथ्वीवासी तुम्हें यहां से ले जाने में असमर्थ रहते हैं तो हम तुम्हें पृथ्वी पर छोड़ आएंगे। चांद की चोरी ने सम्पूर्ण विश्व में भय का वातावरण बना दिया था। कोई भी देश अपने अन्तरिक्ष यान को बृहस्पति की कक्षा तक तक भेजने को तैयार नहीं था। भारत भी इस स्थिति में नहीं था कि अचानक उपस्थित हुए इस संकट का समाधान निकाल सके। सरकार की ओर से कोई कुछ भी कहने को तैयार नहीं था। मगर हरकौर को हरभजन का अधिक इन्तजार नहीं करना पड़ा। एक दिन हरभजन अचानक घर लौट आया। यह कैसे सम्भव हुआ यह हरभजन भी नहीं बता सका। हरकौर पूर्ण विश्वास के साथ कहती है कि चौथ माता ने ही उसके सुहाग को सकुशल लौटाया है।
ई-मेल ः vishnuprasadchaturvedi20@gmail.com
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बढ़िया कहानी। हमे ये बात तो पता है कि चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का असर ज्वार भाटे पर पड़ता है। अगर इस कहानी में चाँद के गायब होने से उस पर जो असर पड़ता वो दर्शाया जाता तो कहानी और रोचक और यथार्थ के करीब महसूस होती। अच्छी कहानी। विष्णु जी का आभार।
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