बत्रा जी घर के बड़े ,अपने दोनों भाइयों और तीनों बच्चों का बड़ा ध्यान रखते थे। बीजी सरदार जी से भी ज़्यादा व्यवहारिक थीं। बत्रा जी पैरों के द...
बत्रा जी घर के बड़े ,अपने दोनों भाइयों और तीनों बच्चों का बड़ा ध्यान रखते थे। बीजी सरदार जी से भी ज़्यादा व्यवहारिक थीं।
बत्रा जी पैरों के दर्द से परेशान रहते थे पर जैसे तैसे एक बजे दुकान पहुंच जाते।
दुकान अब दोनों बेटों ने संभाल रखी थी कुछ ज़रूरत होती तो वे गल्ले से पैसे उठा लेते।
पिछले कुछ दिनों से छोटा गल्ले पर ही बैठ रहा था। आज बड़ा बेटा बैठा रहा। उन्होंने आम खरीदने के लिए पैसे मांगे तो बेटे ने नौकर को भेज कर आधा किलो आम मंगवा दिए।
घिसटते पैरों से धूप में वे ढाई बजे घर पहुंचे।
[ads-post]
कुछ तो है, आज कल ये दोनों घर खाना खाने नहीं जाते। गल्ले पे भी नहीं बैठने देते।
बत्रा जी सारा दिन परेशान रहे शाम को ब्लड प्रेशर बढ़ गया तब भी चुप रहे।
रात को लेटे लेटे सोचने लगे अगर इसी तरह वे अवांछित हो गए तो उनके पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं।
पत्नी को समझ गया कुछ तो हुआ है। कुरेदने लगी।
"सोते क्यों नहीं।"
"कितने बजे रहे हैं?"
"ढाई ,न सो रहे हो न सोने देते हो। घड़ी घड़ी बेचैन।"
"एक बात बताओ अगर मुझे लकवा या ब्रेन हेमरेज जैसा कुछ हो जाए तो तुम क्या करोगी?"
"हाथ पैर सलामत हैं ,करूंगी सेवा घबराते क्यों हो"
"पर इलाज के पैसे?"
"बहुत है चिंता मत करो"
बत्रा जी चौंक कर उठ बैठे। मेरे पास आम के पैसे भी नहीं ये मुझे कहती है बहुत हैं।
"कहाँ हैं कहाँ से आए?"
"मेरे गहने, जो मैंने बचा कर रखे और करीब दस लाख की एफ डी है।"
"पागल हो तुम ! दस लाख की एफ डी कब कराई ? हमें पता भी नहीं कम से हम दोनों को मालूम तो होना चाहिए।"
"गहने तो पता थे। मुझसे कहते थे बहुओं को दे दो। बहुओं को दे दो।"
"अरे शादियों में खर्च तो हुआ न ! तुमने अपने नहीं दिए। छाती से लगाए रहीं। ..... और..... और वो दस लाख कहाँ से आए ? कागज़ात कहाँ हैं?'
"निम्मो के पास। उसी की समझदारी से धीरे धीरे आठ साल में दस लाख हो गए ।जंवाई तक को नहीं मालूम। उसके ऑफिस में रखे है कागज़।"
"क्यों किया तुमने ऐसा? बेटों पर विश्वास नहीं था ? या ...........चलते व्यापार में से यूं पैसे निकलना ठीक नहीं।"
"तुम्हें जो सोचना हो सोचो । लड़के अच्छे हैं या बुरे वक्त बताएगा पर कभी दुकान डूब जाती तो ........ और उसी समय तुम या हम बीमार पड़ जाएं तो बेटे क्या करेंगे ।....... चलते व्यापार में से दोनों बच्चों ने घर बनाए, .........गाड़ियां लीं न....और अगर बेटी की सलाह पर मैंने कुछ बचत कर ली तो क्या गुनाह किया?"
"अरे मुझे बता तो देतीं!"
"पंजाबी की कहावत याद नहीं...... औरत को बाजार और मर्द को घर में भंडार नहीं दिखाना चाहिए।"
बत्रा जी हंस पड़े। निश्चिंत हो कर लेट गए।
लेटते ही खर्राटे भी मारने लगे पर पास में लेटी सरदारनी सोच रही थी आखिर दुकान पर हुआ क्या था?
अगली सुबह वो दनदनाती बड़ी बहू के पास पहुंची। दो चार सवालों में ही बहु बोल पड़ी कि अब बाऊजी तो दुकान पर बैठते नहीं इसलिए दुकान दोनों भाई अपने नाम करा रहे हैं।
सरदारनी को इसी का शक था। छोटी बहु को फोन मिला कर बोली। शादी में चढ़ाए गहने ले कर बड़ी के घर पहुंच।
सास के तेवर देख कर बड़ी बहु ने पति को बुला लिया। थोड़ा चीखना चिल्लाना हुआ ताने बाजी भी की बहुओं ने पर सास के सामने एक न चली। गहने देते हुए छोटी ने जैसे ही बोला- मम्मी जी गहने तो कानूनन अब हमारे हैं । स्त्री धन हैं।
सरदारनी बोली -
"सदके जाऊं बड़ी पढ़ी लिखी बहुएँ मिली हैं।"
आओ बैठो। तुम दोनों की शादी मैंने बिना दहेज लिए की न। फिर भी कोई कमी...... कोई ताने मारे ......नहीं न!.....
जहां तक स्त्री धन का सवाल है कभी सोचा, तुम्हारे चाचों ने दुकान में हिस्सा क्यों नहीं मांगा। बैठते तो वो भी थे।
वो इस लिए पुत्तर .....क्योंकि दुकान मेरे पिता जी ने दिलाई थी। फिर बेटे वो भी तो मेरा स्त्रीधन ही है न।"
बहु - बेटे अवाक देखते रह गए।
बेटे ने अलमारी से ला कर दुकान के कागज़ मां को सौंप दिए।
"देख पुत्तर रिश्ते निभाने हों तो रिश्ते निभाना। वरना वाहे गुरु जी दा वास्ता अस्सी गुरद्वारे दी सेवा विच बुढापा कट लेणा है।"
सरदारनी थी वो , गुस्से में भी ज़बान में कड़वाहट नहीं आने दी ।छोटी बहू के कंधे पर हाथ रख कर बोली
"थोड़ा मार्किट में पता करना बेटे जी दुकान का किराया कितना होगा।"
सरदारनी ने दुकान के कागज़ उठाए गहने वहीं रख छोड़े और शेरनी सी घर छोड़ कर चल पड़ी।
तीनों देखते रह गए। गली के नुक्कड़ पर पहुंच कर ऑटो रुकवाने की सोच ही रही थी कि बड़ा बेटा गाड़ी ले कर पहुंच गया।
"बैठो बीजी "
सरदारनी बैठ गई। बेटे ने गाड़ी गुरद्वारे की तरफ मोड़ दी। रास्ते भर सरदारनी तमतमायी बैठी रही। बेटा भी कुछ न बोला।
चेहरे पर घर की कलह के साए साफ नज़र आ रहे थे ।
दोनों अभी गुरद्वारे के दालान में ही थे कि सामने से आते एक मित्र ने बीजी के पैरों की तरफ झुकते हुए कहा
"पैरी पौना बीजी।"
"जीन्दा रह पुत्तर ।"
फिर उस नौजवान ने बंटी के कंधे पर हाथ रख कर पूछा
"ओए सब ठीक तो है न चेहरा क्यों उतरा हुआ है।
"कुछ नहीं बस यार अभी अभी एक एक्सीडेंट होते होते बच गया।"
"चल कोई नहीं मदर्स डे के दिन बीजी को गुरद्वारे ला रहा था न एक्सीडेंट कैसे होता? "
मत्था टेकते हुए दोनों एक्सीडेंट वाले उत्तर में अपना अपना अर्थ खोज रहे थे। ईश्वर सोच रहा था माँ साथ हो तो ज़िन्दगी की गाड़ी का एक्सीडेंट नहीं होने देती।
किसी कहानी के पात्र होते तो कहानी यहीं समाप्त हो जाती पर बंटी और बीजी की कहानी तो माँ बेटे की कहानी थी ,सृष्टि के अंत तक चलनी थी ।
बीजी को घर छोड़ कर बंटी दुकान पहुंचा तो अपने ही बर्ताव पर खुद दुखी था। मन नहीं लगा फिर सोचा रवायत न सही पर आज मदर्स डे मना ही लिया जाए।
बंटी ने फोन घुमाया दोनों चाचियों को परिवार सहित निमन्त्रण देकर गाड़ी की चाबी ले कर बीजी और बाऊजी को लेने निकल पड़ा।
©अंजुलिका चावला
COMMENTS