(कहानी) मुल्ला - पण्डित डॉ.आसिफ़ सईद जैसे ही ट्रेन लखनऊ स्टेशन पर रूकी मौलवी इक़राम अली झट से उस में चढ़ गए, और अपनी सीट तलाश कर उसपे जा ब...
(कहानी)
मुल्ला- पण्डित
डॉ.आसिफ़ सईद
जैसे ही ट्रेन लखनऊ स्टेशन पर रूकी मौलवी इक़राम अली झट से उस में चढ़ गए, और अपनी सीट तलाश कर उसपे जा बैठे। उनके बराबर एक पण्डित जी बैठे थे, मौलवी साहब को बातें करने का बड़ा शौक था वो ज़्यादा देर तक चुप नहीं रह सकते थे, और आख़िर पण्डित जी से पूछ बैठे। पण्डित जी क्या मैं आपका इस्में शरीफ़ जानने की गुस्ताख़ी कर सकता हूँ। पण्डित जी बोले अवश्य मौलवी साहब, मुझे पण्डित जगन्नाथ कहते हैं, और आपका परिचय? बन्दे को मौलवी इक़राम अली कहते हैं मैं अपने साहबज़ादे से मिलने दिल्ली जा रहा हूँ वह एक कम्पनी में साफ़्टवेयर इंजीनियर है। अति उत्तम! मेरा पुत्र भी तो दिल्ली में इंजीनियर है, फिर तो हमारी दिशा और स्थान एक ही है मौलवी साहब। जी हाँ पण्डित जी, अब सफ़र आसान हो जाएगा, और आपसे कुछ इल्म भी हासिल होगा। हाँ विचारों के आदान-प्रदान में बड़ी शक्ति होती है, केवल आपको ही नहीं मुझे भी तो आपसे ज्ञान प्राप्त होगा। अच्छा पण्डित जी जब मैं ट्रेन में दाख़िल हुआ था तो आप कोई भजन गुनगुना रहे थे। भजन नहीं वो आरती थी, ''ओम जय जगदीश हरे'' इसे हिन्दी भाषा के लेखक श्रद्धाराम फिल्लौरी जी ने रचा था, जिन्होंने हिन्दी के प्रथम उपन्यास भाग्यवती की रचना भी की है। मौलवी साहब बोले, यह कितनी पुरानी आरती होगी पण्डित जी। लगभग ढैढ़ सौ वर्ष पूर्व भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के समय रची गई थी। पण्डित जी एक आरती और है, 'आरती उतारूँ हनुमान लला की' यह किसने लिखी है इसके लेखक का नाम स्वामी रामानन्द था, यह महान सन्त कवि कबीरदास जी के गुरू थे मौलवी साहब बोले पण्डित जी आप तो सचमुच बहुत इल्म रखते हैं नहीं मौलवी साहब यह तो आपकी श्रेष्ठता है, अच्छा यह बताइए आतंकवाद के विषय में आपके क्या विचार हैं, राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या का कोई समाधान है या नहीं, अब तो सम्पूर्ण संसार के लिए यह एक घातक रोग बन गया है, सब के लिए यह एक चिन्ता का विषय है, आप इसे किस दृष्टिकोण से देखते हैं? सचमुच आपने बहुत अच्छा सवाल किया है पण्डित जी, अगर हमें इस बात की गहराई में जाना है तो इसकी जड़ें देखनी होगी, आतंकवाद दो तरह से होता है, एक तो वो जो ज़ुल्म और दहशत के ज़रिए पैदा हो और दूसरा वो जो अपने ज़ाति मफ़ात के लिए करवाया जाए, आज पहले वाले पर कुछ हद तक दूसरे वाले ने अपनी गिरफ़्त मज़बत बना ली है, लेकिन फिर भी आतंकवादी चाहे किसी भी मज़हब का हो, पर उसका अपना कोई ईमान नहीं होता, वह अवाम के लिए शैतान है सिर्फ़ शैतान।
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आज ज़रूरत है अमन और भाइचारे की, और यह आवाज़ सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे देश से ही उठ सकती है क्योंकि हिन्दुस्तान ने हमेशा इन्सनियत और भाईचारे का पैग़ाम दिया है, लेकिन मेरी नज़र में आतंकवाद से भी ज़्यादा खतरनाक वह बदग़ुमानी है जिसे देश भ्रष्टाचार कहता है, आज हमें छोटे से छोटे काम के लिए भी रिश्वत देनी पढ़ती है किसी भी दफ़्तर, कचहरी कोई भी सरकारी जगह हो, बिना रिश्वत के बात ही नहीं बनती। आज देश का हर एक शक़्स रिश्वत के आग़ोश में चला गया है, आतंकवादी तो थोड़े ही हैं लेकिन भ्रष्टाचारी तो कुछ को छोड़ पूरा देश ही है। आतंकवाद से पहले हमें इससे लड़ना होगा, हराम की कमाई ज़मीर को मार देती है जगन्नाथ भाई, इसीलिए तो इस्लाम में इसकी बहुत सख़्त मनाही है।
वास्तव में इक़राम भाई आपकी बातों ने मेरे अस्तित्व को झंझोड़ दिया है, आज कठिन परिस्थितियों का सामना करने की किसी में शक्ति नहीं है, प्रत्येक व्यक्ति यही इच्छा करता है कि अधिक से अधिक मात्रा में धन आए, परन्तु यह कोई विचार नहीं करता कि यह परिश्रम से प्राप्त हुआ है या नहीं, धन का लोभ मनुष्य को विनाश की ओर ले जा रहा है।
एक समस्या और है इक़राम भाई जिस पर अंकुश लगाना हमारे हाथ में है परन्तु हम इस ओर प्रयास भी नहीं करते। वह क्या है जगन्नाथ भाई? जनसंख्या की समस्या, राष्ट्रीय स्वतंत्रता के पश्चात् जनसंख्या में जिस प्रकार बढ़ोत्तरी हुई है वह आश्चर्य जनक है, जनसंख्या में वृद्धि के कारण ही आज बहुत से नवयुवक बेकार घूम रहे हैं उत्तम शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् भी आज उनके पास कोई काम नहीं है, इतनी अधिक महंगाई का कारण भी जनसंख्या ही है, जो वस्तु पाँच लोगों में विभाजित होनी चाहिए वह आज दस में बाँटनी पड़ती है। अगर हमारे चार के स्थान पर दो बच्चे हों तो हम उनका लालन-पालन भली-भाँति कर सकते हैं। मौलवी साहब कहते हैं, जगन्नाथ भाई, बहुत हद तक हमारी सरकार की भी ख़ामियाँ हैं वह किसी भी मसले पर असर डाल ही नहीं पाती, अगर वह सख्ती से काम करे तो बहुत सी परेशानियाँ ख़त्म न सही तो कम तो हो ही सकती हैं। वैसे जगन्नाथ भाई आबादी भले ही बढ़ गई हो, लेकिन आजकल के नौजवान अब सिर्फ़ दो या तीन बच्चों में ही यक़ीन रखते हैं।
दोनों एक दूसरे से इस तरह बातें करे जा रहे थे कि मानों बहुत पुराने और गहरे दोस्त हों, दोनों एक दूसरे को अपने घर परिवार के बारे में भी बताते हैं। पं0 जगन्नाथ कहते हैं ''इक़राम भाई मेरा पुत्र स्टेशन पर मुझे लेने आएगा, मैं उसे फ़ोन करके बता दूँ कि हम यहाँ आ गए हैं। मौलवी साहब कहते हैं ''हाँ जगन्नाथ भाई अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया, मैं भी अपने बेटे को ख़बर कर दूँ, वह भी मुझे लेने आएगा। दोनों अपने लड़कों को फ़ोन मिलाते हैं और खुर्जे पर पहुँच कर दोबारा फ़ोन करने की कहते हैं।
थोड़ी देर के बाद मौलवी साहब शर्माते हुए, पं0 जगन्नाथ से कहते हैं, रास्ते के लिए आपकी भाभी ने कुछ खाना रख दिया था पर सोच रहा हूँ कि आपके सामने निकालूँ या नहीं, कहीं मीट वग़ैरह न हो ? इक़राम भाई हुआ भी तो क्या होगा, जब हम लोग एक दूसरे की भाषा का सम्मान कर सकते हैं तो भोजन तो सर्वश्रेष्ठ वस्तु है। वैसे मेरी पत्नी ने भी कुछ भोजन रास्ते के लिए रखा था, ट्रेनों का कुछ अता-पता नहीं होता कि कितने समय में पहुँचाएंगी। और फिर दोनों लोग अपना-अपना खाना खाने में लग जाते हैं।
खाना खाने के बाद पं0 जी बोले, विश्व में सर्वाधिक कर्मचारी भारतीय रेलवे में हैं, परन्तु आज भी हमारी रेलवे व्यवस्था विश्व स्तर पर उच्चकोटि की नहीं है। अच्छा इक़राम भाई वैसे तो मैं आपके धर्म का थोड़ा बहुत ज्ञान रखता हूँ लेकिन फिर भी आप कुछ बताइए। इक़राम अली बोले, कुछ मख़सूस बातें बताता हूँ। अरबी में इस्लाम के मायने हैं, अमन, चेन के। मुसलमान एक ख़ुदा उसके फ़रिश्तों और क़़ुरआन पर यक़ीन रखते हैं, पैग़म्बरे इस्लाम को हज़रत जिबराईल अलै सलाम (फ़रिश्ता) से जो 'वही' (ज्ञान) मिली, उसे पैग़म्बरे इस्लाम ने क़ुरआन की शक्ल में दुनियाँ तक पहुँचाया, जिससे सारी दुनियाँ में इस्लाम का पैग़ाम फैला, वह अल्लाह के भेजे हुए इस्लाम के आख़िरी पैग़म्बर हैं।
पं0 जी बोले, हमारे हिन्दू धर्म का आधार आर्यों के चार वेद हैं, जिनमें ऋग्वेद सबसे प्राचीन धर्म ग्रन्थ है, इसकी रचना ईसा पूर्व तीसरी सहस्त्राब्दि में हुई थी, इसमें एक हज़ार से अधिक स्त्रोत हैं, जो अग्नि, वायु, वरूण, इन्द्र, मित्र, सोम, उषा की प्रार्थनाओं, धार्मिक अनुष्ठानों की विधियों, मंत्रों और गीतों तथा प्रकृति सम्बन्धी पद्यों का मिला-जुला संस्करण है। इसके अतिरिक्त 18 पुराण, 108 उपनिषद, वाल्मीकि कृत रामायण, व्यास रचित महाभारत और महाकवि तुलसीदास की रामचरितमानस, यह सभी हिन्दू धर्म को एक ठोस नींव प्रदान करते हंै।
तभी ट्रेन रूकती है, मौलवी साहब झाँककर बाहर देखते हैं और कहते हैं, अलीगढ़ आ गया, तभी चाय वाला चीख़ता हुआ आता है। चाय वाला, चाय, चाय, चाय, गर्म चाय। मौलवी साहब उसे दस रू0 देते हैx और दो चाय ले लेते हैं, दोनों लोग चाय पीने लगते हैं, मौलवी साहब कहते हैं, मेरा कई बार अलीगढ़ आना हुआ है, बड़ा प्यारा गंगा-यमुनी तहज़ीब का शहर है, लेकिन मैं जिस काम के लिए कई बार यहाँ आया, उसमें कामयाबी कभी नहीं मिली। पं0 जी बोले, किस प्रकार का कार्य था। रिश्तों के चक्कर में लड़की देखने आया था जगन्नाथ भाई, लेकिन यहाँ आकर जो दो-तीन देखीं उन सभी की उम्र चालीस के आसपास थी, फिर भी लोग उन्हें लड़की ही कह रहें थे, और यही हाल आदमीयों का भी है चालीस से ऊपर वाले भी ख़ुद को लड़का ही समझते हैं, और यहाँ के लोग तो क्या बताऊँ बड़े ही मग़रूर हैं, कोई भी शक़्स अपने आप को छोटा मानने को तैयार नहीं है, चपरासी है तो उसमें भी अकड़ है, और प्रोफ़ेसर है तो फिर कहने ही क्या, मुझे लगता है शायद मुस्लिम इदारे की वजह से इन लोगों की हालत ऐसी हुई है। पं0 जी बोले यह शिक्षा का केन्द्र है और शिक्षा प्राप्त करने के कारण लोगों की आयु अधिक हो जाती है इस कारण उचित समय पर विवाह नहीं हो पाता और फिर शिक्षित लोग संगठीत रूप से एक स्थान पर रहंे तो आचरण में परिवर्तन आ ही जाता है, और वो भी बहुमत में। फिर भी साम्प्रदायिक दृष्टि से बड़ा ही प्यारा नगर है। दोनों में न समाप्त होने वाली वार्ता चल रही थी, इस कारण यात्रा का पता ही नहीं चल रहा था, दोनों ने एक दूसरे का पता, फ़ोन नं0 भी अपने पास लिख लिया था, थोड़ी देर बाद खुर्जा आ जाता है, दोनों लोग अपने-अपने बेटों को फ़ोन करके थोड़ी देर बाद घर से निकलने के लिए कह देते हैं।
इक़राम अली कहते हैं, जगन्नाथ भाई मैं आपको अपने बेटे अनवर से मिलवाऊँगा वह आज की पीढ़ी का नौजवान है, आप से मिलकर बहुत ख़ुश होगा। पं0 जगन्नाथ भी अपने पुत्र कृष्णानन्द की बड़ी प्रशंसा करते हैं। दोनों को बातों में सफ़र का पता ही नहीं चलता और कुछ देर बाद नई दिल्ली स्टेशन आ जाता है, दोनों अपना-अपना सामान लेकर गाड़ी से बाहर आ जाते हैं, वहीं प्लेटफ़ार्म पर खड़े दोनों के बेटे उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे, पिता को देखते ही दोनों बेटे उनका सामान अपने हाथ में ले लेते हैं। दोनों लोग अपने-अपने बेटों से एक दूसरे का परिचय करवाते हैं, सब लोग बहुत ख़ुश और प्रसन्न थे कि तभी एक व्यक्ति उनके पास आता है और सलाम करते हुए कहता है कि मैं रास्ते भर आप लोगों की बातें सुनता हुआ आपके साथ आया हँू, आप लोगों का प्यार और भाईचारा देखकर मेरे अन्दर का इन्सान जाग उठा है और मुझे जिस काम को अन्जाम देने भेजा गया है मैं उसे किए बिना ही जा रहा हूँ, लेकिन मुझे अफ़सोस है कि पुरानी दिल्ली स्टेशन पर मेरे साथी के ज़मीर को जगाने वाला आप जैसा कोई नहीं मिला होगा। पं0 जगन्नाथ उस व्यक्ति से पूछते हैं कि अपना परिचय तो दो पुत्र कि तुम कौन हो, और किस कार्य को अन्जाम देने की बात कर रहे हो? वह व्यक्ति केवल इतना उत्तर देते हुए भीड़ में निकल जाता है, कि मैं मौलवी साहब का वही शैतान हूं जिसका कि रास्ते में ज़िक्र हुआ था।
पं0 जगन्नाथ और इक़राम अली एक दूसरे की शक़्ल देखते रह जाते हैं। और दोनों बेटों के साथ घर पहुँच कर देखते हैं कि टी0वी पर बड़े ख़ास समाचार आ रहे हैं, ''कि पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आतंकवादीयों द्वारा ज़बरदस्त आत्मघाती विस्फ़ोट जिसमें मरने वालों की संख्या चालीस पहुँची और सत्तर से अधिक लोग गम्भीर रूप से घायल हुए। टी0वी0 पर दिखाए जा रहे दृश्यों को देखकर दोनों की आँखें नम हो जाती हैं। यह इन्सान की वहशत का घिनौना कार्य था, चारों तरफ़ लाशें और ख़ून ही ख़ून था, पर इस ख़ून को देखकर यह कहना मुश्किल था कि कौन सा ख़ून हिन्दू का है और कौन सा मुसलमान का, बस इतना कह सकते हैं कि यह मानवता का ख़ून है जो चीख़-चीख़ कर अपना गुनाह और ख़ता पूछ रहा है।
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डॉ0 आसिफ़ सईद
G4 रिज़वी अपार्टमेन्ट- II]
मेडिकल रोड, अलीगढ़, 202002
मो.न. 9359499216
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