विचार और रस [ तीन ] / रमेशराज

SHARE:

  रसाचार्यों द्वारा गिनाए विभिन्न प्रकार के रसों का रसात्मकबोध अंततः इस तथ्य पर आधारित है कि इन रसों की आलंबन सामग्री किस प्रकार की है और ...

clip_image001

 

रसाचार्यों द्वारा गिनाए विभिन्न प्रकार के रसों का रसात्मकबोध अंततः इस तथ्य पर आधारित है कि इन रसों की आलंबन सामग्री किस प्रकार की है और वह आश्रयों को किस तरीके से उद्दीप्त करने का प्रयास कर रही है। आलंबन विभावों का आश्रयों को उद्दीप्त करने का तरीका ही, उनके मन में विभिन्न प्रकार के रसों का बोध कराता है।

आलंबन एवं उद्दीपनविभाव का जो परंपरागत ताना-बाना तैयार किया गया है, वह अधूरा इसलिए है कि नायक और नायिका के गुण-धर्म तथा इनसे अलग प्रकृति के जो गुण-धर्म रस-सामग्री के रूप में रसाचार्यों द्वारा बताए गए हैं, वह गुण-धर्म ही रसोद्बोधन के मूल आधार हैं, न कि नायक और नायिका। बात अटपटी अवश्य लग सकती है लेकिन यह एक ऐसी वास्तविकता है जिसको समझे बिना रसात्मकबोध के वैज्ञानिक स्वरूप को किसी भी हालत में नहीं समझा जा सकता है। इसलिए विभिन्न रसों पर चर्चा करने से पूर्व यह समझ लिया जाये कि जिस आश्रय में जिस प्रकार का रस बनता है, उसमें आलंबन और उद्दीपनविभाव के वे कौन-से गुण-धर्म रहे हैं, जो आश्रय को उस रसदशा तक ले जाने में सहायक हुए हैं?

[ads-post]

रस में विचारणीय क्या है-आलंबन या आलंबन के गुणधर्म ? उद्दीपन विभाव या उसके गुणधर्म ? इसकी व्याख्या के लिए हम कुछ रसों की, रससामग्री पर मनोवैज्ञानिक रूप से विचार करते हैं-

[ क ] शृंगार रस-

शृंगार रस की रस-सामग्री के रूप में [ परंपरागत चिंतन के अनुसार ] नायक और नायिका आलंबन होते हैं। लेकिन आलंबन विभाव के अंतर्गत इनकी उत्तम प्रकृति, गुणरूप संपन्न्ता, चिरसाहचर्य एवं श्रेष्ठता के जो गुण-धर्म जोड़े गए हैं तथा उद्दीपनविभाव के अंतर्गत नायक-नायिका की वेशभूषा, शारीरिक चेष्टाएँ आदि आलंबनगत-उद्दीपनविभाव के रूप में तथा ऋतुसौंदर्य, नदी-तट, चंद्रज्योत्स्ना, वसंत, एकांत, उपवन, कविता, मधुर संगीत, पक्षियों का कलरव आदि प्रकृतिगत उद्दीपनविभाव के रूप में दर्शाए गए हैं | दरअसल ये सब आलंबन या उद्दीपन के गुण आलंबनों को आश्रय के रूप में जब रति की अवस्था में ले जाते हैं तो इस रति के निर्माण के पीछे जो विचार कार्य करता है, उसके अंतर्गत नायिका के प्रति नायक में रति इस कारण जागृत होती है, क्योंकि नायक यह निर्णय ले चुका होता है कि नायिका प्रकृति श्रेष्ठ, गुणसंपन्न, उत्तम है तथा वह अपने हाव-भावों, वेशभूषा से यह संकेत दे रही है कि चांदनी रात है, नदी का किनारा है, पंछियों का कलरव, एकांत, ऋतु-सौंदर्य मन को मादक बनाए जा रहा है, ऐसे में आओ स्पर्श, आलिंगन और चुंबन आदि का सुख भोगें। नायिका की मोहक भंगिमाओं की संकेतक्रिया से नायक-नायिका की मनःस्थितियों को भाँपकर, ऐसे में यह निर्णय लेता है कि सारी स्थिति-परिस्थिति उसके पक्ष में है और हर तरह से प्रेम को सुरक्षा प्रदान करने वाली हैं, अतः वह नायिका का सामीप्य-सुख भोगने के लिए बेचैन हो उठता है। नायिका के साथ नायक का यह सामीप्य ही उसमें रति को जागृत करता है, जिसकी निष्पत्ति शृंगार के रूप में होती है। आश्रय के रूप में नायिका के प्रति भी उपरोक्त वैचारिक प्रक्रिया उसे रति से सिक्त करती है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि रस-सामग्री के रूप में रसाचार्यों ने चिरसाहचर्य को भी रखा है। यह चिरसाहचर्य ही वह वैचारिक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत नायक-नायिका एक-दूसरे के प्रति प्रेमी-प्रेमिका बनने की कसौटी पर पूरी तरह खरे उतरते हैं। प्रेमी-प्रेमिका बनने की यह कसौटी रागात्मक संबंधों की प्रगाढ़ता के बिना किसी प्रकार संभव नहीं। रागात्मक संबंधों की यह प्रगाढ़ता निस्संदेह उस विचार के कारण जन्म लेती है जिसमें एक-दूसरा, एक-दसरे के आत्म को संतुष्टि और सुरक्षा प्रदान करने का निश्छल और भरसक प्रयास करता है।

इस प्रकार रति संबंधी उक्त व्याख्या से जो तथ्य उभरकर सामने आते हैं, उन्हें संक्षिप्त रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-

1. नायक और नायिका में रति चिरसाहचर्य से रति इस कारण पैदा होती है, क्योंकि नायक और नायिका लगातार यह विचार करते हैं कि-‘‘ एक-दूसरे का सामीप्य सुख भोगा जाए।’’ ‘सामीप्य सुख’ का यह विचार ही उन्हें एक-दूसरे के प्रति लगातार आकर्षित करता है।

2. नायक-नायिका का चिरसाहचर्य एक-दूसरे के मन में यह धारणाएँ निर्धारित कर देता है कि-‘‘जिसके साथ वह प्रेम-संबंध स्थापित करने जा रहे हैं या कर रहे हैं, वह श्रेष्ठ प्रकृति, उत्तम गुणधर्म वाला है, जो प्रेम में विश्वासघात नहीं कर सकता। उसका प्रेम सच्चा, पवित्र और निश्छल है।’’

3. नायक-नायिका का प्रेम इस विचार के द्वारा भी तय होता है कि वे जिसे प्रेम कर रहे हैं, उसके साथ चुंबन-विहँसन-आलिंगन [ चाहे चोरी-छुपे ही सही ] असामाजिक नहीं है।’’ अर्थात् उन दोनों के बीच ऐसा कोई रिश्ता नहीं, जो बहिन-भाई, पिता-पुत्री, माँ-बेटे के पावन संबंधों को अपराधबोध से ग्रस्त कर सके।

4. काव्य के नायक-नायिका का परकीया-प्रेम, अधिकांशतः उन स्थलों पर उभरा है जहाँ चांदनी रात, नदी का किनारा, पक्क्षियों का कलरव, अर्थात् कुल मिलाकर सामाजिक एकांत हो। इसका कारण भी नायक-नायिका के वे निर्णय हैं, जिनके तहत वे निर्विघ्न, निर्द्वन्द्व होकर रतिक्रिया कर सकें।

कुल मिलाकर भारतीय काव्य में शृंगाररस की निष्पत्ति नायक-नायिका के उस स्वरूप में निर्धारित है, जिसमें नायक-नायिका के शारीरिक भोग की तीव्र उत्कंठा की शांति, समाज से छुपकर ऐसे स्थलों पर प्राप्त होती है, जहाँ उन्हें रतिक्रिया के समय किसी भी प्रकार की असुविधा , असुरक्षा अनुभव न हो।

इस प्रकार शृंगाररस का सारा-का-सारा प्रसंग इस बात पर निर्भर है कि नायक और नायिका चोरी-छुपे इंद्रिय भोग का सुख लूटें। इंद्रिय भोग के सुख लूटने के समय नायिका के पिता, भाई या माँ यकायक यदि उस स्थल पर उपस्थित हो जाएँ तो सारा-का-सारा शृंगाररस भय, जुगुप्सा, लज्जा में तब्दील में हो जाता है। ऐसा नायक-नायिका के मन में आए इस विचार के कारण होता है कि वे माता-पिता के सामने सामाजिक-अपराध करते पकड़े गए हैं। अब उनकी खैर नहीं।’’

उक्त उदाहरणों से यह तो स्पष्ट है ही कि मन में जिस प्रकार का विचार उपस्थित होता है, उसके अनुसार ही उनमें रस की स्थिति देखी जा सकती है। ठीक इसी तरह वियोग शृंगार के अंतर्गत नायक और नायिका में मिलन की उत्कंठा तो तीव्र रहती है, लेकिन ‘मेरा प्रेमी मुझसे बिछुड़ गया है और अब न जाने कब मिलेगा?’ का विचार उनके नयनों में अविरल अश्रुधार, चेहरे पर मलिनता, अंग-प्रत्यंग में जड़ता और मन में दुख का समावेश बनाए रखता है।

अतः काव्य का यह शृंगारिक संयोग और वियोगपक्ष मात्र आलंबन या उद्दीपनविभाव के ही द्वारा तय नहीं किया जा सकता, इसके लिए आवश्यक तत्त्व जहाँ नायक-नायिका के गुणधर्म हैं, वही दूसरी ओर उद्दीपन की गुणधर्मिता भी रतिक्रिया को रसाभास या विपरीत रस में तब्दील कर सकती है। जो नायक-नायिका को तरह-तरह से प्रताडि़त करता हो, यातनाएँ देता हो, उन दोनों के बीच रति का चरमोत्कर्ष शायद ही देखने को मिले। ठीक इसी प्रकार चाँदनी रात, पक्षियों के कलरव और एकांत के बीच यदि कोई प्राकृतिक प्रकोप पैदा हो जाए तो नायक-नायिका की रति भयानक रस में बदल जाएगी।

[ ख ] अन्य रस-

शृंगार रस के विवेचन के उपरांत यदि हम रौद्ररस का विवेचन करें तो नायक में स्थायीभाव क्रोध तभी जागृत होता है जबकि वह विचार करता है कि ‘‘उसके आलंबनविभाव के रूप में जो व्यक्ति उसके सम्मुख है, वह उसे किसी भी प्रकार की हानि पहुंचाने के लिए उद्यत है। यदि इसका विनाश नहीं किया गया तो यह मुझे [ नायक को ] खत्म कर सकता है।’’ यह स्थिति बहुध युद्ध के लिये प्रेरित करती है।

ठीक इसी प्रकार जब वीर नायक यह अनुभव करता है कि उसके समक्ष एक दीन, दुःखी व्यक्ति या व्यक्ति समूह सहायता के लिए चीख रहा है तो नायक यह विचार कर कि ‘दीनों पर दया करना तो वीरों का धर्म है’, सहायता के लिए उत्साहित हो उठता है। नायक के मन में आया यह उत्साह उसकी वीरता का ही परिचायक है, जिसमें वह दीन और दुःखी व्यक्तियों को बचाने, उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए अपने प्राण तक संकट में डाल देता है।

नायक जब यह विचार करता है कि ‘‘उसके समक्ष कोई भयंकर वस्तु या व्यक्ति, शत्रु अथवा हिसंक प्राणी, भूत, प्रेतादि उपस्थित है, जिससे वह अपनी सुरक्षा नहीं कर सकता, किसी भी क्षण उसका विनाश हो सकता है’’ तो वह भय से ग्रस्त हो जाता है, जिसका चरमोत्कर्ष भयानक रस के रूप में उसे चिंता, दैत्य, त्रास, मूच्र्छा, आवेग, संभ्रम, शंका आदि से सिक्त कर सकता है।

अद्भुत रस के अंतर्गत आलंबन एवं उद्दीपनविभाव के गुण-धर्म अद्भुत, अलौकिक, असाधरण, अवश्य होते हों, लेकिन उन्हें देखकर नायक के मन में किसी भी प्रकार की असुरक्षा या विनाश के विचार जन्म नहीं लेते, अतः नायक या आश्रय सिर्फ आश्चर्य या विस्मय के भाव या उद्बोधित होते हैं, जिसके कारण आलंबनविभाव के प्रति वह अद्भुत रस से सिक्त हो जाते हैं।

आचार्य भरतमुनि द्वारा बताए गए अन्य रसों का भी यदि हम वैचारिक विवेचन करें तो सारे-के-सारे रसोद्बोधन के पीछे वस्तुओं या व्यक्तियों के गुणधर्म ही अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।

आलंबन या उद्दीपनविभाव के गुण-धर्म को आश्रय जिस प्रकार के अर्थ देते जाते हैं, आश्रयों में उसी प्रकार के रस की निष्पत्ति होती चली जाती है।

रस निष्पत्ति की इन विभिन्न स्थितियों को समझाने के लिए हम रामायण के पात्र राम को आलंबनविभाव के रूप में ले तो उनका बाल्यकाल आश्रय पिता, दशरथ व माता कौशल्या में जहाँ वात्सल्य रस की निष्पत्ति करता है, वहीं राम जब वनवास को जाते हैं तो माँ कौशल्या, पिता दशरथ शोक से ग्रस्त हो जाते हैं। राम जब सुग्रीव-हनुमान आदि के समक्ष मधुर , श्रेष्ठ, मानवीय और प्रभुसमान व्यवहार करते हैं तो सुग्रीव-हनुमान आदि में भक्ति जागृत होती है, जबकि रावण के विनाश के लिए जब इन्हीं भक्तों को प्ररित करते हैं तो भक्तों में वीररस की निष्पत्ति हो जाती है। इस प्रकार यह तथ्य सरलता से समझाया जा सकता है कि आलंबनविभाव किसी भी प्रकार के रस के निर्माण में योगदान नहीं देता, योगदान देते हैं तो आलंबनविभाव के गुण-धर्म, जिनसे अपने निर्णयों के अनुसार कोई भी आश्रय विभिन्न प्रकार के रसों से सिक्त होता है।

------------------

clip_image002

+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001

मो.-9634551630

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: विचार और रस [ तीन ] / रमेशराज
विचार और रस [ तीन ] / रमेशराज
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiO-2H1RSk38Ace60j5zxX83k_i_Mu3iAeYgls4CTeT2RGhdl0CTPokG_Rz6fn_bqra5cNEblkaEa__V-CCJCv7QglUUsovTK1GBMOA5yKOnSyFBxMaEGhcqRPgi7DrWatDf8w5/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiO-2H1RSk38Ace60j5zxX83k_i_Mu3iAeYgls4CTeT2RGhdl0CTPokG_Rz6fn_bqra5cNEblkaEa__V-CCJCv7QglUUsovTK1GBMOA5yKOnSyFBxMaEGhcqRPgi7DrWatDf8w5/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/04/blog-post_99.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/04/blog-post_99.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content