समकालीन हिंदी कविता में बारहमासा / शेष नाथ प्रसाद

SHARE:

  कविता को समर्पित ‘आलोचना’ के सहस्राब्दी अंक 57 को पढ़ते समय मेरा ध्यान बरबस कवयित्री अनामिका की कविता ‘बारामासा’ पर टिक गया, इस ‘बारामासा...

 

कविता को समर्पित ‘आलोचना’ के सहस्राब्दी अंक 57 को पढ़ते समय मेरा ध्यान बरबस कवयित्री अनामिका की कविता ‘बारामासा’ पर टिक गया, इस ‘बारामासा’ शीर्षक ने मेरी उत्सुकता बढ़ा दी. क्योंकि कहाँ तो नवकवितावादी अपने पूर्व की कविताओं का कलेवर हर स्तर पर बदल डालने का संकल्प लेकर आगे बढ़े थे, और बदले भी, और कहाँ अनामिका ने विषयवस्तु ही पुराना ले लिया.  संवेदना में कितना पुरानापन और नयापन है यह इन कविताओं में डूबने पर ही पता चलेगा. यह परखना रोचक होगा. यह भी देखना रोचक होगा कि नई कविता का जो रूप हमारे सामने है उसमें कविता का जो बहुत कुछ खो गया है, इस बारामासा में उन संवेदना के तंतुओं को घना करने में कवयित्री को कितनी रुचि है और उसे कितना घना पर पाई हैं.

आलोचना का यह सहस्राब्द्र्यांक 57 कुछ विशिष्ट है. इस अंक की प्रस्तुति ‘कविता की उत्तरजीविता’ शीर्षक से सम्पादकीय लिख कर की गई है. सम्पादकीय लिखा है सम्पादक अपूर्वानंद ने. अभी पिछली शताब्दी में कविता का कुछ लोगों ने अंत कर दिया था, तो अपूर्वानंद जी का चिंतित होना स्वाभाविक ही है. वह चिंता से भर गए हैं. इस चिंता में उन्हें जर्मन दार्शनिक थियोडोर अडार्नो याद आने लगे हैं. अडार्नो ने एक विचार दिया है निगेटिव डायलेटिक्स का- “आश्वित्ज के बाद कविता लिखना बर्बरता है”. आश्वित्ज कंसेन्ट्रेशन कैंप में जर्मनी विरोधियों को नजियों ने बंदी बनाकर और बहुत प्रताड़ना देकर मार डाला. अडार्नो इससे इतने विचलित हो गए कि उनके ह्रदय का करुणा-जल सूख गया. उन्होंने कविजनों को संदेश दे दिया कि ऐसी स्थिति में कविता लिखना बर्बरता होगी. हालाँकि मैंने महसूस किया है कि अत्याचारियों के खिलाफ कविता एक बहुत बड़ा हथियार होती है. हमारे मार्क्सवादी कवि भी पूँजीवादी सोच के विरुद्ध लड़ने के लिए कविता को एक हथियार के रूप में ही इस्तेमाल करने की बात करते हैं. यदि आश्वित्ज के बाद कविता लिखना बर्बरता है तो उसका हथियार के रूप मे प्रयोग करना तो और बर्बरता ढाना ही होगा.

जब अडार्नों ने यह विचार रखा तो पता नहीं उनके ध्यान में महाभारत का युद्ध था या नहीं. पर पत्रिका के सम्पाकीय लिखनेवाले के ध्यान में अवश्य होना चाहिए था. वह तो उनकी नाड़ियों में प्रवाहित है. इस युद्ध में भी बर्बरता बरती गई थी. इसमें मानवी उर्जा का इतना ह्रास हुआ कि उस क्षति से उबरने में भारत को सहस्राब्दियाँ लग गईं. जापान के हिरोशिमा और नागाशाकी पर जो बम गिराए गए वह भी बर्बरता ही थी. उसकी पीड़ा जापान की आज की पीढ़ी तक भुगत रही है. किंतु न तो भारत के न जापान के ही बौद्धिक इतना निराश हो बैठे कि वे ह्रदय के स्फोट को एक बर्बर कार्य मान लिए हों. इन संस्कृतियों के प्राणों में विधेयकता है. महाभारत तो समय में हमसे बहुत दूर है पर जर्मनी के कन्संट्रेशन कैंप में ढाए जा रहे जुल्म के लगभग समांतर ही जापान पर बम गिराए गए थे. इस जापान ने अपने प्राणों की उर्जा का उपयोग कर इस बर्बरता को झेल लिया. पता नहीं अडार्नों के चिंतन में जर्मनी के प्राणों की उर्जा का योग था या नहीं.

खैर, अडार्नों का आयातित चिंतन न तो कविता का अंत कर सका, न उसकी उत्तरजीविता को ही कभी बाधित कर सका और न ही कविता लिखने को कभी बर्बरता में तब्दील कर पाया. कविता लिखी जाती रही और उसे हमेशा हृदय का स्फुरण ही समझा गया. हाँ ऐसा शोर मचाने वालों ने उसमें पोर पोर विचारों को पिरोया जरूर (भावों से दूरी बनाई), पर ये विचार कविता में कितना सौंदर्य भर पाए यह शोध का विषय है. कविता पर तमाम तरह के मुखौटे थोपे गए, कुछ नया लाने के प्रयास में. किंतु सभी प्रयास अल्पजीवी रहे. उसे सीमा में बाँधने की कोशिश की. किंतु हिंदी कविता वादों के घेरे में नहीं आ सकी. कविजनों में अभिव्यक्ति की बेचैनी भरी छटपटाहट थी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. पर उनमें अनुभव और अनुभूति की भरी पूरी समृद्धि भी थी, इसपर विवाद खड़ा हो सकता है.  इनकी प्रामाणिकता की बातें खूब की गईं. पर अब ये कविताएँ कुछ थोड़े से बौद्धिकों तक सिमट कर रह गई हैं. एक समय में सहृदय होते थे जो कविता-पुस्तकों को खोज-खोज कर पढ़ते थे. आज उनका स्थान जन ने ले लिया है और मेरे अनुभव में ये बौद्धिक ही वे जन हैं. इनका आश्रयस्थल जीवन का व्यापक क्षेत्र नहीं वरन् कॉफी-हाउस और पुस्तक विमोचन-मंच हैं. ये अपनी रचनाओं को पढ़े जाने के लिए जन की खोज कर रहे हैं. अभी दैनिक हिंदुस्तान में सुधीश पचौरी का इसपर एक खूबसूरत व्यंग्य आया है.

जो हो, मेरी उत्सुकता इस कवितांक की ‘बारामासा’ कविता में है. यह कवयित्री द्वारा वर्ष के बारह महीनों के नाम से अलग-अलग लिखी गई कविताओं का एक गुच्छ है. कवयित्री ने हर महीने की बदलती ऋतु के अनुसार अपने को उससे जोड़कर जो मन में अनुभूत किया है उसे ही पिरोया है. हिंदी कविता में छायावाद के बाद आज की तिथि तक यह एक अभिनव और साहसिक प्रयोग है. अभिनव इसलिए कि बारहमासा गीतों में जो संवेदनाएँ परंपरा से रूढ़ हो गईं हैं उनका इन कविताओं में दर्शन नहीं होता. ये विशुद्ध बुद्धिवादी कविताएँ हैं. और साहसिक इसलिए कि परंपरागत संवेदनाभूति के स्थान पर इसमें नया चिंतनानुभव और परिप्रेक्ष्य देने की चेष्टा की गई है.

‘बारहमासा’ नाम से एकांत श्रीवास्तव की भी एक कविता देखने को मिली है पर वह बहुत संक्षिप्त है, और चलताऊ है.   

कवयित्री ने अपने कविता-गुच्छ के लिए ‘बारहमासा’ की जगह ‘बारामासा’ शीर्षक चुना है. यह शब्द हिंदी की हरियाणवी बोली का है. इसका अर्थ होता है विरह गान. हिंदी की अन्य बोलियों में भी इस तरह के गीत बहुप्रचलित हैं. वहाँ इन्हें ‘बारहमासा’ कहा जाता हैं. ऐसी कविताओं के लिए ‘बारहमासा’ पद ही अधिक प्रचलित है.

कवयित्री ने अपने गीत-गुच्छ के लिए यद्यपि ‘बारामासा’ शीर्षक चुना है पर इनके गीत विरहानुभूति के गीत नहीं हैं. ये विरह के गान नहीं हैं. वर्ष के हर माह के मौसम-परिवर्तन को वर्ष भर में कवयित्री ने जैसा अनुभूत किया है, उसे इन कविताओं में बुनने का नहीं वरन् चित्रित करने का प्रयास किया है. इसमें प्रकृति उनकी जीवनानुभूतियों के साथ एकरूप नहीं हैं. इस कवितागुच्छ पर कुछ लिखने के पूर्व परंपरागत ‘बारहमासा’ की प्रकृति और स्वरूप को परखना युक्तिसंगत होगा.

‘बारहमासा’ मूल रूप में लोक बोलियों में गाया जानेवाला गीत है. हिंदी की लगभग हर बोली में ‘बारहमासा’ के गीत गाए जाते हैं. गामीण अपनी सीमाओं में जीते हैं. उनके जीने के अपने ढंग होते हैं. जब वे दिन भर के अपने कामों को निपटा कर थके-हारे होते हैं तो शाम को खा-पीकर चौपाल में या अन्यत्र ढोल झाल के साथ इकट्ठे होते हैं और गा-बजाकर अपना मनोरंजन करते हैं--कभी भजन, कभी कबीर का निर्गुन, तो कभी रामचरित मानस के दोहे गाकर. कभी वे निपुण गवैयों को बुलाकर  ‘आल्हा’ और ‘कुँअर विजयमल’ जैसे वीर गीत सुनते हैं तो कभी ‘सोरठी बृजभार’ और ‘विहुला बाला-

लखंदर’ जैसे विरह के गान भी सुनते हैं. इन विरह-गीतों ‘में बारहमासा’ के गीत भी होते हैं.

यह लोक गीत की एक आकर्षक विधा है. इसमें लोक कवि द्वारा किसी विरहिणी स्त्री की पीड़ा गूँथी हुई होती है जो वह अपने प्रियतम के विछुड़ने से भोग रही होती है. विरहिणी हर पल पति की बाट जोहती है. पति अथवा प्रियतम दूर है. महीने पर महीने बीत रहे हैं पर वह नहीं आता. हर महीने प्रकृति में हो रहे परिवर्तनों के साथ पत्नी अथवा प्रिया की मानसिक दशा में भी परिवर्तन होते हैं. कभी उनका मन आकाश में आषाढ़ के भटकते बादलों में प्रियतम को खोजने के लिए भटक जाता है, तो कभी सावन के झकोरों में झूमते उसके अलक उसके बदन से टकराकर उसे पति-स्पर्श की स्मृति से भर पीड़ा देते हैं. भादो की धारासार बारिश में वह मदन-अंगड़ाइयों से बेहाल हो जाती है. वैसे ही शरद, हेमंत, शीत. बसंत और ग्रीष्म ऋतुओं में पति वियोग से होने वाली मंद-तीव्र पीड़ाओं की अनुभूति उसे सताती हैं. वर्ष भर की ऋतुओं के उतार चढ़ाव के साथ उनकी विरहानुभूति में होने वाले परिवर्तन ही बारहमासा में गुंफित रहते हैं. लोक-कवि अपने बीच विरह में घुलती विरहिणियों की विरहानुभूति को अत्यंत जीवंत रूप से पिरोए रहते हैं और बारहमासा गायक उसमें इतना डूब कर गाते हैं कि सुनने वाले की आँखों में आँसू आए बिना नहीं रहता. लोग उसे रस ले-लेकर सुनते हैं.

बारहमासा कविता वस्तुतः लोक कविता का वह विशिष्ट रूप है जिसमें प्रकृति एवं लोक जीवन की तरलतम अनुभूति का करुणापूर्ण और मोहक दर्शन होता है.

साहित्य मे यह ग्यारहवीं शती से मिलता है. इसका प्राचीनतम साक्ष्य अब्दुल रहमान कृत संदेशरासक का विरह-प्रसंग है (हिंदी साहित्य का इतिहास और उसकी समस्याएँ- पृ 315, योगेंद्र प्रताप सिंहा) अपभ्रंश साहित्य की नेमिनाथ चउपई में भी बारहमासा का प्रसंग है. रासो काव्यों में, बीसलदेव रासो और ढोला मारूरा दूहा में भी बारहमासा का उपयोग हुआ है. ‘बीसलदेव’ में रानी राजमति पति बीसलदेव को एक ब्राह्मण द्वारा संदेश भेजती है जिसमें उनसे एक वर्ष के विछुड़न के, प्रत्येक माह में झेले गए, कष्टों का वर्णन है. दूसरे में मारवणी, प्रियतम ढोला को एक ढाढ़ी द्वारा संदेश भेजती है जिसमें वर्ष भर में भोगे गए उसके कष्टों का वर्णन है. विद्यापति ने भी बारहमासा पर हाथ आजमाया है. किंतु यह विधा साहित्य में गति न पा सकी. बारहमासा विधा को गति मिली अवधी भाषा के प्रेमाख्यानक काव्यों में भक्तिकाल में. पद्मावत के ‘नागमति वियोग’ वर्णन में मलिक मुहम्मद जायसी ने बारहमासा विधा का बड़ा ही सटीक और साहित्यिक प्रयोग किया है. रीतिकाल में बारहमासा कविता ने कवि-शिक्षा का रूप ले लिया. इसके पश्चात उन्नीसवीं सदी के अंत तक बारहमासा के गीत लोक काव्यों में ही मिलते हैं.

‘विरह-गीतों के लिए बारहमासा’ एक रूढ़ हो गई विधा है. ‘बीसलदेव रासो’ में यह गीत सावन माह से शुरू होकर आषाढ़ माह तक और ‘ढोला मारूरा दूहा’ में कार्तिक माह से शुरू होकर आश्विन माह तक जाता है. लेकिन पद्मावत में यह आषाढ़ से शुरू होकर जेठ माह तक जाता है.

अधुनातन हिंदी काव्य में कवयित्री ने ‘बारहमासा’ को एक नए रूप में प्रस्तुत किया है. उन्होंने इस शीर्षक से अपने कविता-गुच्छ के लिए आधुनिक मनस्थिति और तदनुरूप आधुनिक शब्दावली का चयन किया है. ऋतुओं को आधुनिक छवि देने की कोशिश की है. किंतु यह आधुनिकता उनके द्वारा निर्मित कतिपय बिम्बों और मुक्त छंद के पंक्ति-विन्यासों में ही अधिक देखने को मिलती है. हाँ भावभूमि में उन्होंने अनुभूति के स्थान पर अनुभव को प्रतिष्ठित किया है. पहली कविता की कुछ पंक्तियाँ बारामासा की भूमिका-सी लगती हैं. किंतु इसे लिखते समय बारहमासे की परंपरागत पीठिका की स्मृति उनमें बनी हुई-सी लगती है. बारामासा चुँकि विरह गान के रूप में प्रचलित है, कदाचित ईसीलिए उन्होंने अपनी कविता का आरंभ दुख से किया है, ऋतु भी आषाढ़ की चुनी है.

                मेरा दुख

                जल्दी में

                ढीली बाँधी गई गठरी का दुख है. 

                                          (आषाढ़ में धरती-1)

‘पद्मावत’ के ‘नागमति वियोग-वर्णन’ में नागमति की बारहमासी अनुभूति उसके वियोग से प्रारंभ होती है जो उसे हीरामन तोते के बहकावे में आकर पति रतन सिंह के सिंहल चले जाने से होता है. वह दुखी हो जाती है. उसके दुख का पारावार नहीं है. पर वह करे क्या. प्रतीक्षा ही कर सकती है. वह प्रतीक्षारत हो जाती है. इतने में आषाढ़ का महीना आ जाता है. आकाश में घुमड़ते विकीर्ण मेघ उसकी नाड़ियों में जाने कैसी वेदना भर देते हैं. वह दुखानुभूति से भर ताती है. यह दुख विरह का है, और जीवंत है. ‘बारामासा’ की कवयित्री किसी के वियोग में नहीं हैं. उन्हें किसी के वियोग का दुख नहीं है.  वह किसी दुखानुभूति में नहीं हैं. लगता है जब वह कविता लिखने बैठीं तो उन्होंने दुख का आह्वान कर लिया. वह दुख ढीली बाँधी गई गठरी का ही दुख सही (गठरी तो उन्होंने ही बाँधी होगी). यह गठरी उन्हें दुख दे रही है, संभवतः अपने बेडौलपन के कारण. अब इसमें जीवंतता कहाँ से होगी. इसे दुख नहीं कष्ट कहना चाहिए. इसमें मानवीय संवेदना (गहराई में अनुभूत हुई जो अनुभूति बन गई हो) का कहीं अता पता नहीं है. क्योंकि यदि गठरी कसकर बाँधी गई होती तो? संभव है तब कष्ट कम होता या होता ही नहीं (गठरी बाँधने का कौशल कष्ट कम कर देता है). इस गठरी में है भी क्या, उनके द्वारा बटोरी गई कुछ निधियाँ- भाषाओं की लुप्तप्राय ध्वनियाँ, बारह ऋतुओं का विलास (हमें तो छै ही ऋतुओं का पता है, पश्चिम में चार ही होती हैं), अंतःसत्वा चुप्पियाँ (मानों युप्पियाँ कहीं मँडरा रहीं थीं), बाली से छूट गिरे अन्नकणों की खुशबुएँ और आषाढ़ माह की पहली बूँदों का आस्वाद. कवयित्री ने गठरी में बाँधी गई निधियों को कुछ शब्द सोंदर्य से मढ़ कर पेश किया है-जैसे,

                आस्वाद

                मिट्टी की टटा रही जिह्वा पर

                आषाढ़ की पहली

                सिहरती हुई बूँद का.

किंतु ये निधियाँ उनकी अनुभूति में स्फुरित निधियाँ नहीं हैं, सामान्य अनुभव की चीजें हैं. व्याकरण में अनुभव और अनुभूति में अंतर किया गया है. अनुभव का अर्थ है बाहर का अनुभव अर्थात बुद्धि का

अनुभव और अनुभूति का अर्थ है भीतर का अनुभव अर्थात हृदय द्वारा अनुभूत. किसी की पीठ पर लद कर अनुभव ही लिया जा सकता है जैसे वायुयान पर सवार होकर मंत्री लोग लेते हैं.

अनुभव में भी कुछ गहराई होती है. अनुभव की सीमा लाँघ लेने पर ही अनुभूति में प्रवेश मिलता है. कवयित्री महसूस करती हैं कि वह काल की पीठ पर लदी हैं. याने वह समय से बाहर हैं. पर हमारा अनुभव है कि हम समय में हैं. समय के बाहर होने पर तो हम आईंस्टीन की सापेक्षता के शिकार हो जाएँगे, पीठ पर लदने का सवाल ही कहाँ रहेगा. समय तो हमारे जीवन का एक आयाम है. जीवन आयाम में बहता है, उसकी पीठ पर लद कर नहीं चलता. “समय की पीठ पर’’ वाक्यांश में काव्य की ध्वनि–सी निकलती प्रतीत होती तो है पर इसमें काव्य है नहीं. इसे पढ़कर हमारे हृदय की कोई पंखुड़ी नहीं खुलती. इस मायने में संस्कृत भाषा के कवियों के अनुभव और अनुभूतियाँ ध्यान देने योग्य हैं.

कवयित्री के बारामासे में विरहानुभूति न होकर ऋतुओं का विलास है. उनकी बड़े जतन से सँजोई गई गठरी की निधियाँ एक-एक कर गिरती जा रही हैं, उन्हीं में ऋतुओं का विलास भी गिरता है और वह उनके समूचे मानस-क्षेत्र पर छा जाता है. उनके बारामासा में ऋतुओं का यह विलास ही चित्रित है. इस तरह बारहमासा का परंपरागत कथ्य उनके बारामासे में ऋतु विलास से स्थानापन्न हो गया है. मेरी दृष्टि से इस कविता-गुच्छ का समेकित शीर्षक ऋतु विलास होना चाहिए, बारामासा नहीं.  

                                                     ( अधूरा )

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: समकालीन हिंदी कविता में बारहमासा / शेष नाथ प्रसाद
समकालीन हिंदी कविता में बारहमासा / शेष नाथ प्रसाद
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEin5JDyQGBv4sIPuXGN1vNoaUEhoerDD_aIUWv_ZwCi-bt-UIpjTWgJJZ3HKinWslUL5_VkGr15KJpjjRjuuA7KRrKnFgvPMcUucOds7mqiHN8aGDVzgRpv1gqgz3Ub-PIbwihD/?imgmax=200
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEin5JDyQGBv4sIPuXGN1vNoaUEhoerDD_aIUWv_ZwCi-bt-UIpjTWgJJZ3HKinWslUL5_VkGr15KJpjjRjuuA7KRrKnFgvPMcUucOds7mqiHN8aGDVzgRpv1gqgz3Ub-PIbwihD/s72-c/?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/04/blog-post_946.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/04/blog-post_946.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content