श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग मदान्ध रावण को मन्दोदरी की सीख / मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता

SHARE:

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग मदान्ध रावण को मन्दोदरी की सीख मानसश्री डॉ .नरेन्द्रकुमार मेहता ''मानस शिरोमणि एवं विद...

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

मदान्ध रावण को मन्दोदरी की सीख

clip_image002

मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता

''मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति''

मन्दोदरी राक्षसराज मय की पुत्री थी। उसकी माता का नाम हेमा था। हेमा अप्सरा थी। अप्सरा हेमा के लिये दानवपुरी मे जीवनभर रहना सम्भव नहीं था। अतः वह मन्दोदरी को बाल्यावस्था में छोड़कर देवलोक चली गई। मय ने अपनी पुत्री का नाम मन्दोदरी रख दिया। मन्दोदरी अत्यन्त ही सुन्दरी, सुशीला, सरल तथा गुणवती थी । मय दानवराज की ममता-स्नेह का केन्द्र मंदोदरी थी । वे मंदोदरी को सदैव अपनी आँखों के सामने रखते थे ।

[ads-post]

धीरे-धीरे मन्दोदरी ने यौवन में प्रवेश किया।एक दिन दानवराज अपनी प्यारी पुत्री के साथ गहन वन में भ्रमण करने निकले उसी समय उनकी भेंट लंकापति रावण से हो गई। रावण उस समय अविवाहित था। रावण की दृष्टि मन्दोदरी पर पड़ी तथा वह उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गया। उसने दानवराज मय को अपने पितामह ब्रह्मा तथा उच्चवंश का होने का बताकर मन्दोदरी से विवाह करने की इच्छा प्रगट की। दानवराज ने भी रावण की इच्छानुसार मन्दोदरी के साथ विवाह कर दिया। श्रीरामचरितमानस में भी मन्दोदरी के संबंध में कहा गया है -

तिन्हि देई बर ब्रह्म सिधाए । हरषित ते अपने गृह आए।।

मय तनुजा मंदोदरी नामा। परम सुन्दरी नारि ललामा।।

सोई मयँ दीन्ही रावनहि आनी । होइहि जातुधानपति जानी।।

हरषित भयउ नारि भलि पाई। पुनि दोउ बंधु बिआहेसि जाई ।।

गिरि त्रिकूट एक सिंधु मझारी । विधि निर्मित दुर्गम अति भारी ।।

सोई मय दानवँ बहुरि सँवारा । कनक रचित मनिभवन अपारा ।।

भोगावति जसि अहिकुल बासा अमरावति जसि सक्रनिवासा।।

तिन्ह तें अधिक रम्य अति बंका । जग विख्यात नाम तेहि लंका ।।

दोहा - खाई सिंधु गंभीर अति चरिहूँ दिसि फिरि आव ।।

कनक कोट मनि खचित दृढ़ वरनि न जाइ बनाव ।।

श्रीरामचरितमानस-177 : 1 से 4

ब्रह्माजी तीनों भाई रावण , कुम्भकरण और विभीषण को वर देकर चले गये तथा तीनों भाई प्रसन्नता पूर्वक अपने घर लौट आये। मय दानव मन्दोदरी नाम की कन्या अत्यन्त ही सुन्दरी और स्त्रियों में शिरोमणि थी। मय ने उसे लाकर रावण को दिया। उसने यह जान लिया कि रावण राक्षसों का राजा होगा । अच्छी स्त्री पाकर रावण प्रसन्न हुआ फिर उसके बाद उसने अपने दोनों भाईयों का विवाह कर दिया । समुद्र के मध्य में त्रिकूट नामक पर्वत पर ब्रह्मा के द्वारा निर्मित एक विशाल किला था । मय दानव एक निपुण कारीगर था उसने अत्यन्त ही परिश्रम से मणियों से जड़े हुए स्वर्ण के अनेक महल भी निर्मित कर दिये । नागकुल में रहने की नगरी जो कि पाताल में है उसे भोगावतीपुरी कहते है ,तथा इन्द्र के रहने की स्वर्गलोक की नगरी को अमरावती कहते है उससे भी अधिक सुन्दर और बाँका दुर्ग वाली पुरी का नाम लंका पुरी के नाम से विख्यात हुआ । उसने कुबेर से पुष्पक भी छीन लिया था । रावण को अपनी धन सम्पदा ,पुत्रों बल और राक्षसों के कारण अत्यधिक घमण्डी हो गया था ।

रावण ने देव , गंधर्व और नागों की अनेक कन्याओं से विवाह किया था किन्तु उसका सर्वाधिक प्रेम मंदोदरी पर ही था । मंदोदरी भी रावण को ह्नदय से चाहती थी और उसे हमेशा सत्यपथ पर चलने के लिये यथा समय निवेदन करती थी । इसका प्रभाव रावण पर यह पड़ा कि वह मंदोदरी की बात को ध्यान से सुनता था । मंदोदरी एक पतिव्रता नारी थी । उसे ज्ञात हो गया था कि भगवान् विष्णु ने संसार के कल्याण हेतु अयोध्या में श्रीराम के रूप में जन्म ले लिया है और पिता की आज्ञा से वन में गमन करते करते राक्षसों से रहित पृथ्वी को करने वाले है ।

लंका को हनुमानजी भस्म करके गये तब से राक्षस भयभीत रहने लगे। वे अपने -अपने घरों में बैठकर विचार विमर्श करने लगे कि अब राक्षस कुल की रक्षा कैसे की जाय। जिसके दूत का वर्णन नहीं किया जा सकता है यदि उसके स्वामी लंका में आवेगें तो क्या होगा ? अर्थात लंका के राक्षसों की दयनीय दशा हो जावेगी। इस बात की मन्दोदरी की दूतियों ने उन्हें बतायी । तब मन्दोदरी ने इस प्रकार रावण से कहा -

रहसि जोरि कर पति पग लागी । बोली बचन नीति रस पागी ।

कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहू ।।

श्रीरामचरितमानस सुन्दरकाण्डः 35-3

मन्दोदरी विवेकशील महारानी थी उसे पूर्वाभास हो गया था कि श्रीराम से बैर करना ठीक नहीं है । अतः एकान्त में रावण के हाथ जोडकर चरणों में सिर रखकर अत्यन्त ही नीति रस से भरी हुई वाणी से बोली - हे प्रियतम! श्रीहरि से विरोध छोड़ दीजिये । मेरे कहने को अत्यन्त ही हितकर समझकर ह्नदय में धारण कीजिये अर्थात मेरी बात मान लीजिये । आप अपने मंत्री को बुलाकर उसके साथ सीताजी को श्रीराम के पास भेज दीजिये क्योंकि -

तव कुल कमल बिपिन दुःखदायी । सीता सीत निसा सम आई ।।

सनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें । हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें ।।

श्रीरामचरितसुन्दरकाण्ड 35-5

clip_image004

सीता अपने कुलरूपी कमलों के वन को दुःख देने वाली ठंड (जाड़े) की रात्रि के समान आयी है । हे नाथ ! सीता को दिये अर्थात लौटाये बिना शम्भु (शंकरजी) , ब्रह्माजी भी आपका भला नहीं कर सकते। इसी तरह आपकी कोई भी देवता रक्षा नहीं कर सकता है । श्रीराम के बाण सर्पों के समूह हैं जो राक्षस रूपी मेढ़कों को निगल जावेगें तात्पर्य यह है कि राक्षसों का वंश ही नष्ट हो जावेगा । रावण मंदोदरी की सीख को स्त्री के डरपोक स्वभाव की संज्ञा देकर सभा से चला गया तब मन्दोदरी ने कहा -

मन्दोदरी ह्नदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता।।

श्रीरामचरितमानस सुन्दरकाण्ड : 36-3

मन्दोदरी ह्नदय में चिन्ता करने लगी कि पति पर विधाता प्रतिकूल हो गये हैं । इसके पश्चात् दूसरी बार जब मन्दोदरी ने सुना कि प्रभु (श्रीराम) आये हैं और खेल-खेल ही में उन्होंने समुद्र को बाँध लिया अर्थात सेतुबन्ध बना लिया है तब वह रावण का हाथ पकडकर उसे अपने महल में लाकर अत्यन्त ही मधुर वाणी से कहा -

चरन नाई सिरू अंचल रोपा । सुनहु बचन पिय परिहरि कोपा ।।

श्रीरामचरितमानस लंकाकण्ड - 5-4

मन्दोदरी ने रावण के चरणों में ऑचल पसारा और कहा हे प्राणप्रिय । कृपया क्रोध छोड़ मेरा वचन सुनिये । हे नाथ ! बैर उसी से करना चाहिये जिससे बुद्धि और बल से जीत हो सकती हो । आप में और श्रीराम में वैसा ही अंतर है जैसे कि जुगनू और सूर्य में अंतर है । मन्दोदरी रावण को श्रीराम के बारे में कहती है - जिन्होंने अत्यन्त बलवान मधु और केटभ राक्षसों को मारा है और शक्तिशाली वीर दितिपुत्रों हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु का नाश किया जिन्होंने दैत्यराज बालि को बाधा और सहस्त्रबाहु को मारा वे ही पृथ्वी का भार हरने के लिये अवतार लेकर आये है । इन सब का उदाहरण देकर मन्दोदरी रावण को यह समझाना चाहती थी कि क्या तुम इन सबसे अधिक शक्तिशाली हो ? अर्थात इनके सामने तुम कुछ भी नहीं हो । अंत में मन्दोदरी रावण से कहती है -

दोहा- रामहि सौंपि जानकी नाई कमलपद माथ ।

सुत कहुँ राज समर्पि बन जाइ भजिअ रघुनाथ ।।

श्रीरामचरितमानस लंकाकाण्ड-दोहा 6

clip_image006

हे नाथ (रावण) श्रीरामचन्द्रजी के चरण कमलों में माथा टेककर(नवाकर) उनको श्रीजानकीजी सौंपकर अपने पुत्र (मेघनाथ) को राज्य देकर स्वयं वन में जाकर और श्रीरघुनाथजी का भजन करें । हे नाथ संत ऐसी नीति कहते है कि राजा चौथपन में वन में चला जाय ।

अंत में नेत्रों में जल भरकर रावण के चरण पकड़कर काँपते शरीर से कहा हे नाथ ! श्री रधुनाथजी को भजो जिससे मेरा सुहाग अचल हो जाय। इतने पर भी रावण न माना ।

श्रीराम द्वारा लंका में अंगद के द्वारा रावण को समझाने हेतु भेजकर कहा कि अंगद शत्रु (रावण) से वही बात करना जिससे हमारा काम हो और उसका कल्याण हो ।अंगद एवं रावण संवाद हुआ अंगद ने रावण की सभा में जाने के पूर्व एक पुत्र को मार डाला तथा अंगद के चरण को हटाना तो दूर हिला भी नहीं सका तब वह सन्ध्या के समय महल में उदास होकर गया तब मन्दोदरी ने रावण को समझाया और कहा -

चौपाई - कंत समुझि मन तजहु कुमतिही । सोह न समर तुम्हहिरघुपतिही।।

रामानुज लधु रेख खचाई । साउनहिं नाधेउ असि मनुसाई ।।

श्रीरामचरितमानस लंकाकाण्ड -35 (ख)-1

हे कंत (स्वामी) मन में समझकर कुबुद्धि त्याग दो । आप श्रीरधुनाथजी से युद्ध शोभा नहीं देता । उनके छोटे भाई (लक्ष्मण) ने जरा सी रेखा खींच दी थी उसे भी आप का लाँघ नहीं सके ऐसा तो आपका पुरूषत्व है । इस तरह मन्दोदरी ने अंत में श्रीराम से युद्ध न करने की फटकार लगा दी। रावण पर इन सब बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।

रावण ने विभीषण का अपमान किया किन्तु मन्दोदरी का अपमान कहीं नहीं किया क्योंकि मन्दोदरी की बात विवेकपूर्ण , नीतिसंगत हमेशा ही रही । अनेक बार रावण को मन्दोदरी ने समझाया पर रावण को अपने धन-बल का अहंकार था अतः वह मन्दोदरी की बात को समझ नहीं सका । तब मंदोदरी ने यहाँ तक रावण को कहा -

तेहि कहँ पिय पुनि पुनि नर कहहू । मुधा मान ममता मद बहहू ।।

अहह कंत कृत राम बिरोधा । काल बिबस मन उपज न बोधा।।

काल दंड गहि काहु न मारा । हरई धर्म बल बुद्धि बिचारा ।।

निकट काल जेहि आवत सोईं । तेहि भ्रम होई तुम्हारिहि नाई ।।

श्रीरामचरितमानस लंकाकाण्ड 36-3-4

हे स्वामी ! उन्हें (श्रीरामको) आप बार-बार मनुष्य कहते हैं आप व्यर्थ ही मान, ममता और मद का बोझा ढो रहे हो । हाँ प्रियतम ! आपने श्रीराम का विरोध कर लिया और काल (मृत्यु) के विशेष वश होने से आपके मन में अब भी ज्ञान अंकुरित क्यों नहीं हो रहा है ।

काल दण्ड (लाठी) लेकर किसी को नहीं मारता है। वह घर्म, बल,बुद्धि और विचार को हर लेता है। हे स्वामी! जिसका काल (मृत्यु का समय) निकट आ जाता है उसे आपके समान ही भ्रम हो जाता है ।

दोहा - दुई सुत मरे दहेउ पुर अजहुँ पूर पिय देहु ।

कृपासिन्धु रधूनाथ भजि नाथ बिमल जसु लेहु ।।

श्रीरामचरितमानस लंकाकाण्ड 37

हे स्वामी आपके दो पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुए और नगरी (लंका) भस्म हो गई जो हुआ सो हुआ हे प्रियतम! अब भी इस भूल की पूर्ति (समाप्ति)कर दीजिये । श्रीरामजी से बैर त्याग दीजिये । हे नाथ ! कृपा के समूद्र श्रीरधूनाथजी को भजकर निर्मल यश लीजिये ।

अंत में रावण श्रीराम के द्वारा मारा गया उसको उसके दुष्कर्म का फल प्राप्त हुआ । मन्दोदरी इस दुःखद धटना के समय रावण के समीप जाकर विलाप करने लगी। उस समय भी उसको श्रीराम पर पूर्ण विश्वास था कि दयामय श्रीराम उसके पति को दुर्लभ धाम भेजकर उसका हित ही करेंगे।

दोहा - अहह नाथ रधुनाथ सम कृपासिंन्धु नहिं आन ।

जोगि बृंद दुर्लभ गति तोहि दीन्हि भगवान् ।।

श्रीरामचरितमानस लंकाकाण्ड 104

अहह! नाथ ! श्रीरधुनाथजी के समान कृपा का समुद्र दूसरा कोई नहीं है जिन भगवान् ने तुमको (रावण को) वह गति जो जोगी समाज को दुर्लभ है ।

मन्दोदरी भले ही राक्षसजाति की थी किन्तु एक आदर्श -विवेकशील, न्यायप्रिय, राजा की रानी के साथ ही साथ पतिव्रता भी थी । रावण की गति मति तथा शक्ति का धमण्ड अंत तक काल के वश होने के कारण सुधार नहीं सकी इस । धटना से प्रमाणित होता है कि -

सो न टरई जो रचई बिधाता

-----

 

मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता

....................................................

मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति'' Sr.MIG-103,व्यासनगर, ऋषिनगर विस्तार उज्जैन (म.प्र.)पिनकोड- 456010 Ph.:0734-2510708,Mob:9424560115

Email:drnarendrakmehta@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग मदान्ध रावण को मन्दोदरी की सीख / मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग मदान्ध रावण को मन्दोदरी की सीख / मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixmBganTh38VeuVZhdVECq8m8Eszt87_CKFQ1f_JasmGxC4YHx0QKns7HZP3HAgHSMGSlTWZnLB3cO9KY09h4zyKE9qHFRMhyTngNFxpFKFyjOo6oerNIwfVfXYlDZel9rDyXw/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixmBganTh38VeuVZhdVECq8m8Eszt87_CKFQ1f_JasmGxC4YHx0QKns7HZP3HAgHSMGSlTWZnLB3cO9KY09h4zyKE9qHFRMhyTngNFxpFKFyjOo6oerNIwfVfXYlDZel9rDyXw/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/04/blog-post_781.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/04/blog-post_781.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content