गरिमामय युवा नेतृत्व का निर्माण भारतवर्ष युवाओं का देश है और युवाओं में असीम शक्ति होती है, लिहाजा यह अत्यन्त आवश्यक है कि हमारे युवाओं में...
गरिमामय युवा नेतृत्व का निर्माण
भारतवर्ष युवाओं का देश है और युवाओं में असीम शक्ति होती है, लिहाजा यह अत्यन्त आवश्यक है कि हमारे युवाओं में विद्यमान ताकत से न केवल उन्हें परिचित करवाया जाए अपितु उनकी शक्ति को रचनात्मक एवं राष्ट्र उत्थान में नियोजित करने के प्रयास भी हों। कुछ स्वार्थी लोग अपने फायदे के लिए हमारी युवाशक्ति को बहला फुसलाकर उन्हें पथभ्रष्ट करने से भी नहीं चूकते हैं। इसलिए यह अत्यावश्यक है कि बाल्यावस्था से ही बालकों को सुसंस्कारित बनाकर उनमें आध्यात्मिक एवं सृजनात्मक शक्ति को जागृत करके उन्हें समाज तथा राष्ट्रहित में कार्यशील होने के लिए प्रेरित किया जाए। यह किसी एक व्यक्ति का दायित्व न होकर हमारे देश के समस्त माता-पिताओं, गुरूओं एव गुणीजनों की जिम्मेवारी है कि वे इस बात को यकीनी बनाएं की हमारी युवापीढ़ी पथभ्रष्ट न होने पाए।
युवाओं को यह भी समझना होगा कि मनुष्य का वर्तमान जीवन भौतिकतावाद के कारण भागदौड़ से भरा हुआ है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है हमारी महत्वाकांक्षाओं में वृद्धि। हमारी इच्छाओं की पूर्ति के चक्कर में कई बार हमारा मन खिन्न, उचाट और उद्विग्न हो जाता है। ऐसे समय में हमें मानसिक शांति और मनोबल बढ़ाने के लिए आस्तिकता पर भरोसा रखते हुए परमपिता परमात्मा की शरणागति होकर अपने अंदर सकारात्मक भावना का संचार करते रहना चाहिये। वैसे भी मानवीय जीवन में प्रायः नकारात्मक और सकारात्मक भावनाओं के बीच द्वन्द्व की स्थिति बनी रहती है। सकारात्मक सोच जहां हमें उत्थान की ओर ले जाती है तो वहीं नकारात्मक सोच ईर्ष्या, द्वेष भावना के साथ अधोगति की तरफ धकेलती है। अतएव यह भी जरूरी है कि हम अपना बहुमूल्य समय तथा ऊर्जा दूसरों के प्रति ईर्ष्या, डाह और जलन में व्यर्थ न गवाएं बल्कि सदैव, सकारात्मक रहकर अपने आपको इतना व्यस्त कर लें की दूसरों की निंदा इत्यादि के लिए हमारे पास फालतू समय ही न बचे।
हमारी युवा पीढ़ी को चाहिये कि वह अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पूर्णतया एक लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करे और समय रहते उन्हें यह भी तय कर लेना चाहिए कि उनके जीवन का ध्येय क्या होगा ? इसके अलावा स्वयं पर भरोसा रखना ही सफलता की कुंजी माना गया है। इसलिए पूर्ण आत्मविश्वास से ओतप्रोत होकर अपने कार्यों को अंजाम तक पहुंचाएं। केवल अपनी उन्नति के पीछे न पड़े रहकर गांव-समाज की निस्वार्थ सेवा हेतु भी समय निकालें। हमेशा आत्मकल्याण के साथ-साथ समाज एवं राष्ट्रकल्याण हेतु प्रयत्नशील रहें। वर्तमान समय में जीवन पथ पर आगे बढ़ने और सफलता पाने के लिए मनुष्य में एक अनिवार्य गुण और होना चाहिए और वह गुण है उसका व्यवहार कुशल होना। खासकर निजी क्षेत्र में लोगों को उनकी शैक्षणिक योग्यताओं के साथ साथ व्यवहार कुशलता के पैमाने पर भी जांचा परखा जाता है।
वर्तमान जीवन भाग दौड़ से परिपूर्ण है और मनुष्य हर पल तनाव, चिंता, परेशानियों के कारण मुस्कुराना ही भूल बैठा है। इसलिए मुस्कुराहट और अपने जीवन में खुशियां लाईये क्योंकि मुस्कुराहट से जीवन निखरता भी है और हमारा व्यक्तित्व चमकता भी है। अपने जीवन को नित्यप्रति महोत्सव बनाने के लिए और अपने जीवन की बगिया को सजाने संवारने के लिए हमें अपने अंदर ज्ञानरूपी ज्योति से उजाला करने की आवश्यकता हमेशा रहती है। स्वाध्याय, सत्संग से हम अपनी भावनाओं को नियंत्रित करके अपने साथ-साथ अपने परिवार और समाज का भी भला एवं उत्थान करने में अपना बहुमूल्य योगदान कर सकते हैं। इसके साथ ही, जिस तरह से युवाओं को आज हमारे युवा को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी नौकरियों के पीछे भागना पड़ रहा है ऐसी परिस्थितियों में कई बार वे हार मानकर बैठ जाते हैं और अपने आप को निराशा की गर्त में धकेल देते हैं। ऐसे हालात में निरन्तर प्रयत्न करते रहना, हौसला बनाए रखना और जीतने की उम्मीदें जिंदा रखना ही उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचाने में मददगार साबित होता है। हमेशा याद रखें, कामयाबी आपको आपके ‘कम्फर्ट जोन‘ के बाहर जाकर अर्थात् घर की दहलीज छोड़कर निकल जाने पर ही हासिल होती है।
…….
जीवन दिशा बदलने वाले सुभाषित
प्रायः विद्यालयों के भीतर-बाहर की दीवारों पर कम शब्दों में लिखी जीवन उपयोगी सुन्दर बातें हमारा ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं और एक बारगी तो हमारा हृदय परिवर्तन हो जाता है और हम तदनुसार आचरण करने के लिए प्रेरित हो उठते हैं। यही वजह भी है कि इन बातों को अनमोल वचन अथवा सुभाषित भी कहते हैं। यह बातें जीवन रूपी सागर में हमारे पूर्वजों, बड़े-बुजुर्गों के अनुभवों का सार होती हैं। जो कम शब्दों में हमारा पथ प्रदर्शन कर देती हैं। इन पर आचरण करके हम अपनी जीवन दिशा को भी बदल सकते है। बुद्धिमत्ता से परिपूर्ण इन अनमोल वचनों का प्रतिदिन स्मरण करना इनका श्रवण-मनन करना और पढ़ना उतना ही आवश्यक है जैसे प्रतिदिन स्नान करना और अपनी दिनचर्या की शुरूआत करना।
कहते हैं कि, अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। इस अकेली सूक्ति में गुरूमहिमा का विशद् वर्णन कर दिया गया है। लिहाज़ा समस्त अध्ययनरत विद्यार्थियों एवं युवाओं को सर्वप्रथम गुरू भक्ति एवं गुरू पर आस्था का संकल्प लेना चाहिए ताकि समर्थ गुरू की उन पर कृपा बनी रहे। हमारी वाणी न केवल मीठी होनी चाहिए अपितु हमारे कर्म भी सुन्दर होने चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि हताशा हमारे निकट भी फटकनी नहीं चाहिए क्योंकि उत्साह हमेशा मनुष्य को कर्म करने के लिए प्रेरित करता रहता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है। मेहनत, लगन, हिम्मत से भरपूर नेक इरादों वाले लोग अपनी कल्पनाओं को साकार कर दूसरों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। जिनको अपनी क्षमताओं और शक्तियों पर अटूट विश्वास होता है वे कभी भी असफलता का मुख नहीं देखते हैं।
हमारे शास्त्रों में और अनेक महापुरूषों ने शताब्दियों से विद्याग्रहण एवं ज्ञान प्राप्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। शास्त्रों में तो यहां तक कहा गया है कि ज्ञानेन हीनाः पशुभिः सामानाः अर्थात् ज्ञान विहीन मनुष्य पशु के समान है। उसमें भी अल्पविद्या और अल्प ज्ञान को विषतुल्य भयंकर माना गया है। जोसेफ एडिशन के अनुसार, अध्ययन हमें आनंद प्रदान करता है और योग्य बनाकर अलंकृत करता है। मस्तिष्क की उन्नति के लिए अध्ययन उतना ही आवश्यक है जितना शरीर के लिए व्यायाम करना। यदि हम पुस्तकों, पत्र पत्रिकाओं की ही चर्चा करें तो पठन-पाठन को सबसे सस्ता मनोरंजन माना गया है और पुस्तकों की तुलना एक सुन्दर बागीचे से की गई है। यदि आप महान व्यक्तियों की रूचियों को जानने का प्रयत्न करेंगे तो आप पायेंगे की उनमें सुन्दर ज्ञानवर्धक पुस्तकों को पढ़ने के प्रति जबर्दस्त रूचि पाई जाती है। कहा भी गया है कि, किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं, सुसंस्कृत बनाती हैं। ज्ञानार्जन से मनुष्य का विवेक जागृत होता है और कल्पनाशीलता उसकी मिठास को बढ़ाती है। विवेक जहां मानवीय जीवन को सुरक्षित रखता है तो वहीं कल्पनाशीलता जीवन की मधुरता को बढ़ाती है। पुस्तकों का मूल्य रत्नों से भी अधिक आंका गया है क्योंकि पुस्तकें अन्तःकरण को उज्जवल करती हैं। पुस्तकें ही हमारी सच्ची मित्र और शुभचिन्तक होती हैं।
मनुष्य जीवन में हम निठल्ले बैठे नहीं रह सकते हैं इसलिए हमें प्रतिक्षण कर्मशील बने रहना पड़ता है। जब हम जीवन पथ पर आगे बढ़ते हैं तो हर समय मात्र कामयाबी ही हमारा स्वागत नहीं करती है, अनेकों बार असफलताओं-विफलताओं का सामना भी हमें करना पड़ता है। कष्ट और विपत्तियां हमें सीख देती हैं और जो इनका सामना साहस के साथ करते हैं सफलता उनके कदम चूमती है। इसके लिए जरूरी यह भी है कि हम सबसे पहले अपने ऊपर विजय प्राप्त करें। हमेशा अपने हौसले बुलन्द रखें। आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। महात्मा बुद्ध के अनुसार, पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती है लेकिन मानव के सद्गुणों की महक सब ओर फैल जाती है। लिहाज़ा हमेशा मधुर वचनों का श्रवण, मनन और अध्ययन करते रहें तथा उन पर आचरण कर अपने उच्च कोटि के चरित्र का निर्माण करें। जीवन में सफल हों - सफल कहलवाएं।
……….
ईश्वरीय उपहार है जीवन-इसे संवारें
आरंभिक शिक्षा-दीक्षा प्राप्त कर जब हम धीरे-धीरे जीवन पथ पर अग्रसर होते हैं और सृष्टि में अपने आस-पास की गतिविधियों का मूल्यांकन करने लगते हैं तो कहीं न कहीं हमें यह अहसास हो जाता है कि हमें प्राप्त जीवन, ईश्वरीय उपहार है जो हमें अपनी चेतनावस्था के अनुसार एक बार मिला है, इसलिए हमें इस जीवन के प्रत्येक क्षण का भरपूर आनंद लेना है। इसी के साथ भारतीय धर्म, ज्ञान दर्शन और संस्कृति के अनुसार, हमारा जीवन आध्यात्मिकता से ओत प्रोत है क्योंकि यहां मानवीय आत्मा को परमपिता परमात्मा से जोड़कर देखने की परम्परा है। इतना ही नहीं इस सृष्टि की प्रत्येक गतिविधियां, प्रकृति, पशु-पक्षी और मनुष्य जीवन के क्रियाकलाप यह स्पष्ट संकेत देते हैं कि इस सम्पूर्ण जगत का कोई न कोई नियंता और पालनहार है।
ईश्वर प्रदत्त इस अद्भुत जीवन यात्रा का भरपूर आनंद उठाने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी कार्यशैली और तौर तरीकों में बदलाव लाएं। खिलते-हंसते चेहरे सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, इसलिए खूब हंसे, मुस्कुराएं और अपने साथ-साथ दूसरों को भी खुश रखें। संभव हो तो बड़े बुजुर्गों और नन्हें बच्चों के बीच में रहकर भी कुछ समय बिताएं। अच्छी सेहत से ही सुन्दर जीवन की कल्पना की जा सकती है। अतएव हमेशा सेहतमंद बने रहने के लिए सैर करें, व्यायाम करें, खेलों में भाग लें ताकि शारीरिक तंदुरूस्ती बरकरार रहे और ऊर्जा का स्तर भी ऊंचा हो, साथ में रात को भरपूर नींद भी लें ताकि अगले दिन के लिए पुनः तरो ताजा होकर अपने कार्यों में जोश खरोश से जुट जाएं। प्रतिदिन अपनी सुविधानुसार एकांत में बैठें और अपने जीवन को सुन्दर एवं उत्तम बनाने के लिए स्वयं अपने अंतर्मन से विमर्श करें, अपना साक्षात्कार करें। एक निर्धारित समय पर ज्ञानवर्धक पुस्तकों को भी पढ़ें ताकि हमें बौद्धिक खुराक भी मिलती रहे और हमारा विवेक भी जागृत रहे। प्रातः उठकर ध्यान लगाएं, योग का नियमित अभ्यास करें। जितना ज्यादा हो सके स्वच्छ पेयजल पीयें, संतुलित फाइबर युक्त भोजन करें। नकारात्मक विचारों से दूर रहकर सकारात्मक सोच को अपनी ताकत बनाएं एवं गप्पशप्प बाजी से दूर रहें। अपना कीमती समय ईर्ष्या, द्वेष, निंदा करने जैसी बुराईयों में न गंवाकर अपनी ऊर्जा रचनात्मक कार्यों में लगाएं। जहां तक हो सके साप्ताहिक आधार पर समाज सेवा के लिए भी समय निकालें। यदि संभव हो सके तो गरीबों के बच्चों को मुफ्त पढाएं, अपनी गलियों में स्वच्छता अभियान आदि चलाएं। वर्तमान में जीने की आदत डालें और गढे़ मुर्दे न उखाडे़ं।
जीवन रूपी पाठशाला में हमें कई तरह के सबक सीखने पड़ते हैं। छोटी-बड़ी समस्याएं पैदा होना भी मानवीय जीवन का अंग हैं। लेकिन यहां सीखे गए अनुभव हमारी आगामी जीवन यात्रा को सुगम एवं सफल बनाते हैं। कभी भी अपनी जिंदगी की तुलना दूसरों के साथ न करें क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के तौर तरीके भिन्न होते हैं। दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं, पीठ पीछे क्या कहते हैं अथवा आपके बारे में क्या राय रखते हैं यह उनकी सिरदर्दी है। अपने आपको व्यर्थ की सोच में न उलझाएं। जीवन में आने वाली हर अच्छी बुरी परिस्थितियां सदैव एक समान नहीं रहती हैं, वे बदलती रहती हैं अतएव हमें निरन्तर कर्मशील बने रहना चाहिए। दूसरों के प्रति ईर्ष्या भाव रखना अपना दिमागी संतुलन बिगाड़ने जैसा है। जीवन के किसी भी दौर में आप शिखर पर पहुंच सकते हैं इसलिए उठें, तैयार हो और अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करते रहें। अपनी क्षमताओं को बढ़ाते रहें हमेशा आगे बढ़ते रहें और सदैव सही काम करें।
हमें यह भी याद रखना चाहिए की दुख जीवन में इसलिए आते हैं ताकि हम सुख के महत्व एवं मूल्य को समझ सकें। ईमानदारी को अपने जीवन में अपनाएं और उसे जीएं भी। युवाओं को चाहिए की वे अपनी कमजोरियों को पहचाने और उन्हें दूर करें। अपने सपनों को साकार करने के लिए हमें पहले अपने मन की सुननी चाहिए फिर अपना लक्ष्य निर्धारित कर कड़ी मेहनत से अपने मुकाम को हासिल करने के लिए प्राण पण से जुट जाना चाहिए। कामयाबी पाने के सफर में अनेकों उतार-चढ़ाव आते हैं लेकिन यदि इंसान के इरादे बुलंद हों तो सफलता जरूर मिलती है। इसी प्रकार आगे बढ़ने के लिए कई बार हमें जोखिम भी उठाना पड़ता है लेकिन सोच विचार कर उठाया गया जोखिम प्रायः हमें सफलता की ओर ले जाता है। जीवन का अर्थ प्रत्येक प्राणी अपनी पारिवारिक परिस्थितियों परिवेश, विचारों और संस्कारों के अनुसार निर्धारित करता है लेकिन जीवन में कुछ बनने अथवा पदवी हासिल करने के लिए कठोर परिश्रम ही फलदायक साबित होता है।
.................,
गौरवमय देश का आधार है नारी ?
भारतीय धर्म दर्शन, ज्ञान और संस्कृति में नारी महिमा और सामाजिक कुरूतियों के विरूद्ध महिलाओं के योगदान को रेखांकित किया गया है। चाहे वीरता का क्षेत्र हो या विद्वता का प्रत्येक जगह वीरांगनाओं और विदुषियों ने अपनी अप्रतिम छाप छोड़ी है। रानी लक्ष्मीबाई, रानी चिनम्मा, बेगम हजरत महल, कैप्टन लक्ष्मी सहगल हों या प्राचीन काल में लोपामुद्रा, मैत्रेयी, गार्गी और अपाला जैसी विदुषियां, सबने अपने ज्ञान से भारत की गौरवगाथा को चार चांद लगाएं हैं। भारतीय नारी गुणों की खान है कोमलता, स्नेह, दया, प्रेम सहिष्णुता और सहनशीतला से भरपूर महिलाएं आज जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं और पारिवारिक तथा सामाजिक दायित्वों का बखूबी निर्वहन भी कर रही हैं। शिक्षा के प्रचार प्रसार से अब तस्वीर कुछ बदली तो है परन्तु आंकड़े कहते हैं कि आज भी आधी भारतीय आबादी के हितों को सुरक्षित बनाने के लिए मीलों लम्बे सफर को तय करना बाकी है। महिलाओं को न्याय दिलाने और उनके लिए समान अधिकारों की व्यवस्था करके नारी सशक्तिकरण की अवधारणा को पुख्ता बनाने की जरूरत है।
हमारी संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व इतना कम है कि दक्षिण सूडान और सऊदी अरब जैसे देश भी इस मामले में हमसे आगे हैं। संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में विश्व के 141 देशों में भारत का स्थान 103 वां है जबकि एशिया में 18 देशों में हमारी रेंकिंग 13वीं हैं। वहीं वैश्विक औसत में महिलाओं का संसदीय परम्परा में हिस्सेदारी 22.4 प्रतिशत है तो भारत में यह प्रतिशत मात्र 12 फीसदी ही है। भारतीय संघ के राज्यों में कुल विधायकों की संख्या 4,120 है और 31 दिसम्बर 2014 की स्थिति के मुताबिक मात्र 360 महिला विधायक ही चुनाव में जीतकर विधान सभाओं में सुशोभित हो पाई थीं जबकि राज्य सरकारों में कुल 568 मंत्रियों में 39 महिलाएं ही मंत्री पद पर आसीन थीं। जब तक महिलाओं को टिकट बंटवारे में पूरा प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाएगा तब तक मंत्रिमण्डल में उनकी उचित भागीदारी भी सुनिश्चित नहीं हो पायेगी।
न्यूयार्क स्थित ‘इंटरनेशनल कमीशन आन फाइनांसिंग ग्लोबल एजुकेशन आपर्चुनिटी’ के ताजा शोध के अनुसार भारत में महिला साक्षरता की स्थिति पड़ोसी देशों के मुकाबले बेहद खराब है प्राइमरी शिक्षा में पांचवी कक्षा तक साक्षर महिलाओं का अनुपात हमारे देश में 48 फीसदी है जबकि नेपाल में यह 92,पाकिस्तान में 74 और बांग्लादेश में 54 फीसदी है। 1951 में भारत की कुल साक्षरता दर 18.33 फीसदी थी, जिसमें 27.16 फीसदी पुरूष और 8.86 फीसदी महिलाओं साक्षर थीं। 2011 की जनगणना के मुताबिक इस मामले में प्रगति हुई है और कुल 74.06 फीसदी साक्षरता दर में 82.14 पुरूष और 65.46 प्रतिशत महिलाएं साक्षर थीं अर्थात् महिला साक्षरता को लेकर अभी भी लम्बा सफ़र तय करना पड़ेगा। ‘पापुलेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के देशों में भारत में वर्ष 2004 से 2014 के बीच लैंगिक आधार पर गर्भपात के कुल 8,51,403 मामले दर्ज किये गए थे और इस मामले में भारत पहले स्थान पर है। 1901 में 1000 पुरूषों पर 972 महिलाएं थी तो 2011 की जनगणना के अनुसार यह आंकड़ा गिरकर 940 पर आ गया है। वैसे तो भारत में कानूनन लड़कियों की विवाह योग्य आयु कम से कम 18 वर्ष निर्धारित की गई है तथापि वर्तमान में महिलाओं की औसत आयु 19.5 वर्ष है, जो कहीं न कहीं लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा को भी प्रभावित करती है।
20वीं आर्थिक जनगणना के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में 5 करोड़ 85 लाख उद्यम हैं जिनमें मात्र 14 फीसदी व्यवसायों की बागडोर महिलाओं के हाथ में है। महिलाओं द्वारा संचालित उद्यमों में से ज्यादातर व्यवसाय छोटे स्तर के हैं और 79 फीसदी स्ववित्तपोषित हैं। यदि महिलाओं के प्रति अपराधों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो एनसीआरबी- 2014 के मुताबिक पिछले 10 वर्षों में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध के आंकडे़ बताते है कि प्रति घंटे ऐसे 26 अपराध यानि हर दो मिनट में एक शिकायत दर्ज होती है। पिछले एक दशक में 22 लाख 40 हजार महिलाओं के प्रति अपराधों की शिकायतें दर्ज की गईं। एनसीआरबी के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि वर्ष 2015 में हमारे देश में बलात्कार के 34051 मामले दर्ज़ किए गए थे जिनमें 33098 मामलों में इस घृणित अपराध को अंजाम देने वाले पीडि़ता के परिचित अथवा रिश्तेदार थे। सख्त कानून बनाने के बावजूद 2004 से 2014 के बीच स्त्रियों के विरूद्ध अपराधों में ज्यादातर मामले हत्या, हत्या की कोशिश, बलात्कार, अपहरण, लूटपाट, दहेज हत्या, उत्पीडन, पति द्वारा क्रूरता अपमान और स्त्रियों पर हमले के दर्ज किए जाते हैं। ब्यूरो आफ पुलिस रिसर्च एंड़ डिवेल्पमेंट, यू.एन वूमन रिर्पोट और सी.एच.आर.आई के साथ-साथ एन.सी.आर.बी. के आंकडे़ बताते हैं कि महिलाओं के खिलाफ अपराध बड़ी तेजी से बढे़ हैं। हमारे देश में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या मात्र 6.11 प्रतिशत ही है। भारत में कुल पुलिस बल की आधिकारिक संख्या 17 लाख 22 हजार 786 हैं उसमें से महिला पुलिस कर्मियों की संख्या मात्र 1 लाख 5 हजार 325 है। विकसित देशों में कुल पुलिस बल में 25 प्रतिशत महिलाएं हैं तो वैश्विक 9 फीसदी है और भारत में यह औसत 6.11 प्रतिशत ही है। महिला पुलिस कर्मचारियों वाले शीर्ष केन्द्र शासित एवं राज्यों में 14.16 प्रतिशत के साथ चण्डीगढ़ पुलिस पहले स्थान पर है तो 11.07 फीसदी के साथ हिमाचल प्रदेश चैथे नम्बर तथा राज्यों में तमिलनाडू के बाद दूसरे स्थान पर है। पुलिस विभाग में पुरूष वर्चस्व के चलते अभी इस दिशा में व्यापक सुधार किए जाने की जरूरत है।
भारत वर्ष में महिलाओं की आबादी का लगभग 48 प्रतिशत है लेकिन महिला केन्द्रित योजनाओं पर कुल बजट का बहुत ही कम हिस्सा खर्च किया जाता है। 2011 में जहां यह बजट आबंटन मात्र 6.22 प्रतिशत था तो 2016 में घटकर 4.50 प्रतिशत रह गया है। केन्द्र सरकार ने चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिश के मुताबिक, केन्द्रीय राजस्व में राज्यों का हिस्सा बढ़ा दिया है और सामाजिक कल्याण पर अपना खर्च घटा दिया है, अब यह राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे महिला केन्द्रित योजनाओं को आगे बढ़ाएं। महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत मार्च 2008 तक महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से स्वयंसिद्धा कार्यक्रम चलाया जा रहा था। इस स्कीम के तहत 650 ब्लाकों में 10.02 लाख लाभार्थियों के 69,774 स्वयं सहायता समूह गठित किए जा चुके थे वस्तुतः महिला सशक्तिकरण का अर्थ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें महिलाओं को अपने आपको संगठित करने की क्षमता बढ़ती और सुदृढ़ होती है। उनमें लिंग, सामाजिक आर्थिक स्थिति और परिवार एवं समाज में भूमिका के आधार पर आत्मनिर्भरता बढ़ती है। महिला सशक्तिकरण की राह में अभी भी कई दुश्वारियां हैं और आंकड़ों की बानगी तो जाहिर कर रही है कि जब तक लैंगिक भेदभाव, घरेलू हिंसा, बलात्कार, यौनहिंसा, असमानता, वेश्यावृत्ति, मानव तस्करी और महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर काबू नहीं पाया जाता तब तक महिलाओं को सशक्त नहीं बनाया जा सकता है। यदि समाज को जगाना, जागृत और आगे बढ़ाना है तो महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण और रक्षा जरूरी है। संसद द्वारा बनाए गए कई कानूनों को धरातल पर लागू करके ही हम भारत की आधी आबादी को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से सशक्त बना सकते हैं।
--
अनुज कुमार आचार्य
बैजनाथ
मो. नं. 9736443070
COMMENTS