व्यंग्य / अजीब दास्तां है ये—/ वीरेन्द्र ‘सरल‘

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मास्साब अपने विद्यालय के वन मेन आर्मी थे। जाहिर है विद्यालय सरकारी था और मास्साब भी सरकारी थे। वे ‘शेष नाग की तरह ‘शासन और समाज की समस्त अप...

मास्साब अपने विद्यालय के वन मेन आर्मी थे। जाहिर है विद्यालय सरकारी था और मास्साब भी सरकारी थे। वे ‘शेष नाग की तरह ‘शासन और समाज की समस्त अपेक्षाओं का बोझ अपने सर पर उठाये हुए अपनी जिन्दगी की गाड़ी खींच रहे थे। आसमान छूती महंगाई की तरह बढ़ती गर्मी में स्कूल के बरामदे में बैठकर मास्साब लिखा-पढ़ी के काम में व्यस्त थे। बच्चों की परीक्षा सम्पन्न हो गई थी, कल परिणाम भी घोषित हो चुका था। वैसे इसमें घोषणा जैसी कोई बात भी नहीं थी क्योंकि सरकारी स्कूल के कक्षा पहिली में दाखिल होने वाले विद्यार्थी को भी पता होता है कि नई नीति के आधार पर कक्षा आठवीं तक कोई भी माई का लाल उसे फेल नहीं कर सकता। तो किताब-कापी में सिर खपाने का क्या फायदा? इसीलिए बच्चे स्वघोषित स्वैच्छिक अवकाश का आनंद उठा रहे थे। विद्यालय में पंखा जैसी कोई अनावश्यक चीज थी ही नहीं। जब बिजली ही नहीं थी तो पंखे का तो सवाल ही नहीं उठता। शिक्षक के चेहरे से पसीने की बूँदे सरकारी नल की टोंटी से टपकने वाली बूँदों की तरह टपक रही थी। तभी वहाँ उन्हें किसी की पदचाप सुनाई दी। मास्साब का ध्यान भंग हुआ और वे सामने खड़े अपरिचित ‘शख्स को देखने लगे।

आगन्तुक ने कड़कदार आवाज में अभिवादन करते हुए कहा-‘‘नमस्कार मास्टर जी। मैं झंझटलाल, इस गांव को स्वघोषित प्रधान। भैया जी का वरदहस्त प्राप्त है मुझे। जिसके सिर पर प्यार से हाथ रख देता हूँ वह बहुत ऊपर तक जाता है और जिसके ऊपर तिरछी नजर डाल देता हूँ वह साढे साते ‘शनि की वक्रदृष्टि का शिकार हो जाता है। इस गांव में मेरी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता और जो हिलने की हिमाकत करता है, मैं उसकी शिकायत सीधे भैया जी से करने को अभिशप्त हूँ, समझ गये?

मास्साब का जी तो चाह रहा था कि कह दें अच्छा तो आप ही है भस्मासुर के पाकेट संस्करण जिसके बारे में पुराने मास्साब ने इस विद्यालय का चार्ज देते समय समझाया था कि झंझट लाल से बचकर रहना। पर मन की बात मन में दबाकर मास्साब ने सामने रखी कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा-‘‘आसन ग्रहण कीजिए झंझटलाल जी। आखिर इतना भयानक ढंग से अपना परिचय देकर आप मुझसे क्या चाहते हैं? आपकी विनम्रता तो सूरज की तरह अंगारे बरसाने लगी है। मुझसे कोई गलती हो गई है क्या?‘‘

मास्साब का विनम्र व्यवहार असर कर गया। झंझट लाल का रौब चुनाव हारे नेता की गरमी की तरह उतर गया। वे थोड़ा नरम होते हुए बोले-‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो जनसेवक हूँ। अपने लिए कुछ नहीं। चाहता जो भी चाहता हूँ अपनों के लिए ही चाहता हूँ। बात यह है कि मेरा बच्चा जो इस विद्यालय में कक्षा आठवीं का छात्र है वह कल परीक्षाफल सुनने के बाद घर जाकर नानस्टॉप रोये जा रहा है। उसी सिलसिले में आपसे बात करने आया हूँ। मास्साब थोड़ा चौंककर सोचने लगे कि कहीं मेरी लिपिकीय त्रुटि के कारण इसका बच्चा फेल तो नहीं हो गया? हे भगवान अब क्या होगा? मास्साब सहमते हुए बोले-‘‘क्या आपका बच्चा परीक्षा में फेल हो गया?‘‘

झंझटलाल बोले-‘‘अरे! नहीं मास्टर जी, मेरे बच्चे ने तो फेल होने के लिए अथक प्रयास किया। साल भर क्लास बंक कर मोबाइल में व्यस्त रहा। किताब-कापी को पढ़ना तो दूर पलटकर देखा तक नहीं। होमवर्क, क्लासवर्क किस चिड़िया का नाम है यह जानने की कोशिश तक नहीं की। विद्यालय का अनुशासन मानने से साफ इंकार किया। यहां तक सुनने में आया है कि कई बार अपने सहपाठियों से मारपीट कर आपसे बदतमीजी करने का साहस तक दिखाया। आदमी फेल होने के लिए और किया कर सकता है? इतना सब कुछ करने के बाद भी वह पास हो गया इसीलिए इसे फूटी किस्मत का लिखा समझकर वह दुखी है और लगातार रो रहा है। आपसे बिनती है कि बस एक बार उन्हें फेल होने का मौका दे दीजिए। उसका कहना है कि अब मैं अपनी गलतियों को सुधारूंगा। अपना ‘शैक्षणिक स्तर सुधार कर आगे बढ़ूंगा। तभी अगली कक्षाओं में सफलता मिलेगी। वह अपना नींव मजबूत करना चाहता है इसलिए एक बार आप उसे फेल कर देते तो बड़ी कृपा होती।

मास्साब डरकर बोले-‘‘नहीं झंझटलाल जी। मेरी रोजी-रोटी पर लात मत मारिए। यह अनैतिक कार्य मैं नहीं सकता। किसी भी बच्चे को फेल करने का अधिकार मुझे नहीं है। मुझे क्षमा करिए, आपका यह काम मुझसे नहीं हो सकता, प्लीज।‘‘

मास्साब की बातें सुनकर झंझटलाल का पारा फिर गरम हो गया। वे बोले-‘‘आप मेरा इतना-सा काम भी नहीं कर सकते। बड़े-बड़े अधिकारियों से सम्पर्क करूंगा। मैं जनसेवक हूँ कोई ऐरा-गैरा नहीं। अपना काम कैसे और किससे करवाना है ये मुझे अच्छी तरह पता है। आखिर आप मुझे समझते क्या हैं? मैं अपने बच्चे को फेल कराके ही दम लूंगा और आपको तो मैं देख ही लूंगा। आपको ऐसे झंझट में फँसा दूंगा कि जिन्दगी भर आप मुझे नहीं भूल पायेंगे, समझे मास्साब? मास्साब को धमका-चमकाकर झंझटलाल विद्यालय से बाहर निकल गये।

फिर अपने बच्चे को फेल कराने के लिए उच्च कार्यालयों के चक्कर काटते हुए उच्च अधिकारियों से निवेदन करते रहे। पर बात कहीं बनी नहीं। सबने हाथ खड़े करते हुए अपनी असमर्थता जताई। पर झंझटलाल कब हार मानने वाले थे। सबको धमकी-चमकी देते हुए वे सबकी शिकायत का पुलिंदा लिए हुए अन्ततः भैया जी के बंगले पर पहुंच गए।

भैया जी ने उसकी बातें ध्यान से सुनी और उन्हें समझाते हुए बोले-‘‘देखो झंझट लाल, सबकी अपनी मजबूरी है। हम स्वयं चाहते हैं कि परीक्षा हो और परिणाम भी आये। जिससे योग्य को आगे बढ़ने का अवसर मिले तथा अयोग्य को अपना स्तर सुधारने का सौभाग्य प्राप्त हो। शिक्षा में गुणात्मक विकास हो ये तो हम सभी चाहते हैं और यह भी जानते हैं कि किसी मास्साब के पास जादू की कोई छड़ी नहीं है जो किसी बच्चे की सिर पर एक बार घुमाये और बच्चा सब कुछ सीख जाये? पर क्या करें भाई ये व्यवस्था--? परिस्थितियों से समझौता करो और बच्चे को पास होने दो। उसे फेल कराने की कोशिश मत करो, समझे? मगर भैया जी की समझाइश को भी दरकिनार करते हुए झंझटलाल अपनी जिद पर अड़े रहे तो भैया जी ने भड़कते हुए कहा-‘‘अब चुप भी रहो यार। कक्षा आठवीं तक हम अपने ही बच्चे को फेल नहीं करा पाये तो तुम्हारे बच्चे को कैसे फेल करा पायेंगे।

समझने की कोशिश करो झंझटलाल जी, आजकल पढ़ाई-लिखाई में कुछ नहीं रखा है। पढ़ लिख लेने के बाद आदमी को बेरोजगारी के सिवाय और क्या मिलता है? अब पढ़ने लिखने वालों की नहीं बल्कि अनपढ़ और कम पढ़े लिखे आदमी का जमाना आ गया है। इनके लिए राजनीति के दरवाजे सदैव खुले हैं। तुम अपने आप को ही देखो निरक्षर हो पर हमारी कृपा से पढ़े लिखे लोगों पर रौब झाड़ रहे हो। ये धमकाने-चमकाने का लायसंस तो आखिर राजनीति में आने के बाद ही मिला है ना? अब मुझे और मेरे लड़के को ही देख लो, हम ज्यादा पढ़े लिखे नहीं है पर राजनीति देवी की कृपा से दोनों ही मंत्री बनकर मौज कर रहे हैं कि नहीं?

भैया जी की बातें समझ में आते ही झंझटलाल खुशी से उछल पड़ा और भैया जी की ओर देखते हुए पूछा-‘‘पर अभी तो आप ही कह रहे थे कि आप स्वयं शिक्षा के स्तर में गुणात्मक सुधार चाहते है?‘‘ भैया जी ने जोरदार ठहाका लगाते हुए कहा-अरे! भाई, यही तो राजनीति में तरक्की का सबसे बड़ा सूत्र है। कहो कुछ और करो कुछ और। ये सब नहीं करेंगे तो हमारी बातों में कौन फँसेगा?

तरक्की का सूत्र हाथ लगते ही झंझटलाल मुस्कुराते हुए बंगले से बाहर निकल आया।

वीरेन्द्र सरल

बोड़रा (मगरलोड़)

जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)

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व्यंग्य / अजीब दास्तां है ये—/ वीरेन्द्र ‘सरल‘
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