वि ज्ञान कथाएं विज्ञान जगत के विविध आयामों को जो अनउदघाटित, सवर्था नूतन, अनूठे , अन्वेषणात्मक हैं प्रामाणिकता के साथ तथा बड़ी मार्मिकता एवं ...
वि ज्ञान कथाएं विज्ञान जगत के विविध आयामों को जो अनउदघाटित, सवर्था नूतन, अनूठे , अन्वेषणात्मक हैं प्रामाणिकता के साथ तथा बड़ी मार्मिकता एवं तरलता से संस्पर्श करती हैं। इन्हीं गुणों से युक्त हैं डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय की प्रस्तुत विज्ञान कथा संकलन की कथाएँ।
पुस्तक :
रोमांचक विज्ञान कथाएँ
लेखक :
डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय
प्रकाशक :
साहित्य प्रकाशन एस-14, राज आंगन, एन.आर.आई. कॉलोनी, प्रतापनगर जयपुर-302033
संस्करण :
प्रथम, 2016
मूल्य :
रु. 250/-
विज्ञान कथाओं में तनिक फंतासी का पुर होता है लेकिन यह वैज्ञानिक परिकल्पनाओं का बहिर्वेशन होती है। कई बार तो यह 'बहिर्वेशन' अकल्पनीय हो जाता है। एक पाठक को इसके साथ-साथ चलना कठिन हो जाता है लेकिन अंत में वह इसके परिणामों को लेखक दंग रह जाता है। उसके मुख से 'वाह' निकल उठता है। ऐसी ही कथा है 'लखनऊ'।
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कथा का नायक 'सतत गतिमान समय-सरिता प्रवाह में गति करता हुआ इसी का अंश बन जाता है। यह समय सापेक्ष्य है, वह स्थिर भी है और गतिमान भी। वह प्रकाश की भांति भी है जो सीधी रेखा में और तरंगों की भांति चलता है, पर रहता वह प्रकाश ही है जैसे- बीता हुआ कल आने वाले कल में समाहित हो जाता है, वैसे ही यह चक्र अनादि है और अनन्त काल से गतिमान है। हम इसी के अंश है... इसी से यह धारणा अत्यन्त जटिल है।
टाइम मशीन में भी भूतकाल और भविष्य का गमन होता है लेकिन इस कथा में समय अलौकिक तथा दुरूह धारणा लिये हुये हैं। कथा में नायक गतिमान समय चक्र का इस तरह से हिस्सा बन जाता है, कि पता ही नहीं चलता वह कब, भूतकाल में गमन कर जाता है। 'टेम्पोरल लॉब' में उद्दीपन भी उसे समय के एक अन्य आयाम में पहुँचा देते हैं।
कथा में नायक निज्ञकार पुराने लखनऊ के आई.टी. कॉलेज से राजा बाजार त्रिकालज्ञ से भेंट करने पहुँचता है। वह मस्तिष्क के टेम्पोरल लाब में बंटी हुई गतिविधियों के कारण शुजाउद्दौला, आसफुद्दौला के समय के साथ विचरता हुआ उनके खानपान रहन सहन, तथा तौरतरीकों को देखता है। वह लखनऊ के आखिरी नवाब वाजिद अली के जमाने में उनके 'रहस' देखता उनके कत्थक देखता और उनकी बनाई हुई शास्त्रीय संगीत की रागिनियों को सुनता अपनी पूर्व प्रेयसी नगमा से बतियाने के पश्चात् उससे विदा लेकर एक पेड़ पर
शगुप्ता के साथ बैठकर सतत गतिमान समय सरिता में प्रवेश कर उसी का हिस्सा बन जाता है पुराने लखनऊ की संस्कृति का जीवन्त दर्शन हर किसी का मन मोह लेता है। लेकिन लेखक हमें एक ऐसे अत्याधुनिक समाज के दर्शन कराता है जो निकट, भविष्य के गर्भ में छिपा है- नैनो टेक्नॉलाजी युक्त समाज।
निराकार तथा नगमा धीरे धीरे कर समय की सीढिय़ों
की तरह कश्मीरी मोहाल जाने वाली सीढ़ियों से नीचे उतरते हैं। वे जब सौ मीटर नीचे पहुँचते हैं तो निराकार एक दूसरे ही लखनऊ के दर्शन कर चकित रह जाता है। यह अत्याधुनिक लखनऊ है। यहां पब्लिक ट्रांस्पोर्ट है लेकिन उनके चलने का समय नियंत्रित होता है। यहां अन्डरग्राउंड रेल, ट्रामें है लेकिन ध्वनि प्रदूषण की लेख मात्र भी गुंजाइश नहीं। यहां वाहन पेट्रोल से नहीं चलते बल्कि कार्बन डाइआक्साइड को तोड़ कर, डिकम्पोज कर उसकी ऑक्सीजन से चलते हैं। यहां सभी फैक्ट्रियां नैनो प्रौद्योगिकी पर आधारित हैं। उनका जीवन पूर्णरूपेण नियंत्रित होता है। वे अन्डरग्राउन्ड जमीन से सौ मीटर ऊपर सतह पर विसान द्वारा पहुंचते हैं जो पानी के ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन से चलते हैं। यह सब कुछ निकट भविष्य में संभव है। कल्पना करो कि युद्धों से भूमि प्रदूषित हो गई तो मानव क्या अन्डरग्राउंड शहर बनाकर नहीं बनायेगा। अतः प्रस्तुत कथा में अत्याधुनिक अन्डरग्राउन्ड लखनऊ की कल्पना विज्ञान सम्मत है। अतः गतिमान समय सरिता प्रवाह की संकल्पना हमें वास्तविक तथा ठोस वैज्ञानिक धरातल पर ले आती है। इससे कथानक अत्यन्त रोचक बन पड़ा है।
डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय के इस संग्रह की दूसरी विज्ञान कथा 'मदाम आभू' 'अमरता' पर आधारित है। अमरता को वरदान माना जाता है लेकिन यह अभिशाप भी है। कथा की नायिका 'मदाम आमू' अमृत रस का पान करती है, अमृतरस जो विशिष्ट प्रकार की जड़ी बूटियों को मिलाने से बनता है। कथा का एक पान्त आमन इसे प्रदान करता हो। वह कितने वर्ष की होगी, कोई नहीं जानता शायद हजारों वर्ष हो... आमू को अमरता मस्त जड़ी बूटियों के मिलाने से ही प्राप्त नहीं हुई। यह अमरता भी रहस्य के आवरण में लिपटी हुई है। आमू अमरता प्राप्त होने का रहस्योघाटन एक पात्र बारबू से करती है। एक दिन मृत्यु का देवता। ओमेन-रा (सूर्य) प्रकट होता है, वह उसे स्वर्ग ले जाता है तथा उसे अमरता प्रदान करता है तथा उसे पुनः धरती पर लोगों वा भविष्य जानने हेतु भेज देता है। ओमेन-रा एक सुदर्शन पुरोहित भी है। इसके पश्चात् कई हजार वर्ष बीत जाते हैं। अब मदाम आमू मृत्यु का वरण करना चाहती है अमरता अब इसके लिये अभिशाप है वह चांदनी रात में नदी किनारे ओमेन-रा को अपने साथ ने चलने के लिये आव्हान करती है। लेकिन मृत्यु देवता नहीं आते हैं। रहस्य रोमांच और मिथक का उपयोग करने से यह कथा अत्यन्त रोचक बन पड़ी है। कथा रस की सुगंध मनमोहक हो उठती है।
आमू क्यों अमरता से अब जाती है। यह रहस्यमयी है। आमू को मृत्यु प्राप्त कराने के लिये आमन पत्थर के काले पात्र में विषपान कराता है, पर उसे मृत्यु नहीं आती। अब आमू उसे अनेक औषधियों के साथ 'थियोब्रोमीन' मिलाने गके लिये कहती है। इस मिश्रण का सेवन करते ही वह जड़वत हो जाती है। थियोब्रोमीन एक विष के समान रसायन है। वैज्ञानिकता का फट कथा को विज्ञान कथात्मक बनाता है तथा रहस्य रोमांच की दुनिया से निकालकर वास्तविकता के धरातल पर ले आता है। अब बारबू, आमू की सुरक्षित रखी जड़ी बूटियों, रसायन से औषधि का निर्माण करना चाहता है। इससे वह लोग के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का उपचार कर पाने से सक्षम होगा। वह तथा आमन एक मेले में पहुंचते है। पहले वे जादू दिखाकर लोगों को आकृष्ट करते हैं और फिर रोगियों को इलाज के लिये आमंत्रित करते हैं। कथा में अनेक रोचक प्रसंग है। एक व्यक्ति के बाल झड़ रहे होते हैं, वे इसके सिर पर टालोमी के तेल की गर्म बूदें टपका कर फिर से बाल उगा देते हैं। वे इसलिए के सम्राटों तथा मित्र देवी असीमित का हवाला देकर पुरुष तथा स्त्रियों को काम बदुक दवा प्रदान करते हैं। कथा को इस तरह से गढ़ा जाता है कि मध्य युगीन परिवेश का सृजन हो सके। इससे कथा अत्यन्त जीवन्त बन पड़ी है। तिलस्म और जादू कथा का हिस्सा होते हैं। विज्ञान तकनीक परक होकर भी तिलस्म के आवरण में लिपटा होता है तथा कथा को विज्ञान कथात्मक बनाता है। कथा 'वह ग्रह' अंतरिक्ष के एक ग्रह से पृथ्वी वासियों द्वारा खनिजों के उत्खनन से संबंधित है। विश्व भर में क्षुद्र गुहों से उत्खनन कर खनिजों को लाने के लिये प्रयास जारी हो चुके हैं। धरती की खनिज सम्पदा धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। हमें। अंतरिक्ष से भविष्य में खनिजों का दोहन करना होगा। अब तो सरकार के साथ प्राइवेट कम्पनियां भी इस क्षेत्र में कूद पड़ी हैं। नासा 2017 में निअर अर्थ एस्टेरायड से खनिजों के दोहन के लिये स्पेसशिप भेज रहा है। प्राइवेट कम्पनी 'स्पेस एक्स- इस दिशा में अग्रसर है। वह मंगल पर भी मानव को
भेजने की दिशा में कार्यरत है। कथा में ग्रह के मूल निवासी मायातोरी विदेशियों के द्वारा इस ग्रह पर आधिपत्य जमाने और ग्रह के खनिज दोहन से उत्तेजित होते हैं। वे विदेशियों की हत्या करने पर आमादा है। वे युवा तकनीशियनों की हत्या करते हैं। इन हत्याओं का संचालक कौन है? इसका पता हमें वहां पहुंचे सुरक्षा विशेषज्ञ कर्नर माधवन की डायरी के कुछ अंशों, डॉ. जयालिन की रिपोर्ट, जनरल रंगतुंगे की नोट बुक को सिलसिले वार पढ़नपे से उजागर होता है। हत्यायें प्रमुख तौर पर उक्त ग्रह की वासिनी माया तोरी कर्नल इंगे के इशारों पर होती है।
वहां पहुंचे अंतरिक्ष दल का सामना मीमाकास हाइब्रिड्स से होता है। इनमें नरसिंह तथा वराह व भालू के क्रॉस से उत्पन्न जीव प्रमुख है। ये जीव चंद्रमा से भेजे गये। अभियान दल पर आक्रमण करते हैं ये मृतकों को नोंच - नोच कर भक्षण करते हैं। उन्होंने दो अभियान दलों का इसी तरह सफाया किया था। ग्रह के वासी मायातोरी एक छोटी माउन्टेरिअना पिक एक्स से दलके युवा सदस्यों की खोपड़ी पर प्रहार करते हैं। उसका नुकीला सिरा क्रेनियम के उतकों के मध्य गहराई तक करीब 10 सेमी मिड ब्रेन से धंस जाता है। माया तेारी जनों के तीन उंगलियां होती है। वे आदिवासियों की तरह सिर पर पक्षियों का मुकुट पहने हाथ में लम्बा झाला लेकर चलते हैं। वे ग्रह के परिवर्तन शील, वातावरण में रहना जानते हैं। वे अभियान दल को इसलिये मारना चाहते हैं ताकि ग्रह पर वे उत्खनन नहीं कर सकें। पहले विदेशी तीन हजार थे। अब बहुत कम लोग जीवित है। संचालिका का रहस्य माइकेल के 'मेमोरी क्यूब से पता चलता है जो उसने हत्या होने से पूर्व बलवन्त को सौंपा था। अंत में रेस्क्यू शिप से कर्नल माधवन मायातोरी पर प्रहार करते है। इंगे के सिर में लगी बुलेट उसकी जीवन लीका समाप्त कर देती है कथा में आधुनिक विज्ञान की जीवंतता को रखने के लिये कई अत्याधुनिक वैज्ञानिक शब्दों का प्रयोग हुआ है, जैसे 'इन्फार्मेशन मेमोरी क्यूब', ऑटो-क्लार्क, इलेक्ट्रोनिक डायरी गाइडेड रोबो, इन्पैक्ट पिस्तौल, इन्फो पैन आदि।
कथा 'भवानी' ठंगों के जीवन पर केन्द्रित है। ठगों का जीवन कैसा होता है। किस प्रकार ठगी की जाती है? कैसे वे सगुन अपशगुन के चक्कर में पड़ जाते हैं। ठगी की शुरूआत सगुन का संकेत मिले बिना नहीं होती। कथा नायक अमीर अली ठगी और हत्याओं के कारण सीखचों के पीछे बंद होता है। उसे फांसी लगने वाली होती है लेकिन एक दुर्दांत ढंग गणेशा को पकड़वाने का विश्वास दिलाने के कारण उसे मुक्त कर दिया जाता है। तब वह कर्नल मेडोज टेलर को ठगी की पूरी दास्तां सुनाता है। ठग बनने के लिये भवानी कर कोई न कोई संकेत मिलना चाहिये। दरख्त पर बैठे एक उल्ल की टइटराहट होती हे। यह संकेत देता है कि भवानी की कृपा हुई है तथा वह ठग बनने के लायक है। दल का एक सरदार पानी से भरे एक लौट, जो एक रस्सी से दाहिनी ओर लटकता है, को लेकर चलता और लटकता है, यदि वह गिरता है तो अपशगुन माना जाता है। कथा में पिलहाऊं और थिआऊ सगुन है। अमीर अली एक साहूकार को लूटकर उसकी हत्या कर देता ही। वह रूमाल से टेंटुआ दबाकर हत्या करता है तथा लाश को 'बिल' (कब्र) में दफना दिया जाता है। और उसके पेट में खूटी ठोक दी जाती है। जिससे वह फूलती नहीं है। पाठक को लगता है जैसे लेखक ने ठगों के क्रिया कलापों का गहन विश्लेषण किया है।
अमीर अली अपनी बीवी के मिलने की भी दांस्ता सुनाता है। एक बार अमीर अली एक रईस के रौनक दार मकान के पास से गुजर रहा था, उसे एक और की आवाज सुनाई पड़ती है। वह उसे अपनी को मालिका के पास ले जाती है। मलिका को पहली नजर में ही उससे प्यार हो जाता है। वह उसे अपनी बीवी बनाने के लिये तैयार हो जाता है। उनका मिलन अत्यन्त रोमांचक होता है। वह उससे दरगाह पर मिलने का वादा कर वहां से चला जाता है तथा अपने वालिद से अजीमां के बारे में बताता है एवं पूरे घटनाक्रम का जिक्र करता है। वालिद उसका निकाह करने के लिये तैयार हो जाता है। अमीर अली तथा उसकी प्रेयसी नियत स्थान पर मिलते हैं। बीदर पहुंचने पर मुल्ल किताब खोलकर दो चार आयतें पढ़ता है और निकाल कबूल करा देता है। रात्रि में अजीमां को भवानी दिखाई पड़ती है। इसका अर्थ था ये भवानी की दुआ मिल गई। अमीर अली बाद में ठगी का घूंघट छोड़ देता है। अजीमां की मृत्यु हो जाती हैं। वह अंत तक नहीं जान पाती है कि अली एक ठग है। अंत में फांसी से पूर्व दशहरे के दिन अमीर अली भवानी की पूजा करना चाहता है। सिपाही उसे मंदिर ले जाता है। मंदिर में वह अकेला ही प्रवेश करता है। जन अमीर काफी समय तक अली, बाहर नहीं आया तो सिपाही दरवाजा खोलकर भीतर झांकता है, पर अली वहां नहीं था। क्या वह अदृश्य हो गया? या भवानी उसे ले गयी? कथा इतनी रोचक है कि पाठक अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकता।
अंतिम कथा 'योगिराज' योग के विविध पक्षों का कथा के माध्यम से उद्घाटित करती है। योगिराज साइबरनेटिक्स इंजीनियर डॉ. हीरोजा नारायणम, डॉ. विलियस तथा मेधना इको उनके गुरु गंध बाबा के चमत्कारी सिद्धियों के बाद में बताते हैं। सिद्ध बाबा के पास काश्मीरोत्पल से निर्मित यंत्र रइवर होता है। वह जात्यान्तर यदुति का प्रयोग करते हैं। वह स्फटिक यंत्र को उठाकर उसके द्वारा गुलाब के फूल पर सूर्य रश्मियों का प्रयोग करने लगे। गुलाब के फूल में एक स्थल परिवर्तन होता है। पहले एक लाल आभा प्रस्फुटित होती है। धीरे-धीरे गुलाब का फूल अव्यक्त-अदृश्य हो गया। उसके स्थान पर एक खिला हुआ साया पुष्प प्रकट हो जाता है। यह एक प्रकार का कायान्तरण है। यह रूपान्तरण अकल्पित, अविश्वनीय अद्भुत है और यह सब बाबा के अनुसार सूर्य विज्ञान का अनुसरण करके होता है।
गंधबाबा सर्वज्ञ थे। वे लुइस रोजर्स की तरह एक ही समय में दो स्थानों पर प्रकट हो सकते थे। ऐसा वे सूक्ष्म शरीर का प्रयोग कर कर सकते थे। विष का भी उन पर कोई प्रभाव नहीं होता था। सांप बिच्छू उन्हें काटने पर मर जाते थे। वह यही नहीं रुके। भक्त के आग्रह पर अदृश्य होकर अपने शरीर के अंगों को अलग कर उनके सामने रख देते थे। और सशरीर प्रकट हो जाते। गंध बाबा के पास सिद्धियों की कोई कमी नहीं थी। एक स्त्री गंधबाबा के पास पुत्र की कामना से आती हो दूसरे ही क्षण एक शिशु उसके गोद में होता है। बाबा अदृश्य हो जाते हैं। इससे साथ ही शिशु भू अदृश्य हो जाता है और एक वर्ष पश्चात् स्त्री के गर्भ से शिशु जन्म लेता है। वे कहते हैं कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर अलौकिक सिद्धियों पाया जा सकता है। वे नाभि प्रदेश में अपने हाथों के संचालन से एक गड्ढा सा बना देते हैं। धंसे मार्ग में नाल का उदय होता है जिस पर एक सुन्दर सुगन्धित कमल पुष्प खिला होता है। इस प्रकार की कई चमत्कारी घटनाओं का उल्लेख हमें पतंजलि दर्शन में मिलेगा। स्थूल पदार्थ जत्यान्तर के फलस्वरूप अन्य पदार्थों में परिवर्तित किये जा सकते हैं। आज हम तत्वों के तत्वांतरण से भली भांति परिचित है। लेकिन मध्य युगीन युग में अलकेमी या कीमियागिरी जीवन को अमृत पान कराने तथा पारस-पाषाण की खोज, किसी से छिपी नहीं है। मनुष्य रासायन योगों द्वारा दीर्घ जीवन प्राप्त कर सकते है। महान् दार्शनिक नागार्जुन की उम्र 600 वर्ष मानी जाती है। जब डॉ. विलियम रस सिद्धि पर शंका जाहिर करते हैं तो मेघना उन्हें सुदूर मूकक्षा में गतिमान उपग्रह को निर्देशत कर बिड़ला मंदिर स्थित एक शिलालेख का विवरण प्रस्तुत करती है।
27 मई 1942 को बिरला हाउस में प. कृष्ण गोपाल शर्मा ने एक तोला सोना करीब एक तेाला पारद-मरकरी से हम सभी के सामने बनायो शिलालेख पर पारद से सोने बनाने की वििध को भी दर्शाया गया है। अन्य जगहों यथा ऋषिकेश में भी इसके प्रमाण मिलते हैं। सन् 1943 में पं. कृष्ण पाल रस वैद्य ने 16 किग्रा पारे से 16 किग्रा स्वर्ण निर्मित कर सभी को चकित कर दिया। डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय की खोज परक अन्वेष्णात्मक दृष्टि अत्यन्त श्लाघनीय है। उन्होंने इसका तालमेल आधुनिक भौतिकी को कोल्डफ्यूजन प्रक्रिया से बैठाया। हीरोता का कहना है कि यह कार्य बिना रेडियाधर्मी प्रदूषण उत्पन्न किये तथा बिना रेडियोधर्मी के तत्वों के प्रयोग के किया जा सकता है। मध्ययुग में भारतीय तलवारों की धार तीखी होने इन तलवारों की हैमरिंग करने पर फौलाद में नानोकण उत्पन्न हो जाते थे और धार की तीक्ष्णता बनी रहती थी। डॉ. उपाध्याय भारतीय प्राच्य विद्या का आधुनिक विज्ञान से साम्यता बैठाने में बेजोड़ हैं। सिद्ध योगी जब समाधिंस्थ होते हैं तो उनके मस्तिष्क से बीटा तरंगें प्रवाहित होती है। इन तरंगों को योगी के शरीर के सिर पर हृदय क्षेत्र में बाहों पर नेत्रों पर तथा छाती पर इलेक्ट्रोड को लगाकर मोनीटर स्क्रीन पर देखा जा सकता है। उभरती हुई रेखाएं क्रमशः हल्की होती जाती हैं और अंत में अदृश्य हो जाती है। इस प्रकार डॉ. उपाध्याय जी ने योग की वैज्ञानिक विवेचना की है। डॉ. उपाध्याय ने योग साधना तथा हमारे प्राच्य ज्ञान को जिस तरह कथा के माध्यम से प्रदर्शित किया है, अद्भुत है अकल्पनीय, शलाघनीय है उन्हें काटे-काटे साधुवाद। अतः प्रस्तुत संग्रह की कथाएं रहस्य, रोमांच के आवरण में लिपटी होने के बावजूद आधुनिक विज्ञान के ठोस वैज्ञानिक आधार से साम्यता बैठाने के कारण विज्ञान कथात्मक होने उद्घोषण करती है। कथाएं इतनी रोचक आकर्षण तथा मनोरंजक होती हैं कि पाठक धारा प्रवाह पढ़ने से स्वयं को रोक नहीं पाता इसके बावजूद कि वे वैज्ञानिक पुट लिये होती हैं।
ईमेल : harishgoyalsfw@gmail.com
आपकी समीक्षा ने किताब को पढने की ललक मन में उत्पन्न करी है। मै इस किताब को जरूर पढना चाहूँगा। मैंने राजीव जी की पुस्तकों को अमेज़न पे सर्च किया तो दो मिली। शुरुआत उन्ही से करता हूँ। ये ढूँढूँगा। अगर मिली तो जरूर पढूंगा। विस्तृत लेख के लिए धन्यवाद।
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