सुबह-सुबह अखबार के पन्ने पलटते हुए मेरी नजर आवश्यकता है वाले कॉलम पर जाकर टिक गई जिस पर लिखा था कि आवश्यकता है सुयोग्य युवकों की जो दूसरो...
सुबह-सुबह अखबार के पन्ने पलटते हुए मेरी नजर आवश्यकता है वाले कॉलम पर जाकर टिक गई जिस पर लिखा था कि आवश्यकता है सुयोग्य युवकों की जो दूसरों को कुशलता पूर्वक मूर्ख बना सके। आकर्षक वेतन के साथ-साथ निःशुल्क आवास और भोजन सुविधा सहित साल भर की स्पेशल ट्रेनिंग बिल्कुल फ्री। सम्पर्क करें-मूर्ख भवन, भ्रष्ट सरोवर के निकट, भ्रष्टाचार पुरम्। निःशुल्क भोजन और आवास का नाम पढ़ते ही मेरे भीतर खलबली मच गई। मेरी अब तक अर्जित अनुभव के अनुसार जो निःशुल्क सुविधा और वह भी भोजन की सुविधा का लाभ उठाने में कोताही बरते वह इस देश का नागरिक हो ही नहीं सकता। तभी तो निःशुल्क, मुफ्त, माफ जैसे शब्दों के तीर से ही चुनाव में विरोधियों को परास्त किया जाता है। वैसे तो लोग मुझे बचपन से बेरोजगार समझते हैं। लगे हाथ मुझे रोजगार मिलने का एक सुनहरा अवसर मिल रहा है तो क्यों न इस क्षेत्र में अपना भाग्य आजमा लूँ। मन में यह विचार आते ही मैं दूसरे दिन निर्धारित स्थान पर पहुँच गया। एक विशालकाय भवन के मुख्य द्वार पर मूर्ख भवन लिखा हुआ एक बड़ा-सा फ्लेक्स लगा हुआ था। मैं सीधे भवन में स्थित कार्यालय में पहुँच गया और कार्यालय प्रभारी से अखबार में छपे विज्ञापन की बातें बतलाई। उन्होंने मुस्कुराते हुए स्वागत किया और बैठने के लिए इशारा किया। मैं अपना स्थान ग्रहण कर बातचीत का शुभांरभ किया। उन्होंने सबसे पहले मुझसे प्रश्न किया आप किस तरह से लोगों को मूर्ख बनाना पसंद करेंगे? मतलब किस डिपार्टमेंन्ट में प्रवेश लेना चाहेंगे? फिर वे एक चार्ट निकालकर अलग-अलग विभाग की जानकारी देते हुए उनकी विशेषता और प्रवेश शुल्क के बारे में बतलाने लगे। मूर्ख बनाने के लिए भी इतने अधिक कोर्स संचालित है यह तो मैं पहली बार ही सुन रहा था। मैं राजनीतिक विभाग में प्रवेश लेना चाह रहा था पर इसमें अपेक्षित फीस और निर्धारित अर्हता नहीं होने के कारण प्रवेश लेना संभव नहीं दिख रहा था। मुझे असमंजस में देखकर उन्होंने समझाया-‘‘देखो बबुआ। तरक्की धीरे-धीरे ही होती है। अभी इस ब्रांच में प्रवेश लेने का सामर्थ्य नहीं है तो कोई दूसरा ब्रांच चुन लो। मैंने कहा-‘‘पर विज्ञापन में तो पहले निःशुल्क ट्रेनिंग की बातें लिखी हुई है और आप यहाँ भारी फीस का प्रावधान बता रहे है। उन्होंने कहा-‘‘भाई ट्रेनिंग तो निःशुल्क ही है पर प्रवेश शुल्क तो देना ही पड़ेगा, आगे आपकी मर्जी?
मैं दुविधा में पड़ गया। आखिर क्या किया जाय? विचार आया भाग्य आजमाने में क्या हर्ज है? कई लोग तो बुरी आदतों का शिकार होकर ही बर्बाद हो रहे है। इसमें आबाद नहीं तो बर्बाद होने की भी संभावना नहीं है। कम-से-कम लागत मूल्य तो वसूल होने की गुंजाइश तो रहेगी। मैं एक छोटे ब्रांच में प्रवेश के लिए फार्म भर दिया और निर्धारित ‘शुल्क भी चुका दिया।
कार्यालय प्रभारी ने ये हुई न बात के अंदाज में मुझे देखा और जोरदार ठहाका लगाते हुए कहा- आपकी ट्रेनिंग ‘शुरू हो गई और आपको पता भी नहीं चला है ना? ध्यान से सुनो बबुआ, मूर्ख बनाने का सबसे पहला सूत्र है आकर्षक प्रलोभन और होशियारी के साथ झूठ बोलने की कला, समझ गये। दूसरा सूत्र है हमेशा अपने आप को इतना अप-टू-डेट रखना कि देखने वाला आपको एक सभ्य, सज्जन, उच्चशिक्षित और मालदार आसामी समझे। भले ही जेब में फूटी कौड़ी न रहे पर हमेशा अपने आप को करोड़पति ‘शो करना। किसी को नौकरी लगाने के नाम पर मूर्ख बनाना है तो स्वयं को किसी अफसर से कम नहीं समझना। आज के लिए इतना सूत्र काफी है। ये तो बस थ्योरी ही है। प्रेक्ट्रिकल कल ‘शुरू हो जायेगी, ठीक है। अभी अब अपने कमरे में जाओ और आराम फरमाओ। उन्होंने एक कमरे की चाबी देते हुए एक हॉस्टल नुमा भवन की ओर इशारा किया। मैं अपना सामान लिए अपने कमरे में चला आया।
जैसे-तैसे दिन तो ढल गया पर रात होते ही मन में तरह-तरह के विचार आने लगे। कभी सोचता कहीं मैं किसी फर्जी विश्वविद्यालय के चक्कर में तो नहीं फँस गया क्योंकि आजकल इसका गोरखधंधा भी जोरों पर है। कभी सोचता कहीं किसी फर्जी कोचिंग सेन्टर के झांसे में तो नहीं आ गया। कभी सोचता कि ये स्थान मनुष्यता की गला घोटने का कोई कारखाना तो नहीं जहाँ आदमी के हृदय की संवेदना को खतम करके इतना निर्मम बना दिया जाता है कि आदमी सच्चे-सीधे और निःच्छल लोगों को जिन्दगी भर मूर्ख बनाकर मौज उड़ाता रहे। जी चाह चाह रहा था कि सुबह होते ही यहाँ से निकल भागूं। मैं इसी उधेड़बुन में खोया था तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं दरवाजा खोला तो एक अजनबी को सामने पाया वह मुस्करा रहा था। मैंने उन्हें अन्दर आने के लिए कहा। वे आकर एक कुर्सी पर बैठ गये। अपना परिचय दिया और मुझसे हालचाल पूछने लगे। कुछ सामान्य बात चीत के बाद उन्होंने पूछा-‘‘यहाँ अकेले बैठे-बैठे आपको बोर नहीं लग रहा है। पहले दिन मैं भी एकदम बोर हो गया था। धीरे-धीरे अब मन लग रहा है। चलो कहीं घूमते है यार, आपका मन बहल जायेगा।‘‘ मैं फटाफट तैयार होकर उस अजनबी के साथ कमरे से बाहर निकल आया।
वह अजनबी परिसर में स्थित विभिन्न भवनों में मुझे घुमाते हुए सबकी विशेषता बतलाने लगा। मैंने देखा एक भवन में बहुत से लोग डेस्कटाप, लैपटाप, स्मार्टफोन लेकर काम कर रहे थे। उनके आसपास बहुत सारे सिमकार्ड रखे हुए थे और कुछ एटीएम कार्ड बिखरे पड़े थे। एक होशियार टाइप का मूर्ख आदमी उन सबको कुछ सिखा रहा था। मैंने अजनबी को प्रश्नवाचक नजरों से देखा तो उन्होंने बताया-‘‘ देखो जो आदमी प्रशिक्षण दे रहा है वह साइबर ठगी का मास्टर माइंड है बाकी सब प्रशिक्षु है। यही लोग आगे चलकर साइबर ठगी में इस संस्थान का नाम रोशन करेंगे। भोले-भाले लोगों को लाटरी लगने का झांसा देकर अपने खाते में उनकी मेहनत की गाढ़ी कमाई का पैसा जमा करवा लेंगे और नौ-दो ग्यारह हो जायेंगे। कभी अपने आपको बैंक अधिकारी बताकर लोगों से उनका पासवर्ड पूछ लेंगे और उनके खाते का पैसा साफ कर देंगे। इस ब्रांच में प्रवेश लेने के लिए पढ़ा-लिखा होना आवश्यक है, समझ गये?
फिर वह मुझे दूसरे भवन में ले आया। वहाँ भजन-कीर्तन का स्वर गूँज रहा था। एक भव्य हाल में बड़ा-सा मंच बना था। मंच के बाजू में संगीत मंडली बैठी थी। मंच पर एक दिव्यटाइप का आदमी प्रवचन झाड़ रहा था। दस मिनट बाद वह आदमी मंच से उतर गया और दर्शक दीर्घा में आकर बैठ गया। फिर दर्शक दीर्घा से एक दूसरा दिव्य मंच पर चढ़कर प्रवचन झाड़ने लगा। यह क्रम लगातार चल रहा था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि इनमें से वक्ता कौन है और श्रोता कौन? श्रोता ही वक्ता बन जाता और वक्ता ही श्रोता। श्रोता बीच वक्ता है या वक्ता बीच श्रोता है। ये कौन सा-चक्कर है जो बार-बार होता है। मैं अपने साथी अजनबी की ओर देखा तो उन्होंने समझाया-‘‘भाई जिसे धर्मभीरू लोग आज तक नहीं समझ पाये उसे आप एक ही दिन में कैसे समझ जायेंगे? इन्हें अपने आप को दिव्यदृष्टि और दिव्यदृष्टि सम्पन्न समझने की कला सिखाई जा रही है। यही सब आगे चलकर सबकी समस्याओं का समाधान आशीर्वाद पद्धति से करेंगे। बिना नाव के स्वयं नदी भी पार नहीं कर सकते पर सबको इस भवसागर से पार कराने का दावा करेंगे। लौकिक दुनिया की समस्याओं से ‘शुतुरमुर्ग की तरह आँख मूँद लेंगे और पारलौकिक दुनिया की रंगीन सपनों में सबको सैर कराते हुए मौज करेंगे। सबको संतोषी सदा सुखी का संदेश देंगे पर अपेक्षित दक्षिणा नहीं मिलने पर क्रोधित हो जायेंगे और श्राप दे देने का भय दिखायेंगे। यदि आपने ध्यान दिया हो तो देखा होगा कि संगीत बजते ही दर्शक दीर्घा मे से एक आदमी उठकर नाचने लगता है। इसका आशय है कि जब ये प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कहीं खुले मंच में अपना कार्यक्रम दे तब इन्हीं के चेले-चपाटे में से कोई भीड़ से उठकर नाचने लगे जिसे देखकर बाकी लोग भी वही हरकत दोहरायेंगे।
फिर हम एक दूसरे बड़े भवन के विशाल हाल पर आ गये। वहाँ इकट्ठे सभी लोग एकदम स्मार्ट लग रहे थे। मुझे लगा कि ये सभी इस संस्थान के बड़े अधिकारी होंगे। पर उस अजनबी मित्र ने बताया कि ये सब भी प्रशिक्षु ही हैं। वहाँ एक अप-टू-डेट आदमी सबको समझाते हुए कह रहा था कि पहले पैसा, पैसे को खींचता था पर अब प्रलोभन पैसे को खींचता है। यदि साल भर में जमा राशि को दो या तीन गुणा होने का लालच दे दो तो मक्खीचूस भी अपनी अंटी से रकम निकालकर आपके हथेली में रखते हुए कहेगा, भैया मेरे पास जितना धन है सब ले जाओ और सालभर में इसे तीन गुणा कर लौटा देना। कहने में अपने बाप का क्या जाता है, तीन गुणा क्या दस गुण लौटाने की गारंटी दे दो और सब रकम इकट्ठा करके चंपत हो जाओ। मगर यह जरा जोखिम भरा काम है इसमें सावधानी आवश्यक है। इस क्षेत्र में ‘शासन-प्रशासन के नाक के नीचे यह सब करना होता है। इसलिए इस क्षेत्र में काम करते समय सेटिंग की कला को साधना बहुत आवश्यक है। अपना काम करके निकल जाओ, उनकी आदत साँप निकल जाने के बाद लकीर पीटने की तो है ही।
मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह विभाग चिटफंड कम्पनी खोलने वाले ठगों को प्रशिक्षण देती है। यहीं से प्रशिक्षित ठग जगह-जगह चिटफंड कम्पनी खोलकर गाँव-गाँव में ऊँची कमीशन का लालच देकर अपना एजेन्ट बनाते हैं। उनसे पैसा वसूल कराते हैं और करोड़ों रूपये इकट्ठा कर गधे की सींग की तरह गायब हो जाते है। ‘शासन केवल ठोस कदम उठाकर रह जाता है।
मेरा मन खिन्न हो गया। मैंने उस मित्र से विदा मांगी और अपने कमरे में आकर अपना सामान समेटते हुए सोचने लगा- अपनी शिक्षा और प्रतिभा का इससे ज्यादा दुरूपयोग और क्या हो सकता है कि हम अपनी मनुष्यता का गला घोंटकर दूसरों को धोखा दें और हराम की कमाई पर मौज करें। धिक्कार है ऐसे जीवन पर। अपनी मेहनत की कमाई से दो-जून की रोटी व्यवस्था हो जाय ,यही पर्याप्त है। सुबह की पहली किरण फूटने से पहले ही उस प्रशिक्षण केन्द्र के चौखट पर थूकते हुए मैं बाहर निकल आया।
वीरेन्द्र सरल
बोड़रा (मगरलोड़)
जिला-धमतरी(छत्तीसगढ़)
पिन कोड-493662
मो-07828243377
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