प्राण प्रतिष्ठा 'मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहुँ सो दशरथ अजिर बिहारी।।' अखण्ड रामचरित मानस के पाठ का संपुट हाईटेक ध्वनि विस्तारक यंत्...
प्राण प्रतिष्ठा
'मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहुँ सो दशरथ अजिर बिहारी।।'
अखण्ड रामचरित मानस के पाठ का संपुट हाईटेक ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से पूरे गाँव में धर्म और धार्मिकता को प्रमाणित कर रहा था।
खालिकपुर गाँव के प्रधान रामरतन ने पिता की बरसी पर हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया था। पच्चीस साल से गाँव के भाग्य विधाता रहे थे। पिछली बार का चुनाव वे जीते थे परंतु गाँव हार गया था। गांव-जवार में मुखिया दादा की तूती बोलती थी। पाँच-पाँच बेटे जिस टोले से निकलते 'अउरू का हाल हैं....फलनवाँ' कहकर जिसकी खैर-खबर ले लेते वे लोग अपने को खुश नसीब समझते। नई बहुएँ उनकी भौजाइयाँ और बेटियाँ बुआ होती थीं। जिनके प्रति इनके शिष्टाचार का जितना बखान किया जाय कम है।
पिछले कई महीनों से लोचहा गांव के पथर कटवों ने छेनी-हथौड़ी से भगवान महावीर की मूर्ति गढ़ी थी। कुम्हार टोला के मिस्त्री-कारीगरों की जुर्रत कि कहीं और कन्नी-बसुली चला सके हों। जो जिस लायक था मंदिर निर्माण में भागीदार होकर पुन्यार्जन कर रहा था। धरम के इस काम में बेगारी कोई नहीं था क्योंकि सबको इहलोक के बजाय परलोक सुधारने का अवसर जो मिला था। पुन्नि लूटने वालों से इकट्ठा हुए दूध की खीर का इंतजाम प्रसाद रूप में किया गया था। हलवाई न मुखिया जी के यहाँ पहले कभी आया था न आगे ऐसी संभावना थी।
छनई महाराज और भोला का बनाया भोजन सबको स्वादिष्ट कहना पड़ता था। अन्ना आंदोलन रामलीला मैदान में जरूर सफल हुआ था। लेकिन खालिकपुर के नायक का धिरोद्धात्त चरित्र सदाचार की परिभाषाएं रचता था।
अखण्डपाठ के समापनोपरांत अष्टसिद्धिनवनिधि के दाता, केसरी नंदन, अंजना सुत, पवनपुत्र, दुष्टदलन हनुमान जी की मूर्ति में श्वास संचार कराया गया। फूसा-फासी हो रही थी 'ऐरा-गैरा थोड़े ही हैं, पूरे विधि-विधान से करायेंगे, बनारस से आये हैं।'
षोडशोपचार चल रहा था।
स्नानम् समर्पयामि.........
धूपं-दीपं-नैवेद्यं समर्पयामि
सर्वा भावे अक्षतानि समर्पयामि
'......श्री राम दूतंशरणं प्रपद्ये।
'हनूमान जी की जय '
घोषणा की गई कि मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा हो गई है। आरती के पश्चात् भक्तजन दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
गुलमवा पथरकटा मंदिर प्रांगण के बाहर से सबकुछ निहार रहा था। उसे बता दिया गया था कि प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात् उसके स्पर्श से भगवान अछूत .......हो जायेंगे।
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अब तो निपटा दो
धन्नियों से लटके ललउवा के शव से लिपटा उसका बाप रज्जन कभी बेटे की निकली आंखों और लटकी जीभ की ओर देखता तो कभी गांव के खैरख्वाह जबर सिंह और दयाल की ओर। आंखों के आंसू सूख चुके थे। बुढ़ापे का चिराग धोखा दे गया था।
पत्नी के साथ रज्जन बेटे के विवाह की तैयारियां कर रहा था। धन से गरीब मगर दिल से राजा देवी सिंह सरीखा खर्चीला स्वभाव।
विपन्न गला काट-काटकर पैसा नहीं इकठ्ठा करते सो उदारमना होते हैं। गाढ़े-संकरे एक-दूसरे की मदद करना इनका सामान्य स्वभाव। ये दिखावे के लिए दान का ढ़िंढोरा नहीं पीटते। जब किसी ने रज्जन को काम के लिए बुलाया हां के सिवा उलट के जवाब न दिया था।
आज विधाता ने जो विपत्ति डाली उसमें कोई उसका हितू नहीं। समस्याएं, परेशानियां तो बड़ों की हैं। उनके साथ संवेदनाओं, सहानुभूतियों की फेहरिश्त है। गरीब का दुख कहां ? उसका जनम ही दुखों के लिए, तो काहे की हमदर्दी ?
पंच अपना सुविधा शुल्क लिए बिना पंचनामें के लिए तैयार न थे। ललउवा के जेब से तिरासी रुपये निकले जो उसने फांसी लगाने से पहले रिक्शा चलाकर कमाए थे।
रमरतिया के पास तीस बरस पुराना मंगलसूत्र रखा था। जिसको गोद में पाला था उसे गवां देने की पीड़ा वही समझ सकती थी। रज्जन को कोई उपाय नजर न आ रहा था।
'बच्चा तो चले गए, अब किसके लिए मरना-खपना'
बचनी सोनार के हाथ मंगलसूत्र पांच सौ रुपये में बेचकर उसने पंडित काका और ठाकुर दादा को सौ रुपये देकर पंचनामा कराया।
लाश गांव से निकली ही थी कि चौराहे पर घात लगाये पुलिस वाले पीछे लग लिए। चढ़उका चढ़ाकर ट्राली आगे बढ़ी।
हां हूजूरी और सौ रुपये देने पर भी लाश का पोस्टमार्टम रोक दिया गया।
चीर घर में ललउवा की लाश का पांचवा नम्बर था। सूर्य देव भी साथ देने को तैयार न थे। सूर्यास्त के पश्चात लाश को गंगा में प्रवाहित नहीं किया जा सकता था।
चीर घर का कर्मचारी रज्जन के कान में कुछ फुसफुसा गया।
वह सीधे अंदर जाकर डॉक्टर के पैरो में सिर रख तीन सौ तिरासी रुपये देते हुए कहने लगा
'..................साहब अब तो निपटा दो।'
डॉ. श्यामबाबू
मो.-9863531572
आत्म परिचय
डॉ. श्यामबाबू
जन्म- 20 जुलाई 1975
एम.फिल, पीएच.डी., अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन :-
रघुवीर सहाय और उनका काव्य 'लोग भूल गए हैं'
भूमण्डलीकरण और समकालीन हिंदी कविता
नई शती और हिंदी कविता
दलित हिंदी कविता का वैचारिक पक्ष
हंस, वर्तमान साहित्य, लहक, निकट, साहित्य सरस्वती, अक्षरपर्व, जनपथ, जनतरंग, लौ सहित तमाम पत्र-पत्रिकाओं में लघु कथाएं-कहानियां
प्राण प्रतिष्ठा और मुर्दों से डर नहीं लगता कहानियां चर्चित.
रूचि क्षेत्र :-
समसामयिक विषयों पर अध्ययन, विशेषतः भूमण्डलीकरण
प्रसारण :-
दूरदर्शन से साक्षात्कार
संप्रति :-
एकेडमिक काउंसलर, इग्नू, शिलांग
स्वतंत्र लेखन
संपर्क :-
85/1, अंजलि काम्पलेक्स
शिलांग ;मेघालय)
793001
मो.-9863531572
ई-मेल :- lekhakshyam@gmail.com
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