प्राची - फरवरी 2017 / जीवन में परिवार का महत्त्व / मौसमी सिंह

SHARE:

जीवन में परिवार का महत्त्व मौसमी सिंह प रिवार समाज की आधारभूत एवं महत्त्वपूर्ण इकाई है. मानव जीवन के सम्पूर्ण इतिहास में इसका महत्त्व स...

जीवन में परिवार का महत्त्व

clip_image002

मौसमी सिंह

रिवार समाज की आधारभूत एवं महत्त्वपूर्ण इकाई है. मानव जीवन के सम्पूर्ण इतिहास में इसका महत्त्व सबसे अधिक रहा है. परिवार ने अपने विकास की प्रारम्भिक अवस्था से ही व्यक्ति को वे सुविधाएँ दी हैं जो उसे एक सामाजिक प्राणी बनाने के लिए अत्यधिक आवश्यक है. यह एक जैविकीय प्राणी को सामाजिक प्राणी में परिणत करने में अपनी अद्वितीय भूमिका अदा करता है. यह सबसे पहली सामाजिक इकाई है जिससे नवजात शिशु का साक्षात्कार होता है. इसके माध्यम से शिशु सामाजिकता की जानकारी प्राप्त करते हुए स्वस्थ मानव के रूप में परिणत होता है. परिवार के विभिन्न कार्यों के परिणामस्वरूप ही व्यक्ति ने आज बर्बरता तथा असभ्यता की सीमा को लाँधकर सभ्यता के युग में प्रवेश किया है. डॉ. गोपाल शरण अग्रवाल ने लिखा है- ‘‘परिवार की सदस्यता के कारण ही व्यक्ति को एक सामाजिक मानव कहा जाता है- एक ऐसा मानव जो संस्कृति का अधिकारी है और जिसने अनेक नियंत्रणों में रहकर एक-दूसरे के विकास में सहयोग दिया है.’’ अतः इस दृष्टिकोण से परिवार द्वारा किये जाने वाले प्रमुख कार्यों के आधार पर उसके समाजशास्त्रीय महत्त्व को भली-भाँति समझा जा सकता है-

[ads-post]

परिवार के विभिन्न महत्त्व :

1. प्राणीशास्त्रीय कार्य- परिवार के प्रारंभिक विवेचन में कहा गया है कि यह पति-पत्नी तथा बच्चों का वह संगठन है जिसका प्रमुख कार्य परिवार की निरन्तरता को बनाये रखना और बच्चों के पालन-पोषण की व्यवस्था करना है. एक जैविकीय प्राणी होने के कारण मनुष्य में ऐसी अनेक जन्मजात प्रवृत्तियाँ हैं जिनकी नियमानुसार पूर्ति परिवार में ही संभव है. अतः इस संबंध में इसके तीन कार्यों का महत्त्व सबसे अधिक होता है- (क) यौनिक इच्छा की संतुष्टि, (ख) सन्तानोत्पत्ति और (ग) शारीरिक सुरक्षा. अतः परिवार एकमात्र ऐसी संस्था है जो व्यक्ति को कुछ सीमाओं के अन्दर रहकर ‘यौन’ जैसी मूलप्रवृत्ति को संतुष्ट करने के अवसर प्रदान करती है. सभी पुरुषों में पिता बनने की इच्छा और स्त्रियों में माँ बनने की इच्छा बहुत प्रबल होती है जिसकी पूर्ति केवल परिवार में ही सम्भव हो सकती है. अंत में कहा जा सकता है कि परिवार ही ऐसा स्थान है जहाँ इसके सदस्यों को सभी प्रकार की शारीरिक तथा मानसिक सुरक्षा प्राप्त होती है. परिवार के इन कार्यों के फलस्वरूप ही व्यक्तित्व का संतुलित विकास सम्भव हो पाता है।

2. सामाजीकरण का कार्य- परिवार का यह प्रकार्य विशेष महत्त्वपूर्ण है. इस कार्य को परिवार तीन रूपों में करता है- (क) सामाजीकरण के साधन, (ख) सामाजिक नियंत्रण के साधन और (ग) प्रस्थिति के निर्धारण. अतः परिवार का यह कार्य प्राणीशास्त्रीय कार्यों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है. यह केवल परिवार ही है जो व्यक्ति को प्राणीशास्त्रीय मानव से सामाजिक मानव के रूप में परिवर्तित करता है. यह व्यक्ति के जीवन को जन्म के पहले दिन से लेकर मृत्यु तक प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है. यह बच्चे को परिवार के नियमों की ही शिक्षा नहीं देता, बल्कि उसे अपने संस्कृति और लोकाचारों के अनुसार व्यवहार करना भी सिखाता है. उसी से बच्चा अपना एक ‘सामाजिक व्यक्तित्व’ विकसित करता है. इसी प्रक्रिया को सामाजीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है. इसके माध्यम से ही परिवार बच्चों को समाज के अनुकूल बनाता है. रहन-सहन, खान-पान, बोलचाल की भाषा, अभिवादन के ढंग, क्रिया-कलापों के ढंग आदि सबकुछ परिवार से मिलता है.परिवार हमारे आचरण पर नियंत्रण भी रखता है, ताकि हम समाज के विपरीत कार्य न करें. सर्वप्रथम बच्चा परिवार के वातावरण में ही दया, सहानुभूति, सद्भावना, प्रेम और एकता जैसे गुणों को सीखता है. इस समय परिवार के सदस्य बच्चे से जिस प्रकार का व्यवहार करते हैं, वे ही व्यवहार धीरे-धीरे बच्चे के व्यक्तित्व का अंग बन जाते हैं. यही कारण है कि परिवार को मनुष्य के जीवन की ‘प्रारंभिक पाठशाला’ कहा जाता है. बच्चे के युवावस्था में प्रवेश करने पर यद्यपि अनेक दूसरी समितियाँ तथा संघ उसके जीवन को प्रभावित करना प्रारंभ कर देते हैं लेकिन परिवार का महत्त्व उस समय भी समाप्त नहीं होता है क्योंकि विवाह और दूसरे सांस्कृतिक कार्य भी परिवार द्वारा ही किये जाते हैं. इसके अतिरिक्त परिवार इसी स्तर पर व्यक्ति को एक सामाजिक परिस्थिति प्रदान करता है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों को समझने लगता है और इस प्रकार समाज की आशाओं के अनुसार व्यवहार करना सीखता है.

मनुष्य के जीवन में तीसरी अवस्था तब आती है जब व्यक्ति संतान को जन्म देकर माता और पिता का पद ग्रहण करता है. इस समय व्यक्ति को पारिवारिक जीवन के नये-नये अनुभव होते हैं और वह अपनी स्थिति में कुछ परिवर्तन पाता है. इस प्रकार समाजीकरण की प्रक्रिया, जिसमें व्यक्ति समाज से अनुकूलन करना सीखता है, यह परिवार द्वारा ही पूर्ण होता है.

3. आर्थिक कार्य- परिवार एक आर्थिक इकाई भी है. इस रूप में यह चार मूल कार्यों को करता है- (क) आर्थिक सुरक्षा, (ख) उत्पादन कार्य, (ग) सम्पत्ति अर्जन एवं संग्रह और (घ) श्रम-विभाजन. परिवार सदैव से ही आर्थिक क्रियाओं के केन्द्र रहे हैं. वही सर्वप्रथम नवजात शिशु को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है. वह इसी हेतु उत्पादन करता है, ताकि शिशु का उचित भरण-पोषण हो और वह इतना कुशल हो जाए कि समुचित जीवन-यापन के लिए संघर्ष कर सके. डॉ. गोपाल शरण अग्रवाल के शब्दों में- ‘‘असभ्यता के निम्न स्तर से ही पुरुष जंगलों में शिकार करने और भोजन की खोज में चले जाते थे, जबकि परिवार में स्त्रियाँ खेती, पशुपालन तथा दूसरे कार्य करती थीं. इसके बाद परिवार में ही छोटे-छोटे उद्योगों का जन्म हुआ और इस प्रकार परिवार आर्थिक क्रियाओं तथा उत्पादन के प्रमुख केन्द्र बन गए.’’ परिवार में सभी सदस्य किसी-न-किसी प्रकार धनोपार्जन करते हैं और इस प्रकार सभी छोटे-बड़े सदस्यों की आवश्यकता को पूरा किया जाता है. इसके अतिरिक्त श्रम-विभाजन के द्वारा भी परिवार अपनी क्रियाओं को इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं जिससे सभी व्यक्तियों को अपनी कुशलता और योग्यता के अनुसार कार्य दिया जा सके. पारिवारिक सम्पत्ति की व्यवस्था करना भी महत्त्वपूर्ण कार्य है. आय और व्यय के सन्तुलन के आरम्भिक नियम व्यक्ति परिवार में ही सीखता है. सम्पत्ति के रूप में यह व्यक्ति के मकान, जमीन, आभूषण आदि की व्यवस्था अथवा संग्रहण करता है. इस प्रकार परिवार आर्थिक कार्यों को मिलकर सम्पन्न करता है.

4. धार्मिक कार्य- धर्म का पहला पाठ व्यक्ति परिवार से ही सीखता है. इसके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने

धर्मों के बारे में जानकारी प्राप्त करता है. इससे धर्म की रक्षा होती है तथा इसके द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को इसका हस्तान्तरण होता है. परिवार के परिवेश में ही व्यक्ति धर्म, परम्परा, रीति-रिवाज पूजा-पाठ, पर्व-त्योहार आदि में भाग लेता है तथा उसे समझता, जानता है.वैवाहिक कार्य और दूसरे धार्मिक संस्कारों की पूर्ति भी इसी के द्वारा संभव है. परिवार व्यक्ति के जीवन में धर्म का महत्त्व स्पष्ट करता है. अतः इस कारण कहा जाता है कि धार्मिक कार्यों को पूरा करने में परिवार का सदैव एकाधिकार रहा है. परिवार व्यक्ति के जीवन में धर्म का महत्त्व स्पष्ट करता है और इस प्रकार व्यक्ति अपने जीवन को अधिक-से-अधिक नैतिक तथा पवित्र बनाने का प्रयत्न करता है. व्यक्ति को बचपन से ही धर्म का पाठ उसके परिवार वाले देते हैं जिससे बच्चा बचपन से ही अपने धर्मों के विषय में ज्ञान पाता है और उसे वह पीढ़ी-दर-पीढ़ी धार्मिक कार्य के जरिये अपने बच्चों तक पहुँचाता है. बच्चे उसे अपनाकर अपने धर्म और संस्कृति का ध्यान रखते हुए उसे आगे बढ़ाते हैं.

5. सांस्कृतिक कार्य- परिवार के सांस्कृतिक कार्यों से तात्पर्य ऐसे कार्यों से है, जो उस समाज के मूल्यों और परम्पराओं की शिक्षा के रूप में होते हैं. एक समय विशेष में जिस प्रकार के व्यवहार संस्कृति के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाते हैं, परिवार उन्हीं व्यवहारों को अपने सदस्यों को सिखाने का प्रयत्न करता है. यदि संस्कृति में धर्म का महत्त्व अधिक है तो परिवार व्यक्ति को धर्म और इसकी क्रियाओं की शिक्षा देता है. यदि संस्कृति में धन का महत्त्व है (जैसे कि आज यूरोप में) तो परिवार भी अपनी शिक्षा के द्वारा व्यक्ति को प्रारम्भ से ही भौतिकवादी बना देता है.सांस्कृतिक तत्त्वों में किसी प्रकार का बदलाव आता है तो उससे सामाजिक संरचना में बदलाव आता है. यही सामाजिक परिवर्तन कहलाता है. उदाहरणस्वरूप- हिन्दुओं में विवाह के प्रति यह आदर्श था कि विवाह एक धार्मिक संस्कार है. अतः ‘‘परिवार का शैक्षणिक कार्य भी बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि परिवार ही बच्चे को सर्वप्रथम अपनी संस्कृति, धर्म, शिष्टाचार, व्यवहार के तरीकों तथा प्रथाओं की शिक्षा देता है. ये सभी शिक्षाएँ व्यक्ति के भावी जीवन का अभिन्न अंग बन जाती हैं. वर्तमान जीवन में परिवार के कार्यों में जो परिवर्तन हुए हैं, उनका बहुत बड़ा कारण सांस्कृतिक विशेषताओं में होने वाला परिवर्तन ही है.’’

6. मनोवैज्ञानिक कार्य- परिवार का यह कार्य मानसिक सुख एवं शांति से सम्बन्धित है. मानव एक भावुक प्राणी है. उसे स्नेह चाहिए, सहानुभूति चाहिए, अपनापन चाहिए, सुख-दुःख का सहभागी चाहिए, ताकि दुःखी मन को शांति मिले. जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक प्रकार की उथल-पुथल होती रहती है, ऐसे में मानव-मन कभी-कभी काफी टूट जाता है लेकिन परिवार व्यक्ति को स्नेह, सहिष्णुता, दया, सहानुभूति आदि के माध्यम से मजबूत बनाता है और उसे जीने की प्रेरणा प्रदान करता है. समाजशास्त्रीय अध्ययनों से यह सिद्ध हो गया कि परिवार इस मनोवैज्ञानिक प्रकार्य को कुशलता के साथ सम्पन्न करता है. परिवार के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं तथा हर मुसीबत या विपत्ति की घड़ी में सदैव एक-दूसरे का साथ देते हैं. मानसिक रूप से बड़े सदैव अपने परिवार को सहयोग प्रदान करते हैं तथा इसकी देख-रेख करने का कार्य करते हैं.

7. मनोरंजन संबंधी कार्य- परिवार में मनोरंजन-संबंधी कार्यों का महत्त्व भी कम नहीं है. एम. एल. गुप्ता और डी. डी. शर्मा ने सही लिखा है- ‘संयुक्त परिवार में सदस्यों की अधिकता के कारण यह मनोरंजन की सस्ती व पर्याप्त स्थली है.’ एक समय था जब परिवार मनोरंजन के एकमात्र केन्द्र थे. संध्या को सभी कार्यों से निवृत्त होकर परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठते थे और कहानी एवं चुटकुलों द्वारा परिवार का मनोरंजन होता था. भारत के ग्रामों में तो परिवार के लोग आज भी सबसे अधिक मनोरंजन करते हैं और लोक-कथाओं के माध्यम से संस्कृति का विकास करते हैं. नाच-गान, खेल, कहानियाँ और पौराणिक गाथाएँ कुछ विशेष साधन हैं जिनके द्वारा परिवार के सदस्य इस कार्य को पूरा करते हैं. इस संबंध में एक विशेष बात यह है कि परिवार द्वारा प्रदान किये जाने वाले मनोरंजन का अन्तिम उद्देश्य केवल व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करना होता है. इसी कारण पारिवारिक मनोरंजन को आज भी मनोरंजन का सबसे स्वस्थ स्वरूप समझा जाता है, जिसमें बच्चों की प्यारी-प्यारी बोली, हँसना-हँसाना, बच्चों का पारस्परिक झगड़ा, दाम्पत्य प्रेम एवं रोमांस, कथा-कहानी आदि मनोरंजन प्रदान करते हैं. परिवार में मनाया जाने वाला पर्व-त्योहार, धार्मिक क्रिया-कलाप, विवाह-उत्सव आदि भी मनोरंजन के साधन हैं. परन्तु आज के आधुनिक समाज में जबसे घरों में टेलीविजन, रेडियो, कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, इन्टरनेट आदि का आगमन हुआ है तब से परिवार आधुनिक मनोरंजन का विशेष केन्द्र बन गये हैं.

8. शैक्षणिक कार्य- अरस्तू ने कहा है कि परिवार बच्चों का प्रथम पाठशाला रहा है. सर्वप्रथम बच्चे पारिवारिक परिवेश में ही दया, प्रेम, अपनापन, त्याग, सहयोग, आज्ञापालन, कर्त्तव्य निष्ठा, परोपकार जैसे गुणों की शिक्षा प्राप्त करते हैं. यह शिक्षा बच्चा एक-दूसरे के प्रति व्यवहार के क्रम में प्रतिदिन के जीवन में प्राप्त करता है इसलिए इसका शिशु मन पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि बच्चे अपने बचपन में जो सीखते हैं, आगे चलकर वही अपनी बाद की पीढ़ी को सिखाते हैं. प्रथम पाठशाला के रूप में परिवार अपने बच्चों को अच्छे-बुरे का ज्ञान देता है, इनमें फर्क समझाता है. बचपन से ये सब बातें हमारे परिवार के बड़े सदस्यों के द्वारा सिखाई जाती हैं जिसे बच्चे अपने सम्पूर्ण जीवन में व्यवहार करते हैं. बचपन से ही बच्चों को हँसना और रोना परिवार के द्वारा ही सिखाया जाता है. अतः यह परिवार का एक महत्त्वपूर्ण कार्य कहलाता है.

9. राजनीतिक प्रकार्य- परिवार को राजनीतिक क्रिया-कलाप का भी केन्द्र कहा गया है. एक तरफ यह राज्य एवं देश के प्रति व्यक्ति के कर्त्तव्य को स्पष्ट करता है तथा राज्य और देश के प्रमुख नियमों से हमें अवगत कराता है, तो दूसरी तरफ राजनीतिक व्यवहार को भी निर्देशित करता है. चुनाव-काल में सामान्यतः देखा जाता है कि एक ही परिवार के सभी मताधिकारी प्रायः एक ही उम्मीदवार को वोट डालते हैं. यह वोट देने की क्रिया पारिवारिक निर्णय पर आधारित होती है, साथ ही यदि परिवार का कोई सदस्य राजनीति में पूर्णतः लगा होता है तो परिवार के अन्य सदस्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में अपने सदस्य की मदद करते हैं. वे उसे जिताने में अपना सहयोग हर तरह से प्रदान करते हैं जिससे उस व्यक्ति को राजनीतिक तौर पर अपने परिवार का सहयोग प्राप्त होता है.

10. अन्य कार्य- उपर्युक्त समस्त कार्यों के अतिरिक्त परिवार, व्यक्ति तथा समाज के लिए अन्य महत्त्वपूर्ण सेवाएँ भी प्रदान करता है. ऐसे कार्यों में व्यक्ति को राज्य के प्रमुख नियमों से परिचित कराना, प्रमुख अनुभवों को आगामी पीढ़ी के लिए संचरित करना, मनोवैज्ञानिक रूप से सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करना, व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का निर्धारण करना तथा मानवीय गुणों की शिक्षा प्रदान करना परिवार के महत्त्वपूर्ण कार्य हैं. परिवार द्वारा किये जाने वाले इन महत्त्वपूर्ण कार्यों के आधार पर ही गोल्डस्टीन ने कहा था- ‘‘परिवार वह स्थान है जिसमें भविष्य का जन्म होता है और ऐसा शिशुगृह है जिसमें एक जनतांत्रिक सामाजिक व्यवस्था का निर्माण होता है.’’ इस प्रकार परम्परा के द्वारा परिवार अतीत से सम्बद्ध है लेकिन सामाजिक उत्तरदायित्वों के आधार पर इसका संबंध भविष्य से भी है. परिवार द्वारा सिखाए गए कार्यों से उस बच्चे के एक कुशल भविष्य का निर्माण होता है.

इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों से पता चलता है कि परिवार व्यक्ति एवं समाज के प्रति महत्त्वपूर्ण कार्यों को सम्पादित करता है जिससे एक कुशल व्यक्ति का निर्माण होता है तथा उसके पश्चात् एक कुशल परिवार का निर्माण उसी व्यक्ति के द्वारा किया जाता है. अतः इसे प्राथमिक एवं मौलिक इकाई कहा जाता है. चाहे तो हम कह सकते हैं कि परिवार वह संस्था है जिसमें भविष्य का जन्म होता है और यह एक ऐसा शिशुगृह है, जिसमें एक जनतांत्रिक सामाजिक व्यवस्था का निर्माण होता है. समाज के लिए परिवार द्वारा किये जाने वाले कार्यों का उद्देश्य व्यक्ति को अपने विकास के लिए जरूरी सुविधाएँ प्राप्त कराता है. दूसरी ओर व्यक्ति के प्रति किये जाने वाले कार्यों का उद्देश्य सामाजिक संस्था में संतुलन तथा एकरूपता उत्पन्न करना है. हमारी पारिवारिक संरचना तथा कार्यों में आधुनिक युग में हो रहे परिवर्तनों के कारण परिवार में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं. विवाह-विच्छेद, दाम्पत्य जीवन में मतभेद, माता-पिता तथा बच्चों के संबंधों में तनाव, संयुक्त परिवार के प्रति बढ़ती हुई उदासीनता इन समस्याओं में प्रमुख हैं. आज परिवार का प्रभाव पहले की अपेक्षा कम हो गया है, फिर भी उपर्युक्त विशेषताओं को देखते हुए हम कह सकते हैं कि परिवार का महत्त्व आज भी बना हुआ है. यह व्यक्ति के व्यवहारों पर नियंत्रण रखने वाली प्रभावशाली संस्था है. सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में परिवार के महत्त्व और इसके एकाधिकार में किसी तरह की कमी नहीं आई है.

संदर्भ सूचीः

1. अग्रवाल, डॉ. गोपाल कृष्ण, समाजशास्त्र, साहित्य भवन पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स (प्रा.) लि. आगरा, 2001, पृ. 101

2. वही, पृ. 102

3. वही, पृ. 102

4. गुप्ता, एम.एल. और शर्मा, डॉ. डी. डी., समाजशास्त्र, साहित्य भवन पब्लिकेशन, आगरा, 2016, पृ. 60

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - फरवरी 2017 / जीवन में परिवार का महत्त्व / मौसमी सिंह
प्राची - फरवरी 2017 / जीवन में परिवार का महत्त्व / मौसमी सिंह
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRgZ3wmyZT1oNPlU343ybHk7loZrX7L0XM6bW20mU7YLj7LFrl4y7PLJ6TxS6cBg0x4WsdutkzOow-Lq6C8m91BbL_dQZ9eaCiPGmBKsKRTAYdPHOy6-_CxTwamUqJCMVJ0tD_/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRgZ3wmyZT1oNPlU343ybHk7loZrX7L0XM6bW20mU7YLj7LFrl4y7PLJ6TxS6cBg0x4WsdutkzOow-Lq6C8m91BbL_dQZ9eaCiPGmBKsKRTAYdPHOy6-_CxTwamUqJCMVJ0tD_/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/04/2017_96.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/04/2017_96.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content