हनुमान मुक्त के 2 व्यंग्य

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‘ इसकी टोपी उसके सर’ सदियों से टोपा और टोपी अपना विशिष्ट स्थान रखते आए हैं। इन्हें लेकर बहुत से मुहावरे प्रचलन में है तो बहुत सी शिक्षाप्र...

इसकी टोपी उसके सर’

सदियों से टोपा और टोपी अपना विशिष्ट स्थान रखते आए हैं। इन्हें लेकर बहुत से मुहावरे प्रचलन में है तो बहुत सी शिक्षाप्रद कहानियाँ । टोपा और टोपियों का इतिहास काफी पुराना है।

सर ढकने के बड़े परिधान अर्थात बड़ी टोप को टोपा और छोटे परिधान को टोपी कहा जाता है। टोपा पुल्लिंग ओर टोपी स्त्रीलिंग शब्द है।

जहाँ टोपा का प्रयोग टोकरा और सिलाई के लिये लगाये जाने वाले टाँके के लिए किया जाता हैं वहीं टोपी का प्रयोग सिर पर पहनी जाने वाली वस्तु के आकार की गोल और गहरी चीज या उसी आकार के धातु के गहरे ढक्कन जिससे बंदूक पर चढ़ाकर घोड़ा गिराने से आग पैदा होती है के लिए और उस थैली के लिए जिसे शिकारी जानवर के मुँह पर चढ़ाया जाता है, प्रयोग किया जाता है।

यूं तो टोपा ओर टोपी दोनों ही विशिष्ट है लेकिन टोपे से ज्यादा टोपियों ने अपनी नाजुक मिजाजी के कारण अधिक प्रसिद्धि पाई है।

हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को टोपी पहनाने को तैयार बैठा रहता है अगर आपने शालीनता से टोपी पहनने से इनकार कर दिया तो आप टोपी पहनाने वाले समुदाय के कोपभाजन बन सकते हैं और दूसरे लोग जो आपको ऐसा करते देख रहे हैं, वे आपकी इस शालीनता को बदतमीज़ी ओर बदमिजाजी तक कहकर आपको कटघरे में खड़ा करके उस टोपी पहनाने वाले का अपमान करने वाला सिद्ध कर सकते हैं।

टोपियाँ पहनने की परम्परा काफी पुरानी रही है। टोपियों की बनावट विशेष के आधार पर इन टोपियों ने अपना अलग-अलग नाम करण तक करवा लिया है।

स्वतंत्र भारत में गाँधी टोपी काफी प्रसिद्ध है इसको प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय हमारे राजनेताओं को दिया जाता है। महात्मा गाँधी ने अपने सर पर इस टोपी को अपने जीवनकाल में कितना धारण किया, इसके बारे में पुख्ता तो कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन गाँधी छाप नेताओं ने इसे अलग ही स्थान दिलवा दिया है।

उस जमाने के व्यापारी ने भी जिसकी टोपियों को पेड़ पर बैठे बंदर उठाकर ले गये थे और जिन्हें व्यापारी ने अपनी बुद्धिमत्ता से पुनः बंदरों से ले लिया था, ने भी टोपियों को काफी प्रसिद्धि दिलाई है।

टोपियों के सबसे बड़े हितैषी मेरे मित्र कॉमनसैन्स हैं। उन्होंने टोपियों के खेल का सार्वभौमीकरण कर दिया है। वे पहले दूसरों की टोपी उछाला करते थे। इसके बाद उन्होंने उस टोपी से वॉलीबॉल खेलना शुरू कर दिया। एक दिन वह टोपी हाथों से फिसलकर नीचे आ पड़ी और उन्होंने उसमें लात मार दी। दूसरी की टोपी में लाते मारने से उन्हें इतना आनंद आया कि उन्होंने वॉलीबॉल के स्थान पर फुटबॉल खेलना शुरू कर दिया। आजकल वे दूसरों की टोपी उछालकर उससे फुटबॉल खेलते है। उनका यह फुटबॉल का खेल बहुत प्रसिद्ध हो गया है। दूर-दूर से लोग दूसरों की टोपी उछालने और उसे पैरों से ठोकर मारने की बारीकियां सीखने उनके पास आते हैं। टोपियों के इस खेल ने भी टोपियों को काफी प्रसिद्धि दिलाई है।

कॉमनसेन्स, हमेशा दूसरों की गलतियों सबक लेते हैं। जब उन्हें, उनके टोपी पहनने से इनकार करने पर हुये बवेले का पता चला , तब से उन्होंने किसी के भी द्वारा पहनायी जाने वाली टोपी को पहनने से इनकार करना बंद कर दिया।

एक दिन उन्हें कोई टोपी पहना रहा था। टोपी बिलकुल उनके सर के नाप की थी और उन्हीं के लिये बनवाई गई थी। उन्होंने तुरंत उसे बाईपास कर दूसरे को पहना दिया। पास खड़े लोग उनके शागिर्द थे। वे जानते थे कॉमनसेन्स क्या कर सकता है। उन्होंने उस टोपी को आगे पास कर दिया और टोपी आगे बढ़ती बढ़ती नॉनसेन्स के सर पर जाकर रूक गई। नॉनसेन्स इस टोपी के खेल को नहीं समझ सका । कॉमनसेन्स से उसकी दूर-दूर तक दोस्ती नहीं थी ।

टोपी पहनने का उसे कोई अनुभव नहीं था और ना ही उसे टोपी के वजन के बारे में पहले से कोई अंदाजा ही था। आनन-फानन में हुये इस टोपी के खेल के चक्कर में फंस कर वजन से जब धंसने लगा तब बचाओ-बचाओ कहकर चिल्लाया। उसे चिल्लाते देखकर कॉमनसेन्स और उसके संगी साथी जोरों से नॉनसेन्स की मूर्खता पर हँसने लगे। उन्हें हंसी इस बात पर आ रही थी कि नॉनसेन्स को इतना भी नहीं मालूम कि ‘इसकी टोपी उसके सर’ खेल में कभी कोई एक दूसरे को नहीं बचाता। इस खेल में एक ना एक को तो टोपी के वजन से धंसना ही होता है। जिसके पास कॉमनसेन्स नहीं है वही इस खेल में शिकार होता है अन्य सभी शिकारी।

इस खेल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कोई एक विजयी नहीं होता बल्कि कोई एक पराजयी होता है अन्य सभी विजयी। आजकल कॉमनसेन्स के इस खेल का बहुत बोलबाला है।लोग हमेशा सजग रहते हैं, पता नहीं कब कोई टोपी पहना दे और वह नॉनसेन्स की तरह शिकार हो जाये। ‘इसकी टोपी उसके सर’ खेल ने टोपियों को एक अलग ही पहचान दिलवा दी है।

बाबा की जवानी

जब से बाबाओं को जवानी आने लगी है तभी से अपना बाबाओं से मोह भंग हो गया है। मोह भंग होने का कारण सिर्फ बाबाओं को जवानी आना ही नहीं बल्कि उस जवानी का सार्वजनीकरण हो जाना है।

बाबा चोला ही ऐसा है कि इसको धारण करने मात्र से आप चरित्रवान बन जाते हैं। लोग आप पर सहज ही विश्वास करने लग जाते हैं। आप पर अविश्वास करने का कोई कारण दूर-दूर तक नजर नहीं आता। इस चोले को आपने धारण किया है अथवा उम्र के कारण या अन्य हार्मोनल प्रभाव से चाहे आप बाबा जैसे दिखने लग गए हों। जमाना आप को सम्मान की नजर से ही देखता है। चन्द्रबदन, मृगलोचनी आप को घास नहीं डालती। चाहे उसे देख कर आपके मुँह से कितनी ही लार क्यों ना टपक रही हो। सब इस चोले की महिमा है। तभी तो केशव ने कहा है-

‘केशव केश न अस करि, असि औरन कराय। चन्द्रबदन, मृगलोचनी, बाबा कहि-कहि जाय।’

इस बात को बाबा का चोला पहने बाबाओं को भी समझना चाहिए। यदि अंदर जवानी फूट रही है तो आवश्यक नहीं है कि आप बाबा बनें। ऐसा चोला धारण करें, जो लोगों की आस्थाओं को डगमगा दे। उन्हें गृहस्थ धर्म का पालने करते हुए बाबा चोले को बदनाम नहीं करना चाहिए। बाबाओं को अंदर से बुढ़ापा आ ही नहीं सकता। इतना अपार जन समूह, खाने पीने को मेवा मिष्ठान्न, चारों ओर जय-जयकार। एक निश्चित दिनचर्या। खाने-पीने, रहने की किसी प्रकार की कोई चिन्ता नहीं। उनके शिष्य इस सारे काम को बहुत अच्छे ढंग से मैनेज कर लेते हैं। बाबाओं की रोजी-रोटी के साथ, उनकी भी रोजी-रोटी का प्रबंध हो जाता है। जब ये सब सहज ही मिल रहा होता है तो उनकी जवानी कहाँ जायेगी? मन तो चंचल है। इसे कैसे समझाये? ये कभी भी, कहीं भी भटक जाता है। यह भौंरा है, कभी इस फूल पर तो कभी उस फूल पर। इस भौंरे को पता ही नहीं रहता कि वह बाबा के चोले के अंदर बैठा है।

निराशा राम ने अच्छा सा चोला धारण कर रखा था। सब लोग उसे बाबा ही समझते थे। काफी दिनों से चोला धारण किये होने से वह चोला कर्ण के कवच - कुण्डलों की तरह उसके शरीर से चिपक गया था। लोगों को उसके शरीर और चोले में कोई अंतर नहीं दिखता था। लोग समझ रहे थे कि जैसा निराशा राम बाहर से दिख रहा है, वैसा ही अंदर से होगा। पूरी तरह बाबागिर्दी चल रही थी। कहीं कोई अविश्वास नहीं।

निराशा राम को जब कभी ज्यादा गर्मी लगती थी तब उस चोले को एकांत में उतारकर कुछ समय के लिए टांग देता था। बाहर अपने कॉन्फिडेंशियल व्यक्तियों को चौकसी पर बैठा देता। इससे अन्य लोगों का लगता कि बाबा एकांत साधना कर रहे हैं। उन्हें क्या पता बाबा एकांत में चोला उतारकर अपनी गर्मी दूर कर रहे हैं। यह सब बरसों से चल रहा था। कभी भी बाबा को और उनके भक्तों को उनकी एकांत साधना से किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई।

एक दिन मौसम बहुत गर्म था। बाबा को चोले के अंदर छटपटाहट महसूस हो रही थी। वह तेजी से डग बढ़ाता हुआ अपने एकांत कक्ष की ओर बढ़ने लगा। गर्मी का प्रकोप कुछ ज्यादा ही था। चोले के बटनों पर हाथ चला गया। एकाध बटन खुल भी गये। वैसे एकांत कक्ष के आस-पास कॉन्फिडेंशियल व्यक्ति ही पहरे पर रहते हैं, लेकिन उस दिन जल्दबाजी में कॉन्फिडेंशियल के चोले में अन कॉन्फिडेंशियल व्यक्ति भी आ खड़े हुये। वे बाबा को भगवान समझते थे। बाबा के चोले के अंदर क्या है? इससे वे पूरी तरह अनभिज्ञ थे।

बाबा के चोले के खुले बटनों से उन्हें बाबा का अंदर का रूप दिख गया। वे उसे देखकर बिदक गये। बाबा तेजी से अंदर चला गया। अन कॉन्फिडेंशियल व्यक्तियों को कॉन्फिडेंशियल समझने की बाबा ने भूल कर दी।

एकांत वास में रहकर चोला टांगकर गर्मी का प्रकोप कम कर बाबा हल्के-फुल्के होकर, गुनगुनाते हुए बाहर निकले। उन्हें अब तक पता नहीं था कि उनकी बरसों की साधना थोड़ी सी जल्दबाजी में आज धूमिल होने जा रही है। अन कॉन्फिडेंशियल भक्तों ने बाहर आकर हल्ला मचा दिया कि यह बाबा नहीं है। असली बाबा तो और कोई है। हमारे बाबा का किसी ने अपहरण कर लिया है। इस ढोंगी ने हमारे बाबा का चोला धारणकर रखा है। अंदर से ये बहुत काला है, गंदा है, घिनौना है। इसे मारो, पीटो।

उन भक्तों की बात सुनकर बाबा और उनके निजी कॉन्फिडेंशियल व्यक्ति सकते में आ गए। वे जानते थे कि बाबा ही क्या, वे भी अंदर से वैसे ही हैं, जैसा बताया जा रहा है। लेकिन अब करें तो क्या करें? इसने बाबा का वास्तविक रूप देख लिया है और हमने इन्हें कॉन्फिडेंशियल मानने की भूल कर दी है।

बाबा और उनके निजी काले भक्तों ने मंत्रणा की। इतने बड़े साम्राज्य की नींव हिलती दिखाई देने लगी। तय हुआ कि इस प्रकार की बात कहने वाले अन कॉन्फिडेंशियल व्यक्तियों को वैरागी करार दे दिया जाए। बाबा ने अपने सत्संगों में कहना शुरू कर दिया कि फलां भक्त पर ईश्वर की विशेष कृपा हो गई है। उसका दिमाग चल गया है। सांसारिक मार्ग छोड़कर उसने वैराग्य धारण कर लिया है। उसे हमारे विशेष वैरागी भक्तों की जमात में रहने को वैरागी आश्रम भिजवा दिया है। बाबा को निरावृत देखने वालों लिए ही वैरागी आश्रम बनाया गया है। जो कि पूरी तरह कॉन्फिडेंशियल है। उसके अते-पते के बारे में बाबा और उसके दो-चार निजी व्यक्ति ही जानते हैं अन कॉन्फिडेंशियल व्यक्ति कहाँ है? इसे सिर्फ बाबा ही जानते हैं।

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रचनाकार: हनुमान मुक्त के 2 व्यंग्य
हनुमान मुक्त के 2 व्यंग्य
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