नागरी लिपि उद्भव और विकास / शशांक मिश्र भारती

SHARE:

(प्रस्तुत निबन्ध लेखक द्वारा वरिष्ठ वर्ग में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित प्रतियोगिता -95 -96 हेतु लिखा...

(प्रस्तुत निबन्ध लेखक द्वारा वरिष्ठ वर्ग में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित प्रतियोगिता -95 -96 हेतु लिखा गया व पुरस्कृत हुआ)

नागरी लिपि के उद्भव और विकास को जानने के लिए यह आवश्यक है, कि हम पूर्ववर्ती साहित्य को देखें। प्राचीन काल के साहित्यिक ग्रन्थों वैदिक और बौद्ध साहित्य को देखने से स्पष्ट होता है, कि भारत में लेखन कला का प्रचार चौथी शताब्दी ई0 पू0 से बहुत पहले उपलब्ध था; जब कि इसके विपरीत योरोपीय लोगों का मानना है कि भारतीयों ने चौथी, आठवीं या दसवीं शती ई0 पू0 में लेखन कला का ज्ञान प्राप्त किया। जो कि मेरी दृष्टि में नितान्त सारहीन ,खोखला तथा भारतीयों को सांस्कृतिक दृष्टि से निम्न स्तर का प्रमाणित करने का षडयंत्र है।

नागरी लिपि का प्रयोग उत्तर भारत में 10 वीं शताब्दी से पाया जाता है। तो वहीं दक्षिण भारत में इसका प्रयोग 8 वीं श्ाती में ही विद्यमान था। जहां इसका नाम नंदिनागरी था। उत्तर और दक्षिण भारत के लिपि सम्बन्धी प्रयोग देखने के बाद यह तो स्पष्ट ही है ; कि 10 वीं शताब्दी में देवनागरी नाम प्रचलन मे था। दसवीं शताब्दी से आज तक देवनागरी की वर्णमाला मे पर्याप्त विकास हुआ। इसका स्वरूप शनैः -शनै : सुन्दर से सुन्दर तर अक्षरों के रूप में बदलता गया। जहां तक शिलालेख ,ताम्रपत्र, अभिलेख आदि का सम्बन्ध है तो इस काल में लिखे गए राजस्थान, संयुक्त प्रान्त, बिहार, मध्य भारत तथा मध्यप्रान्त के सभी लेख देवनागरी लिपि में ही पाये जाते है।जिनसे देवनागरी के उद्भव व विकास के क्षेत्र में सामग्री जुटाने हेतु पर्याप्त बल मिलता है।देवनागरी लिपि के विकास व प्रारम्भिकी स्थिति पर कुछ निष्कर्ष सामने आते हैं। जैसा कि दसवीं शताब्दी की नागरी में कुटिल लिपि की भांति अक्षरों का सिर चौड़ाई सदृश्ा और दो भांगों में विभाजित होता था। किन्तु ग्यारहवीं शती की नागरी लिपि वर्तमान देवनागरी से मिलती -जुलती है। बारहवीं शताब्दी आते -आते यह पूर्णतया आज की वर्तमान वैज्ञानिक लिपि देवनागरी हो जाती है अर्थात् आधुनिक समय की देवनागरी लिपि आज से नौ सौ साल पहले की नागरी लिपि का ही परिष्कृत रूप है। जिसने समय व परिस्थितियों के साथ स्वंय को बदला है। सभी से अनुकूलन कर सामंजस्य स्थापित किया है। देवनागरी ,नागरी की दसवीं शताब्दी से आज तक की विकास यात्रा पर डॉ0 गौरी शंकर हीराचन्द ओझा जी ने पर्याप्त प्रकाश डाला है। उनके अनुसार-'' ईसा की दसवीं शताब्दी की उत्तरी भारत की नागरी लिपि में कुटिल लिपि की नाई अ, आ, प, म, य, श् औ स् का सिर दो अंशों में विभाजित मिलता है, किन्तु ग्यारहवीं शताब्दी मे यह दोनों अंश मिलकर सिर की लकीरें बन जाती हैं और प्रत्येक अक्षर का सिर उतना लम्बा रहता है जितनी कि अक्षर की चौड़ाई होती है।ग्यारहवीं शताब्दी की नागरी लिपि वर्तमान नागरी लिपि से मिलती -जुलती है और बारहवीं शताब्दी से लगाातार आज तक नागरी लिपि बहुधा एक ही रूप मे चली आती है। '' ( भारतीय प्राचीन लिपि माला पृष्ठ संख्या- 69-70)

अन्य सार्थक पहलुओं के साथ देवनागरी लिपि के विकास मे अंकों की भूमिका भी अत्यन्त महत्वपूर्ण रही है, जिनका विकास क्रमिक रूप से हुआ है जो अंक -1 सातवीं और आठवीं शताब्दी तक पड़ी रेखा (-) के रूप मे लिखा जाता था। वही परिष्कृत होकर दसवीं शताब्दी आते -आते सीधी (।) खड़ी रेखा में लिखा जाने लगा। इसी भांति 2 और 3 की भी स्थिति हुई; जो आगे चलकर आज के इन वर्तमान रूप एवं स्वरूपों को प्राप्त हुए।

देवनागरी के नामकरण के सम्बन्ध में विद्वानों में पर्याप्त मत भेद रहा है। देवनागरी अथवा नागरी लिपि नाम क्यों पड़ा ? इस पर विभिन्न विद्वानों ने अपने -अपने विचार व्यक्त किये है। एक किन्तु ठोस सर्वमान्य मत कोई प्रस्तुत नहीं कर सका है। फिर भी हम प्रत्येक पर क्रमश्ाः प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे-

1-कुछ विद्वान इसका सम्बन्ध नागर ब्राह्मणों से लगाते हैं, जो कि गुजरात में अधिक संख्या में हैं तथा वे इसका प्रयोग करते थे। इसी लिए यह लिपि देवनागरी कही जाने लगी।

2-एक दूसरे मत के अनुसार नागरी अर्थात् नगरों में प्रचलित होने के कारण नागरी कहलायी। नागरी से पूर्व 'देव' शब्द देवताओं का वाची है और इसी आधार पर इसे देवनागरी कहा जाता है।

3-इस मत के अनुसार - तान्त्रिक मन्त्रों में बनने वाले कुछ चिन्ह देवनगर कहलाते थे जिनसे मिलते -जुलते होने से इसका नाम लिपि से जुड़ गया और यह लिपि देवनागरी हो गयी।

4-आइ0 एम0 शास्त्री जी के विचारानुसार - ''देवताओं की मूर्तियां बनने के पूर्व सांकेतिक चिन्हों द्वारा उनकी पूजा होती थी। ये चिन्ह कई त्रिकोण तथा चक्रों आदि से बने हुए मंत्र थे; जो देव नगर कहलाता था के मध्य लिख जाते थे। देवनगर के मध्य लिखे जाने के कारण अनेक प्रकार के सांकेतिक चिन्ह कालान्तर में उन -उन नामों के पहले अक्षर माने जाने लगे और देवनगर के मध्य में उनका स्थान होने से उनका नाम देवनागरी हुआ।''

5- ललित विस्तार में संकेतित '' नाग'' लिपि नागरी है। 'नाग' से नागरी होना सरल है का उल्लेख मिलता है। जिसका तीव्र विरोध करते हुए डा0 एल0डी0 वार्नेट ने कहा है-''कि 'नागलिपि' का नागरी लिपि से कोई सम्बन्ध नहीं है।''

6-काशी (वाराणसी) का दूसरा नाम देवनगर है। यहां प्रचलित होने के कारण देवनागरी स्पष्ट शब्दों में यही देवनागरी है।

7-डॉ0 धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार -मध्य युग में स्थापत्य की एक शैली नागर थी। उसमें चतुर्भुज आकृतियां होती थीं। इन चर्तुमुखी आकृतियों के कारण ही इसे देवनागरी कहा गया।

उपयुक्त सभी मत देखने से स्पष्ट होता है, कि सभी परस्पर विरोधी हैं तथा एक -दूसरे से अत्यन्त दूर जान पड़ते हैं। नागरी शब्द नागर से निर्मित हुआ है जिसका अर्थ है -नगर का अर्थात् सभ्य, शिष्ट और शिक्षित। वस्तुतः जिस लिपि में सभ्य, शिष्ट, सुसंस्कृत और परिष्कृत रुचि वाले व्यक्यिों द्वारा साहित्य रचा और लिखा गया ।वही नागरी लिपि कहलायी और कालान्तर में अपने विकास के आयामों का स्पर्श करती हुई देवनागरी लिपि के रूप में जानी जाने जगी ।

देश व समाज में होने वाले सांस्कृतिक ,राजनीतिक व नैतिक परिवर्तनों सें भाषा व लिपि अछूती रह जाए ऐसा तो संभव ही नहीे है। देवनागरी लिपि पर भी देश की परिवर्तित परिस्थितियों, सांस्कृतिक आक्रमणों ,राजनीतिक अस्थिरता, सामाजिक, धा`िर्मिक आन्दोलनों का पर्याप्त प्रभाव पड़ा। देवनागरी लिपि विभिन्न भाषाओं और उनके प्रभावों से प्रभावित हुए बिना न रह सकी।देवनागरी को सर्वाधिक प्रभावित किया है फारसी ने। क्योंकि भारत भूमि फारसी के प्रभाव में निरन्तर आठ सौ वर्षौं तक रही है। यही वह समय भी था। जब नागरी विकास के सोपान चढ़ रही थी और ऐसी स्थिति में अधिक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। जिसके परिणाम स्वरूप देवनागरी में जिह्नामूलीय ध्वनियां क, ख, ग,फ, आदि विकसित हुईं। डॉ0 भोलानाथ तिवारी के अनुसार-'' नागरी में नुक्ते या बिन्दु का प्रयोग निश्चित रूप से फारसी का प्रभाव हैं मध्य युग में कुछ लोग य, प दोनों को य जैसा और व, ब को व लिखने लगे थे। फारसी के बाद यदि किसी भाषा या संस्कृति ने सर्वाधिक प्रभावित किया है; तो वह अंग्रेजी ही रही है। जिसके प्रभाव वश देवनागरी लिपि में अनेक परिवर्तन हुए। परिणामत : आज भी यदि कोई अंग्रेजी पढ़ा-लिखा देवनागरी में लिखता है, तो वह अंग्रेजी की ही भांति बिना लेखनी उठाये लिखता चला जाता है। अंग्रेजी ने हमारे विराम चिन्हों ,उद्धरण चिन्हों, अल्प -अर्द्ध विराम आदि को भी प्रभावित किया है। यदि हम पूर्ण विराम को छोड़ दे तो लगभग सभी पर अंग्रेजी का प्रभाव परिलक्षित होता है। कुछ विद्वजन तो ऐसे भी देखे जा सकते हैं जो आज तक पूर्ण विराम के लिए पाई (। ) का प्रयोग न कर केवल (ं ∙) बिन्दु का उपयाग करते हैं बल्कि यह दुर्भाग्य अथवा लिपि के भाग्य की बिडम्बना ही कही जाएगी। कि आज भी कुछ हिन्दी पत्रिकाएं पूर्र्ण विराम के लिए मात्र बिन्द ु(∙) को ही मान्यता देती हैं। अंग्रेजी प्रभाव के सन्दर्भ में डॉ0 भोलानाथ तिवारी का मत है कि-'' भाषा के प्रति जागरूकता के कारण कभी-कभी ह्नस्व ए ,ओ के द्योतन के लिए अब ऐं , ओं का प्रयोग भी होने लगा है।''

बंगला लिपि का देवनागरी के विकास पर कोई विशेष प्रभाव न पड़ सका। हाँ डॉ0 मनमोहन गौतम का मत अवश्य इस सम्बन्ध मे उदधृत करना चाहेंगे। उनके अनुसार- ''अक्षरों की गोलाई पर बंगला का प्रभाव अवश्य दिखलाई पड़ता है। चौकोर लिखे जाने वाले अक्षर अब गोलाई में लिखे जाने लगे हैं।''

मराठी ने भी देवनागरी लिपि को प्रभावित करने में कोई कृपणता नहीं की। बल्कि इसके प्रभाववश एक ही वर्ण दो -दो रूपों में प्रचलित हुआ है। उदाहरणार्थ -न्न्र -अ, भ - झ आदि।

गुजराती लिपि ने भी देवनागरी को प्रभावित किया है। चूँकि गुजराती लिपि शिरोरेखा विहीन लिपि है। इस कारण परिणामतः आज भी अनेक विद्वान शिरोरेखा के बिना ही लिखते चले जाते हैं। जिनमें से अधिसंख्य गुजराती साहित्य से प्रभावित ही हैं।

देवनागरी लिपि की विशेषताओं पर यदि हम दृष्टि डालें तो पाते हैं ,कि यह आज की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। जिसकी सर्व प्रिय विशेषता है - जैसा लिखना वैसा पढ़ना। इसमें अंग्रेजी अथवा उर्दू की भॉति लिखा कुछ और पढ़ा जाता कुछ नहीं ; बल्कि इसकी ध्वनियां इतनी पूर्ण व सशक्त हैं, कि इसमें जो जैसा लिखा जाता है वैसा ही बोलकर पढ़ने की अपूर्व क्षमता है। इसके उच्चारण स्थान मुख, तालु , मूर्धा, दन्त्य और ओष्ठ में विभाजित है। जिस क्रम में उच्चारण के स्थान हैं। ठीक वही क्रम स्वर व व्यंजन के विभाजन का भी है। इसमें स्वर -व्यंजनों की तरह एक ही वर्ण को कई -कई ध्वनियों के रूपों में प्रयोग नहीं किया जाता है, बल्कि प्रत्येक ध्वनि के लिए एक अलग वर्ण है। संसार की किसी भी भाषा -लिपि में स्वरों की मात्राएं भी निश्चित नहीं हैं। लेकिन देवनागरी लिपि के स्वरों की मात्रायें भी निश्चित की गई हैं। यह ध्वनि प्रधान लिपि है। वर्णों का क्रम उच्चारण स्थानों के आधार पर क्रमबद्ध किया गया है।प्रत्येक उच्चारण स्थान की ध्वनि भिन्न होती है। किसी भी ध्वनि के लिए हमें किसी प्रकार की न्यूनता का आभास नहीं होता है। तुलनात्मक दृष्टि से भी देखें तो देवनागरी लिपि अति उत्तम है।अंग्र्रेजी और उर्दू की भॉति वर्ण संकेतों की अल्पता नहीं है। कुँवर को कुनवर ,जेर जेबर, पेश का अभाव जैसी समस्यायें भी नहीं हैं। बल्कि इसमे मात्राओं का निश्चित विधान मिलता है। ह्नस्व और दीर्घ की मात्राएं भी निश्चित हैं।

निष्कर्षत : नागरी के नाम से आरम्भ की गई अपनी यात्रा के अनेक पड़ावों ,भाषायी प्रभावों मत - मतान्तरों आदि को अपने में आत्मसात करती हुई देवनागरी अपने विकास के उच्चतम शिखर की ओर बढ़ रही है। जिसमे उसकी सरलता, बोधगम्यता ,उच्चारण की शुद्धता, वैज्ञानिकता ध्वनि लिपि की विशेषता पर्याप्त योग देकर नूतन आयामों को स्पर्श कराने में सहयोग कर रही है। आशा है कि लिपि देवनागरी अपने लक्ष्य तक की यात्रा बड़ी सुगमता से पूर्ण कर लेगी।

शशांक मिश्र भारती संपादक - देवसुधा, हिन्दी सदन बड़ागांव शाहजहांपुर - 242401 उ.प्र. दूरवाणी :-09410985048/09634624150

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. बेनामी1:13 am

    Most world languages have modified their alphabets and use most modern alphabet in writings. Vedic Sanskrit alphabet have been modified to Devanagari and to simplest Gujanagari(Gujarati) script and yet Hindi is taught in a very printing ink wasting complex script to millions of children in India.
    Why not adopt a simple script at national level?
    Indian states can retain their languages,scripts and culture by teaching government propagated Hindi/Sanskrit in regional scripts to impart technical education through a script converter or in India's simplest Gujanagari script along with a Roman script to revive Brahmi script. Maharashtra has lost Modi script in 1950 in order to teach three languages in one script. Bihar also has lost Bhojapuri(Kaithi) script in 1894.
    Westerners were able to simplify Brahmi script to their proper use but Sanskrit pundits ended up creating complex script by adding lines and matras on letters.These pundits also have divided India further by creating various complex scripts for regional languages/dialects under different rulers.
    http://www.ancientscripts.com/brahmi.html

    अ आ इ ई उ ऊ ऍ ए ऐ ऑ ओ औ अं अं अः...........Devanagari
    અ આઇઈઉઊઍ એ ઐ ઑ ઓ ઔ અં અં અઃ..........Gujanagari(Gujarati)
    a ā i ī u ū æ e ai aw o au an am ah.......Roman

    क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ड ढ ण
    ક ખ ગ ઘ ચ છ જ ઝ ટ ઠ ડ ઢ ણ
    ka kha ga gha ca cha ja jha ṭa ṭha ḍa ḍha ṇa

    त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व
    ત થ દ ધ ન પ ફ બ ભ મ ય ર લ વ
    ta tha da dha na pa pha ba bha ma ya ra la va

    श स ष ह ळ क्ष ज्ञ
    શ સ ષ હ ળ ક્ષ જ્ઞ
    sha sa ṣa ha ḽa kṣa gya

    क का कि की कु कू कॅ के कै कॉ को कौ कं कं कः
    ક કા કિ કી કુ કૂ કૅ કે કૈ કૉ કો કૌ કં કં કઃ
    ka kā ki kī ku kū kæ ke kai kaw ko kau kan kam kah

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: नागरी लिपि उद्भव और विकास / शशांक मिश्र भारती
नागरी लिपि उद्भव और विकास / शशांक मिश्र भारती
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiC-bpDZci2PQqjtdYcwj1us6-Sxwn4PYeC-pGyrkjwU8Y5HrfxF3d7VMzwwQsiDg2WhceAlLF5DgSSK7PGW-ctY4bw3OpleLn_KPuxdp2Bd2gjyX_865uHUy2ihCtuKzwAAsZ3/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiC-bpDZci2PQqjtdYcwj1us6-Sxwn4PYeC-pGyrkjwU8Y5HrfxF3d7VMzwwQsiDg2WhceAlLF5DgSSK7PGW-ctY4bw3OpleLn_KPuxdp2Bd2gjyX_865uHUy2ihCtuKzwAAsZ3/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/03/blog-post_70.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/03/blog-post_70.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content