अपशब्द –विवेचनम’ होली पर गालियों की याद आना स्वाभाविक है. आप सभी को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हिंदी साहित्य ने गाली युग में प्र...
अपशब्द –विवेचनम’
होली पर गालियों की याद आना स्वाभाविक है.
आप सभी को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हिंदी साहित्य ने गाली युग में प्रवेश कर लिया है . होली पर अपशब्दों की याद आना स्वाभाविक है . वैसे साहित्य से पहले गाली युग राजनीति में चल रहा था. अब स्थिति ये हुई है कि साहित्य , कला संस्कृति,पत्रकारिता सभी में गाली युग अवतरित हो गया है . जो लोग गाली नहीं दे सकते उनको इन विधाओं में काम करने की आज्ञा नहीं होगी. वही साहित्य श्रेष्ठ माना जायगा जो गालियों से भरपूर होगा. साहित्य अकादमी पुरस्कार पद्म पुरस्कार व् अन्य पुरस्कारों के लिए यह एक अनिवार्य शर्त होगी. गाली लिखो पुरस्कार पाओ, साहित्य में एक नया नारा बन गया है . गालियों की बौछार करने वाले को ही सबसे बड़ा लेखक माना जायगा. किताब के हर पन्ने पर जितनी ज्यादा गालियाँ होगी लेखक उतना ही बड़ा माना जायगा. कवि लोग कविता में मांसलता की तलाश कर रहे हैं ,कहानीकार अश्लील ,अपशब्दों से भरपूर कहानी लिख रहे हैं , व्यंग्य तो स्वयम एक गाली है , उपन्यासों में हर दूसरे पेज पर गाली नामा नमूदार हो रहा है.सौंदर्य जिज्ञासा के नाम पर गाली साहित्य थोपा जा रहा है .गालियों का जंगल है, उसमें सब तरफ गालियों के झाड़-झंखाड़ हैं और वक्ता लोग अरण्य रोदन कर रहे हैं.गालियों पर सेमिनार, वर्क शाप ,कोंफ्रेंस हो रहे हैं और वक्ता ,प्रवक्ता गालियों पर गालियाँ पेल रहे हैं .गाली देने की आज़ादी मांग रहे हैं.
मुझे छुटपन से ही गालियां सुनने का बड़ा अनुभव है , पहले घरवाले देते थे. बाद में मास्टरजी ने दी, फिर मित्रों ने दी फिर साहित्य में साथी लेखकों ने दी , आलोचकों ने भी अपना धर्म निभाया , पाठक क्यों पीछे रहते, उन्होंने भी खूब दी.संपादक भी अपने कर्तव्य को पूरा करते रहते हैं.
गालियाँ हर जाती ,धर्म ,भाषा ,लोक संस्कृति में दी जा सकती है .विवाह तक में गालियाँ गाई जाती है . मित्र तो अक्सर गाली से शुरू होकर गाली पर ही ख़त्म हो जाते हैं इधर एक बड़े लेखक की किताबें पढ़ी हर पन्ने पर गालियां ही गालियाँ . भर पूर गालियाँ . शायद वे खुद भी एक गाली है साहित्य में .
हर भाषाविद जानता है गाली दो अपना काम निकालो..शायद कुछ दिनों में हिंदी में एक गाली कोश बन जायगा जो सभी के काम आयगा .गालियाँ देने का भी मौसम होता है , होली,बसंत , मूर्ख-दिवस , चुनाव ,वेलेंटाइन,आदि गाली देने के लिए मौजूं समय होते हैं .
गालियों का अध्ययन विस्तृत हो सकता है अश्लील गाली देना सर्वत्र होता है इसे रोका जाना चाहिए.सेक्स सम्बन्धी गलियों पर रोक लगाई जानी चाहिए.स्त्री वाचक गली तो आम बात है ,इस पर कठोर दंड होना चाहिए.
कभी मूर्ख, महामूर्ख ,वज्र मूर्ख मूर्ख शिरोमणि ,गुंडा, गुंडी ,कामचोर, हरामखोर,वैश्या,डायन राक्षस , भ्रष्ट , काहिल ,गंवार ,करम हिन् ,चालू ,चमचा , असुर, गधा, तुमडा, तम्बूरा ,निक्कमा ,नपुंसक ,हिंजड़ा ,सूअर ,कुत्ता, बैल ,लोमड़ी .आतंकी चोर,नीच,उठाईगिरा, डाकू ,उचक्का ,नीच कमजर्फ ,भूत,प्रेत, चुड़ैल ,कलमुहीं ,नासपीटी चंडाल,फासिस्ट ,प्रतिक्रियावादी,तानाशाह,नादिरशाह,भी गाली थे अब तो ये सब सामान्य बातें हो गई है .एक नयी गाली पिछले दिनों सुनी –बाथरूम में रेन कोट पहन कर नहाना सच में मज़ा आ गया .संसद में बहस कम गलियों का आदान-प्रदान ज्यादा होता है .
मूर्ख विद्वान भी एक गाली ही है .गालियों का आनंद देने में ही हो ऐसा नहीं है गालियों को सुनना भी एक आनंद है . हमारी लोकसंस्कृति में जो गालियां दी जाती है वे तो आनन्द देती हैं . गाली का मिजाज़ समय, परिस्थिति,,काल पर निर्भर करता है .माँ ,बहन , साला,आदि को लेकर जो गालियाँ जन समाज में प्रचलित हैं उन को रोकने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए.
राजनीति में तो चुनाव में हरा देना ही सबसे बड़ी गाली है और साहित्य में चोरी का आरोप लगाना भी बड़ी गाली है मेरे जैसे हजारों लेखकों पर अपने स्वार्थों के लिए ऐसे आरोप लगते रहे हैं , आरोप लगाने वाले चल बसे. पुलिस जो गालियाँ देती है ,उनको सुनकर अभियुक्त सभी अपराध बिना किये ही कबूल कर लेता है ,ऐसा शास्त्रों में लिखा है .गेंगस्टर जो गालियाँ आपस में देते हैं वे फिल्मों से उधर ली जाती है .
अश्लील गाली लिखना भी एक कला है , लेखक तुरंत कह देता है कहानी की मांग के अनुसार गाली लिखी है , वैसे ही जैसे हीरोइन कहती है कि कहानी की मांग पर शरीर दिखाया है .
संसद , विधानसभा, नगर निगम, पंचायत तक में गाली देना एक आम बात है .महिला लेखिकाएं भी गाली लिख कर स्वयम को धन्य समझ रहीं है. गाली महात्म्य कभी खतम होगा ऐसा समझना गलत होगा, मगर गाली खाना जारी है . वैसे गाली से गूमड़ नहीं होते ऐसा सयाने लोगों ने कहा है .
छोटी, मोटी ,पतली ,लम्बी, ठिगनी का ली ,गोरी आदि गालियों पर एक विषद विवेचन संभव है.गाली पुराण, गाली उपनिषद ,गाली रामायण गाली महाभारत भी संभव है. द्रौपदी ने अंधे का पुत्र अँधा कह कर महाभारत करवा दिया था.सास बहु के धारावाहिकों में भी नयी नयी गालियों का आविष्कार होता रहता है .मीठी मनुहार से लगा कर आग लगा देती है गालियाँ .सड़क पर गालियाँ गोलियों की तरह चल सकती हैं ,कभी कभी आपको हवालात में भी पहुंचा सकती है .
होली पर गालियों की याद आना स्वाभाविक है.
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गालियों का अध्ययन विस्तृत हो सकता है अश्लील गाली देना सर्वत्र होता है इसे रोका जाना चाहिए.सेक्स सम्बन्धी गलियों पर रोक लगाई जानी चाहिए.स्त्री वाचक गली तो आम बात है ,इस पर कठोर दंड होना चाहिए.
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