पौराणिक चतुरंगिणी एवं अक्षौहिणी सेना क्या थी ? 'मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता ''मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति प...
पौराणिक चतुरंगिणी एवं अक्षौहिणी सेना क्या थी ?
'मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता
''मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति
प्राचीन ग्रन्थों एवं पुराणों में पौराणिक चतुरंगिणी एवं अक्षौहिणी सेना का यत्र तत्र वर्णन प्राप्त होता है । श्रीमद्भागवत-महापुराण में प्रथम स्कंद के आठवें अध्याय में अक्षौहिणी सेना का उल्लेख किया गया है -
आह राजा धर्मसुतश्चिन्तयन् सुहृदां वधम् ।
प्राकृतेनात्मना विप्राः स्नेहमोहवंश गतः ।।
अहो मे पश्यताज्ञानं ह्नदि रूढ़ं दुरात्मनः ।
पारवयस्यैव देहस्य बहयों मेऽक्षैहिणीर्हताः ।।
श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कंन्ध अध्या.8-47-48
सूतजी शौनकादि ऋषियों से कहते है कि धर्मगुरू राजा युधिष्ठिर को अपने स्वजनों के वध से बहुत चिन्ता हुई । वे अविवेकयुक्त चित्त से स्नेह और मोह के वश में पड़कर कहने लगे - भला मुझ दुरात्मा के ह्नदय में बद्धमूल हुए इस अज्ञान को तो देखो मैंने सियार - कुत्तों के आहार इस अनात्मा शरीर के लिये अनेक अक्षौहिणी सेना का नाश कर डाला । पांडवों की सेना 7 अक्षौहिणी थी तथा कौंरवों की सेना सख्या 11 अक्षौहिणी थी। इनका योग 18 है तथा युद्ध भी 18 दिन ही चला।
अक्षौहिणी सेना का ऐसा ही वर्णन श्रीवामनपुराण के पचपनवे अध्याय में वर्णित है -
धूम्राक्ष गच्छ तां दुष्टां केशाकर्षणविहृवलाम्
सापराधां यथा दासीं कृत्वा शीध्रमिहानय।।
यश्चास्याः पक्षकृतः कश्चिद् भविष्यति महाबलः ।
स हन्तव्योऽ विचायैंव यादि हि स्यात् पितामहः।।
स एवमुक्तः शुम्भेन धूम्रोक्षोऽक्षौहिणीशतैः ।
वृतः षड्भिर्महातेजा विन्ध्यं गिरिमुपाद्रवत् ।।
श्रीवामनपुराण अध्याय 55-41-44
शुम्भ ने कहा कि धूम्राक्ष ! तुम जाओं उस दुष्टा को अपराधिनी दासी की तरह केश खींचने से व्याकुल कर यहाँ शीघ्र ले आओ। यदि उसका कोई पराक्रमी बनकर उसका पक्ष ले तो तुम बिना सोच विचार कर उसे वहीं मार डालना-चाहे ब्रह्मा ही क्यों न हों । शुम्भ के इस प्रकार कहने पर उस महान तेजस्वी धूम्राक्ष ने 6 सौ अक्षौहिणी सेना साथ लेकर विन्ध्य पर्वत पर चढ़ाई कर दी । किन्तु वहाँ उन दुर्गा को देखकर दृष्टि चौंधिया जाने से उसने कहा -मूढ़े आओ आओ ! कौ`िश्कि ! तुम शुम्भ को अपना पति स्वीकार करने की इच्छा करो, अन्यथा मैं बलपूर्वक तुम्हारें केश पकड़कर तुम्हें घसीटता हुआ व्याकुल रूप से यहाँ से ले जाऊँगा ।
चंतुरंगिणी सेना में हाथी घोड़े ,रथ और पैदल सैनिक होते थे इन्हीं सब को मिलाकर चतुरंगिणी सेना बनती थी ।
हाथी पर कम से दो व्यक्तियों का होना आवश्यक था। एक महावत या पीलवान और दूसरा योद्धा रहता था। इसी प्रकार एक रथ में दो व्यक्ति रहते थे । एक सारथी दूसरा योद्धा रहता था । रथ में दो या चार धोड़े जुते रहते थे ।
एक अक्षौहिणी सेना में रथ, धुड़सवार, (अश्वारोही) तथा पैदल सैनिकों की संख्या इस प्रकार होती थी -
गज - 21870 इन सभी संख्याओं का योग 18 होता है
रथ - 21870 इन सभी संख्याओं का योग 18 होता है
धुड़सवार - 65610 इन सभी संख्याओं का योग 18 होता है
पैदल सैनिक - 109350 इन सभी संख्याओं का योग 18 होता है
योग - 218700 इन सभी संख्याओं का योग 18 होता है
इस प्रकार प्रस्तुत उदाहरण के अनुसार पांण्डवों की 7 अक्षौहिणी सेना इस प्रकार थी -
गज 153090
रथ 153090
धुडसवार 459270
पैदल सैनिक 765450
कौरवों की 11 अक्षौहिणी सेना
गज 240570
रथ 240570
धुडसवार 721710
पैदल सैनिक 1202850
एक अक्षौहिणी सेना को 9 भागों में विभाजित किया जाता था -
1- पत्ती -इसमें 1 गज + 1रथ+3 धोड़े +5 पैदल सैनिक इनका योग 10
2- सेनामुख (3 गुणा पत्ती) 3 गज ,3 रथ , 9 धोड़े , 15 पैदल सैनिक कुल 36
3- गुल्म -(3 गुणा सेनामुख) 9 गज + 9 रथ + 27 धोड़े + 45 पैदल सैनिक योग 90
4- गण - (3 गुणा गुल्म )27 गज हाथी +27 रथ + 81 धोड़े 135 पैदल सैनिक योग 270
5- वाहिनी- (3 गुणा गण)81 गज हाथी +81 रथ + 243 धोड़े 405 पैदल सैनिक योग 810
6- प्रतिमा (पतना) - (3 गुणा वाहिनी)243 गज हाथी +243 रथ + 729 धोड़े 1215 पैदल सैनिक कुल योग 2430
7- चमू (3 गुणा प्रतिमा)729 गज हाथी +729 रथ + 2187 धोड़े 3645 पैदल सैनिक कुल योग 7290
8- अनीकिनी- (3 गुणा चम )2187 गज हाथी +2187 रथ + 6561 धोड़े 10935 पैदल सैनिक योग 21870
9- अक्षौहिणी- (10 गुणा अनीकिमी) 21870 हाथी +21870 रथ + 65610 धोड़े 109350 पैदल सिपाही इस प्रकार इन सब का कुल योग - 218700
इस तरह चारों अंगों के 218700 सैनिक बराबर बराबर विभाजित होते थे प्रत्येक ईकाई का एक प्रमुख होता था ।
1ण् पत्ती , सेनामुख , गुल्म ,एवं गुण के नायक अर्धरथी कहलाते थे ।
2ण् वाहिनी, प्रतिमा ,चमू ,एवं अनीकिनी, के नायक रथी कहलाते थे ।
3ण् एक अक्षौहिणी सेना का नायक प्रायः एक अतिरथी होता था ।
4ण् एक से अधिक अक्षैहिणी सेना का नायक प्रायः : महारथी होता था ।
पांण्डवों और कौरवों की सेना में अर्र्धरथी ,रथी, अतिरथी, एवं महारथियों का वर्णन है.
अक्षौहिणी सेना की सरल सारिणी
सरल क्रमांक | सेना की ईकाई | हाथी | रथ | अश्व | पैदल सैनिक | योग |
1ण् | पत्ती | 1 | 1 | 3 | 5 | 10 |
2ण् | सेनामुख | 3 | 3 | 9 | 15 | 30 |
3ण् | गुल्म | 9 | 9 | 27 | 45 | 90 |
4ण् | गुण | 27 | 27 | 81 | 135 | 270 |
5ण् | वाहिनी | 81 | 81 | 243 | 405 | 810 |
6ण् | प्रतिमा | 243 | 243 | 729 | 1215 | 2430 |
7ण् | चमू | 729 | 729 | 2187 | 3645 | 7290 |
8ण् | अनीकिनी | 2187 | 2187 | 6561 | 10935 | 21870 |
अनिकिनी गुणित 10 | अक्षौहिणी | 21870 | 21870 | 65610 | 109350 | 218700 |
इनमें हाथी ,रथ , अश्व, एवं पैदल सैनिकों की कुल संख्या के अंकों का योग 18 ही होता है । युद्ध भी 18 दिन ही चला और समाप्त हो गया ।
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डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता ‘मानस शिरोमणि’
सीनियर एम.आई.जी. 103 व्यास नगर,
ऋषिनगर विस्तार,
उज्जैन (म.प्र.) 456010
फोन नं. 07342510708, मोबा. 9424560115
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