हिन्दी के वैश्विक संदर्भ : अधुनातन संदर्भ पुस्तक पुस्तक का नाम :- हिन्दी का विश्व संदर्भ लेखक का नाम :- डा. करूणाशंकर उपाध्याय प...
हिन्दी के वैश्विक संदर्भ : अधुनातन संदर्भ पुस्तक
पुस्तक का नाम :- हिन्दी का विश्व संदर्भ
लेखक का नाम :- डा. करूणाशंकर उपाध्याय
प्रकाशक :- राधाकृष्ण प्रकाशन प्राईवेट लिमिटेड
दरियागंज, नई दिल्ली-110002
संस्करण : 2016
मूल्य :- 550 रुपये मात्र, पृष्ठ 187
मो.नं.- 9869511876
डॉ. करूणाशंकर उपाध्यायजी लिखित हिन्दी का विश्व संदर्भ एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। पुस्तक में उन्होंने वैश्विक हिन्दी की वास्तविक स्थिति का अद्यतन संदर्भ का जिक्र किया है। जो कि काफी सूचनाप्रद है। इस पुस्तक में चौदह अध्यायों में हिन्दी के वैश्विक संदर्भ पर प्रकाश डाला गया है।
वर्तमान समय में विश्व की बदलती हुई व्यवस्था को देखते हुए ऐसा लगता है कि 21 वीं शताब्दी भारत और चीन की होगी। दोनों परस्पर आयातक और निर्यातक होंगे। इसका मुख्य कारण है कि चीन द्वारा अति कम लागत पर वस्तुओं का निर्माण करना तथा भारत के द्वारा सस्ती चीजों को खरीदना तथा उसका उपयोग करना। भारत विशाल जनसंख्या वाला देश है। यहाँ सस्ते सामानों की खपत सुरसा के बढ़ते हुए मुख की भाँति है। अत: इन दोनों के बीच सेतु का काम भाषा करती है और वह हिन्दी है। जो कि राष्ट्रभाषा की गंगा से विश्व भाषा का गंगा सागर बनने जा रही है।
डा. उपाध्याय के अनुसार पुस्तक में दी गई जानकारी के मुताबिक विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है। द्वतीय सोपान पर मंदार और तृतीय पादान पर अंग्रेजी है। इस वैश्वीकरण की दुनिया में हिन्दी जानने वालों की संख्या 1200 मिलियन है तथा मंदारिन जानने वालों की संख्या 1050 मिलियन है। अगर इस आँकड़े को सरल और सुबोध भाषा में व्यक्त किया जाय तो हिन्दी जानने वालों की संख्या 1 अरब 29 करोड़ 86 लाख 17 हजार 995 है। यह संख्या विश्व की कुल आबादी की 18% है। यहाँ हर छठवाँ आदमी हिन्दी जानता है। इसका मुख्य कारण भारतीयों को दूसरे देशों में रोजी रोटी के लिए प्रवासन की दर का ज्यादा होना तथा भाषा संदूषण को होना।
हिन्दी एक समृद्ध भाषा है। इसका इतिहास लगभग 1200 वर्ष पुराना है। इसके खजाने में काव्य साहित्य दूसरे दर्जे पर आसीन है। इसमें साहित्य सृजन अंधाधुन हो रही है। जैसे कि महानगरों में भवन का। हिन्दी माध्यम में अनके पाठ्यक्रम भी चलाए जाते है। बिहार, उ.प्र., राजस्थान एवं मध्यप्रदेश में अभियांत्रिकी पाठ्यक्रम हिन्दी में ही पढ़ाए जाते है। अंग्रेजी माध्यम मात्र भर है। इसका जीता जागता प्रमाण महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा हिन्दी माध्यम से एम.बी.ए तथा एल.एल.बी. की पढ़ाई का संचालन करना है। हिन्दी को ज्यादा सफल बनाने के लिए इसे रोजगार से जोड़ना उचित होगा। रोजगार अर्थव्यवस्था से जुड़ी होती है और अर्थव्यवस्था समृद्धि से। यही कारण है कि विदेशी उत्पादक अपने उत्पाद की जानकारी हिन्दी में लिखकर जनता के बीच अपनी खपत बढ़ा रहे हैं। इसके समानान्तर मीडिया क्षेत्र में भी बड़े-बड़े प्रकाशक अपने समाचार पत्र और पत्रिकाएँ हिन्दी में प्रकाशित कर रहे है। उदाहरण स्वरूप इकानॉमिक टाईम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड, आऊटलेक और इंडिया टूडे है।
हिन्दी के प्रचार-प्रसार में मीडिया का भी बड़ा महत्व है। हमारी हिन्दी विश्व के विभिन्न हिस्सों में उपग्रह द्वारा प्रसारित चैनलों के जरिए घर घर में पहुँच रही है। इतिहास साक्षी है कि सन् 1935 ई. में रेवरेंड फादर कामिल बुल्के बेल्जियम निवासी गोस्वामी तुलसीदास की हिन्दी से प्रभावित होकर भारतीयता स्वीकर कर लिए थे। अत: हिन्दी का विश्व संदर्भ चारों ओर फैल रही है।
हिन्दी भाषा के उद्भव और अद्यतन विकास के संदर्भ में लेखक का मानना है कि हिन्दी का इतिहास काफी पुराना है। यह वैदिक काल से ही शुरु होता है जो कि ऋगवेद पर आश्रित है। यह मूलत: छन्दों से निर्मित है। छन्द लेखन का सर्वप्रथम महर्षि वाल्मीकि ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ रामायण में किया। ‘हिन्दी’ हिन्द शब्द का विशेषण है। जिसका अर्थ है हिन्द का। इस तरह हिन्दी अनेक कालों को पार कर आज अपना सिर ऊँचा कर विश्व पटल पर छाने जा रही है।
वर्तमान समय में प्रयुक्त भाषा मात्र 1000 वर्ष पुरानी है। इस पर विभिन्न विद्वानों के विभिन्न मत हैं। भाषा वैज्ञानिक डा. हरदेव बाहरी की मान्यता है कि वैदिक भाषा ही सबसे पुरानी हिन्दी है। इस अध्याय में हिन्दी की संपूर्ण विकास यात्रा प्रस्तुत की गई है। हमारे प्रधानमंत्री हिन्दी के प्रचार-प्रसार को निरन्तर विश्व भाषा के रूप में गति प्रदान कर रहे हैं।
डा. उपाध्याय के अनुसार मॉरिशस में भी हिन्दी का बाहुल्य है। मॉरिशस को हिन्दी विरासत में मिली है। सन् 1832 से 1920 ई. के बीच भारत से एक अनुबन्धन के तहत करीब 4,50,595 मजदूर मॉरिशस लाए गए थे। वे मुख्य रूप में पूर्वी उत्तर प्रदेश या बिहार के थे। जिन्हें A, B, C, D के नाम से जाना जाता था। अर्थात आरा, बलिया, छपरा तथा देवरिया। उनकी मातृभाषा भोजपुरी थी। तथा वे हिन्दी भी जानते थे। तभी से वहाँ हिन्दी और भोजपुरी का बाहुल्य है। तथा सभी भारतवंशी हिन्दी बोलते और जानते हैं। ये सभी भारतीय संस्कृति का भरपूर पालन करते हैं। देश के आजादी के बाद हिन्दी तथा अन्य भाषाओं को बोलने वालों को मताधिकार का अधिकार मिला।
भारत के गिरगिटिया मजदूर ने अपने मेहनत के बदौलत वहाँ भी अपना खूंटा गाड़ दिया। मॉरिशस में 1948 में चुनाव हुआ। भारतवंशी 11 लोग विजयी हुए। पूर्वी क्षेत्र के लोगों में इतनी विद्ववत्ता और लगन था कि वे अपनी योग्यता के बदौलत 12 मार्च, 1968 में भारतवंशी सर शिवसागर वहाँ के प्रथम प्रधानमंत्री बने। वे बिहार के आरा के रहने वाले थे। सन् 1976 ई. में मॉरिशस में द्वतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हुआ। इसका उद्घाटन शिवसागर गुलाम जी ने ही किया था। तदन्तर 24 से 29 फरवरी, 2009 में द्वितीय विश्व भोजपुरी सम्मेलन का आयोजन हिन्दी की बहुलता को बतलाता है। हिन्दी को विश्व स्तर की भाषा और इसे मान्यता दिलाने के लिए 2007 में विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना हुई। तथा हिन्दी का पहला अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्र विश्व हिन्दी समाचार यहाँ से प्रकाशित होती है।
मॉरिशस में भी हिन्दी सर्व दिशाओं में गतिशील है। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को स्थान दिलाने के लिए हिन्दी भाषी देश सतत प्रयत्नशील है। संयुक्त राष्ट्र संघ में कामकाज की भाषा भी हिन्दी होनी चाहिए। अगर वह संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बन जाती है तो उनके आधार पर विश्व व्यापी भाषा बन जाएगी। इसे अधिकारिक भाषा बनाने के लिए सतत प्रयत्नशील है।
वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र संघ की छ: अधिकारिक भाषा है (1) अंग्रेजी (2) अरबी (3) चीनी (4) फ्रेंच (5) रूसी (6) स्पेनिश। यह अत्यन्त ही दुर्भाग्य की बात है कि विश्व की सबसे बड़ी भाषा होने के बावजूद भी हम इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषा नहीं बना पाए है।
लेखक ने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी की अधिकारिक भाषा जैसे विषय पर उसके पक्ष में अनेक विचार दिये है। जिसके आधार पर यह निश्चित रूप से तय किया जा सकता है कि वर्तमान वैश्विक परिवेश इसके सर्वथा अनुकुल है। इसके लिए भारत सरकार की तरफ से विश्वव्यापी अभियान चलाने की जरुरत है। अमेरिका में हिन्दी पत्रकारिता का उल्लेख इस पुस्तक में मिलता है। सन् 1913 में ‘गदर’ नामक साप्ताहिक पत्रिका हिन्दी, उर्दू और पंजीबी में प्रकाशित हुआ था।
वर्तमान समय में विश्व हिन्दी न्यास की ओर से हिन्दी जगत पत्रिका का संपादन होता है। इसके प्रधान संपादक डा. राम चौधरी जी वैज्ञानिक लेख प्रकाशित करते हैं। करीब एक दशक पूर्व इसकी एक प्रति मुझे भी देखने और पढ़ने के लिए मिली थी। इस तरह “विश्व विवेक” इत्यादि अन्य पत्रिकाएँ वहाँ छपकर हिन्दी का नाम रौशन कर रही है। वहाँ की पत्रकारिता व्यवसायिक नहीं है। हजारो मील दूर रह कर भी उन्हें अपने देश की भाषा और संस्कृति से प्रेम है। हिन्दी में प्रकाशित पत्रिकाएँ इसी बात का द्योतक है। विश्व हिन्दी न्यास और भारतीय विद्याभवन जैसे संस्थान अमेरिका में हिन्दी को उचित दर्जा दिलाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है।
21 वीं शदी में हिन्दी के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं, आवश्यकता इस बात की है कि हम हिन्दी के प्रति अपने दायित्वों को समझे तथा उसे जीवन के प्रत्येक मोड़ पर सक्रिय रूप से निभाएँ। जैसे घर में किसी भी अवसर पर निमंत्रण पत्र हिन्दी में छपवाना हिन्दी के सुन्दर एवं स्वच्छ साहित्य को खरीदना एवं पढ़ना तथा आचरण में लागू करना। समाचार पत्र हिन्दी खरीदना चाहिए। सभी सरकारी एवं निजी पत्राचार राष्ट्रभाषा हिन्दी में करना चाहिए। यह हम सभी भारतीयों का कर्तव्य है। विदेशों में बहुत सारे शक्तिशाली देश अपनी देश की भाषा के लिए बहुत सारा धन खर्च करते हैं और दिल से करते हैं। इसके लिए सरकार एक काफी मजबूत समिति का गठन करे और उस समिति का उत्तरदायित्व होगा कि विश्व में हिन्दी की स्थिति का आकलन करें। इस कार्य के विद्वानों विशेषज्ञों एवं शिक्षा विदों से मदद ली जा सकती है।
अमेरिका में आठवाँ हिन्दी सम्मेलन में मौजूद रहने का सौभाग्य डा.उपाध्यायजी को भी मिला। भारत से अनेकानेक लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए पधारे थे। हम भारतीय विश्व के किसी कोने में रहें लेकिन अपनी भाषा, भोजन और संस्कृति को हमेशा दिल में सहेज कर रखते है। इसका सबसे बड़ा और मनोरम दृश्य पुस्तक पढ़ने के बाद तब जान पड़ा जब कि लेखक महोदय आबूधावी में विमान की सीढि़यों से उतरते समय एक कर्मचारी से अंग्रेजी में संवाद करने पर जवाब हिन्दी में मिला। वह हिन्दी भक्त और कहीं का नहीं जौनपुर उत्तर प्रदेश का रहने वाला था।
इस तरह शेख का हिन्दी बोलना हिन्दी व्यवसाय से जुड़ने की सार्थकता को दर्शाती है। अमेरिका तो विश्व में सर्वोपरि है तथा सर्वगुण संपन्न है। वहाँ की कंचन, कामिनी और कादम्ब भी अतुलनीय है। कई बार राजनीति या कूटनीति के तौर पर दो देशों के बीच रिश्ते सुन्दर नहीं रहते हैं। रिश्तों में कटुता रहती है। किन्तु आम आदमी सर्वथा इसके विपरित होता है जैसे कि एक पाकिस्तानी टैक्सी चालक के द्वारा भारती प्रतिभागी से पैसा नहीं लेने के लिए राजी नहीं होना।
आज हिन्दी को काफी ऊँचाईयों तक ले जाने की जरुरत है। हिन्दी में अभी तक अभियांत्रिकी, चिकित्सा, संगणक, सूचना एवं प्रौद्योगिकी से संबंधित अच्छी किताबें उपलब्ध नहीं है। जिसके फलस्वरूप जिनकी बुनियादि शिक्षा हिन्दी माध्यम से हुई है वे अंग्रेजी में लिखी किताबों का लाभ नहीं उठा पाते है। अत: संबंधित विशेषज्ञ बनने में अड़चन होती है।
अमेरिका में भी आठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन हुआ। इसमें भी कुछ नए नए प्रस्ताव पास किए गए। किन्तु ये प्रस्ताव अभी तक संयुक्त राष्ट्र में कार्यान्वित नहीं हो पाए हैं। अमेरिका में लगभग 67 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। किन्तु वह मात्र जीविका से जुड़ी है।
अमेरिका में रह रहे प्रवासी भारतीयों के दिल में हिन्दी और अपने देश के प्रति काफी अनुराग है। हिन्दी उनके लिए सम्पर्क या संवाद की भाषा नहीं है किन्तु उनकी अस्मिता का स्वतंत्र पहचान है। दक्षिण ऐशियाई सहयोग संगठन (दक्षेस) इसमें सात देश है। भारत, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, श्रीलंका, मालदीव तथा पाकिस्तान इसे SAARC के नाम से भी जाना जाता है। दक्षेस में सभी देशों में हिन्दी न्यूनाधिक मात्रा में इस्तेमाल हो रही है। इसके सारे देश बुनियादी एवं पारम्परिक तरीके से भारत से जुड़े हुए हैं। काफी पहले वे भारत के ही अंग थे। हिन्दी की भी इन देशों में किसी न किसी रूप से अच्छी पकड़ है। दक्षेस देश के सदस्य जितने सक्रिय होंगे, उतना ही उनका आपस में सहयोग बढ़ेगा और उसी अनुपात में हिन्दी का फैलाव होगा। हमारे प्रधानमंत्री के बदौलत दक्षेस में भी हिन्दी का परचम लहरा रही है। नौवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन जोहान्सबर्ग में हुई थी। इससे अफ्रीकी महाद्वीप में हिन्दी का प्रचार-प्रसार काफी हुआ। भारत और भारतीयता के वास्तविक स्वरूप से वहाँ के लोग परिचित हुए। अपने देश की सांस्कृतिक, साहित्यिक और भाषीक क्षमता का प्रसार-प्रचार हुआ।
10-12 सितम्बर, 2015 में भोपाल में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन का अपना एक अलग महत्व रहा है। इसमें विदेश निति में हिन्दी, गिरमिटिया, देशों में हिन्दी, विदेशियों के लिए भारत में हिन्दी अध्ययन की सुविधा, उच्च कोटि की हिन्दी पत्रकारिता एवं संचार माध्यमों में भाषा की शुद्धता एवं संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी पर बल दिया गया।
सर्वोंपरि समस्या संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को स्थान दिलाने की है। अभी तक 10 विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हो चूका है। इसमें बहुत सारे परिणाम भी सामने आए हैं। इसीका नजीता मॉरिशस में विश्व हिन्दी सचिवालय तथा अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्व विद्यालय वर्धा इसकी देन है।
अभी तक हम ऐशियाई महाद्वीपों तक ही मूल रूप से सीमित हैं। हमें आगे की लढ़ाई काफी महबूती से लड़नी है। हमें इस बात पर ध्यान देने की जरुरत है कि अभी तक संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी अधिकारिक तौर पर क्यों नहीं पहुँच पाई है।
अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के जैसा जिस दिन हम संयुक्त राष्ट्र संघ में 129 देशों का समर्थन प्राप्त कर हिन्दी को अधिकारिक रूप में स्थापित कर पाएँगे वही दिन हमारे लिए मील का पत्थर साबित होगा।
सारांश यह है कि प्रस्तुत पुस्तक विश्व स्तर पर हिन्दी की शक्ति और संभावना का विश्लेषण करने वाली कृति है। जिसमें हिन्दी का संख्या बल विश्व स्तर पर उसकी उपयोगिता भारत और भारतीय संस्कृति को जानने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम तथा वैश्विकरण और बाजारवादी सक्षम संवाहिता के रूप में हिन्दी का निर्वचन किया गया है। यह हिन्दी जगत से जुड़े हर वर्ग के पाठक के लिए एक जरूरी पुस्तक है।
समीक्षक
सुमन कुमार
शोधार्थी
जे.जे.टी. विश्वविद्यालय,
विद्यानगरी, झुंझुनूं, (राजस्थान)
ई-पत्र : kumarsuman@hotmail.com
मो.नं. 9869538080
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