माह की कविताएँ - होली विशेष आयोजन

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00000000000000 शोभा श्रीवास्तव 1.  झूमता गाता आ गया, होली का त्यौहार।      छटा बिखेरे  बासंती, टेसू और कचनार॥ 2.  बजे नगाड़े, भांग चढ़ी,...

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शोभा श्रीवास्तव

1.  झूमता गाता आ गया, होली का त्यौहार।
     छटा बिखेरे  बासंती, टेसू और कचनार॥

2.  बजे नगाड़े, भांग चढ़ी, मदमाती हर बात।
     फागुन ने दी जीवन को रंगों की सौगात॥

3.  गली गली होने लगी, रंगों की बौछार।
     मौन शब्द करने लगे मधुर नेह मनुहार॥

4.  धरती भीगी, झूमे अंबर, उड़े अबीर गुलाल।
      रंग रंगीली सांवरी के हुए गुलाबी गाल॥

5.   गुन गुन गुन भौंरा करे, कोयल गाए गीत।
      परदेसी साजन बिना क्या फागुन की रीत॥

6.    मन की गाँठें खोलकर बोल में मिश्री घोल।
       खुशियों के रंग जग रंगे, तब रंगों का मोल॥

              डॉ. शोभा श्रीवास्तव              
                            राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़

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विनोद कुमार दवे

•    रंग

रंग-रंग गुलज़ार हुआ है
जब रंगों से प्यार हुआ है।

ए गुलफाम! बदन को देख
रंगों का गुलदार हुआ है।

मेरे हाथों की लाली से
सनम मेरा गुलइज़ार हुआ है।

गुलाल उड़ा जब उन गालों पर
वाह! क्या गुलरुख़सार हुआ है।

जो रंगों से डरता था
आज वही सरोबार हुआ है

गुलपोश तेरी आँखें गुलबुन है
हर अश्क़ तेरा गुलबार हुआ है

गुल-ए-काग़ज़ी भले रंगीं  है 
ये तो इक व्यापार हुआ है।


                                           206,बड़ी ब्रह्मपुरी
                                           मुकाम पोस्ट=भाटून्द
                                           तहसील =बाली
                                           जिला= पाली
                                           राजस्थान


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अमरपाल सिंह  ‘ आयुष्कर ’


1- आज तुझको रंग दूँगी,

इन्द्रधनुषी रंग सारे , भर हिया में फाग प्रियवर !
आज तुझको रंग दूँगी,

कर दहन सारी कलुषता , होलिका की ज्वाल में
बन के दीवा खिल उठूँगी,  आरती  की थाल में 
दिवस के आठों पहर ,संगीत मन का गान छेड़ो
मैं तुम्हारा संग दूँगी ,

इन्द्रधनुषी रंग सारे , भर हिया में फाग प्रियवर !
आज तुझको रंग दूँगी,

दुःख पगी सारी गगरिया , फोड़ दूँगी साँच रे !
छू ना पाये अंग तेरे  ,कोई कलुषित आँच रे  !
तुझको पाने की तपस्या , जिस नयन की आस हो 
कर उसे मैं भंग दूँगी
इन्द्रधनुषी रंग सारे , भर हिया में फाग प्रियवर
आज तुझको रंग दूँगी |
2- जब आना तुम, कान्हा मेरे !


जब आना तुम, कान्हा मेरे !
फागुन वाले पल ले आना,
                     सिरहाने रक्खा थोड़ा सुख
                     कुछ सपने मखमल ले आना,
जब आना तुम, कान्हा मेरे !
फागुन वाले पल ले आना,
                      रंगों का  इक  गाँव  समूचा
                      ग्वाल –बाल दलबल ले आना
                       
जब आना तुम, कान्हा मेरे !
फागुन वाले पल ले आना,

                       बरसाने की होली - सी धुन 
                        भाव सभी चंचल ले आना,
जब आना तुम, कान्हा मेरे !
फागुन वाले पल ले आना |

3- एक रंग से

पिचकारी के एक रंग से  
   भिगो दिया हर साँसों को
      सुनो ! उछलकर बोला बचपन
           तोड़ दिया हर धागों को

                                   

                                 चेहरे सबके एक भाव से 
                                     सजी  अबीर  उड़ाते  हैं
                                        बातें सबकी एक पाँत -सी
                                            खिचड़ी -सा मिल जाते हैं

आठ पहर की मालाओं में
    रोप लिया हर रागों को
        सुनो ! उछलकर बोला बचपन
            तोड़ दिया हर धागों को |
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बृजेन्द्र श्रीवास्तव "उत्कर्ष"


काव्य मंच पर होली


काव्य मंच पर चढ़ी जो होली, कवि सारे हुरियाय गये,

एक मात्र जो कवयित्री थी, उसे देख बौराय गये,

एक कवि जो टुन्न था थोड़ा, ज्यादा ही बौराया था,

जाने कहाँ से  मुंह अपना, काला करवा के आया था,

रस श्रृंगार का कवि, कवयित्री की जुल्फों में झूल गया,

देख गोरी के गाल-गोरे, वह अपनी कविता भूल गया,

हास्य रस का कवि, गोरी को खूब हसानो चाह रहो,

हँसी  तो फंसी  के चक्कर में, उसे फसानो चाह रहो,

व्यंग्य रस के कवि की नजरें, शुरू से ही कुछ तिरछी थी,

गोरी के कारे - कजरारे, नैनों में ही उलझी थी,

करुण रस के कवि ने भी, घड़ियाली अश्रु बहाए,

टूटे दिल के टुकड़े, गोरी को खूब दिखाए,

वीर रस का कवि भी उस दिन, ज्यादा ही गरमाया था,

गोरी के सम्मुख वह भी, गला फाड़ चिल्लाया था,

रौद्र रूप को देख के उसके, सब श्रोता घबड़ाय गये,

छोड़ बीच में सम्मेलन, आधे तो घर को धाय गए,

बहुत देर के बाद में फिर, कवयित्री  की बारी आई,

हाथ जोड़ के बोली वो, प्रिय संयोजक और कवि "भाई",

"भाई" का सुन संबोधन, कवियों की उतरी ठंडाई,

संयोजक के मन -सागर में भी, सुनामी सी आई,

अपना पत्ता  कटा देख, संयोजक भी गुस्साय गया,

सारे लिफाफे लेकर वो तो, अपने घर को धाय गया,

बिना लिफाफा मिले कवि के, तन-मन में ज्वाला धंधकी,
घर की खटिया टूटी तब ही, नींद खुल गई उनकी||

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बृजेन्द्र श्रीवास्तव "उत्कर्ष"
206, टाइप-2,
आई.आई.टी.,कानपुर-208016,

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प्रीतदास

फागुन के दिन
लो आये है
फागुन के दिन....
मनभावन गीतों को सजाने
खिली हर मुख..
आज एक नई धुन
लो आये है फागुन के दिन
मचलती सुबह-ढलती साँझ में
सगुन पंछियों की तान में
गा रहा है...
आज हर एक वन
लो आये है 
फागुन के दिन
सरसों की
फूली बगिया में
गेहूं की ठण्डी क्यारी में
झूम रहा है...
आज हर एक तन
लो आये है
फागुन के दिन
बच्चों के खेल में
बड़ों की मीठी बातों में
रम गया है..
आज मेरा मन
लो आये है
फागुन के दिन
ढोल-मृदंग की थाप में
फसलों की सुहानी याद में
चंग हाथ लिये
फिर रहा है
आज कृषक झन-झन
लो आये है
फागुन के दिन
कई रंग रास के मेले
कई हंसी-ठिठोली के झमेले
सतरंगी चुनर ओढ़े...
दिख रहा है
आज हर एक घन
लो आये है
फागुन के दिन    


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भाऊसाहेब नवले


समय की पुकार
फुले, शाहू आंबेडकर बने सूर्य, चंद्र, तारे आम जन के
किया सूत्रपात इस त्रयी ने समाज सुधार का
जन-जन में चेतना की कामना का
बीड़ा उठाया इन महानायकों ने।
    दलित, पीड़ित एवं शोषितों के बने मसीहा
    किया मुक्त सामंतों की दासता से
    एहसास दिलाया अपने अधिकारों का
    परिणाम हुआ, लाभ उठाते आमजन शिक्षा का।
शिक्षा ने तो किया कमाल, अमीर तो बने मालामाल
और शिक्षा के अभाव में दलित-पीड़ित हुए बदहाल
पीढ़ी आज की बने सचेत, नहीं रहेगी गुलामी समेत
संघर्षरूपी शस्त्र का कर स्वीकार, शास्त्र को दिया नकार
    पथ बनाकर युवा पीढ़ी ने प्रशस्त कर मार्ग अपना,
    नई नीति एवं गति का कर स्वीकार, किया सपना साकार
    राजनीतिक साजिशों को करती बेनकाब यह
    तोड़कर धर्म की बेड़ियाँ, बुलंद होती आवाज यह
स्वाधीनता, समता, बंधुता तथा न्याय की माँग, है समय की पुकार
चलो साथियों, बुलंद करो यह समय की पुकार
जिससे सहज मिले आम जन को उनका अधिकार
हो चरितार्थ जब यह पुकार, बनेगा तब भारत का जन सुखाकार॥

प्रा. डॉ. भाऊसाहेब नवले
हिंदी विभाग,
कला, विज्ञान एवं वाणिज्य महाविद्यालय, कोल्हार
ता. राहाता, जि. अहमदनगर, महाराष्ट्र, 413710
bhausahebnavale83@gmail.com


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विजय वर्मा


यूँ टुकड़ों-टुकड़ों में बँट गयी है जिंदगी, कि
अपने फेस-वैल्यू से भी घट गयी है जिंदगी.
ना खास का एहसास ,ना अपनेपन की खुशबू 
सारे ज़ज़्बातों को बस पलट गयी है जिंदगी.
ये मायावी रिश्तें ,ये आभासी दुनिया ही सब.
बस दर्द के रिश्ते से ही कट  गयी है जिंदगी.
अंधे-युग में जारी है इक  अंधी दौड़ की लहर
चंद सतही बातों में ही सलट  गयी है जिंदगी.
ना अप्रिय कहने का साहस,ना सुनने की धैर्य
इसी आपाधापी में चलत  गयी है जिंदगी.
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माया राठी


यह बचपन भी कितना अजीब  था
रोज नई मस्ती रोज नई कहानी ,
मां के आंचल में सोना,
पापा की वही डांट पुरानी .
परियों की नई कहानी ,
नए नए मित्रों से यारी,
सब कुछ तो था,
पर यह बचपन भी अजीब था.
हर चोट में मां का पुचकारना,
और पापा का मारना.
भाई बहनों का लड़ना ,
फिर छुपकर रजाइयों में सोना,
घंटों बतियाना लड़ियाना,
रूठना और मनाना .
सच सब कुछ तो था,
पर यह बचपन भी बड़ा अजीब था.
मां का प्यार पापा का दुलार ,
हर लक्ष्य को हासिल करने के लिए .
मेहनत का जज्बा,
सच सब कुछ तो था,
पर यह बचपन भी बड़ा अजीब था.


कुछ तो सुनो
हमेशा पूरे की,
क्यों बात करते हो ,
कभी मिल बांटकर भी ,
खाया करो ,
पूरे की संपूर्णता से हटकर ,
समझौतावादी भी हो जाया करो ,
क्यों हर पल,
जाने की बात करते हो ,
कभी पास भी आया करो,
जाने और ना जाने की ,
व्याकुलता के बीच ,
कभी तो संतुलन बैठाया करो.


सल्तनत
माना की
सल्तनत तुम्हारी है
पर इस सल्तनत के लिए भी तो
तुम्हें हमारी जरूरत है
इतना गुरुर
ना करो इस सल्तनत पर
बुझ जाएगी
जो फूंक हम ने मारी है


  मेरे खर्राटे

मेरे खर्राटों के बीच भी ,
तुम्हारे सोने का अहसास ,
तुम्हारा मेरे प्रति,
असीम प्यार का विश्वास,
देता है,
मुझे अप्रतिम प्रेम का सूर्योदय,
और चांदनी सी शीतलता,
तुम पास रहो या ना रहो,
तुम्हारा यह विश्वास,
बांधे रखेगा मुझे ,
यूं ही हमेशा.

 

समय

समय को पहचानो ,
जानो और समझो ,
खर्च ना करो इसे ,
यूं ही बातों में,
समय का चक्र,
धरती का घूमना ,
सूर्य का उगना,
चंद्रमा का डूबना ,
सब कुछ तो यही,
संदेश देते हैं ,
मेहनत करो नियमित,
समय है बहुत अनमोल ,
मंजिल पाने तक ,
रुकना नहीं ,
काम करो तो थकना नहीं ,
मेहनत से अपनी ,
तुम पा लो मंजिल,
समय नहीं करो व्यर्थ समय नहीं करो व्यर्थ ,


डॉ. माया राठी
प्राध्यापक वाणिज्य,
भोपाल

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वीणा भाटिया


ख़ाली पन्ना
-   

किताब को पलटते हुए
यकायक ख़ाली पन्ना
बीच में आ गया
प्रिंटिंग की भूल थी
भूल जैसी लगी नहीं
चौंका गया
सुखद अहसास भी दे गया
ख़ाली पन्ना
चुटकी बजा कर जगा गया
ख़ाली पन्ना

चुनौती की तरह हाज़िर हो
सवाल करता
क्या सोच रहे थे ?
आगे क्या सोचा है ?
क्या लक्ष्य है ?
वो सारे सवाल पूछता है
ख़ाली पन्ना

जिनसे हम बचते-बचाते
चाहते हैं निकलना
ना कोई मैदान आए
ना राहों की हक़ीक़त
ना क़दमों की रफ़्तार
ना ही कोई सफ़े का आईना
जो सच पूछे हमसे

ख़ाली पन्ना
मानो…
ट्रेन सरपट भाग रही
पहाड़ों के घने जंगलों का नज़ारा
हरी-घनी छाँव को ठेलता पीला सूरज
बारिश की धूप वाली गर्माहट
सब दिखाता
ख़ाली पन्ना

भरे पन्नों में केवल
हाशिए तलाशे जा सकते हैं
ख़ाली सफ़ों में बड़ी गुंजाइश है
समझाता ख़ाली पन्ना

अंतराल के बाद
सोचने की चुनौती लेकर आया
ख़ाली पन्ना
प्रिंटिंग की भूल नहीं
खुले आसमान का निमंत्रण लगा
ख़ाली पन्ना।

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Email-  vinabhatia4@gmail.com
Mobile - 9013510023

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सुनील संवेदी


अब बस्स...

वे तीन थीं।
हम उम्र, हम कदम, हमखयाल।

उन्हें-
याद थीं कहानियां,
रट लिए थे किस्से,
औरत के सदियों पहले से
अब तक के दबे कुचलेपन
आकांक्षाओं, संभावनाओं और
आस्थाओं की असमय अस्वाभाविक मृत्यु
और इससे उपजी
असीम पीड़ायुक्त हताशा, कुंठा के।

इसलिए-
विश्व में सर्वाधिक घृणा योग्य
कीड़ा खोज लिया था उन्होंने
‘आदमी’ की शक्ल में।

इसलिए-
तय कर लिया था उन्होंने
कि, आदमी को औरत की एक-एक पीड़ा
महसूस करानी होगी।
आज से सदियों पहले तक का
दर्द देना होगा।
औरत की हताशा और कुंठा के
विष को कतरा-कतरा पिलाना होगा।
उन्होंने-
एकाएक भर ली सामूहिक हुंकार
‘हम में भी है शक्ति।’

वे-
एकदम सीध में चलती थीं।
एक ही पंक्ति में।
हाथ में लेकर हाथ,
आंख में डालकर आंख,
सामने आ रहा आदमी
सिकुड़कर लग जाता था एक किनारे
और वे खिलखिलाकर, थू...
मर्द से कपड़े, मर्द सी चाल
मर्द सा लहजा, मर्द से बाल
लेकिन-
उन्हें घृणा थी मर्द से, सिर्फ मर्द से
क्योंकि उन्हें याद थे
किस्से, कहानियां
औरत के सदियों पहले से अब तक की
पीड़ा और कुंठा के।

उनकी सिगरेट के कश
चुनौती देते थे मर्द की सांसों को।
उनके दारू के पैग
इम्तिहान लेते थे मर्द के लड़खड़ाने का।
‘नीली’ फिल्में देखने की उनकी योग्यता
मर्द के ‘हौसले’ को
पैरों तले रौंदने को हरदम, तैयार।

उन्होंने-
उस रात भी देखी थी ‘नीली’ फिल्म
एक ही कमरे में
अपनी असीम योग्यता से चुन कर।
औरत (नायिका) का पसर जाना
मर्द (नायक) के नीचे
अपनी इच्छा से ही सही।
लेकिन, जाग गया एकाएक
सदियों पहले से अब तक का दर्द
आज तक की ‘मर्द प्रदत्त’ पीड़ा।
आकुल हो गया मन
व्याकुल हो गया हृदय
नारी ही क्यों
‘पितृ प्रदत्त’ परिभाषाओं में हो भोग्या।

हाथ में लेकर हाथ
आंख में डालकर आंख
एकाएक, भर ली हुंकार
‘हम में भी है शक्ति’

निकल पड़ीं कदम दर कदम।
एक व्यवहार, एक विचार
मर्द है भेड़िया, मर्द व्यभिचार।

जकड़ लिया अपने मजबूत हाथों में
एक भेड़िया, लेकिन नाबालिग भेड़िया!
आंख में डालकर आंख
एक विचार एक व्यवहार।
बड़े होकर मांगेगा ये भी
औरत की कामनाओं और भावनाओं
को रौंदने के ‘पितृ प्रदत्त’ अधिकार।
गोलगोल घुमाये होंठ और, थू...

घसीट लाईं कमरे में,
‘भेड़िये' ने हाथ जोड़े पांव पड़ा
वे पहुंच गईं
एकाएक सदियों पहले।
लांघ आईं छह दरवाजे
सातवें पर अटक गईं।
होंठ कांपने लगे
फिल्म पराकाष्ठा पर थी।
पहली खिलखिलाई ‘तीव्रतम’
दूसरी खिलखिलाई ‘तीव्र’
और तीसरी... धुप्प चुप्पी।

डाॅक्टर नहीं खोज सका
‘भेड़िये' का बलात्कार
सिर्फ गर्दन पर पाए गए
हाथों की जकड़न के निशान
क्योंकि, वे नीले थे, विष की तरह।
सदियों पहले से आज भी
नहीं बदला था जिनका रंग।

उन्होंने
हाथ में लेकर हाथ
आंख में डालकर आंख
एकाएक उछलकर ताली मारी,
विजयी भव !

          -सुनील संवेदी
Email: suneelsamvedi@gmail.com
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“मनु” मनोज कुमार सामरिया


       कहा था तुमने. . मनु की कलम से
कहा था तुमने
भूल जाना मुझे मगर
मुमकिन नहीं भुलाना तुझे ।
इन्तजार में तेरे सदी
गुजारूँ तो कैसे ?
लम्हा- लम्हा ,पल - पल
तुझे भूलाऊँ तो कैसे ?
जब भी होता हूँ तन्हा
तो कलेजे में टीस सी उठती है
चुभन सी होती है
मेरे सीने में
जख्म दिखे तो दवा करुँ,
ऐसे दर्द का क्या करुँ ?
नींद कोसों दूर
हो गई है आँखों से
घड़ी की टिक - टिक
मेल खाती है साँसों से ,
पल - पल महसूस कर
रहा हूँ धड़कन को,
धक - धक से उठती
तड़पन को ......
कितना प्यारा आसमाँ
टिमटिमाते तारे  ,
शाँत शहर
निशब्द सारे नजारे ।
आसमाँ को धरा
चूमने का गुरूर है
मगर क्षितिज मुझसे
कोसों दूर है ,
चाँद बढ़ रहा है
आसमाँ में अपनी गति से ,
अजीब सी खामोशी
चारों ओर है छितराई ,
बेचैन कर रही है मुझे
पेड़ों की मौन परछाई ....
घड़ी की मद्धिम- मद्धिम
चलती सुईयों को देखता रहूँ ,
तुम न लौट आओ, सोचता हूँ
तब तक सोया रहूँ ....
स्वप्न  में ही आज तुमसे
मिलना चाहता हूँ ,
तेरे साये में चन्द अर्से
गुजार देना चाहता हूँ ....          क्रमशः
आजकल घर जल्दी लौटने
का “ मनु ” मेरा मन नहीं होता ,
तेरे होने और नहीं होने का फर्क
शायद मैं पहले समझ पाता ...
उजाला नहीं है अर्से से
मन कमरे में ,
मकड़ियों ने जाले बुन लिए हैं
बेतरतीब यहाँ वहाँ इसमें ....
अपने ही घर में
अजनबी सा लगता हूँ
देर अँधेर सबके सोने पर
घर लौटता हूँ ....
मन में जो बात है
किससे बयाँ करूँ
मुखौटा लगाए बैठे हैं
सब अपनेपन का ,
सोचता हूँ तन्हाई संग
जिन्दगी जिया करूँ.....
एक पल कल्पना का
सुन्दर संसार बनाकर ,
अगले पल उसे मिटा दिया करूँगा
रेत पर खिंची लकीर की तरह ...
मगर नहीं करूँगा
फरियाद तुझसे मिलने की ,
जी लूँगा तेरे बगैर
तेरे मीठे अहसास के साथ ..
निभाऊगाँ तुझसे किया
अपना आखिरी वादा ,
करूँगा कोशिश
ताऊम्र भूलने की तुझे.....
याद है मुझे कहा था तुमने
कि भूल जाना मुझे.........
      कहा था तुमने ......
              
--
     गर इजाजत हो  तुम्हारी......
तुम्हारे आगोश में सुकूँ के चन्द लम्हे
बिताने का जी चाहता है ,
गर इजाजत हो तुम्हारी....
यकीं करो मेरा चला जाऊँगा फिर
दूर तुम्हारी यादों से भी....
बस चन्द लम्हे ओढ़ लूँ तुम्हें ,
गर इजाजत हो तुम्हारी......
अठखेलियाँ करता रहता है
दिल ख्वाब की गलियों में तुम संग,
पाकर तुम्हारा स्पर्श महसूस
कर लेता है भावों का स्पन्दन ,
अंगों का कम्पन ....
छू लेना चाहता हूँ तुम्हें अंग दर अंग
गर इजाजत हो तुम्हारी......
नजरें चुराकर तुम्हें देखना अब
अच्छा नहीं लगता इसे....
अधिकार सा महसूस कर रहा है
यह नामुराद दिल तुम पर ,
अपनी हद से बाहर निकलकर ...
मनाता बहुत हूँ मगर मानता ही नहीं,
पहुंच जाता है तुम्हारे आस पास
मुझे तन्हा छोड़कर ....
कहना चाहता है तुमसे पा लूँ तुम्हें
गर इजाजत हो तुम्हारी.......
और मैं ड़रा बैठा हूँ
समाज की नग्न नजरों से
जो वह देखती है जो हकीकत
में है ही नहीं ,
मन मेरा ए “मनु"  आतुर है तोड़ने को
रस्मों के समग्र बंधन ....
कई रस्मों को कुचलकर बस
रस्म-ए-मिलन की निभाना चाहता है मन
गर इजाजत हो तुम्हारी....
जानना चाहता हूँ .......
क्या सोचते हो तुम भी
जो सोच रहा हूँ मैं....
मिल जाए अगर सोच अपनी
तो मिटा दूँ सब दूरियाँ मीलों सी ,
गर नहीं ......
तो मिटा लूँ जो भी उभरा है दिल
की दीवारों पर यत्र-तत्र ....
जिसकी वजह हो तुम सिर्फ तुम .....
समेट कर तह कर लूँ अभिलाषाओं
को मेरी जो बिखर गई थी खामख्वाह
आस -पास तुम्हारे....
गर इजाजत हो तुम्हारी......
मगर सोचना कभी इजाजत
देने ये पहले तन्हाई में कि
कितना मुश्किल है जले हुए
अरमानों की लाश उठाना आँसुओं से
भिगोकर .................
मगर सोचना तुम्हारी एक
इन्कारी से बुझ जाएगी
चिन्गारी प्यार की....
तुम तो खुशनशीब हो राह -ए- इश्क में
हमसफर जो मिला है राजदार तुम्हें ,
मगर हम तो रह गए बनकर
वो रास्ता जिससे गुजरकर पहुंचते है
राही मंजिल-ए-इश्क तक ....
देख लेना चाहिए मुड़कर कभी
मंजिल पा जाने पर भी गुजरे हुए रास्तों को
कि सुकूँ मिल जाए उन्हें भी ज़रा सा ....
मैं भी देख लूँ आखिरी बार
गुजरते हुए तुम्हें ,
गर इजाजत हो तुम्हारी. ......
बसा लेना नया आशियाना बेशक
मुझे ज़रा भी एतराज़ नहीं होगा......
मगर खाली रखना अपने भीतर
एक कोना , मुझ परिंदे के लिए ...
आ जाऊँ जो कभी घड़ी भर
विश्राम के लिए......
वैसे तो मैं वादियों में घुलकर
आता रहूँगा मिलने तुमसे
तुम्हारे कमरे की खिड़की से ,
बंद दरवाजे की झिर्री से ...
बाँघ पाया है भला कोई
हमें जंजीरों में ...
सोते हुए देखना तुम तो
हिलते हुए खिड़की के पर्दों को ,
समझना मेरी सरसराहट को .....
जिसे तुम नादानी में
समझ नहीं पाई थी कभी....
मगर इसमें तुम्हारा कसूर क्या ?
मत देना दोष कभी खुद को
यह सोचकर .....
मैं बर्दाश्त नहीं कर सकूँगा
एक कत़रा भी गर छलक आया
तुम्हारी सजील
कजरारी आँखों में.......
भूल कर सब पुरानी बातें
महसूस कर लो मुझे
मगर ठहरो ...,पूछ तो लूँ तुमसे
क्या कर लूँ जरा सी अठखेलियाँ
तुम्हारे दिल से, तुम्हारे कमरे से......
एक बार फिर गर इजाजत हो तुम्हारी....
तुम इजाजत दो या ना दो
पर इतना तो है अधिकार मेरा
कि जो है मेरा पा लूँ उसे ...
चाहता हूँ तहेदिल अधिकार पाना
गर इजाजत हो तुम्हारी......
गर इजाजत हो तुम्हारी....
                “ मनु " मनोज कुमार सामरिया
---
             जीने नहीं देती...             
   दुनिया के मुताबिक मैं  जी नहीं पाता,
और दुनिया मुझे अपने मुताबिक जीने नहीं देती .
चुनकर तिनके ख्वाबों के ग़र बनाउँ कोई घरौंदा ,
            तो बैरन आँधियाँ उसे बुनने नहीं देती.
जो दामन फैलाता हूँ खुशियों हित
तो भिखारी कह दुत्कार देती है ,
और जो छलक आते हैं आँख मेें आँसू ,
          तो कायर कह रोने नहीं देती..
साथ माँगू ग़र तन्हाई मेें किसी का तो मिलता नहीं ,
           और यादें हैं कि तन्हा रहने नहीं देती .
चाहता हूँ कि बयाँ कर दूँ दर्द को परत दर परत ,
पर मजबूरियाँ है कि कुछ बयाँ करने नहीं देती.
सच कहता हूँ तो यकीं करता नहीं कोई ,
झूठ मेरी खुद्दारी मुझे कहने नहीं देती ..
कतरा कतरा सुकून रिसता रहा दामन -ए- 'मनु ' के
दुनियादारी उसे अँजुली मेें संजोने नहीं देती..
अजब चलन चल पड़ा है अब साँसों की आवाजाही का
रोके से रूकती नहीं सलीके से आने नहीं देती...
जिन्दा रहो तो मुर्दों की माँनिंद बेजान होकर ,
गर्दिशें जमाने की जिन्दों की तरह जीने नहीं देती .
अब तो अपनापन तलाशने से भी नहीं मिलता ,
अपनों की ही नजरों में ,और
गैरों की महफ़िल मेें मेरी जिद मुझे जाने नहीं देती.
तन्हाई मेें अक्सर हलचल होती है कहीं भीतर ,
कोलाहल की शब्दचाप उसे सुनने नहीं देती ...
यूँ बसर हो रहा है उम्र का लम्हा लम्हा ,
बिखरे हैं शब्द मोती समक्ष नयनों के
वक्त की चाल कुछ चुनने नहीं देती ...
कभी भावों के जलधि में ड़ूब जाना चाहता हूँ ,,
कभी खुले आसमाँ में उड़ना चाहता  हूँ ,
पर मजबूरियों की बेड़ियाँ उड़ने नहीं देती......
                                     

--
                 तेरी तस्वीर  
बनाता हूँ हर बार ख्वाबों में तस्वीर तेरी
पानी में कोई लकीर बनती है जैसे
क्षणिक छलावा ..
पल भर का बनना ,पलभर में मिटना,
उसूल हो जैसे उसका.....
देता है सुकून मुझे यह बनना और मिटना,
तेरा नजरों से दूर जाना लगता है
जैसे मुद्दत हुई तुझसे मिले.....
तेरा साथ होना ही ताकत है मेरी,
अब तो लत सी लग गई है साथ रहने की....
सुना करता था मैं ये बात लैला-मजनू की
कहानी में और हँसता था इन पर ....
आज  खुद को उसी कहानी का पात्र बना पाता हूँ ,
देख रहा हूँ उनको हँसता हुआ खुद पर ...
समझ रहा हूँ मुहब्बत के जज्बात औ जुनून को ,
जो हिलोंरें ले रहा है दिले समन्दर में,
जिसकी वजह है यह तेरी तस्वीर.....
तेरे जाते ही याद आई मुझे इसकी ,
जो गर्द की ओढ़े चादर शिद्दत से
मुझे मुस्कुराते हुए निहार रही है.
अब मेरे खामोश,तन्हा लम्हों को
काटने का नायाब नुस्खा है यह तेरी तस्वीर....
जब मैंने इसे छुआ तो आनन्द से
भर उठा " मनु " भीतर तक ,
इस पर जमी रेत को हटाया
आनन फानन में तो सारी रेत लिपट
गई मेरी कठोर किन्तु मजबूत उँगलियों से,
चादर हटते ही रेत की मुझे अहसास हुआ
कि तुम कितनी खूबसूरत हो .....
जब तक तुम नहीं आ जाती लौटकर
तब तक मेरे साथ है यह तेरी तस्वीर.....
            मनोज कुमार सामरिया  "मनु"


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मनीष कुमार सिंह


लघु कविताएँ 

१.    गुनगुनी सी धूप !
वह है ज़िन्दगी में
जैसे भयानक सर्द में
खिली हो गुनगुनी सी धूप !
२.    उसकी बातें !
   उसकी बातें
   सरस लोकगीत के
   मानिन्द लगती है !
३.    रंग सी है !
वह ज़िन्दगी के
कैनवास में
ख़ुशी के एक रंग सी है !

  ४ . चुप होना !

उसका चुप होना
लगता है मानो
धरती का रुक जाना !
५ . ब्रह्माण्ड पर राज !

एक उसका साथ होना
जैसे लगता है
पूरे ब्रह्माण्ड पर राज होना !

६ . शब्द !
शब्द बड़े नहीं होते हैं
मानव की समझ होती है
जो शब्द को ब्रह्म बना देते है
जैसे मैंने लिखा स्नेह
सिर्फ तुम समझी
मैंने फ़िर लिखा प्रेम
और अब भी सिर्फ तुम ही समझी !
७ . एक साथ !

मै जब-जब रोया
तुम भी रोई
मुझसे छिपकर
और मै जब-जब हँसा
तुम भी हँसी
जैसे धरती हंसती है
हरियाली देखकर
और इस तरह हमने
न जाने कितनी चीजें एक साथ की
जैसे विदा लेते समय
एक दूसरे को बार-बार निहारना
और कभी-कभी
एक दूसरे को देखकर यूँ ही मुस्कुराना !

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-अच्युतम केशवम


.1.
सिन्धु जब तपता रहा ,
आकाश में तब घटा छायी।
और बदली ने बिखरकर ,
भूमि पर सब श्री लुटायी।
रज हुई रससिक्त कण-कण,
में जगी सौन्दर्यमयता।
ले धरा से चेतना,
वानस्पतिकता मुस्करायी।
केन्द्र टूटेगा अगर तो ,
परिधि बन आकार लेगा।
विश्व रे मेरा विसर्जन ,
भी सृजन को जन्म देगा। १
-
टूटना गिरि के ह्रदय का,
निर्झरों को जन्म देता।
निर्झरों का भूमि पर बिखराव,
नद का रूप लेता।
सिन्धु होने के लिए,
आतुर ह्रदय है हर नदी का।
बस युहीं जीवन सदा,
गतिमानता में अर्थ लेता।
तरल होगा सत्य तब,
शिव-सुन्दरम् का रूप लेगा।
विश्व रे मेरा विसर्जन ,
भी सृजन को जन्म देगा। २
.2.
खुशियां बहुत गली में तेरी ,प्रतिबंधित प्रवेश है मेरा .
-
समय शेष रहता पतितों के, घावों पर मरहम मलने से .
पग इंकार नहीं करते फिर ,तेरे मन्दिर तक चलने से .
सुमिरन तजा सुमिरनी तोड़ी ,सच है ये अपराध किया है ,
पर अनसुनी कराहें करना ,था कुछ कठिन तुझे छलने से .
क्या वैकुण्ठ मुझे सुख देगा,जबतक दुखी देश है मेरा .
खुशियां बहुत गली में तेरी ,प्रतिबंधित प्रवेश है मेरा .१.
-
मैं घर से गंगाजल लेकर,निकला तो था तुझे चढ़ाने .
पथ में प्यासे ओंठ मिले तो,लगा उन्हीं की प्यास बुझाने.
पुण्य-पन्थ को ठुकरा मैंने ,सचमुच भीषण पाप किया है,
पर करुना को त्याग कठिन था,आगे अपने पैर बढ़ाने.
कैसे ठाकुर द्वारे आऊँ ,पंकिल मलिन वेश है मेरा.
खुशियां बहुत गली में तेरी ,प्रतिबंधित प्रवेश है मेरा.२.
-
लेकिन करुणामय मैंने तो,जन-जन में तुझको पाया था.
कह सच था या भ्रम था सबकी,आँखों में तू मुस्काया था.
भ्रम था तो मैंने पीड़ा का,अंगीकृत अभिशाप किया है,
लेकिन ये भ्रम का विष मैंने ,चरणामृत कहकर पाया था.
कैसे सच्चा नाम कहूँ रे ,अबतक पाप शेष यदि मेरा .
खुशियां बहुत गली में तेरी ,प्रतिबंधित प्रवेश है मेरा .३.

 


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कुमार करन 'मस्ताना'


बापू का स्वप्न

माना कि तू दुःखी है आज
मिला नहीं है पूर्ण स्वराज

सच है! बुरा है देश का हाल
नहीं यहाँ जन-जन खुशहाल

व्यर्थ अभी तक तेरा तपना
तोड़ रहा दम देखा सपना

दूर नहीं हुआ है तम
असफल अभी भी तेरा श्रम

राजा माँग रहा है भीख
भूल गए सब तेरी सीख

मुकर रहे सब लिये शपथ से
विमुख हुए अहिंसा पथ से

ठनी वतन सौदे की रार
एक ही खून में पड़ा दरार


ऐसे में दुःख तो होता होगा
मन ही मन तू रोता होगा

किंतु नहीं मरे हैं तेरे पूत
हम बनेंगे शांतिदूत

झुका दिया तेरे आगे शीश
ठोंक पीठ और दे आशीष

हम जन-जन से प्यार करेंगे
बापू तेरा स्वप्न साकार करेंगे!

                               कुमार करन 'मस्ताना'

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अखिलेश कुमार भारती


माँ (ममता ) की कविता
कभी उस ख़ुदा के लिए,
आँसू बहा के तो देखो,
जिसने तुम्हारे लिए अनगिनत आँसू बहाए हो,
उसकी दुआ ने तुझे आज इस मुकाम तक पहुचाया,
उस ख़ुदा से दिल लगा के तो देखो
ख़ुदा को कभी दिल से याद न कर सही,
पर उसकी ममता को याद कर लेना,  ख़ुदा  खुद याद आ जायेगा
खुशियों का लवण, जीवन का सार,
मुस्कुराहटों की मिठास, आशाओं का आधार है,  माँ
अकेले जब सफर में थक जाओगे,
सुकून देने वाली वो मां की गोद याद आएगी।
स्नेह से सजी, ममता से भरी, माँ ही ख़ुदा है, माँ की ममता ईश्वरीय वरदान है,
जब भी तुम घबराओगे,  माँ की शक्ति भरेगा तुममें जोश ।
माँ मेरा अस्तित्व तुम्हारी आशीर्वाद है ।
माँ तुम हो मेरी आशा,  तुम ही हो अभिलाषा,
ममता की मूरत, भगवान की छवि हो तुम ।
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देशभक्ति
स्वप्न देखा करते है, याद किया करते है,
उन देशभक्त शहीदों की कुर्बानी को, दिल में बसाया करते हैं।
पैगाम की झोली में अपनी दर्द की आँसू बहाया करते हैं ।
तिरंगा का मान मर्यादा जिनकी रगों  में दौड़ रहा है,
वतन की शान में वीरों ने बलिदान  दिया ,  उनकी शहादत को सलाम करते हैं।
लहू देकर जिन्होंने अपनी आजादी की कीमत चुकायी ।
नमन हो उन देशभक्त जवानों का,
जिनकी बलिदान राष्ट्र हित में है ।
राष्ट्र सुरक्षा को अपना कर्तव्य बनाकर,
देश के मुकुट को गौरव किया ।
सलाम- ऐ -हिन्द राष्ट्र प्रेमी देशभक्तों को,
अमर वो राष्ट्र बलिदानी,  जिनकी बलिदान राष्ट्र हित में है ।
नम-नम प्रणाम शहीदों के बलिदान,
जय -हिन्द जय राष्ट्र  जय भारत की जय गाथा गाएंगे ।
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AKHILESH KUMAR BHARTI (ASSISTANT MANAGER-DECC) MPPKVVCL


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वीरेन्द्र खरे 'अकेला'


दो गीत
1- नई सदी के लटके झटके
कब चलता है काम समय से कट के
सीखो नई सदी के लटके झटके

पोथन्नों पर पोथन्ने पढ़ कर किसने क्या पाया
सारी सुख सुविधाएँ त्यागीं, नाहक समय गँवाया
कॉलिज टॉप हुआ वो लड़का ट्वेन्टी क्वेशचन रट के
सीखो नई सदी................................................

दो धन दो को चार सिद्ध करते रह गए अभागे
सात पे नौ उनहत्तर जिनने बाँचा वो हैं आगे
विद्या नई, पुरानी विद्याओं से है कुछ हट के
सीखो नई सदी...............................................

घोर असंगत है अब संगत सच्चे इंसानों की
दसों उंगलियाँ घी में रहती हैं बेईमानों की
देव खड़े ललचाएँ अमरित असुर गटागट गटके
सीखो नई सदी...............................................

कथनी-करनी में समानता का मत ढोंग रचाना
ख़ुद रहना सिद्धान्तहीन सबको आदर्श रटाना
उन्नति का जब मिले सुअवसर लाभ उठाना डटके
सीखो नई सदी...............................................

रावण, कंस और दुर्योधन की धुकती है इक्कर
हार गए हैं राम, कृष्ण, अर्जुन ले ले कर टक्कर
अब किसमें दम है जो फोड़े पापों के ये मटके
सीखो नई सदी...............................................

2-बंजर धरती कैसे हरी भरी होगी

बंजर धरती कैसे हरी भरी होगी
चमन पल्लवित-पुष्पित होंगे तो कैसे
यहाँ हाथ पर हाथ धरे सब बैठे हैं
सुखद स्वप्नफल अर्जित होंगे तो कैसे

क़िस्मत का रोना रोने से क्या होगा
पलकों पर आँसू ढोने से क्या होगा
अपना आज व्यवस्थित कर लो अच्छा है
कल के हित चिंतित होने से क्या होगा
बीते दुखद प्रसंग न हो पाये विस्मृत
सुख जीवन में प्रकटित होंगे तो कैसे
बंजर धरती..................................................

आत्मकथ्य ऊँचे हैं बौनी करनी है
ऐसे में कुछ हालत कहाँ सुधरनी है
प्रभु को है परहेज़ चरण-रज देने में
कहिए फिर किस तरह अहिल्या तरनी है
चलनी में जल भरने का प्रहसन जारी
ये दुखड़े प्रतिबंधित होंगे तो कैसे
बंजर धरती...................................................

कितनी आशाएँ निबटी हैं सस्ते में
सभी योजनाएँ हैं ठंडे बस्ते में
हमको तो निर्विघ्न मार्ग भी खलता है
क्या होगा अनगिन रोड़े हैं रस्ते में
चिंतन, मनन, अध्ययन में रूचि नहीं रही
फिर हम ज्ञानी पंडित होंगे तो कैसे
बंजर धरती.....................................................

सम्मुख जो संकट हैं उन पर चुप हैं सब
सम्भावित ख़तरों पर चर्चाएँ जब तब
नौकाओं के छिद्रों को पुरवाना था
फिर पतवारें नयी ख़रीदीं, क्या मतलब
हम औघड़दानी उपजाते भस्मासुर
दुर्दिन भला पराजित होंगे तो कैसे
बंजर धरती.....................................................

सर्वश्रेष्ठता के मद में हम फूले हैं
भूलों का विश्लेषण करना भूले हैं
औरों को नीचा दिखलाने में माहिर
ख़ुद की निंदाओं पर आगबबूले हैं
आग लगा पानी को दौड़ा करते हम
जग में महिमा मंडित होंगे तो कैसे
बंजर धरती..............................................

गति जीवन है चक्र समय का थमता क्या?
ठहरावों से है जीवन की समता क्या?
राहों पर सुख-साधन-चिंतन अनुचित है
यात्रा में दुर्गमता और सुगमता क्या ?
चलने की क्षमताएँ गिरवी रख दी हैं
गंतव्यों से परिचित होंगे तो कैसे
बंजर धरती................................................
0000000000000000000000000

आकाश मंडलोई

मेरा देश महान, मेरा देश महान
यहाँ होता सबका सम्मान
ऐसा मेरा देश महान।

नदियों से बहता कल-कल पानी
कहती हे संघर्ष की कहानी,,
इंसानों में रक्त की जगह पानी दौड़ रहा है,
अपनों की तरक्की देखकर अपनों का गला घोंट रहा है,,
बदल रहा इंसान फिर भी मेरा देश महान।

मोहब्बत जैसे हवा हो गई,
भारतीय संस्कृति पाश्चात्य हो गई,,
आँखों में सबके क्रोध भरा है,
भाई दूसरे को भाई दुश्मन समझ रहा है,,
धोखा देना हो गया आसान फिर भी मेरा देश महान।

अपनों का साया काला साया बनता जा रहा है,
रिश्तों का धागा कच्चा होता जा रहा है,,
अपनी ख़ुशी के लिए रिश्तों को मजाक बना दिया,
घर की अस्मत को बाजार में लूटा दिया,,
खत्म हो गया स्त्री का सम्मान
फिर भी मेरा देश महान।

आपस में फुट डालकर नेता ख़ुशी उठा रहे हैं,
और बेवकूफ लोग अपनों को चार बातें सुना रहे हैं,,
भ्रष्टाचार से लिपटा व्यक्ति भाषण झाड़ रहा है,
और वर्दी वाला व्यक्ति नेताओं के तलवे चाट रहा है,,
काले धन को विदेशों में ठिकाना बना लिया,
बदले गए रातों रात नोट तो सबको जला दिया,,
नोटों का बन रहा शमशान
फिर भी मेरा देश महान।

एक बार फिर से इतिहास दोहरा रहा है,
पांडवों के देश में कौरवों का कोहरा छा रहा है,
दुसाशन जैसे नापाक स्त्री की आबरू उतार रहे हैं,
झुण्ड में खड़े व्यक्ति स्त्री का वीडियो बना रहे हैं,,
समाज में स्त्री के वस्त्र खटकने लगे हैं,
चिर हरण करने वालो के वस्त्र चमकने लगे हैं,,
स्त्री हो रही परेशान,
फिर भी मेरा देश महान।

सच्चा प्यार पानी के बहाव में खो गया,
एक को छोड़ा और दूसरे का हो गया,,
प्यार के पीछे भाई भाई को दोस्त दोस्त को काट रहा है,
जो है पराया उसके लिए अपनों को डाट रहा है,,
दूध पिलाने वाली माँ अनजान बन गई,
लाड़ लड़ाने वाली बहन पराई क्यों हो गई,,
पिता के संस्कारों को मिट्टी में मिला रहा हे,
जिसे जिगर का टुकड़ा कहा वो अपने पिता को सुना रहा है,,
संस्कार बन गए धूल के समान,
फिर भी मेरा देश महान।

हराम की कमाई से परिवार चला रहा है,
सरकारी बाबू अपने बच्चों को विदेश में पढ़ा रहा है,,
वर्दी वाला अपनी वर्दी का रौब दिखा रहा है,
काला धन घर के डिब्बों में छुपा रहा है,
भारतीय संस्कृति बन गई अनजान,
फिर भी मेरा देश महान।

हे ईश्वर तेरी कायनात को किसकी नजर लग गई,
ईमानदारी स्त्री की जुल्फों में खो गई,,
कर ऐसा कुछ की फिर से राम राज्य आ जाये,
सबके दिलों में सिर्फ एक ईश्वर छा जाये,,
धर्म के बीच न रक्त का बहाव हो,
देश ऐसा हो जहाँ स्त्री का सम्मान हो,,
रिश्तों की डोर में प्यार की जान हो,
ऐसा मेरा देश महान हो।
ऐसा मेरा देश महान हो.....
000000000000

अनिल कुमार सोनी


"भिक्षांदेही "

कहने मात्र से
अहंकार नष्ट हो जाता है
वोट के लिए
याचना कैसी
जनता से भिक्षा में
वोट मांगते वक्त
अहंकार
अधिक बढ़ जाता है
क्यों कि
भिक्षांदेही में स्वार्थ
किंचितमात्र भी नहीं रहता
वोट
जनता की प्रियवस्तु है
उसको
साम दाम दण्ड भेद से
छीन
लिया जाता है !

00000000000000

नवीन कुमार जैन


तस्वीर

एक तस्वीर ।
हर लेती पीर ।।
एक है नन्हा बच्चा ।
भोला भाला सच्चा ।।
पहने है कपड़े फटे ।
बाल न कबसे कटे ।।
बीन रहा वो कबाड़ ।
अंबर की लिए आड़ ।।
चेहरे पर है मुस्कान ।
चल रहा वो छाती तान ।।
आँखों में सपने हजार ।
चाहता अपने लिए प्यार ।।

-

नाम - नवीन कुमार जैन
पता - ओम नगर काॅलोनी, वार्ड नं.-10 बड़ामलहरा ,जिला- छतरपुर म.प्र.
000000000000000

राजेश मेहरा

09810933690

नई दिल्ली

काम
उठा हूँ काम पर चलने को रोज की तरह शरीर की परेशानी भूल
तैयार हुआ में रोज की तरह आई आँखों में फिर कष्ट की धूल ।।

पहुँचा हिम्मत करके स्थान, लेने वाहन काम की जगह के लिए
लगा अब तो गिर जाऊंगा फिर सोच चल पड़ा अपनों के लिए ।।

द्वार पर काम के स्थान, हिम्मत ने दिया जवाब खराब था हाल
अपनों को क्या कहूंगा इसलिये अंदर पहुंचा छुपा के अपनी चाल

अपने खुश थे और पता नहीं था काम पर मेरे साथियों को
कर रहा था काम में भी नहीं पता था मेरा दुःख किसी को ।।
00000000000000

राजेश गोसाईं


    रजाई

    पहले सोया वो
    माँ की रजाई
    फिर सोया वो
    बर्फ की रजाई
    आज सोया है  वो
    धरती की ओढ़ रजाई

    दे के हमको
    चैन की रजाई
    सो गया है
    तिरंगे में वो भाई

    लाखों बहनों की
    भर कलाई
    ओढ़ के सोया वो
    धरती माँ की रजाई

    लाखों माँओं की गोद में
    दे गया है लाल
    वो भाई
    पिता की आँखों में भी वो
    दे गया है रोशनाई

    मांगों में चमक भर
    मिट्टी में सो गया भाई
    देश की खातिर ले के
    तिरंगे की रजाई
    अमर हो गया वो भाई

    दे रहा  राजेश गोसाईं
    श्रद्धा के फूल
    पिरो कर भाई
    अमर रहे हर वीर सिपाही

   
    *********

    बधाई

    आज हवा गुनगुनाई
                    वन्दे मातरम
    कलि कलि मुस्काई
                     वन्दे मातरम
    थमा शोर तूफानों का
            बादलों ने ली विदाई
    बजी धूप की शहनाई
                     वन्दे मातरम

    ऊषा की पहली किरण
            शंख, घंटे, शबद
    अजान मधुर आई
                      वन्दे मातरम

    हँसी केसर क्यारी
           शुभ्र उज्जवल धर ताज
    हरित वसुधा नृत्य मग्न
            पायल छन छनाई आज
                        वन्दे मातरम
    माँ भारती बहुत दिन बाद
             सोई चैन की नींद आज
                         वन्दे मातरम

    चाँद तारों ने एक चक्र में
           अमन की गंगा बहाई
    लाल - हरे रंगों ने मिल कर
            तिरंगे की शान बढ़ाई
                     वन्दे मातरम

    वतन की राज-ऐश में
             राजेश ने दी है यह बधाई
                     वन्दे मातरम


    ************

    इक इच्छा

    देश की सेवा में
    जो लोग आते हैं
    धरती अम्बर भी
    उनके गीत गाते हैं

                           जो शहीद होते हैं
                           तारों में मिल जाते हैं
                           इस पावन सेवा का
                           सौभाग्य मिल जाये
                           ये जान वतन पे मेरी
                           कुर्बान हो जाये

    मैं ऐसा तन पाऊं
    मेरा वतन सज जाये
    इस देश की सेवा में
    सब अर्पण हो जाये

                           मुझे चैन मिलता है
                           मेरा देश जब हंसता है
                           मेरा सुख दुख यही पर
                           हर पल कटता है

    इक इच्छा करती है
    शहीदों की धरती पे
    कुछ देर सेवा कर
    मैं भी सो जाऊं

                       हो तिरंगा तन पे
                       मेरी सेवा देश में
                       कोई रंग ले आये
                       मेरी सांसों का ये गीत
                       मेरा  देश भी गाये
   

    *******

    जश्न ए आजादी

    लहू से सींच कर......
    दे गये जो वतन.......
    उन शहीदों को है नमन.....
    आजादी की नई हवा में.....
    अपनी धरती अपना है गगन....
    याद कर उनकी कुर्बानियां....
    मेरे वीरों---सम्भालो ये वतन....
    खुली बहारें , खुली सांसें....
    खुली हवाओं में.....
    गीत देश का भी....कुछ .. गा.. लो......
    आज खुल के ....जश्न मना लो.....
    * * * *
    मेरा रंग दे बसंती चोला....२
    माये रंग दे बसंती चोला
    आजादी का दिन है...
    इस चोले को पहन के नाचे
    हम मस्तों का टोला
    मेरा रंग दे बसंती चोला

    रंग बसंती में ......
    ये चोला आज सजा लो
    रंगोली खूब सजा लो
    इस चोले को पहन के....

    तिरंगा ये लहरा लो
    जश्न मना लो.......२
    आजादी का दिन
    बड़ा शुभ दिन....
    खुशियां आज मना लो....
    गा लो मुस्कुरा लो
    जश्न मना लो....

    ना जाने कितनी जाने गंवा के
    आजादी ये पाई
    गा लो आज बधाई......

    मिल जुल के सारे भाई
    आज ...गले सबको ..लगा लो
    गा लो ...मुस्कुरा लो...
    महफिलें सजा लो...

    आजदी की वेला में ,कर लो ये शुभ काम
    जीवन की शाम ... देश के नाम
    शहीदों को कर सलाम
    दीप श्रद्धा के आज जला लो....
    यारो... मुबारक दिन बना लो.....
    ......
    बड़ा मजा आ रहा है इस मिट्टी में खेलने का
    मेरे शहीदों के फूलों में खुशबू बहुत है
    ........
    इस माटी का तिलक कर
    चन्दन आज लगा लो
    मस्ती में झूमो , मस्ती में नाचो गा लो,.....

    वीरों की अमानत को ....२
    मेरे वीरो आज सम्भालो
    मिल जुल के  ..गीत देश के भी गा लो
    गा लो ...मुस्कुरा लो
    महफिलें सजा लो
    आजादी का है दिन....
    जश्न खूब मना लो

    मेरा रंग दे बसन्ती चोला
    माये रंग दे बसन्ती चोला.....
    ओये ....रंग दे ...बस़न्ती चोला
    आजादी का दिन ये चोला आज सजा लो
    .....
    कितना खूबसूरत वो नजारा होगा
    धरती आकाश हवा में
    जब बसंती रंग के संग मिलकर
    नाचता तिरंगा हमारा होगा
    .....
    इस चोले को पहन के
    नाचे हम मस्तों का टोला
    रंग बसंती में......
    तिरंगा ये लहरा लो ...गा...लो...मुस्कुरा लो.....
    महफिलें सजा लो
    चोला ये सजा लो........

    मेरे देश की भक्ति....ई......
    नाचो गा लो कर लो खूब मस्ती....
    मेरे देश की भक्ति......
    चोला आज सजा लो ..ये देश की भक्ति
    रंगोली खूब सजा लो... ये देश की भक्ति
    तिरंगा ये लहरा लो ......ये देश की भक्ति
    इस देश की भक्ति में आज....
    जयहिन्द जय हिन्द गा लो....
    ये देश की भक्ति..….
    गा लो मुस्कुरा लो......
   

    ************
    गरीब

    आज मैं दुनिया के
             बहुत करीब हूँ
    बस माँ नहीं पास
              इसलिये बहुत गरीब हूँ

    बेशक माँ की दुआओं का
           खजाना भरा है
    पर खुदा की तराशी हुई
            माँ की मूरत नहीं पास
    जिसका मैं हबीब हूँ
            इसलिये बहुत गरीब हूँ

    मेरी आँखों में तेरी याद का
           गर्म जल बह जाता हैं
    तेरी ममता की उंगलियों से
           सहलाये हुये गालों पर
    तेरे पैरों की धूल के
           हीरे मोती  नहीं पास
    कितना मैं बदनसीब हूँ
           इसलिये बहुत गरीब हूँ

 
    **********

    खुली चुनौती

    तुम क्या खून से खून मिलाओगे
    तुम क्या कश्मीर को पाकिस्तान बनाओगे
    कदम रख के तो देखो इस सर जमीं
    पूरे पाकिस्तान में हिन्दुस्तान पाओगे

    है अगर दम पिया हो माँ का दूध
    उठा के आँख देखो जरा क्या है तुम्हारा वज़ूद
    खड़े हम यहाँ तुम बैसाखी पे लड़खड़ाओगे
    कदम पड़ेगा जहाँ  वहीं टूट जाओगे

    ना इम्तिहान लो हम शांत शेरों का
    गर्जना सुन तुम बिखर जाओगे
    फैसला गर लिया हमने तो खा जायेंगे
    कफन तक भी नसीब ना पाओगे

    सम्भल जाओ नापाक इरादे वालो
    हिल गये हम तो तुम साफ हो जाओगे
    कश्मीर भी बचेगा  लाहौर भी हमारा होगा दुनिया के नक्शे से बस
    पाकिस्तान जुदा कर जाओगे


    ***********

    सारे जहान में

    एक तिरंगा लहरा देंगे
    भारत माँ की शान में
    लाल किला सजा देंगे
    हम सारे  पाकिस्तान में

    भारत मुर्दाबाद बोलेगा जो
    श्रीनगर की घाटी में
    वन्देमातरम कह के
    ठोक देंगे तिरंगा उसकी छाती में
    जय भारत उससे बुलवा देंगे
    भारत माँ की शान में
    एक तिरंगा लहरा देंगे
    हम सारे पाकिस्तान में

    पत्थरों से तोड़े जाते हैं
    फल और आम ये
    अभी कहाँ देखी ताकत
    बोले वीर जवान ये
    सर उठा के देखो मैदान
    खड़े जांबाज ऊंचे मचान में
    तोड़ के रख देंगे हाथ
    दफना देंगे तुमको कब्रस्तान में
    एक तिरंगा लहरा देंगे सारे जहान में

    एक तिरंगा लहरा देंगे
    भारत माँ की शान में
    लाहौर अपना बना देंगे
    हम सारे  पाकिस्तान में

    भारत मुर्दाबाद बोलेगा जो
    श्रीनगर की घाटी में
    वन्देमातरम कह के
    ठोक देंगे तिरंगा उसकी छाती में
    जय भारत उससे बुलवा देंगे
    भारत माँ की शान में
    एक तिरंगा लहरा देंगे
    हम सारे पाकिस्तान में

    पत्थरों से तोड़े जाते हैं
    फल और आम ये
    अभी कहाँ देखी ताकत
    बोले वीर जवान ये
    सर उठा के देखो मैदान
    खड़े जांबाज ऊंचे मचान में
    तोड़ के रख देंगे हाथ
    दफना देंगे तुमको कब्रिस्तान में
    एक तिरंगा लहरा देंगे
    भारत माँ की शान में

    देशद्रोह की ज्वाला में
    जो तुमने उगला हाला है
    अमृत के कलश में
    आज लहू तुमने उबाला है
    अंगारों से खेले हम
    लाहौर तुम्हारा जला देंगे
    रौशन कर देंगे भारत
    सारे जहान में
    एक तिरंगा लहरा देंगे
    भारत माँ की शान में
    इस धरती और  सारे आसमान में
    राजेश गोसाईं
    भारत माँ की शान में

*********

    सम्भल जाओ

    नफरत के बीजों से
    जहर उगाने वालों
    ओ सांपों को पाल कर
    दूध पिलाने वालो
    सम्भल जाओ

    अमन चैन की धारा में
    पत्थर बरसाने वालो
    आ रहा सैलाब हमारा
    अपना देश बचा लो

    हर आतंकी का अब
    हर गोली पे नाम होगा
    देशद्रोह में हाहाकार मचाने वालों
    सम्भल जाओ
    तुम्हारा भी यही अंजाम होगा
    शह आतंकी को देने वालों

    भारत में रह कर
    भारत की रोटी खाते हो
    शर्म करो भारत में
    फिर पाकिस्तान का झण्डा लहराते हो
    देखो अब वहाँ तुम्हारे
    ताण्डव हम रचा देंगे
    गर राग कश्मीर गा कर
    पत्थर एक भी आया
    ईंट से ईंट बजा कर
    भून के रख देंगे लाहौर वालों
    अपनी गर्दन अपना गिरेबां सम्भालो

    ना तोड़ो मौन हमारा
    खुली बगावत करने वालों
    कांप उठेगी मौत भी तुम्हारी
    गर्जन सुन के ही हमारी
    तुम अपनी गर्दन सम्भालो

    गीदड़ भभकी बहुत हुई
    आतिशबाजी में फुलझड़ियों से
    हमें डराने आते हो
    भारत माँ के लाल जब
    तोपों से खेलने
    जंग ए मैदानों में जाते हैं
    तुम घबरा कर दूसरे देशों में
    छिप जाते हो
    लाल चौक पर बगावत के
    नारे लगाने वालो
    सम्भल जाओ

   
    **********

    बचपन

    बचपन मेरा वापिस दे दो
    ए जान ए बहारों
    वो अमरूदों के पेड़ों पर चढ़ना
    वो बेरी के नीचे
    लंगरी टांग खेलना
    मित्रों संग लड़ना , फिर मान जाना
    मेरा वापिस दे दो

    वो बारिश में भीग जाना
    कागज की कश्तियां तैराना
    माँ के हाथों से पकौड़े खाना
    तेल में जले हाथ पर उससे
    नील लगवाना
    मेरा वापिस दे दो
    ए सावन की रिमझिम फुहारों
    बचपन मेरा वापिस दे दो

    नन्हे कन्धो पे बस्तों का भार
    रास्ते में रेहड़ी वाले की पुकार
    वो कक्षा में पीछे सो जाना
    मेरा वापिस दे दो
    ए जान ए बहारों
    बचपन मेरा वापिस दे दो

    वो राजु का साइकिल से गिर जाना
    वो दीवारों से कूद जाना
    मेरा वापिस दे दो

    राजेश बन कर रह गया हूँ
    वो राजु काजु ही कहलाना
    मेरा वापिस दे दो
    ओ पुरानी यादों
      वो प्यार , वो शरारतें
    मेरी वापिस दे दो

    लुट गया जो मेरा
    अतीत का खजाना
    ओ वक्त के पहरेदारों
    कहीं से खोज लाओ
    बीते हुये लम्हों का नजराना
    मेरा वापिस दे दो

 

    *********

    पानी

    प्रकृति की गोद से निकल
    पर्वतों के कन्धे पर
    खेलता पानी
    मधुर गीतों पर थिरकता
    ऊपर से नीचे
    निर्मल विनम्र भाव से
    फिर विश्राम करता
    किसी झील-सरोवर में
    शांत पानी
    हर चोट सह कर
    मगर अटूट रह कर
    एक हो जाता
    काश मानव भी
    पानी सम हो जाता

    जीवन का हमसफर
    गम स्वयं पीता
    लाठी पत्थर झेल कर
    हर रंग में मिल
    एक होता
    काश मानव भी
    पानी सम हो जाता

    मित्र की सरगम
    पर शत्रु की दहाड़
    भी बन जाता है
    ये शांत पानी

    है आगाज विश्व युद्ध का
    पानी जीवन की
    धरोहर
    ललकार है मानव
    बचा ले
    व्यर्थ ना कर
    वरन नहीं मिलेगा
    भविष्य में
    अनमोल निर्मल पानी

   

    **********
    वतन का प्यार

    हे..….इस तिरंगे तले
    वतन का प्यार मिले
    महकी फिजाओं में
    खुली हवाओं में
    प्रेम रंग ये घुले
    हे....इस तिरंगे तले
    वतन का प्यार मिले......

    सुबह सुहानी
    ये  बहारें ,
    ये नजारे चले
    माटी की खुशबू
    सांसों के संग चले
    हे....इस तिरंगे तले
    वतन का प्यार मिले.....

    नदिया की धारा
    भाईचारा
    अमन चैन मिले
    मिल के यहाँ पे गले........
    हे....इस तिरंगे तले
    वतन का प्यार मिले

   
    ***********

    कारवां

    जिन्दगी के चन्द लम्हों का कारवां
    बढ़ता ही जाता है
    आगे.....और आगे.....जैसे
    कोई सजा हुआ जनाजा
    और पीछे चलता...
    शोकाकुल लोगों का यह
    छोटा या बड़ा कारवां
    या फिर कहीं किसी
    शब ए बारात में गुल
    इक शोर में डूबा
    यह यह गम विहीन कारवां

    यह जिन्दगी का काफिला
    लगता है कहीं हसीन
    तो कभी नासूर दर्द भरा
    यह कारवां तो देगा छोड़
    एक नया सा सलौना सा गुबार
    जहाँ होगा कहीं हमारा
    खुशी का आलम
    या फिर होगा
    गम का सिसकता
    साज सा बजता यह कारवां
    कभी कांटों के दामन में
    लिपटा होगा यह
    तो कभी ....पुष्प अम्बार लिये
    इक ताज सा होगा
    यह कारवां

        *********

    जिन्दगी

    जिन्दगी का साथ
    निभाता चला जाऊंगा
    हर फिक्र को बेफिक्र
    बनाता चला जाऊंगा
    दर्द के बिखरे बन्दों में
    खुशियां सजाता जाऊंगा
    मैं जिन्दगी का साथ
    निभाता चला जाऊंगा

    रोते हुये लोगों को
    हसांता चला जाऊंगा
    हर दर्द को हमदर्द
    बनाता चला जाऊंगा
    नेकी के प्रयास में
    भवसागर तर जाऊंगा
    मैं जिन्दगी का साथ
    निभाता चला जाऊंगा

    निराशा को आशा बना के
    सपनों को यहाँ सजा के
    बहारों के गीत जग में
    गाता चला जाऊंगा
    हर दीप नया हर दिल में
    जलाता चला जाऊंगा
    मैं जिन्दगी का साथ
    निभाता चला जाऊंगा

  
    ***********

    मुलाकात

    इक दिन मौत से मुलाकात हो गई
    जुबां खुले बिना ही बात हो गई

    जिन्दगी ने मन ही मन पूछा
    क्यों खेल रही है तू मुझसे
    आज तेरी क्या औकात हो गई

    मौत ने जवाब दिया- आँखें फैला कर
    तेरे मेले लगे हैं तो
    मैं  तेरे साथ हो गई
    मैं तो तेरा सच हूँ
    फिर भी तू उदास हो गई

    धरती में मेरा कोई अस्तित्व नहीं
    मैं पहेली हूँ , मैली हूँ
    जिधर देखूं- मौत- तू साफ हो गई

    रंज ओ गम के मेले हैं
    संसार के रंग मंच में
    कयामत की राहों पे सब अकेले हैं
    सांसों की भीड़ में मौत पास हो गई

    जिन्दगी - तू हार गई
    कौन पूछता है , कौन सेवा करता है
    हर तरफ संघर्ष ही संघर्ष
    हर गलती पे पश्चाताप हो गई

    मौत के बाद भी मान सम्मान
    जीते जी कोई खिलाता पिलाता नहीं
    भण्डारे प्याऊ लगे जाने के बाद
    कभी कपड़ा जूता  फूल तक नहीं
    ढेर लग जाते हैं मृत्यु शैया पे सोने के बाद
    और ये दान भी रहता है बरसों याद
    मानव जीवन यादों की बरसात हो गई

    आत्म सम्मान में मौत का सम्मान
    देख रहा सारा जहान

    हताश सी जिन्दगी का मुँह खुला
    धीमे से ही बोला
    काश ! मिल जुल कर रहते हम
    साथ साथ करते संसार बर्बाद आबाद

    हा- हा- हा- ... मौत खिलखिलाई

    जिन्दगी  तू जीते जी मर रही है
    और मैं तेरे अन्दर ही जी रही हूँ
    तू मेरे से क्या मिलेगी

    चलती हूँ -  किसी और जिन्दगी से मिलने

    उदास जिन्दगी एक टक सोचती रही

    जिन्दगी मौत से मिली
    या मौत जिन्दगी से हाथ मिला कर
    चली गई
    जिन्दगी आबाद है या बर्बाद
    मौत को ही रखते हैं सब याद

    ************

    \\  भारत बैंक  //

    भारत बैंक में जमा ,रत्नों का भण्डार है
    बही खाते में लिखी गौरवमयी कतार है

    पन्ना पन्ना ले जो भी खोल
    मिलेंगे खजाने यहीं अनमोल
    स्वर्णजड़ित प्रकृति की महिमा अपार है
    भारत बैंक में जमा रत्नों का भण्डार है

    मिलते वेद कुरान यही
    गुरू ग्रन्थ साहब महान यही
    बाईबल गीता रामायण खाते में संस्कार है
    भारत बैंक में जमा , रत्नों का भण्डार है

    वैदिक सनातन धर्म के हीरे मोती
    यहाँ मिलती सदा से ऊँ की ज्योति
    हर बही खाते में मिला दैवीय अवतार है
    भारत बैंक में जमा रत्नों का भण्डार है

    जमा पूंजी सुन्दर सौंधी मिट्टी
    हरी भरी आंगन विशाल धरती
    यहाँ चाँदी का ताज खेत फसल बहार है
    भारत बैंक में जमा रत्नों का भण्डार है

    हाथों में माँ के खन खन चूड़ियां
    श्रृंगार करें कुदरत की लड़ियां
    चरणों में पायल छम छम करती तार है
    भारत बैंक में जमा रत्नों का भण्डार है

    आजादी के दीवाने
    वतन परस्त परवाने
    सब शहीदों की किताबें सजी तैयार है
    भारत बैंक में जमा रत्नों का भण्डार है

    चाहे रावण का हिसाब ले लो
    चाहे बीरबल की किताब ले लो
    बही खाते में सुभाष भगत सरदार है
    नेहरू गाँधी हर युग के स्वर्ण हार है
    ऐसे देश प्रेमियों से बगिया ये गुलज़ार है

    इतिहास देखो,  वैदिक काल से
    आधुनिक काल तक, दौलत बेशुमार है
    जितने भी महान व्यक्तित्व हुये अब तक
    देश की जमा पूंजी में रत्न जड़ित हार है
    भारत बैंक में जमा रत्नों का भण्डार है


 

    *********

    दुनियादारी

    झूठी दुनिया ने क्या क्या रंग बदला है
    ए मौत-  तुझसे मिल के सब पता चला है
    -………..........
    एक दिन मैंने सोचा
    क्या होता है मरने के बाद
    कौन क्या करता है
    कौन कितना रखता है मुझे याद
    यह सोच कर मर गया मैं आज
    देखने को दुनिया का असली राज

    एक तरफ मैं मरा हुआ था
    रिश्ते नातों से घिरा हुआ था
    चारों तरफ रोते रिश्तेदारों में
    रोना धोना मचा हुआ था
    सूनी मांग कलाई में
    बीवी ने पकड़ा कोना था
    मेरी माँ का हाल बुरा तो
    और भी ज्यादा होना था
    बाप की आंखें पथरा गई
    मौत मेरा लाल खा गई
    ढेर कफन ओढ़ कर
    गली मोहल्ले के लोगों संग
    मैं आँगन में पड़ा हुआ था

    उधर समाज के लोगों का हौसला
    मेरे परिवार को मिल चला
    कुछ लोगों को फिर भी चैन ना मिला
    जल्दी ले चलो वापिस दूर भी जाना है
    एक आवाज आई बच्चों को भी लाना है
    देर हो रही दफ्तर को और काम बहुत है
    किसी पार्टी शादी और मॉल भी जाना है

    मंत्री जी ने हंस कर सबसे हाथ मिलाया
    हौसला दे मेरी बीवी को गले लगाया
    बूढ़ी माँ से हाथ जोड़ एक तरफ हो गये
    पार्टी वाद ले कर राजनीति में खो गये
    देख कर सारा हाल मैं
    मजबूर वहाँ पर धरा हुआ था

    कन्धे बदल रहे थे
    देने वाले मुझको सहारा
    जिन्दगी भर जो दे रहे रहे थे
    झूठा सहारा
    मकान से श्मशान गेट
    ऐसे मौके पे क्रिकेट
    सब कर रहे थे मुझसे किनारा
    ठहाके उनके देख
    मैं भी घृणा से भरा हुआ था

    हैरान तो मै और भी हुआ
    जब घर ने वसीयत को छुआ
    कर रहे थे मेरे बाप भाई
    एक पानीपत की लड़ाई
    बीवी कहती हक है मेरा
    बच्चे बन गये कसाई
    दीवार पे तस्वीर बन
    मैं परिवार की दीवार बना हुआ था

    झूठी दुनिया की देखी
    झूठी दुनियादारी है
    पैसा धर्म पैसा ईमान
    पैसे की सब यारी है
    मतलब  स्वार्थ की रह गई
    दिल के रिश्तों में बह गई
    सिक्कों की रिश्तेदारी है
    रंग बदलती दुनिया में बेरंग
    घमासान यह श्मशान तक
    मौत से पहले की मौत में
    जी रही दुनिया सारी है

 

    ********

    प्यारा वतन

    कल सजी थी शहादत की लड़ियां
    आजादी के मेले यहाँ
    वक्त लाया है बहारें
    मना लो आज खुशियां
    सलाम हवाओं का है आया
    लहरा लो तिरंगा आज यहाँ
    * * * *
    ए मेरे प्यारे वतन
    ए मेरे खिलते चमन
    तू ही मेरी जान

    तू ही मेरा नील गगन
    तू ही मेरा मधुबन
    तू ही मेरी जान

    तेरे आंगन जो लहराये
    इस तिरंगे को सलाम
    चूम लूं मैं इस धरा को
    जिस पे है ये ऊंची शान
    सबसे प्यारी ये भूमि
    सबसे सुन्दर आसमान
    तू ही मेरी जान

    शहीदों के फूलों से सज कर
    चमन महकाता है तू
    और कभी नन्ही सी कलि में
    खुशबू बन जाता है तू
    जितना खिल जाता है
    उतना ही मुस्काता है तू
    तू ही मेरी जान

    मेरा प्यार भी तू है
    ये बहार भी तू है
    तू ही नजरों में जान ए तमन्ना
    इन्हीं नजारों में
    इन्हीं सितारों में
    तू ही मेरी मुस्कान
    तू ही मेरी जान

    ए मेरे प्यारे वतन
    ए मेरे खिलते चमन
    तुझपे दिल कुर्बान
    तू ही मेरी जान
    तू ही सबकी मुस्कान


    *************
    चरण वन्दन

    जय जय भारत माता
    हम वन्दन करते हैं
    हे सुख करनी हे जगजननी
    हे वरदानी भाग्य विधाता

    तू है सबकी पालन कर्ता
    सर्व धर्म सर्व भाषा
    तुझमें ही है बसती रसधारा
    हर प्रदेश की प्रेम गाथा

    हर संस्कृति की दाता
    हर त्यौहार हर जन मनाता
    एक बन कर नेक बन कर
    गीत मिलन के है गाता

    आशाओं के पंख पाकर
    सपनों की उड़ान भरे
    भारत वर्ष विश्वगुरू महान बने
    हो सुखमय हिन्द माता

    मिटा कर सब द्वेष झगड़े
    है मजबूत दिल का नाता
    लाल हरे रंग छोड़ कर
    एक तिरंगा है यहाँ लहराता

    चहुं दिशा पर्वत सागर
    धरती अम्बर तेरी कृपा पाता
    चरण वन्दन है स्वर्ग दायिनी
    नमन तुझे हे विश्व विधाता


    ************

    आज की आवाज

    आज की आवाज है या
    गोली की आवाज
    चटख रही माला किसी की
    टूट रहे हैं साज (श्रृंगार )
    जाने किसका सुत मरा है
    सिंदूर मिटा है आज
    घुट रहे हैं गले सबके
    सुलग रहे हैं ताज

    पर काटे हैं किसने उनके
    पंछी तड़प रहे जो आज
    इक चिंगारी जो लगी दिल में
    भाई भाई के भी आज
    मानवता की कर लड़ाई
    ज्वाला बन रह वो आज
    भूल गये हैं सब वो भाई
    इंसानियत की आवाज

    चन्द सिक्कों की खनक में मानव
    जाने क्यों कर रहा है ताण्डव
    रक्त सिंधु बह रहा है
    शिव की गंगा में भी आज
    किसकी छलनी छाती देखी
    भाइयों पर चली दरांती देखी
    कायर हैं ऐसे देश प्रेमी आज
    जो करते हैं देश पर राज
    वीरों सुनो मेरी आवाज
    बन्द करो जल्दी से
    यह जुल्म की आवाज

    सूखी रोटी नंगे बच्चे
    बिलख रहे हैं आज
    नहीं माता के स्तन में कोई
    दूध की बूंद भी आज
    बेखबर है इनसे वो खबर
    जो देश को कर रही बरबाद
    आँखें रख बैठे हैं बाज
    जो ना मिले कोई शिकार
    तो भी आती है इक बार
    गोली की आवाज

    जागो कब्र में सोने वालो ( शहीद )
    देश को दस्तक दे रहे हैं
    देखो कुछ दरिन्दे आज
    तुमको आना होगा वापिस
    हमें कराने फिर से आजाद
    यही मेरी तमन्ना तुमसे
    यही इच्छा है आज
    हमको बनना होगा फिर से
    नेहरू भगत और आजाद
    बन्द करनी है जल्दी हमको
    यह गोली की आवाज
    आज की आवाज
    परन्तु राष्ट्र हित में आये सदा
    शांति की आवाज
    प्रेम की आवाज
    यही हमें चाहिये सदा सदा
    आज की आवाज

    000000000000000000

इन्द्रजीतसिंह नाथावत


⭐झिलमिल-झिलमिल तारे⭐

दिखते कितने
सुन्दर- सुन्दर
लगते मन को प्यारे

जगमग -जगमग
झिलमिल -झिलमिल
नभ के नन्हे तारे

दिन में सोते होंगे
थककर
रात में जागे तारे

उलटे आसमान पर भी
कैसे सीधे लटके तारे

मैं भी एक तारा बनकर
अम्बर में जड़ जाऊँ

अंधियारे से लड़ लूँ थोड़ा
उजियारा फैलाऊँ

बाल कविता:इन्द्रजीतसिंह नाथावत बखतगढ़
000000000000000

रश्मि शुक्ला


सरकार द्वारा जब भी कोई योजना निकाली जाती है,
उसको पाने के लिए हर एक से दलाली जाती है,
एक लाख का लोन अस्सी हजार हाथ आता है,
बाकी का बीस हजार यूं ही मुफ्त में चला जाता है,
जाने कितनी ही कुर्सियां रोज संभाली जाती हैं,
एक पद के लाखों से नियुक्तियां निकाली जाती है,
क्यों जनता को खोखला बना दिया है इन नेताओं ने,
सारा वक़्त गवां दिया है इनकी आओ भगत में युवाओं ने,
जब तक कुर्सी हाथ न आये वोट मांगते हैं हाथ जोड़कर,
कुर्सी मिलते ही अपनी जेबें भरते हैं सारे वादे तोड़कर,
एक नेता को दिया जाता है कितना ही आरक्षण
और वही नेता बाद में भूल जाता है जनता का संरक्षण
000000000000

 

रूचि प जैन

    
  पेड़ पत्ती
पत्ती पवन से यों फड़फड़ाती है,
अस्तित्व का अभिमान जताती है।


गर्वित हो वृक्ष से कहती तभी,
देखो वज़ूद है तुम्हारा मुझसे कहते सभी।


चुप रहा खड़ा वृक्ष यों ही,
पर चुभ गई यह बात मन को कहीं।

सोचा क्यों न त्याग दूँ इसे अभी,
भान होगा इसे ग़लती का तभी।

पत्ती यों ही मस्ती में लहराती रही,
अपनी धुन से सबका मन मोहती रही।

लेते मेरे रंग का नाम सभी ,
भूरा रंग ना भाता किसी को भी।

आहत कर गई वृक्ष को ये वाणी ,
प्रेम की जगह क्रोध ने ले डाली।

विवेक ने छोड़ा साथ तभी,
पकड़ अपनी कर दी ढीली।

झर झर धरती पर पत्ती गिरी,
दहल-दहल कर ख़ूब चीख़ी।

वृक्ष पर फैली मुस्कान लम्बी,
सोचा हो गयी मेरी इच्छा पूरी।

बीत गई रैना सारी,
नहीं सुनी चिड़ियों की बोली।

न फटका पास कोई राही,
न ही सुनी बच्चों की हँसी ।

अनेक आशंकाएँ मन में उमड़ी ,
अकेलेपन की तकलीफ़ उभरी।

अब बारी मूल की थी,
हंस कर वो ये बोली।

पूरक है हम एक दूसरे के सच है यहीं,
कहते है वृक्ष जिसे उसमें आते हम सभी।

समझ आयी बात सारी,
की है उसने ग़लती भारी।

पत्ती भी ज़मीन पर ख़ूब रोई,
बिलख बिलख कर माफ़ी माँगी ।

प्रभू से की ये विनती,
लगा दो वापस पत्ती सभी।

           
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रचनाकार: माह की कविताएँ - होली विशेष आयोजन
माह की कविताएँ - होली विशेष आयोजन
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