इधर मैं रचनाकारों के छाया चित्रों का अध्ययन कर रहा हूँ .वर्षों पहले धर्मयुग में किसी लेखक का फोटो छप जाता तो उसे बड़ा लेखक मान लिया जात...
इधर मैं रचनाकारों के छाया चित्रों का अध्ययन कर रहा हूँ .वर्षों पहले धर्मयुग में किसी लेखक का फोटो छप जाता तो उसे बड़ा लेखक मान लिया जाता था, मेरे साथ यह दुर्घटना दो तीन बार हो चुकी थी. बहुत से रचनाकारों के चित्र बड़े विचित्र होते हैं ,कभी काका हाथरसी का स्टूल पर खड़े हो कर क्रिकेट की गेंद फेंकने का फोटो बड़ा चर्चित हुआ था. धरमवीर भारती का सिगार पीते हुए फोटो भी यादगार था. एक बार होली अंक में रिक्शे पर बैठे लेखकों के फोटो छ्पे थे .बड़ा बवाल मचा.एक बार नन्द किशोर मित्तल का धोती कुरता वाला फोटो छपा मस्तराम कपूर ने इसे अंक की उपलब्धि बताया. शरद जोशी का आर .के.लक्ष्मण द्वारा बनाया केरीकेचर भी खूब छपा. हरिशंकर परसाई का फोटो आतंकित करता हुआ सा लगता है एक स्थानीय लेखक भी वैसा ही फोटो हर लेख के साथ छपाते है ,एक अन्य लेखक परसाई की रचनावली के साथ अपना फोटो छपा कर प्रसन्नता पाते हैं, लेकिन परसाई होना इतना आसान है क्या ?
पूरन सरमा का फोटो क्या है - एक रसगुल्ला है . मेरा एक फोटो देख कर ऐसा लगता है जैसे कहीं से पिट कर आ रहा हूँ या पिटने जाने की तैयारी है .कई बार लगता ये फोटो क्यों छापे जाते है? एक संपादक ने बताया फोटो छपने से ही स्पेस कन्जूम होती है, बाकी लेख का क्या करना है?
महिला रचनाकारों के फोटो का अध्ययन करने से ज्ञात होता है की सत्तर पार की लेखिकाएं भी वहीँ छाया चित्र छपा रही हैं जो उन्होंने दसवीं की बोर्ड परीक्षा हेतु खिंचवाया था .कभी यह खुश फहमी आनंद देती है –अभी तो मैं जवान हूँ .कवि जगदीश गुप्त का फोटो उनकी कविता से भी बड़ा होता था .श्रीलाल शुक्ल के फोटो बड़े मारक होते थे. रवींद्र नाथ त्यागी फोटो का मोह नहीं त्याग पाए, खूब पोज वाले फोटो देते थे. ज्ञान चतुर्वेदी का चित्र देखते ही लम्बी व्यंग्य रचनाओं की याद आती है और पाठक का चेहरा उदास हो जाता है. अंजनी चौहान के फोटो में जो आला दिखाई देता है उसकी जगह कलम होनी चाहिए .
सुरेश कान्त का फोटो महिलाओं की पहली पसंद होता है ,अरविन्द तिवारी का फोटो देखने के बाद लेख पढ़ने की जरूरत ही नहीं रहती है. मनोहर श्याम जोशी के फोटो के तीन हिस्से होते थे-मनोहर, श्याम और जोशी .अज्ञेय के फोटो आतंकित करते हुए अभिजात्य लगते हैं .रघुवीर सहाय व प्रभाष जोशी के फोटो गान्धीवादी होते हैं. प्रेमचंद के चित्र भारतीय परिवेश को प्रदर्शित करते थे. अमृतलाल नागर के फोटो मस्त मौला टाइप होते है. के पी सक्सेना के फोटो की मूंछें प्रसिद्ध हो गई थी .सुशील सिद्धार्थ के फोटो देख कर यजमान वापस चला जाता है .
अख़बारों में कई कई बार बड़े मज़ेदार किस्से हो जाते हैं ,लेख किसी का फोटो किसी और का , भूल सुधार कोई नहीं पढ़ता. एक बार मेरे व्यंग्य के साथ एक संपादक ने महिला का फोटो लगा दिया, घर पर महाभारत हो गयी . महिलाओं के सुन्दर छाया चित्र देख कर पाठक घर का पता पूछने लग जाता है , मगर घर जाने पर निराशा हाथ लगती है. कुछ फोटो फोटो जेनिक होते हैं ,कुछ इतने गंभीर की देख कर रोने की इच्छा होती हैं .उदास चित्र देख कर रचना पढ़ने की इच्छा मर जाती हैं.
राज कुमार कुम्भज का चित्र देखने के बाद बाबाओं की याद आने लगती है अशोक शुक्ल का सौम्य चेहरा काफी दिनों से दिखाई नहीं पड़ रहा है .महेश दर्पण जब दाढ़ी के साथ नमूदार होते हैं तो कहानी की याद आती है .हरी जोशी का चित्र किसी मिलिट्री मेन की याद दिलाता है. चन्द्र कुमार वरठे का फोटो प्रेम का स्थायी फोटो है, उसमें राजेश खन्ना का अक्स है. दुर्गा प्रसाद जी का फोटो रस बरसाता है.दिल्ली के लेखकों के चेहरों पर हर समय दिल्ली चिपकी रहती है उन्हें आईने साफ करने के बजाय चेहरों की धूल पोंछनी चाहिए.
शशि कान्त सिंह के चित्र से ही लगता है, कोई भारी व्यंग्य कहीं गले में अटका हुआ है. कई लेखक कुरता पजामा ,जाकेट वाला ,दाढ़ी वाला फोटो छपवाते हैं मगर ऑफिस में सूट टाई डांटते हैं. योगेश चन्द्र शर्मा फोटो से ही प्रोफेसर दीखते हैं, मगर माधव हाड़ा मीरा की तरह सौम्य नज़र आते हैं. प्रभा शंकर उपाध्याय का फ्रेंच कट अपनी राम कहानी खुद ही कह देता है .यशवंत व्यास का शाल वाला फोटो भी दर्शनीय है ऐसा महिला पाठकों का कहना है. भगवन अट्लानी का छाया चित्र देख पाना बहुत मुश्किल है.
महिला रचनाकारों के चित्रों से ज्ञात होता है की वे लीलावती, कलावती और चश्मावती होती हैं. खुले बालों पर भारी चश्मा पूरा बौद्धिक लुक .
आलोक पुराणिक का फोटो देख कर लगता है कहीं क्लास लेने जा रहे हैं या क्लास ले कर आ रहे हैं .चेतन भगत का चित्र देख कर लगता है अभी कालेज में ही हैं .
अनूप श्रीवास्तव ,अनूप शुक्ल,नीरज बधवार,ललित लालित्य ,भगवती लाल व्यास,गोपाल चतुर्वेदी,शांतिलाल जैन,श्रवन कुमार उर्मिलिया,राजेश सेन, के पी सक्सेना दूसरे ,अनुज खरे, यश गोयल,जयसिंह राठोड़,योगेन्द्र योगी, हनुमान गालवा , ज्ञान पाटनी,बुलाकी शर्मा , अशोकमिश्र,पंकज प्रथम ,अलोक खरे ,अशोक गौतम ,गिरीश पंकज ,बलदेव त्रिपाठी ,फारुख आफरीदी इश मधु तलवार, रमेश खत्री ,रामविलास जांगिड ,गोविन्द शर्मा,सुमित प्रताप सिंह,दिलीप तेतरवे, अलंकार रसतोगी, अनूप मणि त्रिपाठी, संतोष त्रिवेदी,निर्मल गुप्त ,गोरव त्रिपाठी, ओम वर्मा ,कृष्ण कुमार आशु ,अतुल चतुर्वेदी,कैलाश मंडलेकर, प्रताप सहगल, आशा राम भार्गव ,अनंत श्रीमाली, करुना शंकर उपाध्याय, नीरज दईया ,रमेश जोशी,मंगत बादल, एम् एम् चंद्रा, व अन्य सैकड़ों रचनाकारों के छवि चित्रों का अध्ययन जारी है और यदि इस होली पर जूते नहीं पड़े तो अगली होली पर पाठकों की खिदमत में प्रस्तुत किया जायगा.
(सभी से क्षमा याचना सहित )
यशवंत कोठारी
८६, लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बाहर , जयपुर-३०२००२
मो-९४१४४६१२०७
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(टीप - यशवंत कोठारी का फोटो देखकर लगता है कि बरबस हँस दें. व्यंग्य चहुँओर से फूटता दीखता है. - सं.)
सत्य सम्पादक महोदयजी, "(टीप - यशवंत कोठारी का फोटो देखकर लगता है कि बरबस हँस दें. व्यंग्य चहुँओर से फूटता दीखता है. - सं."
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