प्रसिद्ध व्यंग्यकार और जाने-माने कवि डॉ. गोपाल बाबू शर्मा विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं। कविता उनके लिए मनोरंजन का एक साधनमात्र नहीं, बल्कि सा...
प्रसिद्ध व्यंग्यकार और जाने-माने कवि डॉ. गोपाल बाबू शर्मा विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं। कविता उनके लिए मनोरंजन का एक साधनमात्र नहीं, बल्कि सामाजिक सरोकारों, शोषित-लाचारों की दुर्दशा, दयनीयता और घृणित व्यवस्था से उत्पन्न अराजकता, विसंगति और असमानता को भी प्रमुखता के साथ अपना विषय बनाकर चलती है। जहां भी जो चीज खलती है, कवि उसके विरुद्ध खड़ा होता है और वसंत या खुशहाली के सपने बोता है।
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा ने सन् 1948-49 के आसपास कविताएं लिखना प्रारम्भ किया। उनकी प्रारम्भिक कविताएं हाथरस से प्रकाशित दैनिक पत्र ‘नागरिक’ में छपीं। तत्पश्चात् विधिवत् रूप से उनका गीत ‘विशाल भारत’ [कलकत्ता] से सित.-अक्टू-1953 अंक में प्रकाशित हुआ। प्राप्त सामग्री के आधार पर व्यंग्य-लेखन ‘हम मातमपुर्सी में गये’ [साप्ता. हिन्दुस्तान 21 मई सन्-1961] से प्रारम्भ किया।
कविकर्म के प्रारम्भिक दौर में कवि-सम्मेलनों की लोकप्रियता के परिणामस्वरूप कविताओं में हास्य-व्यंग्य का भी समावेश हुआ। उनकी प्रथम हास्य-कविता ‘नोक-झोंक’ मासिक [आगरा] में ‘कल शादी वाले आये थे’ शीर्षक से सित.-1955 अंक में प्रकाशित हुई।
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कविता के कल्पना-लोक, रोमानी संस्कार और सतही व्यापार से कवि अधिक समय तक न बंधा रह सका। उसने जीवन की सच्चाइयों और युगधर्म से अपना नाता जोड़ना शुरू किया। ‘सरस्वती’, ‘नवनीत’, ‘आजकल’, ‘नयापथ’, ‘जनयुग’, ‘साप्ता. हिन्दुस्तान’, ‘कादिम्बनी’, ‘सरिता’ आदि के माध्यम से जो कविताएं प्रकाश में आयीं, उनमें सामाजिक विकृतियों, विसंगतियों और कुव्यवस्था के प्रति विरोध के स्वर पूरी तरह मुखरित हुए।
कविता के इस रूप के साथ-साथ, एक दूसरा रूप भी कवि ने रखा-‘बाल कविता’ का, जो कि ‘नवभारत टाइम्स’, ‘बालसखा’, ‘नन्दन’, ‘पराग’ आदि के माध्यम से पाठकों के सम्मुख आया।
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा की अब तक, ‘जिन्दगी के चांद-सूरज’ [1992 ई.] ‘कूल से बंधा है जल’ [1995 ई.] ‘समर्पित है मन’ [1996 ई.] ‘दूधों नहाओ, पूतों फलो [1998 ई.] ‘धूप बहुत, कम छांव’ [1997 ई.] ‘सरहदों ने जब पुकारा’ [2000 ई.] ‘कहेगा आईना सब कुछ’ [2000 ई.] ‘मोती कच्चे धागे में’ [2004 ई.] ‘सूख गये सब ताल’ [2004 ई.] नाम से नौ काव्य-कृतियां सामने आयी हैं।
‘जिन्दगी के चांद-सूरज’ काव्य-कृति में प्रणय-गीत, प्रगति-गीत, ग़ज़लें, मुक्तक, बालगीत तथा हास्य-व्यंग्य गीत सम्मिलित हैं। कवि-सम्मेलनों में बेहद लोकप्रिय हुईं दो कविताएं ‘दो चोटियां’ तथा ‘लक्ष्मण हुये थे किसलिए बेहाश’ भी इस कृति में संकलित हैं।
‘कूल से बंधा है जल’ काव्यकृति में ‘तुम्हें वह प्यार कैसे दूं’, ‘मूर्गा बोला कुक्कड़ कूँ’, ‘ गुलछर्रे उड़ाते जाइए’, शीर्षकों के अन्तर्गत क्रमशः प्रेम-गीत, प्रगतिवादी विचारधारा के गीत, बाल कविताएं तथा हास्य-व्यंग्य कविताएं प्रकाशित हैं। शिल्प की दृष्टि से शुद्ध छन्दों के प्रयोग इनकी विशेषताएं हैं।
‘समर्पित है मन’ मुक्तकों का संग्रह है, जिनकी संख्या 118 है। ये मुक्तक प्रेम, सामाजिक-विसंगति, अपसंस्कृति, जीवन-मूल्यों की गिरावट आदि विषयों पर अच्छी तुक-लय और छंद के साथ अपनी ओजमय उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
‘दूधो नहाओ, पूतों फलो’ काव्य-कृति हास्य-व्यंग्य कविताओं का संकलन है, जिसके कथन में मौलिकपन है। समाज, राजनीति, साहित्य, शिक्षा, नेता, पुलिस, टेलीफोन, फिल्म, भ्रष्टाचार, चन्दा-उगाही आदि की विसंगतियों पर व्यंग्य कसतीं ये कविताएं एक तरफ जहां मन को गुदगुदाती हैं, हंसाती हैं, वहीं यकायक तमाचे-से भी जड़ जाती हैं। कवि के कथन का यह अंदाज बहुत ही लुभावना और प्यारा है।
‘धूप बहुत, कम छांव’ काव्यकृति में डा. गोपालबाबू शर्मा के दो सौ दोहे और 150 हाइकु संकलित हैं, जिनमें वर्ण्य विषय विविध हैं और सहज सम्प्रेषणशीलता का गुण विद्यमान है। सभी हाइकु अन्त्यानुप्रासिक प्रयोगों से युक्त हैं।
कवि की भाषा सहज-सरल है, किन्तु अर्थ-विस्तार और गूढ़ता लिये हुए है। उदाहरण के रूप में कुछ दोहे प्रस्तुत हैं-
हंस दुःखी, भूखे मरें, कौवे खाते खीर।
आज समय के फेर से उलटी है तस्वीर।।
सज्जन शोषित सब जगह, सहते अत्याचार।
पूजा के ही नारियल बिकते बारम्बार।।
गंगाजल मैला हुआ, चलती हवा खराब।
शोर-शराबा बढ़ गया, कांटा हुआ गुलाब।।
हाइकु पांच, साल, पांच अक्षरों में व्यवस्थित जापानी छंद है। इस छंद के अन्तर्गत आजकल खूब कूड़ा-कचरा खप रहा है। ‘हाइकु’ के नाम पर जो कुछ छप रहा है, उसमें अर्थ की लय भंग है, किन्तु डा. गोपालबाबू शर्मा के हाइकुओं में कुछ दूसरा ही रंग है। ये हाइकु कथ्य और शिल्प में बेहद असरदार हैं |
‘सरहदों ने जब पुकारा’ नामक काव्यकृति में बांगलादेश तथा कारगिल युद्ध के संदर्भ में भारत-पाक युद्ध सम्बन्धी ऐसी कविताएं हैं, जिनमें कवि भारत के शहीदों के प्रति तो श्रद्धानत हैं, किन्तु भारत की नौकरशाही, नेताओं और धनकुबेरों पर तीखे व्यंग्यवाण छोड़ता है। यहां तक कि वह भ्रष्ट अफसरों की बीवियों को भी नहीं छोड़ता है, जो भारत-पाक युद्ध के समय देशभक्ति के नाम पर सभाएं करती हैं, चंदा वसूलती हैं और उसे चट कर जाती हैं। शहीदों के ताबूतों में दलाली खाने वालों या पराजय को विजय की तरह भुनाने वालों पर, इस कृति में बड़े ही तीखे व्यंग्य किये गये हैं।
‘कहेगा आईना सब कुछ’ काव्यकृति में 118 मुक्तक हैं, जो कि विविध विषयों पर रचे गये हैं। इन मुक्तकों के माध्यम से कवि का मानना है कि भजन-कीर्तन या पूजा-पाठ, पापों को ढकने का साधन हैं। कवि का मानना है कि राम और रहीम, मंदिर या मस्जिद में नहीं, मन में बसते हैं-
भजन कीर्तन पूजा हैं सब, पापों को ढकने के साधन
मंदिर-मस्जिद में मत ढूंढों, राम रहीम इसी मन में हैं।
कवि खुलकर अपनी बात यूं रखता है-
काट रहा है आरी बनकर, जज्बातों को अहम् हमारा
अपने चारों ओर बना ली, हमने क्षुद्र स्वार्थ की कारा।
‘मोती कच्चे धागे में’ हाइकु-संग्रह ‘विष पीकर अपराजित रहने वाले व्यक्तित्वों’ को समर्पित है। इस संग्रह के अधिकांश हाइकु आज के दौर के तौर-तरीकों पर जहां व्यंग्य के साथ उपस्थित हैं, वहीं कुछ में चम्पई धूप जैसा रूप मुस्कानों में प्यास जगाता हुआ नज़र आता है। कुछ हाइकुओं का भविष्य की चिंता के बदले वर्तमान को मस्ती के साथ जीने से नाता है। भले ही ‘जीवन-क्षण/ मुट्ठी में खिसकते/ बालू के कण’ हों, भले ही ‘नेह-निर्झर/ मिले सूखने पर/ रेत पत्थर’ के समान हों, किन्तु हाइकुकार का विश्वास है-‘यदि लगन/ तो शिखर भी झुकें/ करें नमन’। इसी कारण वह कह उठता है-‘ मत रो मन/ तपने से मानव/ होता कुन्दन’। इस पुस्तक को पढ़कर यह कहा जा सकता है कि ‘मोती कच्चे धागे में’ हाइकु-कृति सहमति-असहमति, रति-विरति, उन्नति-अवनति की गति को प्रकट करने में पूरी तरह सफल है।
‘सूख गये सब ताल’ ग़ज़ल संग्रह की ग़ज़लें शुद्ध रदीफ-कापियों के प्रयोग के कारण उस तुक-रोग से मुक्त हैं, जो सामान्यतः आज के ग़ज़लकारों में पाया जाता है। इन ग़ज़लों में छंद-दोष भी नहीं है, इसलिये इन्हें धारा-प्रवाह पढ़ा या गाया जा सकता है। महकते हरसिंगार, ग़ज़लकार को बार-बार प्रेयसि को वियोग में आंसू बहाने के लिये विवश करते हैं। उसके मन के भाव कभी उल्लास तो कभी अवसाद से भरते हैं। शृंगार के संयोग या वियोग के पक्ष को प्रस्तुत करने में ग़ज़लकार पूरी तरह दक्ष नज़र आता है। इस संग्रह में ऐसी भी अनेक रचनाएं हैं, जिन्हें कवि ने व्यवस्था के प्रति पनपे आक्रोश से जोड़ा है। ऐसी रचनाएं अपना अलग ही प्रभाव छोड़ती हैं। चोट-खाये आदमी के मन पर नीबू-सा निचोड़ती हैं।
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा की अब तक प्रकाशित 9 काव्य-कृतियों को पढ़ने के बाद, यह बात तर्कपूर्वक कही जा सकती है कि कवि में काव्यत्य के सभी वे गुण विद्यमान हैं, जिनसे काव्य श्रेष्ठ बनता है।
डॉ. गोपालबाबू शर्मा जीवन के 82 वसंत देख चुके हैं। काया में भले ही वे आज दुर्बल हैं, लेकिन उनकी कविता के भाव प्रबल हैं। ईश्वर करे यह प्रबलता यूं ही लम्बे समय तक ध्वनित होती रहे। विरस होते वातावरण में सुगन्ध घोलती रहे। कविताएं लिखने का जज़्बा आज भी उनके भीतर मौजूद है। आशा है अभी उनकी कई नयी काव्य-कृतियां सामने आएंगी।
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रमेशराज,15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मोबा.9634551630
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