1-माँ के आँचल जैसी धूप सूरज की किरणें हैं फैली, बिखर गई फूलों की थैली, गरम-नरम यों हाथ फेरती, माँ के आँचल जैसी है धूप। . सबको अपने पास बुल...
1-माँ के आँचल जैसी धूप
सूरज की किरणें हैं फैली,
बिखर गई फूलों की थैली,
गरम-नरम यों हाथ फेरती,
माँ के आँचल जैसी है धूप।
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सबको अपने पास बुलाती,
जाड़े में है हमें लुभाती,
प्यार भरी मुस्कान निराली,
सब पर छाती मीठी धूप।
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नन्हें बच्चों की है साथी,
नहीं किसी से बैर दिखाती,
एक साथ है सब पर पड़ती,
सुन्दर बड़ी सुनहली धूप।
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जाड़े में सबको सुख देती,
सर्दी मिनटों में हर लेती,
इसी तरह सबके आँगन में,
हरदम रहे थिरकती धूप।
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2-सब ताने सो रहे रजाई
सर्दी फिर से आई भाई,
निकले कम्बल और रजाई।
कपड़े पर कपड़े हैं पहने,
फिर भी सब पर ठण्डक छाई।।
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पूरी रात रहे सिसियाते,
सुबह-सबेरे नहीं नहाते।
आग जला कर बैठ तापते,
ठिठुर-ठिठुर कर समय बिताते।।
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आठ बजे तक अब है सोना,
मुन्नी-मुन्ना का ये कहना।
आज नहीं है पढ़ने जाना,
हमको बस लेटे ही रहना।।
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ऐसी ठण्डक अबकी आई,
सब पर अपनी धाक जमाई।
नहीं किसी को काम सूझता,
सब ताने सो रहे रजाई।।
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3- खुशी भरे दीवाली के दिन
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दीवाली में हँसते-गाते रहते हरदम बच्चे।
जेब भरी हो या खाली हो मस्त राम हैं सच्चे।।
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दस दिन पहले दीवाली , उनके सपनों में आती।
मजेदार रसगुल्ले खाते, सबके मन को भाती।।
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सजे हुए बाजारों से सब ढेर पटाखे लाते।
छोटे-बड़े सभी मिल करके बम को खूब दगाते।।
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छोटे बच्चे छुरछुरियों से अपना खेल रचाते।
फुर्र-फुर्र कर उसे जलाते, लेकर और घुमाते।।
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खुशी भरे दीवाली के दिन लगते सबसे अच्छे।
साथ अगर हों साथी ऐसे जो हों मन के सच्चे।।
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3- मदर टेरेसा
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सबसे अच्छी मदर टेरेसा,
ममता की थी मूरत।
जिसे देख सबको दिख जाती,
अपनी माँ की सूरत।।
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प्रेम, अहिंसा, त्याग, सफलता-
की छोटी-सी पुतली।
दीन-दुखी की सेवा करने,
अपने घर से निकली।।
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पूरी दुनिया में घूमी वह,
लेकर प्यार-दुलार।
जाति-पाँति का भेद न जाने,
करती सबसे प्यार।।
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नहीं रही अब मदर टेरेसा,
गई ईश के धाम।
हम बच्चों को करने हैं अब,
उनके अधूरे काम।।
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4-झूम रही हर डाली-डाली
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चलो पेड़ पर झूला झूलें,
धरती और गगन को छूलें।
झूले पर सब मिलकर बैठें,
मस्त मगन हो खुद को भूलें।।
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धरती पर फैली हरियाली,
झूम रही हर डाली-डाली।
ठण्डी हवा चले पुरवाई,
सबको सुख पहुँचाने वाली।।
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कोयल मीठे गीत सुनाए,
बच्चे मस्ती मौज मनाएँ।
बन्दर जैसे उछलें-कूदें,
डाल-डाल पर उधम मचाएँ।।
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सुबह अनोखी शाम निराली,
सुन्दर-सुन्दर भोली-भाली।
चहक रहे हैं जीव जन्तु सब,
फूल खिल गए डाली-डाली।।
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5-जादू वाला घोड़ा लाओ
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पापा-मम्मी मेला जाओ।
जादू वाला घोड़ा लाओ।।
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उड़े यहाँ से आसमान तक,
मुझे बिठा कर सैर कराए,
पंख लगे हों सोने जैसे,
नई दिशा में लेकर जाए,
जादू का ही खेल जहाँ हो,
वहाँ तलक हमको पहुँचाओ।
जादू वाला घोड़ा लाओ।।
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जगह जहाँ की हो मतवाली,
मेरे मन को भी भा जाए,
सोनपरी-सी छोटी बच्ची,
मझको अपने संग खिलाए,
चाँदी जैसा घोड़ा लाकर,
प्यार जता कर मन बहलाओ।
जादू वाला घोड़ा लाओ।।
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6-बुरा हो गया मेरा हाल
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सोते-सोते सपना देखूँ ,म्बर में तारों का जाल।
सूरज-चन्दा फँसे हैं जिसमें,
बाहर आने को बेहाल।।
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सूरज की ये देख के हालत,
मेरे मन में उठा सवाल।
कैसे इनकी जान बचाऊँ,
कैसे इनका काटूँ जाल।।
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जब मेरी कुछ समझ न आया,
तब पहुँचा मैं उनके पास।
हाल-खबर सब पूँछ-पाँछ कर,
कहा-'न होना कभी उदास।।
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यदि हिम्मत ही हार गए तो
कैसे छूटोगे तुम आज।
मैं आया हूँ मत घबराना,
अभी सोचता हूँ कुछ काज।।'
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सोच-समझ कर हाथों से मैं,
लगा फाड़ने उनका जाल।
किन्तु फँस गया मैं भी उसमें,
बुरा हो गया मेरा हाल।।
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तड़प-तड़प कर मैं चिल्लाया,
मम्मी बोली मेरे लाल।
सोते से फिर मुझे जगाया,
प्यार जताकर चूमे गाल।।
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7-तितली रानी
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रोज सुबह जब सूरज उगता।
तितली रानी का मन खिलता।।
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फूल देखकर वह ललचाती।
गीत खुशी के दिनभर गाती।।
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रोज बगीचे में आ जाती।
सैर-सपाटा करके जाती।।
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इधर-उधर अकसर मँडराती।
दूर-दूर तक ये हो आती।।
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रंग-विरंगी प्यारी-प्यारी।
उड़ती फिरती क्यारी-क्यारी।।
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इन्हें देख कर बच्चे आते।
पीछे-पीछे दौड़ लगाते।।
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कोमल-कोमल पंख हिलाती।
कभी किसी के हाथ न आती।।
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झुण्ड बना कर संग में रहती।
दुश्मन से मिलकर है लड़ती।।
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8-पेड़ लगाएँ ऐसा
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पेड़ लगाएँ ऐसा।
झिलमिल तारों जैसा।।
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बिस्किट के हों पत्ते जिसमें,
टाफी के ही फल हों,
चुइंगम जैसा गोंद भी निकले,
शकरकन्द-सी जड़ हो,
डाल पकड़ कर अगर हिलाएँ,
टप-टप बरसे पैसा।
पेड़ लगाएँ ऐसा।।
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डाल तोड़ कर दूध निकालें,
फिर पूरा पी जाएँ,
मक्खन, बर्फी, दही जमा के,
हम बच्चे मिल खाएँ,
रात अँधेरे में चमके जो
लगे सितारों जैसा।
पेड़ लगाएँ ऐसा।।
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9-चोटी नहीं गुहाए गुड़िया
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मेरे पापा लाए गुड़िया।
मेरे मन को भाए गुड़िया।।
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आँखें उसकी हैं चमकीली,
थोड़ा-सा मुस्काए गुड़िया।
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काले-घने बाल हैं लम्बे,
चोटी नहीं गुहाए गुड़िया।
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नाम धरूँ क्या सोच न पाऊँ,
चावी से चल जाए गुड़िया।
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सूरत उसकी भोली-भाली,
मन को बहुत लुभाए गुड़िया।
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10-जब मुँह खोलो मीठा बोलो
टाफी खाओ, बिस्किट खाओ,
विद्यालय में पढ़ने जाओ।
अपना काम स्वयं निपटाओ,
गीत खुशी के गाते जाओ।।
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खुश होकर ही सबसे बोलो,
नहीं प्यार में नफरत घोलो।
मिल-जुल कर ही काम करो सब
जब मुँह खोलो, मीठा बोलो।।
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रोज पढ़ो तुम इंग्लिश, हिन्दी,
गिटपिट-गिटपिट करके बोलो।
करो खूब अभ्यास गणित का,
नई सीख विज्ञान से ले लो।।
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टीचर की मत करो बुराई,
सदा बड़ों की इज्जत करना।
आपस में सब कभी न लड़ना,
प्रेम-भाव से मिल कर रहना।।
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लिखना-पढ़ना जो भी करना,
अपने मन में भरते रहना।
हरदम आगे कदम बढ़ाना,
कभी नहीं तुम पीछे हटना।।
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11-सबसे प्रेम करे सब कोई
हम सब मिलकर घूमें जंगल,
घूम-घूम कर बनें सिकन्दर।
शेरों से हम यूँ लड़ जाएँ,
जैसे कोई हो वह बन्दर।।
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सारे जंगल में हम खेलें,
उछल-कूदकर करें झमेले।
साते-सोते सपने देखें,
पेड़ों पर हम झूला झूलें।।
तोता-मैना सब आ जाएँ,
मीठे-मीठे गीत सुनाएँ।
गीतों में हो नई कहानी,
जिसको सुनकर धूम मचाएँ।।
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चील, साँप से करें दोस्ती,
जीवों पर हम दया दिखाएँ।
सबसे प्रेम करे सब कोई,
ऐसा ही कुछ करते जाएँ।।
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12-नहीं विदा करना गुड़िया को
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सलमा, श्वेता, रानी दौड़ो,
चूड़ी वाले से कुछ ले लो।
लाल, बैंगनी, नीली-पीली,
रंग-बिरंगे कंगन चुन लो।।
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छोटी-छोटी भी कुछ चूड़ी
लेकर गुड़िया को पहना दो।
एक घाँघरा रंग-बिरंगा,
छोटी-सी जूती भी ला दो।।
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गुड़िया की हो गई तयारी,
गुड्डे के कपड़े सिलवा दो।
अफसर जैसा सूट-बूट हो,
जूते-मोजे भी पहना दो।।
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शादी में अब देर न करना,
जल्दी से फेरे करवा दो।
फेरे हो गए, शादी हो गई,
अब गुड़िया को विदा करा दो।।
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नहीं विदा करना गुड़िया को,
श्वेता रोते-रोते बोली।
गुड़िया में ही जान है मेरी,
कैसी जी पाऊँ वह बोली।।
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13-कैसा होगा यह संसार
लगा हो सोने का अम्बार।
कैसा होगा यह संसार।।
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न हो धरती, न हो अम्बर,
न हो जीवों का भण्डार,
न पंछी का कलरव गूँजे,
न बच्चों की रहे पुकार,
न सदियों तक सूरज निकले,
पैसों की हो लगी बजार।
कैसा होगा यह संसार।।
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रात चाँदनी, चाँदी बरसे,
मन उस तक जाने को तरसे,
तारे सब नीचे आ जाएँ,
और कबड्डी खेलें हमसे,
गुल्ली-डण्डा, कंचे खेलें,
नहीं किसी की हो फटकार।
कैसा होगा यह संसार।।
देख के चूहा बिल्ली भागे,
कुत्ता देख के भागे शेर,
कछुआ ठुमक-ठुमक कर नाचे,
भालू खाए मीठे बेर,
हाथी पूँछ दबाकर भागे,
चींटी की यदि हो सरकार।
कैसा होगा यह संसार।।
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14-पेड़ लगाएँ
क्यारी-क्यारी चलो सजाएँ।
बढ़िया-बढ़िया पेड़ लगाएँ।।
कहीं टमाटर, कहीं पे बैंगनहीं लटकते मिर्चा,सहजन,
गेंदा, बेला और चमेली,
खिले डाल पर सुन्दर केली,
चलो गुलाबों को ले आएँ,
जो सारी बगिया महकाएँ।
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क्यारी-क्यारी चलो सजाएँ।
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चारों तरफ लगाएँ केले,
लौकी, कद्दू और करेले,
काँटेदार कैक्टस लाएँ,
क्रोटन के भी पेड़ लगाएँ,
गर्मी में शरबत की खातिर,
नींबू के पौधे लगवाएँ।
क्यारी-क्यारी चलो सजाएँ।।
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15-चन्दा मामा
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आओ बैठो पास हमारे।
मेरे चन्दा मामा प्यारे।
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रात अँधेरे में चम-चम-चम,
करते रहते हो उजियारे।
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रातों में हैं सब सो जाते,
कोई किसी को नहीं पुकारे।
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चन्दा मामा बनते राजा,
मंत्री होते हैं सब तारे।
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बच्चा-बच्चा यही पुकारे,
चन्दा मामा सबसे प्यारे।
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16-चिड़िया
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चीं-चीं करती आती चिड़िया।
मेरे मन को भाती चिड़िया।।
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मेरा मन करता मैं पकड़ूँ ,
फुर्र-फुर्र उड़ जाती चिड़िया।
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खिड़की पर ही बना घोसला,
देर रात सो जाती चिड़िया।
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दूर-दूर से दाना लाकर,
बच्चों तक पहुँचाती चिड़िया।
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जब घर पर कोई न होता,
बच्चों के संग आती चिड़िया।
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धीरे-धीरे उड़-उड़ कर खुद,
उड़ना उन्हें सिखाती चिड़िया।
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17-मुझको बच्चा ही रहने दो
नन्हा-मुन्ना बच्चा हूँ मैं,
अपने दिल का सच्चा हूँ मैं।
कभी किसी का बुरा न मानूँ ,
बड़े-बड़ों से अच्छा हूँ मैं।।
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हे! भगवन तुम ऐसा कर दो,
मुझको बच्चा ही रहने दो।
कभी बड़ों-सा झूठ न बोलूँ ,
सच्चाई पर ही चलने दो।।
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मिल-जुल कर मैं रहना चाहूँ ,
सबको अपना कहना चाहूँ।
फूलों-सा मैं हर मौसम में,
हँसना और महकना चाहूँ।।
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ऊँच-नीच का भेद न जानूँ ,
हर मजहब को अपना मानूँ।
प्यार-मुहब्बत की हर भाषा,
कहना और समझना जानूँ।।
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18-हम दोनो
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हम दोनो हैं गुड्डे-गुडिया,
मम्मी कहतीं भैया-बिटिया।
मेरे सर की देख के टोपी,
दौड़े बिटिया बइँया-बइँया।।
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मेरी बहना बोल न पाती,
बात-बात में है तुतलाती।
पकड़ के उँगली धीरे-धीरे,
ठुमक-ठुमक कर कदम बढ़ाती।।
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पापा मुझको गोदी लेकर,
इधर-उधर हैं खूब डुलाते।
लेकिन फिर भी चुप न होता,
टाफी,बिस्किट ढ़ेर दिलाते।।
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मुझे देख कर गुड़िया आती,
छीन-छीन कर टाफी खाती।
पापा हँसते हा-हा-हा-हा,
मम्मी मंद-मंद मुस्काती।।
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19-इसी देश के लिए
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शाम-सबेरे सदा टहलना।
थोड़ी-सी कसरत भी करना।।
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सेहत अच्छी हो जाएगी।
दारा जैसी बन जाएगी।।
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सेहत अच्छी हो जाने पर।
बॉडी-बिल्डर बन जाने पर।।
नहीं किसी से झगड़ा करना,
प्रेम-भाव से मिलकर रहना।।
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कभी नहीं लालच में पड़ना।
मजबूरों की सेवा करना।।
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सेवा पर ही देश खड़ा है।
आजादी का बीज पड़ा है।।
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चन्द्रशेखर और भगत लड़े थे।
इसी देश के लिए मरे थे।।
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हम सबको उन-सा बनना है।
नाम वतन का फिर करना है।।
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20-एक समुन्दर
एक रात सपने में मैंने,
देखा एक समुन्दर।
एक से बढ़कर एक मछलियाँ,
रहतीं उसके अन्दर।।
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छोटी-छोटी, प्यारी-प्यारी,
रंग-बिरंगी न्यारी।
तैरा करती पानी में वह,
मुझको लगतीं प्यारी।।
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मछली बन कर मैं भी तैरूँ,
ऐसा मन में आया।
कूद गया फिर पानी में मैं,
जी भर खूब नहाया।।
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उसी समय आ गया मगरमच्छ,
मुझको करने तंग।
बड़ी जोर से मैं चिल्लाया ,
घर भर हो गए दंग।।
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21-चलो-चलें लखनऊ
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चलो-चलें लखनऊ घूमने।
घूम-घूम कर मजा लूटने।।
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ये है शहर नवाबों वाला।
ऊँचे -ऊँचे ख्वाबों वाला।।
चिड़िया-घर में शेर मिलेंगे।
हाथी, घोड़े, मोर दिखेंगे।।
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तोता-मैना, भालू-बन्दर।
सब होंगे पिंजड़े के अन्दर।।
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नाव चलाएँगे जी भर कर।
मस्ती-मौज करेंगे जमकर।।
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बच्चों वाली रेल निराली।
सबको सैर कराने वाली।।
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इसी शहर में है वो भइया।
जिसको कहते भूल-भुलइया।।
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जो भी उसके अन्दर जाए।
भूल-भूल कर चक्कर खाए।।
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22-एक कहानी मुझे सुनाओ
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एक कहानी मुझे सुनाओ।
बैठो मेरा दिल बहलाओ।।
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राजा की हो या रानी की,
बरखा की हो या पानी की,
सूरज कैसे आता-जाता,
चन्दा कैसे आँख चुराता,
तारों की हो नई कहानी,
नए राग में गाती जाओ।
एक कहानी मुझे सुनाओ।।
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आसमान क्यों दूर है हमसे,
धरती क्यों न मिली गगन से,
हरे-भरे क्यों पौधे रहते,
पशु-पक्षी हैं कैसे जीते,
इसकी कोई कथा सुनाओ,
इन सबकी तुम राज बताओ।
एक कहानी मुझे सुनाओ।।
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22-मेरी दीदी
फूलों जैसी प्यारी-प्यारी,
सारे जग से न्यारी-न्यारी।
मुझको सबसे अच्छी लगतीं,
मेरी दीदी बहुत दुलारी।।
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मुझको राजा भैया कहतीं,
सैर-सपाटा सदा करातीं।
मुझको भी तब अच्छा लगता,
जब वो हँसकर मुझे मनातीं।।
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रोज सबेरे जल्दी उठतीं,
और किताबों को हैं पढ़तीं।
मेरे संग वह खेल-तमाशा,
गुड़ियों से फिर शादी करतीं।।
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मुँह पर मेरे थूक लगा कर ,
छोटा-सा हैं चुम्बन लेतीं।
झूले पर मुझको बैठाकर,
दूध-बताशा भी हैं देतीं।।
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पूरी दुनिया में न ऐसी,
होगी लड़की दीदी जैसी।
मुझ पर हैं वो जान छिड़कतीं,
खूब चहकतीं चिड़ियों जैसी।।
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23-चलो चलें परदेश कमाएँ
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चलो चलें परदेश कमाएँ,
खूब ढ़ेर-सा पैसा लाएँ।
सालों-साल कमाकर पैसे,
गठरी लेकर वापस आएँ।।
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वापस आकर कार खरीदें,
मम्मी-पापा को बैठाएँ।
टी.वी. , पंखा, कूलर लाकर,
रोज चकाचक मौज मनाएँ।।
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छोटी बिटिया को बहलाएँ,
बात-बात पर उसे चिढ़ाएँ।
खेल-खिलौने हाथी-घोड़ा,
चावी वाली गुड़िया लाएँ।।
.
अपनी तो है बात निराली,
सदा करूँगा मैं मनमानी।
नहीं किसी का कहना मानूँ ,
करता जाऊँगा शैतानी।।
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24. मैं भी एक दुल्हनिया लाऊँ
.
मन करता है दूल्हा बनकर,
मैं भी एक दुल्हनिया लाऊँ।
घोड़े पर उसको बैठा कर,
जगह-जगह की सैर कराऊँ।।
.
रोज खरीदूँ टुकली-बिन्दी,
गोटे वाली साड़ी लाऊँ।
झूठ-मूठ के जेवर लाकर,
उसके दिल को मैं बहलाऊँ।।
.
अगर कभी गुस्सा हो जाए,
तो मैं उसको नाच दिखाऊँ।
बर्फी और जलेबी लाकर ,
उसको खूब खिलाता जाऊँ।।
.
फिर भी न माने तो मैं भी,
गुस्सा होकर गाल फुलाऊँ।
दिखा-दिखा करके रसगुल्ले,
अपने मुँह में भरता जाऊँ।।
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25. बरखा रानी
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बरखा रानी आओ।
पानी तुम बरसाओ।।
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हम सब यहाँ नहाएँ,
झूम-झूम कर गाएँ,
पानी की धारा में,
सुन्दर नाव चलाएँ,
सबका मन हर्षाओ।
बरखा रानी आओ।।
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रोज तुम्हारी बाते,
करते आते-जाते,
बादल काले-काले,
देख-देख ललचाते,
अब तो मत तरसाओ।
बरखा रानी आओ।।
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26. मेरा देश
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कितना अच्छा प्यारा देश।
मेरा देश, तुम्हारा देश।।
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कहीं शहर है, कहीं है जंगल,
बहती रहतीं नदियाँ कल-कल,
यहाँ की मिट्टी है उपजाऊ,
सभी जगह होता है मंगल,
नानक, कृष्ण, मुहम्मद साहब,
ईसा का है प्यारा देश।
मेरा देश, तुम्हारा देश।।
.
यहाँ का मौसम है अलबेला,
हरदम लगता रहता मेला,
दूर देश के लोगों का भी,
अकसर उमड़ा करता हेला,
ऊँचे पर्वत पहरा देते,
सारे जग से न्यारा देश।
मेरा देश, तुम्हारा देश।।
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27. प्यारा गाँव
.
नीम की ठण्डी छाँव रे।
सबसे प्यारा गाँव रे।।
.
नहर-ताल में रोज नहाते,
और झूलते पेड़ों पर,
गुल्ली-डण्डा, सैर-सपाटा,
मस्ती करते पेड़ों पर,
तोता, मैना, बुलबुल बोले,
बोले कौआ काँव रे।
सबसे प्यारा गाँव रे।।
.
शहरों में हम बड़े हुए पर
बीता बचपन गाँव में,
हरी-भरी फसलें लहरातीं,
सच्चा जीवन गाँव में,
चुहलबाजियाँ होती घर-घर,
नदी किनारे नाव रे।
सबसे प्यारा गाँव रे।।
.
28. मेरा मोती
.
.
.
बड़ा बहादुर मेरा कुत्ता,
मोती उसका नाम।
मेरे संग वह दौड़ लगाता,
रोज सुबह व शाम।।
एक बार की बात पुरानी,
घोर अँधेरी रात।
लौट रहे थे दावत खाके,
चोर मिले थे सात।।
.
मुझे दिखाया छूरी-कट्टा,
लूट लिया समान।
लेकिन मैंने हार न मानी,
बहुत बघारी शान।।
.
चोरों ने फिर मुझे उठाया
और कहा-नादान।
अभी तुझे मैं पटकूँगा तो
निकल पड़ेगी जान।।
.
चोरों की धमकी सुनकर मैं
नहीं पड़ा कमजोर।
मोती ने फिर झप्पा मारा
और दिया झकझोर।।
.
सातों को घायल कर डाला
कोई बचा न चोर।
मैंने भी तब जल्दी-जल्दी
खूब मचाया शोर।।
.
.
29. जंगल में है मंगल
.
हरा- भरा है प्यारा जंगल।
सबसे सुन्दर न्यारा जंगल।।
.
मोर नाचते सुन्दर-सुन्दर,
बड़े नकलची मामा बन्दर,
सदा फुदकती चिड़िया रानी,
चीं-चीं करके कहे कहानी,
कोयल मीठे गीत सुनाती,
गूँज रहा है सारा जंगल।
हरा-भरा है प्यारा जंगल।।
.
शेर की चलती है मनमानी,
कोई करे न आना-कानी,
खरगोशों की बात निराली,
सुग्गा बोले डाली-डाली,
हिरन हमेशा दौड़ लगाता,
पूरे जंगल में है मंगल।
हरा-भरा है प्यारा जंगल।।
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30. ला दो वही सितारा
चंदा माँगे, सूरज माँगे,
माँगे चाँद-सितारे।
प्यार करूँगी तुझे हमेशा,
सोजा राज-दुलारे।।
.
नहीं और कुछ मुझको लेना,
ला दो वही सितारा।
रोज रात जो खूब चमकता
दिखता प्यारा-न्यारा।।
.
नहीं उसे मैं दे सकती हूँ ,
ले लो गुड़िया प्यारी।
चाँद-सितारे कल ले लेना
मानो बात हमारी।।
.
अच्छा अब मैं सो जाता हूँ ,
कल तुम देना तारा।
नहीं बहाना कोई करना,
न मानूँगा दुबारा।।
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31. शुरू पढ़ाई
.
छुट्टी बीती शुरू पढ़ाई।
सब पर होगी बहुत कड़ाई।।
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नई किताबें पढ़ना होगा।
सबको आगे बढ़ना होगा।।
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खेल-कूद कम हो जाएँगे।
फुर्सत के दिन खो जाएँगे।।
.
विद्यालय अब जाना होगा।
अपना ज्ञान बढ़ाना होगा।।
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32. प्यारी बहना
.
.
प्यारी बहना भूल न जाना,
राखी का त्योहार सुहाना।
जनम-जनम का नाता है यह,
कभी इसे तुम नहीं भुलाना।।
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मुझको प्यारी, मेरी बहना,
नाचे सदा पहन कर गहना।
खेल-तमाशे गुड़ियों वाले,
नहीं किसी का माने कहना।।
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मम्मी-पापा जो हैं लाते,
बाँट-बराबर मिलकर खाते।
जब वह ठुमक-ठुमक चलती,
तब उसको सब पास बुलाते।।
.
बाँध के नोटों वाली राखी,
माँगे मुझसे ढेरों पैसा।,
और न मैं जब पैसा देता,
तब वह कहती ऐसा-वैसा।।
.
33. मम्मी का मैं राजदुलारा
.
मम्मी मुझको सुबह जगातीं,
रोज बाग की सैर करातीं।
नहलातीं, कपड़े पहनातीं,
काला टीका रोज लगातीं।।
.
पापा से मुझको डर लगता,
फिर भी प्यार बहुत हूँ करता।
जब पापा गुस्सा हो जाते,
तब मैं उनसे बात न करता।।
.
मम्मी मेरी सीधी-साधी,
मीठी-मीठी बातें करतीं।
जीभर मैं शैतानी करता,
गुस्सा मुझ पर कभी न करतीं।।
.
मम्मी-पापा दोनो अच्छे,
मैं उनकी आँखों का तारा।
पापा का हूँ अच्छा बेटा,
मम्मी का हूँ राजदुलारा।।
.
34. मेरी मर्जी
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काश अगर ऐसा हो जाए।
मेरी मर्जी ही चल जाए।।
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दुनिया भर के चक्कर काटूँ ,
पंछी बन ऊपर उड़ जाऊँ,
चंदा को फुटबॉल बना लूँ ,
आसमान धरती पे लाऊँ,
ईश्वर भी मुझसे डर जाए।
काश अगर ऐसा हो जाए।।
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खूब दिखाऊँ जादू-टोना,
घर से भी गायब हो जाऊँ ,
लाल छड़ी मैं लेकर घूमूँ ,
बच्चों-बूढ़ों को बहलाऊँ ,
गली-गली में रौनक छाए।
काश अगर ऐसा हो जाए।।
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दिन में चाँद-सितारे देखूँ ,
रात उगे सूरज को पाऊँ ,
घर-स्कूल में डाँट पड़े न,
जब मर्जी हो पढ़ने जाऊँ ,
मिले वही सब जो मन भाए।
काश अगर ऐसा हो जाए।।
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रोज रात जो सपना देखूँ ,
दिन में उसको सच्चा पाऊँ ,
कभी-कभी जंगल में जाकर,
चीते को भी घास खिलाऊँ ,
मुझे देख हाथी डर जाए।
काश अगर ऐसा हो जाए।।
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35. नीम हँसा, पीपल मुस्काया
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सूरज लाल-लाल निकला है
जैसे कोई फूल खिला है।
ठण्डी-ठण्डी हवा सुगन्धित
लगता सब कुछ धुला-धुला है।।
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चिड़ियों ने पाँखें फैलाई
अहिस्ता से ली अँगड़ाई।
फूलों के कानों में आकर
भौंरों ने आवाज़ लगाई।।
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नीम हँसा, पीपल मुस्काया
झूम उठी तुलसी की काया।
दादी जी ने सुबह नहाकर
ठाकुर जी को भोग लगाया।।
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पापा बहुत देर से जागे
फौरन ही दफ्तर को भागे।
गोलू बस्ता लेकर अपना
निकल पड़ा उनसे भी आगे।।
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36. बच्चों जैसे प्यारे फूल
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कितने सुन्दर प्यारे फूल।
हरदम हैं मुस्काते फूल।।
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लाल, बैंगनी, हरे, गुलाबी,
सबको खूब लुभाते फूल।
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खुशबू सदा लुटाते रहते,
रोज सुबह खिल जाते फूल।
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जाति-पाँति का का भेद न जानें,
बच्चों जैसे प्यारे फूल।
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झूम-झूम कर जैसे हमको ,
अपने पास बुलाते फूल।
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रोना नहीं सदा खुश रहना
हँसना हमें सिखाते फूल।।
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37. छुट्टी के दिन
छुट्टी के दिन हैं मस्ताने,
झूम-झूम कर मौज मना लें।
पढ़ना-लिखना रोज-रोज का ,
छुट्टी में ही गप्प लड़ा लें।।
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नाना-नानी के घर जाकर,
रबड़ी, दूध मिठाई खा लें।
मामा को कंगाल बना के,
सेहत अपनी खूब बना लें।।
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बाग-बगीचों में भी खेलें,
पेड़ों पर झूला भी झूलें।
मन चाहे जो करें शरारत
छुट्टी के दिन मस्ती ले लें।।
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कुल्फी, बरफ, मलाई खाएँ,
कोकाकोला भी पी जाएँ।
बार-बार मन कहे हमारा,
छुट्टी के दिन कभी न जाएँ।।
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38. मिल-जुल कर ही चलती रेल
खेलें-खेल बनाकर रेल।
भीड़-भड़क्का ठेलम्-ठेल।।
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रेल बनेगी लम्बी-चौड़ी,
स्टेशन पर पुआ पकौड़ी,
रेल चलाएँगे सब मिलकर,
एक साथ सब कदम मिलाकर,
कोई किसी को छोड़ न देना,
रेल का डिब्बा तोड़ न देना,
तेज चलाएँगे हम रेल।।
भीड़-भड़क्का ठेलम्-ठेल।।
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चिन्टू , पप्पी, गोल्डी, आओ,
कमर पकड़ कर रेल बनाओ,
लल्लू भैया दीदी आएँ,
वे सबसे आगे लग जाएँ,
मिन्टू ,बच्चा, रिंकू जाओ,
तुम भी तो कुछ मदद कराओ,
मिल-जुल कर ही चलती रेल।
भीड़-भड़क्का ठेलम्-ठेल।।
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झक-झक-झक-झक रेल चलेगी,
कहीं बीच में नहीं रूकेगी,
हिन्दू-मुस्लिम सिक्ख ईसार्ई,
खर्च करे जो आना-पाई,
उसको घर तक पहुँचाएगी,
मंजिल सबको मिल जाएगी,
बच्चों की यह प्यारी रेल।
भीड़-भीड़क्का ठेलम्-ठेल।।
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39. घर-घर हँसी-ठिठोली है
होली है भई होली है।
बुरा न मानो होली है।।
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गली में रंगों की बौछार,
मचा हुआ है हा-हा कार,
पैन्ट, पजामे सभी रंगे हैं,
रंगों की चल रही फुहार,
छोटू , पप्पी, गुड़िया, पिंकू ,
सबने पुड़िया घोली है।
बुरा न मानो होली है।।
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कोई काला भूत बना है,
और कोई है लालो-लाल,
पिचकारी से सबको रंगते,
खूब लगाते रंग-गुलाल,
सबको ही सब गले लगाते,
माथे चन्दन रोली है।
बुरा न मानो होली है।।
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कोई कमरे में छुप जाता,
कोई छत पे है चढ़ जाता,
रंग देख के कोई भागे,
कोई उल्टा है दौड़ाता,
गलियों है में भागम्-भागी,
घर-घर हँसी-ठिठोली है।
बुरा न मानो होली है।।
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39. ललचाया पर खा न पाया
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आज रात सपने में देखा,
पंख लगाकर उड़ता हूँ।
टिम-टिम चाँद-सितारों को मैं,
छूता और पकड़ता हूँ।।
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तभी निकल कर एक परी ने,
मुझको अपने पास बुलाया।
फूलों के झिलमिल झूले पर,
मुझको काफी देर झुलाया।।
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उड़न-खटोले पर बैठाकर,
परी लोक की सैर कराया।
फिर वह अपने महल ले गई,
पकवानों का थाल सजाया।।
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लेकिन तभी आ गईं मम्मी,
हाथ पकड़ कर मुझे जगाया।
पकवानों का थाल खो गया,
ललचाया पर खा न पाया।।
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40. सर्दी से सब जान बचाएँ
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जाड़े का मौसम जब आए।
थर-थर-थर-थर बदन कँपाए।।
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गरम रजाई कम्बल लाए,
स्वेटर और कोट पहनाए,
सर्दी से सब जान बचाएँ,
मफलर, टोप जल्द ही लाएँ,
आग बार कर हमे तपाए।
जाड़े का मौसम जब आए।
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सबके दाँत कटाकट बोले,
ठण्डी अपना मुँह है खोले,
पानी देख दूर हो जाते,
छय-छय दिन तक नहीं नहाते,
पानी से तो सब घबराए।
जाड़े का मौसम जब आए।।
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रात बड़ी, दिन छोटे रहते,
पंखे, कूलर कभी न चलते,
बिस्तर पर काफी मिल जाए,
और पकौड़ी भी आ जाए,
सर्दी सबको बहुत सताए।
जाड़े का मौसम जब आए।।
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41. नए साल की नई कहानी
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बीत गया है साल पुराना,
नया साल फिर आया है।
नई उमंगे जागी मन में,
नया जोश फिर छाया है।।
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बीती बातें छोड़-छाड़ कर,
नई डगर पर जाना है।
नए साल के साथ चलें हम,
आगे कदम बढ़ाना है।।
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नए साल की नई कहानी,
नई तरह से आई है।
आशा की यह नई किरण बन,
नई रोशनी लाई है।।
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सब सबको दे रहे मुबारक,
बच्चों के मन भाया है।
नई जिन्दगी शुरू करें फिर,
ऐसा मौका आया है।।
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42. सबको नाच दिखाता है
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लेकर साँप सपेरा आता,
सबका मन बहलाता है।
फन के आगे हाथ दिखाता,
खुद को बहुत बचाता है।।
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गाँव-गाँव में, शहर-शहर में,
अपनी बीन बजाता है।
नाग झूमता फन फैला कर,
सबको नाच दिखाता है।।
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खेल देख कर सब खुश होते,
ताली जोर बजाते हैं।
खेल खतम होते ही दर्शक,
पैसे खूब लुटाते हैं।।
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पैसे लेकर के सबसे वह
अपनी झोली भरता है।
खेल दिखाकर के सबको वह
अपने घर को चलता है।।
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43. बिल्ली रानी
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बिल्ली रानी बड़ी सयानी,
दूध रोज पी जाती है।
आहत पाकर नौ दो ग्यारह,
पहले ही हो जाती है।।
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बच्चे जब घर पर होते हैं
तब चुपके से आती है।
धीरे-धीरे पूँछ हिला कर
उनका मन बहलाती है।।
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अपने बच्चों को लेकर,
जब बिल्ली रानी आती है।
दीदी अपने पास बुलाकर,
उनको दूध पिलाती है।।
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इसे देख कर भगते चूहे,
जल्दी से छिप जाते हैं।
बिल्ली से बच गयी जान,
तो अपनी खैर मनाते हैं।।
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44. गाँव घूमने जाएँगे
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मामा के घर जाएँगे,
छुट्टी वहीं बिताएँगे।
रबड़ी, दूध, मलाई खाकर,
सेहत खूब बनाएँगे।।
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बगिया में हम जाएँगे,
आम तोड़कर खाएँगे।
रोज करेंगे धमा चौकड़ी
आफत बहुत मचाएँगे।।
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नानी जी का हाथ पकड़ कर,
गाँव घूमने जाएँगे।
नाना हमको गोद उठाकर,
टाफी ढ़ेर खिलाएँगे।।
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मामा साइकिल पर बैठाकर,
हमको सैर कराएँगे।
मस्ती-मौज करेंगे जमकर,
फिर वापस घर आएँगे।।
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45. सबसे ही सबका नाता है
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सूरज दादा के आते ही,
अँधियारा सब मिट जाता है।
चका-चौंध दूधिया उजाला,
चारों ओर बिखर जाता है।।
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सूरज की नन्हीं किरणों से ,
नई ताजगी भर जाती है।
फूल डालियों पर हँसते हैं,
कोयल कुहू-कहू गाती है।।
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भेद-भाव की बात न जाने,
सबसे ही उसका नाता है।
सबके लिए रोशनी उसकी,
वह सबका जीवनदाता है।।
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नहीं पराए सब अपने हैं,
सबसे ही सबका नाता है।
यही बात वह घूम-घूम कर
सब लोगों तक पहुँचाता है।।
.....................
जीवन-वृत्त
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नाम : राम नरेश 'उज्ज्वल'
पिता का नाम : श्री राम नरायन
विधा : कहानी, कविता, व्यंग्य, लेख, समीक्षा आदि
अनुभव : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग पाँच सौ
रचनाओं का प्रकाशन एवं आकाशवाणी से कविताओं का प्रसारण।
प्रकाशित पुस्तके : 1-'चोट्टा'(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0
द्वारा पुरस्कृत)
2-'अपाहिज़'(भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत)
3-'घुँघरू बोला'(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा पुरस्कृत)
4-'लम्बरदार'
5-'ठिगनू की मूँछ'
6- 'बिरजू की मुस्कान'
7-'बिश्वास के बंधन'
8- 'जनसंख्या एवं पर्यावरण'
सम्प्रति : 'पैदावार' मासिक में उप सम्पादक के पद पर कार्यरत
सम्पर्क : उज्ज्वल सदन, मुंशी खेड़ा, पो0- अमौसी हवाई अड्डा, लखनऊ-226009
मोबाइल : 09616586495
ई-मेल :
ujjwal226009@gmail.com
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